हर माता-पिता को पढ़नी चाहिए यह कहानी  'और मुन्ना चला गया'

माँ- बाप के द्वारा बच्चों से उम्मीद और उसकी असफलता के बाद जीवन में आने वाले संकट की मार्मिक पीड़ा को बयान करता है यह कहानी।

हर माता-पिता को पढ़नी चाहिए यह कहानी   'और मुन्ना चला गया'

राजेश को यह बात बहुत ही सालता रहता  कि वह एक डॉक्टर बन नहीं पाया । जब भी वह किसी डॉक्टर को देख लेता तो उसका दुःख और बढ़ जाया करता। घर का इकलौता बड़ा लड़का होने के कारण उसे अपनी दुकान भी देखना पड़ता।  दूसरी ओर उनके पिता बीमार रहते। बीमारी के कारण वे ज्यादातर घर में ही रहा करते । छोटी उम्र से ही राजेश दुकानदारी से जुड़ गया। इसके अलावा और कोई विकल्प उसके पास न  था।  फिर भी उसने किसी तरह दुकानदारी करते हुए आईएससी की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास किया। इस दौरान उसके पिताजी थोड़ा ज्यादा ही बीमार रहने लगे। दिन भर दुकानदारी करने के बावजूद राजेश रात में दो-तीन घंटे जरूर पढ़ाई कर लिया करता। लेकिन दुर्भाग्य ने उसका यहां भी पीछा नहीं छोड़ा।  ठीक नीट परीक्षा के दिन ही उसके पिता का देहांत हो गया।  वह चाहकर भी मेडिकल की परीक्षा दे नहीं पाया। 

घर की जिम्मेवारी और डॉक्टर बनने का जुनून  

  पिता के देहांत के बाद घर की पूरी जवाबदेही उसके कंधों पर आ गई ।  वह सोचता रह गया कि नीट  की परीक्षा दूंगा, लेकिन दुकानदारी  के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाया।‌ उसके साथ पढ़ने वाले कई साथी मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले चुके । वह मन मारकर दुकानदारी में लग गया । राजेश आर्थिक रूप से भी इतना मजबूत नहीं था कि दुकान बंद कर नीट की परीक्षा दे सके। पिता के बराबर बीमार रहने के कारण महाजन के भी कुछ कर्ज उस पर चढ़ गए । अगर दुकानदारी नहीं करता तो घर गृहस्थी चलाने के लिए भी लाले पड़ जाते। इसलिए उसने खुद से समझौता कर अपना सारा ध्यान दुकानदारी पर लगा दिया।  फिर भी डॉक्टर न बनने का दुख उसे सालता ही रहता।

माँ की मजबूरी और राजेश की शादी की फिक्र 

   समय बीतता चला गया। उसकी उम्र पच्चीस को छूने लगी । इधर उसकी मां भी बीमार रहने लगी। एक दिन उसकी मां ने अपने भाई को मोबाइल पर कहा, - 'राजेश की उम्र पच्चीस हो गई है। बीमारी के कारण अब मुझसे घर का काम भी ढंग से नहीं हो पाता है। इसलिए राजेश की शादी कर देना चाहती हूं । ताकि अपने रहते हुए बहु को घर की जवाबदेही सौंप सकूं।  अगर तुम्हारे जान पहचान में कोई अच्छी लड़की हो, तो जरूर बताना।‌ संभव हो तो लड़की के पिता के साथ तुम भी आ जाना।'
मोबाइल पर यह संदेश सुनकर राजेश के मामा ने कहा, - 'ठीक है दीदी ! मेरी पहचान में एक लड़की है।  मैं आज ही उनके पिता से मिलकर बात को आगे बढ़ाता हूं। जल्द उन्हें लेकर तुम्हारे घर आता हूं।'
 इस बातचीत के ठीक तीसरे दिन राजेश के मामा एक रिश्ता लेकर उनके घर गये । लड़की वालों को राजेश बहुत पसंद आया। उसके दूसरे ही दिन  राजेश की मां और राजेश लड़की वाले के घर गए। ‌ मां और बेटे दोनों को लड़की पसंद आ गई। राजेश के मामा ने दोनों का रिश्ता तय करा  दिया। विवाह के एक शुभ मुहूर्त में  राजेश और उषा सदा-सदा के लिए परिणय के बंधन में बंध गए।

