आखिरकार कांग्रेसियों की कुंभकर्णी नींद टूटी
एक बात जो हमारे लोकतंत्र के लिए सबसे ज्यादा चिंताजनक है वो यह कि देश की लगभग सभी पार्टियों में (वामपंथी दलों को छोड़ दिया जाए तो) आंतरिक लोकतांत्रिक परंपराओं को गला घोंट दिया गया है।
नवीन शर्मा
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस अभी अपने सबसे बुरे दिनों से गुजर रही है। इसके कई कारण गिनाए जा सकते हैं लेकिन एक बड़ा कारण यह भी है कि कांग्रेस में लोकतांत्रिक ढंग से पार्टी में पदाधिकारियों के चुनाव को तिलांजलि दे दी है। इसके अलावा पार्टी पर नेहरू – गांधी परिवार का लंबे समय तक कब्जा रहा है। इसको लेकर अधिकतर कांग्रेसी असहज महसूस नहीं करते हैं। यही कारण है कि इसका मुखर और सशक्त विरोध बहुत कम हुआ है। पीए संगमा और शरद पवार ने विरोध किया तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। मजबूरन इनको नई #NCP पार्टी बनानी पड़ी थी।
पिछले कई वर्षों से सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद पर काबिज हैं और पार्टी दिनों दिन सिकुड़ती जा रही है। ऐसे में अब एक बार फ़िर पार्टी में लोकतांत्रिक ढंग से पदाधिकारियों के चुनाव की मांग उठाई जा रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल सहित 23 नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखा है। आजाद ने साफ कहा है कि प्रदेश अध्यक्ष, जिलाध्यक्ष और प्रखंड अध्यक्ष सहित हर स्तर पर चुनाव कराने पर जोर दिया। नबी ने कहा कि ‘ चुने हुए लोग पार्टी का नेतृत्व करेंगे तो पार्टी के लिए अच्छा होगा नहीं तो कांग्रेस अगले 50 साल तक विपक्ष में ही बैठी रहेगी।
सभी पार्टियों का एक सा हाल
एक बात जो हमारे लोकतंत्र के लिए सबसे ज्यादा चिंताजनक है वो यह कि देश की लगभग सभी पार्टियों में (वामपंथी दलों को छोड़ दिया जाए तो) आंतरिक लोकतांत्रिक परंपराओं को गला घोंट दिया गया है। यहां तक की एकदम निचले स्तर जैसे शहरों में मंडल, वार्ड तथा जिलों में प्रखंड (ब्लॉक) अध्यक्ष तक के चुनाव से परहेज किया जाता है। इन नेताओं को मनोनीत किया जाता है। कई बार चुनाव को नाटक तो होता है लेकिन ऊपर के नेता सर्वसम्मति का ढकोसला कर चुनाव को टालते हैं और चाहते है कि अपनी पसंद के किसी आदसमी को थोप दिया जाए। ये बहुत ही खतरनाक परंपरा है इसका पालन ऊपर के चुनावों में भी होता है।
यहां तक कि जब किसी राज्य के मुख्यमंत्री को चुनने की नौबत आती है तो बहुमत पानेवाली पार्टी के विधायकों अपने नेता का चुनाव करने का मौका कभी-कभार ही मिल पाता है ज्यादातर मामलों में आलाकमान अपने किसी फेवरेट आदमी को थोप देता है। कई उदाहरण तो ऐसे होते हैं कि मुख्यमंत्री बनाए जानेवाला व्यक्ति विधानसभा का चुनाव भी नहीं लड़ा होता है और अचानक से वो सीएम बना दिया जाता है। यह उस पार्टी के विधायकों के साथ अन्याय है ही उस प्रदेश की जनता के साथ भी धोखा होता है।
क्षेत्रीय पार्टियों का भी यही हाल
कांग्रेस का विरोध कर विभिन्न राज्यों में दर्जनों क्षेत्रीय पार्टियां बनाई गईं लेकिन दुर्भाग्य से इन पार्टियों में भी परिवारवाद और भाई भतीजावाद का रोग बुरी तरह से लग गया है। मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश ने समाजवादी पार्टी को परिवार की जागीर बना दिया है।
यही काम लालू प्रसाद ने बिहार में किया। अपने पूरे खानदान को पार्टी के ऊंचे पदों पर भर दिया। रामविलास पासवान ने भी यही काम किया। दक्षिण भारत में एनटीआर और करूणानिधि ने भी परिवारवाद को ही बढ़ावा दिया। महाराष्ट्र में बाल ठाकरे ने भी यही काम किया।
मनमोहन सिंह जैसे बिना जनाधार का व्यक्ति प्रधानमंत्री बना
वहीं सबसे दुर्भाग्य की बात तो यह कि देश के ऊपर भी मनमोहन सिंह जैसे बिना जनाधार के व्यक्ति को थोप दिया गया। यह केवल इसलिए कि वे यसमैन, बिना रीढ़ का होने के कारण व महत्वाकांक्षी नहीं होने के कारण सोनिया गांधी के रिमोट से चलने के लिए राजी थे।
अगर हमें अपने देश को सचमुच दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाना है तो हमें सबसे पहले राजनीतिक दलों की आंतरिक चुनाव प्रणाली को लोकतांत्रिक चुनाव प्रणाली को मजबूत करना होगा तभी जाकर हमें ऊपर लेवल में भी रीढ़ की हड्डीवाले नेता मिलेंगे जो देश का नेतृत्व करने का माद्दा रखते हों।