श्री राधाकृष्ण गिर गौशाला में वैदिक रीति से होती है गायों की सेवा, गिर गायों की मगध क्षेत्र की पहली गौशाला है यह, विद्वान वैधराज यहां करेंगे आयुर्वेद औषधि का निर्माण

श्री राधाकृष्ण गिर गौशाला में वैदिक रीति से होती है गायों की सेवा, गिर गायों की मगध क्षेत्र की पहली गौशाला है यह, विद्वान वैधराज यहां करेंगे आयुर्वेद औषधि का निर्माण

अमरेन्द्र कुमार सिंह
गया । भारतीय संस्कृति में गाय का बहुत ही पवित्र महत्व है। गाय को माता समान माना जाता है और इसकी पूजा भी इसी रूप में की जाती है। सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति में गौ सेवा सबसे उत्कृष्ट सेवा माना गया है। हमारे देश में ऐसे तो गायों की सैकड़ों प्रजातियां हैं,लेकिन इनमें सौराष्ट्र (गुजरात) की गिर गायों को उत्कृष्ट प्रजाति का माना जाता है। इसे कामधेनु का रूप बताया जाता है, जिसका दूध अमृत समान माना गया है। इन्हीं गिर गायों की मगध क्षेत्र में पहली गौशाला बोधगया के मटिहानी में स्थित श्री राधा कृष्ण गिर गौशाला अपने स्थापना के एक साल में ही अपनी बड़ी पहचान बना ली है। इस गौशाला की खास बात यह है कि यहां गिर गायों की सेवा व्यवसायिक तरीके से नहीं बल्कि वैदिक तरीके से की जाती है और गायों के दो छेमी का ही दूध निकाला जाता है, शेष दो छेमी को बच्चा के लिए छोड़ दिया जाता है। यही कारण है कि यहां के गिर गायों की दूध की मांग दिनों दिन बढ़ती जा रही है। यहां गिर गायों के दूध से विभिन्न तरह के आयुर्वेदिक औषधि के निर्माण की योजना है, जिनमें गौ मूत्र के अर्क से लेकर पंचगव्य समेत अनेक तरह के औषधीय घृत बनाये जायेंगें। इस गौशाला के संचालक श्री बी के चौबे जी बताते हैं कि उन्हें गिर गायों के गौशाला चलाने की प्रेरणा कर्नाटक के उड़पी स्थित प्रसिद्ध श्री कृष्ण मंदिर से मिली। वहीं पर उन्होंने संकल्प लिया और आज साकार रूप में गौशाला है। उन्होंने बताया कि यहां गौमूत्र से अर्क ,पंच गव्य समेत विभिन्न प्रकार के आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण की योजना है। इन औषधियों का निर्माण आर्य वैधशाला, कोट्टकल, केरल के वैधराज की निगरानी में होगा। अभी जितने भी दूध होते हैं, उसकी खपत हो जा रही है, लोगों की मांग के अनुसार दूध के लिए गायों की संख्या बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। इस गौशाला में अभी पचास के करीब गिर गायें और दो नंदी हैं। जिनमें स्वर्ण कपिला प्रजाति समेत अन्य कई गोत्रों की गिर गायें हैं।