गुणवती पत्नी और डॉक्टर न बन पाने की कसक 

  बहू उषा रूपवती के साथ गुणवती भी थी । उसने बीकॉम तक पढ़ाई की थी। वह जल्द ही घर गृहस्थी की सारी जवाबदेही ले ली। राजेश की मां यह  देखकर बहुत प्रसन्न रहने लगी। उषा अपनी सासू  मां का ख्याल बहुत ही मन से किया करती। राजेश की शादी के बाद घर का माहौल ही बदल गया। अब राजेश दुकानदारी भी मन लगाकर करने लगा। राजेश, उषा और  मां तीनों के बहुत ही हंसी खुशी जीवन बीतने लगे।
   एक दिन राजेश ने अपनी पत्नी उषा से मन  की बात कह ही डाली,- 'वह एक डॉक्टर बनना चाहता था।  लेकिन घर की परिस्थिति और दुकान की जवाबदेही के कारण डॉक्टर बन नहीं पाया। जिस दिन उसे नीट की परीक्षा देनी थी, ठीक उसी दिन उनके पिता का देहांत हो गया। इसलिए उसका डॉक्टर बनने का सपना अधूरा ही रह गया।'
राजेश की बातें उषा चुपचाप सुनती रहीं ।
फिर आगे राजेश ने कहा,- 'हम दोनों को संतान के रूप में लड़का व  लड़की जो  भी हो, उसे बेहतर से बेहतर शिक्षा दे सकूं। उसे एक डॉक्टर बना सकूं।'
  उषा अपने पति राजेश की मन की  बातें सुनकर बहुत खुश हुई ।उसने शरमाते हुए कहा,- 'पहले होने तो दीजिए।'
 राजेश, उसकी यह बात सुनकर मन ही मन बहुत ही खुश हुआ।
 आगे राजेश ने कहा,-  ' संतान के रूप में लड़का व लड़की जो हो, एक तक ही सीमित रखना चाहता हूं। ताकि हम दोनों  पूरे ध्यान से उस बच्चे को पढ़ा सकें। उसकी पढ़ाई में मेरी तरह कोई दिक्कत न आए इसलिए दुकानदारी में पूरा ध्यान लगा रहा हूं।'
    उषा भी एक ही संतान की पक्षधर थीं। राजेश, उसके ही मन की बात को कहा। उषा मन ही मन यह भी सोच रही थी कि हम दोनों के विचार कितने मिलते जुलते हैं। राजेश की बातें सुनकर उषा ने कहा,-  'मैं भी यही चाहती हूं।'

