बिजली फ्रेंचाइजी निजीकरण व मॉडल का ऑल इंडिया पावर इंजीनियरिंग फेडरेशन ने किया विरोध
राज्य की बिजली उत्पादन इकाइयों को सशक्त करने पर बल
रांची: ऑल इंडिया पावर इंजीनियरिंग फेडरेशन की नागपुर में हुई फेडरल कौंसिल की बैठक में बिजली क्षेत्र के निजीकरण व शहरी फ्रेंचाइजी मॉडल के असफल प्रयोग को बंद करने की मांग की गई। बैठक में विद्युत प्रकल्पों के लिए अनिवार्य रूप से 10 फीसदी कोयला आयात करने की अनिवार्यता को खत्म करने की मांग भी रखी गई। फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे की अध्यक्षता में हुई बैठक में देशभर के सभी राज्यों से आए प्रतिनिधि शामिल हुए। एआईपीईएफ ने सरकार को बिजली सुधार बिल को दोबारा संसद में रखने के पूर्व गंभीरतापूर्वक विचार कर लेने की चेतावनी भी दी गई। बैठक में महासचिव पी. रत्नाकर राव, महामंत्री संजय सिंह, अशोक राव, पीएन सिंह, सुनील ग्रोवर, अप्पास्वामी, संजय ठाकुर, बिश्वरंजन मिश्रा, कार्तिकेय दुबे, सतीश शेलके, प्रसन्ना श्रीवास्तव, प्रशांत चतुर्वेदी सहित 20 राज्यों के पदाधिकारी शामिल हुए।
स्मार्ट प्रीपेड मीटर का विरोध
फेडरेशन में सभी वक्ताओं ने किया। निजीकरण की साजिश का पुरजोर विरोध किया। साथ ही पुरानी पेंशन योजना लागू करने, बिजली सुधार बिल वापस लेने, स्मार्ट प्रीपेड मीटर योजना रद्द करने की मांग रखी। तीनों कंपनियों में बंद पड़ी भर्ती प्रक्रिया शुरू करने की मांग भी की गई। कुछ प्रस्ताव भी पारित किये गए जिसमें कहा गया कि सरकार और बिजली इंजीनियरों का एकमात्र उद्देश्य आम जनता को सस्ती बिजली उपलब्ध कराना है। उल्लेखनीय है कि सबसे सस्ती बिजली राज्य के बिजली उत्पादन घरों से मिलती है। केंद्रीय क्षेत्र से मिलने वाली बिजली इसकी तुलना में कुछ महंगी होती है और सबसे महंगी बिजली निजी क्षेत्र से खरीदनी पड़ती है। ऐसे में अगर आम उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली उपलब्ध करानी है तो राज्यों की बिजली उत्पादन कंपनियों को और मजबूत करना होगा और राज्यों की बिजली उत्पादन कंपनियों को और अधिक मात्रा में नई परियोजनाएं देनी होंगी। फेडरेशन ने मांग की कि देश के बिजली क्षेत्र को आत्मनिर्भर, कुशल और सक्षम बनाने के लिए यह जरूरी है कि राज्यों में बिजली निगमों के शीर्ष प्रबंधन पर विशेषज्ञ और योग्य बिजली इंजीनियरों की नियुक्ति की जाए। मांगों के लिए आंदोलन का निर्णय भी लिया गया।