पुत्ररत्न की प्राप्ति और डॉक्टर बनाने का सपना 

   समय बीतते देर नहीं लगती । शादी के कुछ ही महीनों बाद उषा गर्भवती हो गई।  यह शुभ समाचार सुनकर राजेश बहुत प्रसन्न हुआ। शादी के डेढ़ साल बाद ही राजेश एक पुत्र का पिता बन गया। राजेश की मां ने घर में आए इस नए मेहमान का नाम मुन्ना रख दिया। राजेश अपने पुत्र का नाम मां द्वारा मुन्ना रखे जाने पर बहुत ही खुश हुआ।  वहीं दूसरी ओर उषा भी अपने बेटे का नाम करण मुन्ना के नाम से होने पर बहुत खुश हुई।
  राजेश अब पहले से बहुत ज्यादा प्रसन्न रहने लगा।  वह अक्सर अपने पुत्र को गोदी में उठाते हुए कहा करता कि मुन्ना एक दिन  डॉक्टर जरूर बनेगा। उषा, राजेश के बातें सुनती और मुस्कुराते हुए कहा करती कि पहले मुन्ना को कुछ बड़ा तो होने दीजिए। मुन्ना को पहले  चलने और  बोलने तो दीजिए। हम दोनों  का मुन्ना जरूर एक डॉक्टर बनेगा ।
समय अपनी गति से आगे बढ़ता ही चला जा रहा था। पहले मुन्ना धीरे-धीरे  जमीन पर घिसक  कर चलने लगा।  फिर उठकर खड़ा होने लगा। अब मुन्ना  चलने भी लगा है। देखते ही देखते मुन्ना साढ़े तीन साल का हो गया।  राजेश और उषा, मुन्ना  को रांची के बच्चों के सबसे बड़े स्कूल में दाखिला करवा दिया।  राजेश प्रतिदिन समय से अपने बेटे मुन्ना को स्कूल ले जाता और समय पर स्कूल से घर ले आता।  राजेश जब अपने बच्चे को स्कूल पहुँचाने  जाता तो उसे महसूस  होता कि वह खुद स्कूल जा रहा हो। 
   प्रतिदिन राजेश अपने बेटे का कॉपी देखा करता । मुन्ना पढ़ाई किस तरह कर रहा है ? इस पर भी ध्यान देता।  राजेश मन ही मन यह चाहता  था कि जल्द से जल्द उसका बेटा मुन्ना बड़ा हो जाए और उसका दाखिला राँची के सबसे बढ़िया स्कूल संत जेवियर स्कूल में करा दिया जाए। 

मुन्ना का अव्वल आना और डॉक्टर बनाने की चाहत  

   इधर राजेश अपने बेटे की पढ़ाई में कोई आर्थिक दिक्कत नहीं आए, इसलिए अपनी दुकान पर भी बहुत ही मन लगाकर काम करने लगा।  दुकान की आमदनी बढ़े।  इस निमित्त वह  पूरी तन्मयता के साथ  दुकानदारी में ध्यान देता।  उसे यह बात मालूम थी कि उसने कितनी मुश्किल से आईएससी तक पढ़ाई की थी।  पिता की बीमारी के कारण उसे समय पर स्कूल का फीस नहीं मिल पाता था । फलस्वरुप उसे हमेशा क्लास टीचर की डांट सुननी पड़ती थी। वह अपने बेटे को इन परेशानियों से दूर रखना चाहता था । 
   मुन्ना जिस दिन स्टैंडर्ड वन में अपने क्लास में सबसे अधिक नंबर प्राप्त किया था, उस दिन राजेश, अपनी दुकान के अगल-बगल दुकानदारों के बीच जमकर मिठाइयां बांटा था । मुन्ना हर वार्षिकी परीक्षा में पूरे क्लास में अव्वल नंबर लाता रहा । देखते देखते मुन्ना दसवीं क्लास में आ चुका था। मुन्ना दसवीं वार्षिकी परीक्षा भी  फर्स्ट डिवीजन से पास हुआ।  
 मुन्ना पढ़ने में बहुत तेज था।  वह बाल उम्र  से ही अपने पिता से यह सुनता आया कि  उसके पिता उसे एक डॉक्टर बनना चाहते हैं।  बचपन में उसे यह बात कुछ विशेष समझ में नहीं आती थी। लेकिन जैसे-जैसे वह कक्षा में आगे बढ़ता गया, अब बातें उसे धीरे-धीरे  समझ में आने लगीं ।  उनके पिता एक डॉक्टर बनना चाहते थे। लेकिन घर की परिस्थितियों के कारण उनके पिता डॉक्टर बन नहीं पाए। वे अपने सपने को मुझे एक डॉक्टर बनकर पूरा करना चाहते हैं।

पिता और पुत्र के अपने-अपने सपने 

   दसवीं क्लास तक पहुंचने- पंहुचते मुन्ना अपने जीवन में क्या बनना है? क्या करना है ?  कुछ-कुछ बातें उसके मन मस्तिष्क में साफ होने लगी । मुन्ना एक सहज, सरल प्रकृति का युवक है । उसकी भी अपनी एक अभिलाषा है । वह भी अब सपने देखने लगा।  लेकिन उसके सपने में डॉक्टर बनने के लिए कोई जगह नहीं है । वहीं दूसरी ओर अपने पिता के सपने को बचपन से ही सुनता चला आया ।  मुन्ना पढ़ लिखकर एक शिक्षक बनना चाहता है । अब उसे अपने पिता के सपने की बात सुनकर बोझ जैसा महसूस होने लगा। चूंकि मुन्ना बचपन से ही शांत और शर्मिला स्वभाव का है, इसलिए वह अपने पिता से मन की बातों को खुलकर कह भी नहीं पा रहा है
 एक दिन मुन्ना अपने मन की बातें मां से कह ही डाला, - 'मम्मी!  मैं एक शिक्षक बनना चाहता हूं और आर्ट की पढ़ाई करना चाहता हूं।  मैं डॉक्टर बनना नहीं चाहता हूं।'
मुन्ना से ऐसी बातें सुनकर उषा स्तब्ध रह गई ।  जब से वह  इस घर में आई, तब से अपने पति को एक  ही सपना बुनते हुए देखते आई कि मैं डॉक्टर नहीं बन पाया, लेकिन अपने  बेटे को डॉक्टर जरूर बनाऊंगा। 
खुद को संभालते हुए उषा ने कहा,-  'बेटे!  तुम्हारे पिता एक डॉक्टर बनना चाहते थे।  लेकिन घर की परिस्थिति और उनके पिता के निधन के कारण उनका सपना पूरा नहीं हो पाया। उनके कई साथी डॉक्टर बन गए। वे  प्रैक्टिस कर रहे हैं। तुम्हारे पिता बस तुमसे यही चाहते हैं कि तुम एक डॉक्टर बनो । इसमें हर्ज ही क्या है ?  एक शिक्षक बनकर दूसरे को शिक्षित करोगे वहीं दूसरी ओर एक डॉक्टर बनकर लोगों के स्वास्थ्य की सेवा करोगे।'
 पिता के सपने को पूरा करने की बात  सुनकर मुन्ना ने कहा,-  'मां! मेरी कोई रुचि डॉक्टर बनने की नहीं है। मेरी रुचि शिक्षक बनने में है। एक तरफ पिता के सपने हैं, तो दूसरी तरफ मेरे अपने सपने हैं। मैं क्या करूं?  क्या न करूं?  कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है । एक ओर मन कहता है कि मैं एक शिक्षक बनूं वहीं दूसरी ओर पिता के सपने को पूरा करने की बात आ जा रही है। मां! इन बातों को लेकर मेरे मन मस्तिष्क में बहुत ही द्वंद्व चल रहा है।'
 बेटे की ये बातें सुनकर उषा थोड़ा सहम गई। उसने पुचकारते हुए कहा,-  'बेटे! डॉक्टरी  का पेशा बहुत ही सम्मानजनक है।  देखो, समाज में डॉक्टरों की कितनी इज्जत है। रही बात शिक्षक बनने की, तो तुम डॉक्टर बनकर भी बच्चों को शिक्षित कर सकते हो । ऐसा करने से पापा और तुम्हारा सपना भी पूरा हो जाएगा।'
    मां की ये बातें सुनकर  मुन्ना चुप रह जाता है। लेकिन उसके मन में द्वंद्व चल ही रहा होता है। वह अपने पिता के सपने को भी अनदेखा नहीं करना चाहता है।  लेकिन डॉक्टर बनने की उसकी कहीं रुचि है ही नहीं। वह अपने मन को बार-बार यह  समझाने की कोशिश करता है कि पिता के सपने को पूरा किया जाए । वहीं दूसरी ओर खुद के सपने सामने आकर खड़ा हो जाता है।‌ वह किसी तरह मन को समझा पाता है कि डॉक्टर बनने के बाद भी समय निकालकर बच्चों को पढ़ाकर अपने शिक्षक बनने के सपनों को पूरा करेगा।  

पुत्र से ज़्यादा पिता को सपने पूरे करने की ललक 

       राजेश जब रात में दुकान बंद कर आता है, साथ में इंटरमीडिएट साइंस कॉलेज का एक फॉर्म भी ले आता है। वह, उषा और मुन्ना के समक्ष फॉर्म खोलते हुए कहता है,- ' अभी  ही यह फॉर्म भरना है। कल ही इसे इंटरमीडिएट साइंस कॉलेज में जमा कर देना है। यहां दाखिला होने के बाद मुन्ना  का दाखिला कोटा के  एक कोचिंग सेंटर में भी करवाना है।'
    राजेश की बातें सुनकर उषा ने कहा,-  'पहले मुन्ना को प्लस टू तो पास करने दीजिए । उसके बाद उसे कोचिंग के लिए कोटा भेजिएगा। इतनी हड़बड़ी क्यों है? मुन्ना कहीं भागा तो नहीं जा रहा है?'
  राजेश ने कहा,- 'मैं हड़बड़ी कहां कर रहा हूं? मुन्ना को प्लस टू करने से रोक  कहां रहा हूं ? अभी हमारे टाइम वाला  स्टडी पैटर्न नहीं है बल्कि काफी कुछ बदल गया है। अभी ज्यादातर वही बच्चे  नीट  की परीक्षा निकाल पा रहे हैं, जो कोटा से नीट परीक्षा  की तैयारी करते हैं।  हमारे कई मित्रों के बेटे इंटरमीडिएट साइंस कॉलेज में अपने-अपने बेटे का दाखिला करा कर कोटा में कोचिंग हेतु भेज रहे हैं। इससे एक साथ प्लस टू की भी पढ़ाई हो जाती है। वहीं दूसरी ओर नीट परीक्षा की भी तैयारी हो जाती है। इस तरह पढ़ाई करने से काफी समय बच जाता है।'
  यह सुनकर उषा ने कहा,- 'पहले मुन्ना को इंटरमीडिएट साइंस कॉलेज से प्लस टू करने दीजिए। फिर कोटा भेज दीजिएगा । इस तरह मुन्ना कम से कम दो साल हम लोगों के साथ तो रहेगा।'
 यह सुनकर  राजेश ने कहा,- 'मुन्ना को डॉक्टर बनाने के लिए हम लोगों को उससे दूर रहने की पीड़ा तो सहनी ही पड़ेगी। देखना हम दोनों का मुन्ना  एक ही बार में नीट  की परीक्षा निकाल लेगा। तुम बेवजह परेशान मत हो। बस! एक  साल की ही बात है।'
    उषा अपने पति राजेश की बातों को सुनकर चुप रह गई।  उधर मुन्ना भी चुप ही रहा।  मुन्ना मन ही मन यह चाह रहा था कि अपने पिता से मन की बातें बोल दे।  लेकिन वह अपने पिता के चेहरे पर जो मुस्कुराहट हैं, उसे ध्वस्त भी नहीं करना चाहता। उसने शिक्षक बनने के सपने को मन के किसी ताक  पर रखना ही बेहतर समझा।

मुन्ना का दाखिला और पिता की चाहत को पंख 

    राजेश ने दूसरे दिन मुन्ना का दाखिला इंटरमीडिएट साइंस कॉलेज में करा दिया। इंटरमीडिएट साइंस कॉलेज में मुन्ना के दाखिला होने से राजेश को ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे मुन्ना का एडमिशन नहीं बल्कि खुद का एडमिशन हुआ हो।  दो महीने के अंदर में मुन्ना का दाखिला राजस्थान कोटा के एक नामचीन कोचिंग सेंटर में हो गया। कोटा में मुन्ना को किसी भी तरह की कोई कमी न हो।  साथ ही पढ़ाई में कोई दिक्कत न हो।  इसलिए राजेश अपने बेटे को लेकर खुद कोटा गया । वहां एक अच्छे से किराए का मकान लेकर मुन्ना को सुपुर्द  किया। राजेश ने मुन्ना के खाने पीने के लिए बगल के अन्नपूर्णा रसोई से इंतजाम कर दिया। राजेश ने अन्नपूर्णा रसोई के संचालक को यह हिदायत भी दे रखा कि समय पर आपके अकाउंट में पैसा मिल जाएगा।  खाने में किसी भी तरह की कोई कमी नहीं कीजिएगा। उसने एक माह का एडवांस पैसा अन्नपूर्णा रसोई के संचालक के अकाउंट में डाल दिया। राजेश ने  बाजार से कई किस्म के मेवा और फल खरीद कर मुन्ना को दे दिया और इसे नियमित रूप से खाने को भी कहा। इसके साथ ही राजेश ने मुन्ना को कहा कि  ताजा फल बगल बाजार से ले आना। आगे राजेश ने मुन्ना को एटीएम कार्ड और कुछ नगद पैसे भी दे दिया। 
  मुन्ना को अकेले कोटा में छोड़कर जैसे ही राजेश वापस रांची आने की ओर मुड़ा उसकी आंखें भर आईं । मुन्ना भी अपने पिता को एक टक जाते हुए देखता रहा।  उसकी भी आंखें भर आईं । जाते हुए राजेश ने कहा,- 'बेटे ! तुम पढ़ाई मन लगाकर करना।  मैं जल्द ही तुम्हें लेने आ रहा हूं। कोई भी दिक्कत हो, तुरंत फोन करना।' इस बात के साथ दोनों एक-दूसरे की नजरों से ओझल होते चले गए।

कोटा में मुन्ना की पढ़ाई और माता-पिता की ख़ुशी 

     राजेश रांची लौटने के बाद  प्रतिदिन अपने बेटे मुन्ना से बात करता।  उसकी पढ़ाई कैसी चल रही है ?  पढ़ाई में क्या-क्या पढ़ा ? इसकी जानकारी जरूर लेता। मुन्ना कोटा में पढ़ रहा होता है, तो राजेश को यह अनुभव  होता कि वह खुद नीट की तैयारी कर रहा है। राजेश मन ही मन बहुत खुश रहता। वह अपनी दुकानदारी को और भी बढ़िया ढंग से चलाता । वहां बेटे को कोई कमी न हो, इस बात का हर तरह से ख्याल रखता। वह बराबर अन्नपूर्णा रसोई के संचालक से बातचीत करता। खाने-पीने में कोई कमी नहीं रह जाए, इस बात की भी हिदायत देता रहता।
  कोचिंग के हर टेस्ट परीक्षा में मुन्ना उत्तीर्ण होता चला जा रहा था।  राजेश, मुन्ना के टेस्ट परीक्षा में उत्तीर्ण होने की खबर सुनकर गदगद हो जाया करता। वह जब भी दुकान बंद कर घर आता, तो उषा से सिर्फ मुन्ना की प्रगति की ही बातों का बखान करते नहीं थकता।  
    इधर उषा भी मुन्ना से बराबर फोन पर बातचीत करती।  उसका हाल-चाल लेती । उषा अपने बेटे को हमेशा हिदायत देती,- 'बेटे!  तुम अपने खाने पीने पर अच्छा से ध्यान देना । पढ़ाई में तुम तो ठीक हो ही। अपने मन में किसी भी तरह का कोई बात नहीं लेना। मन लगाकर तैयारी करना। तुम मुझसे दूर जरूर हो। लेकिन हर पल मेरे मन मस्तिष्क में समाए हुए हो।'

पिता की उम्मीद और मुन्ना का समर्पण 

 अब चूंकि मुन्ना समझ चुका था कि अब माता या पिता को कुछ और बोल कर नाराज करने से बेहतर है कि नीट की ही तैयारी  में ध्यान लगाया  जाए। उसने  कोटा आने से पहले ही अपने शिक्षक बनने के सपने को ताक पर रख दिया था।
      जैसे ही राजेश ने मोबाइल  पर यह जाना कि मुन्ना प्लस टू की परीक्षा फर्स्ट डिवीजन से पास कर गया है। सबसे पहले उसने यह बात उषा को बताई।  इसके बाद उसने मुन्ना को पास होने की बधाई दिया। आज राजेश बहुत ही खुश था। राजेश को ऐसा लगा कि उसने प्लस टू की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास कर ली। इस  खुशी के पल में उसने  पूरे मोहल्ले भर में मिठाईयां बांटी। मोहल्ले वालों ने भी मुन्ना की सफलता पर राजेश को बधाई दिया। मुन्ना के पास होने पर राजेश पास के राधा कृष्ण के मंदिर में जाकर प्रसाद चढ़ाना नहीं भूला।  उसने मंदिर में भगवान से प्रार्थना किया कि 'हे नाथ !   जिस तरह आपकी कृपा से प्लस टू में मुन्ना सफल हुआ, आगे नीट की परीक्षा में भी वह  सफल हो  जाए। आपकी कृपा मुन्ना पर बनी रहे।'
   इधर मुन्ना नीट की भी परीक्षा दे दिया था । उसका भी रिजल्ट बहुत जल्द ही आने वाला था।  राजेश हर एक दिन गिनता चला जा रहा था ।  कैसे जल्द से जल्द ये दिन बीत जाए और वह घड़ी आ जाए जब उसे यह समाचार मिले कि मुन्ना नीट की परीक्षा में सफल हो गया है। 

मुन्ना का रिजल्ट और पिता की बेचैनी 

   वह दिन भी आ गया।  राजेश सुबह जल्द ही उठकर पास के मंदिर में भगवान से प्रार्थना किया कि उसका बेटा नीट की परीक्षा मैं सफलता प्राप्त कर  लें। परीक्षा का परिणाम जानने के लिए आज राजेश अपनी दुकान को बंद रखा था । उसने कल ही अपने कर्मचारियों को दुकान न आने के लिए कह दिया था। राजेश का एक  कर्मचारी मनोज ने उससे कहा,  'बाबू ! आप जितना ध्यान देकर मुन्ना को पढ़ाए हैं। मुन्ना जरूर नीट  की परीक्षा में पास होगा।' 
 यह सुनकर राजेश बहुत गदगद हो गया था। और राजेश तुरंत बोल पड़ा,-  'अगर मुन्ना नीट परीक्षा में सफल हो जाता है,तो तुम सभी कर्मचारियों को नया कपड़ा बनवा कर दूंगा।'
    राजेश अपने कमरे में बैठा हर पल मोबाइल का नेट खोलकर यह देखने की कोशिश करता कि क्या नीट परीक्षा का परिणाम आ गया ? लेकिन नीट परीक्षा का परिणाम तो निर्धारित समय पर ही आएगा । राजेश के मन में  बस  एक ही बात चल रही थी कि बेटा नीट  की परीक्षा में सफल हो जाए।  वह अपने बेटे को एक डॉक्टर के रूप में देखना चाहता था। राजेश अपने कमरे में इधर-उधर हो रहा था। 
   उषा,  राजेश की इस बेचैनी को बखूबी समझ रही थी।  लेकिन उसे अंदर ही अंदर यह भी डर खाए  जा रही थी कि अगर मुन्ना नीट की परीक्षा में सफल नहीं हो पाया तो राजेश को  बहुत ही गहरा सदमा लगेगा । यह सोचकर वह कांप जाती । 
 उधर मुन्ना अपने कमरे में बैठा यह सोच रहा था कि नीट की परीक्षा तो उसने अच्छे ढंग से दी थी । उम्मीद है कि वह सफल जरूर हो जाएगा। फिर भी वह अंदर से थोड़ा डरा हुआ था। वह सोच  रहा था कि अगर नीट परीक्षा में  सफल नहीं हो पाया, तब उनके पिता के सपने को बहुत बड़ा झटका लगेगा । उनके पिता उसे बहुत मानते हैं । दिन रात दुकानदारी कर उसे हर तरह की सुख सुविधा प्रदान करते हैं। उसे  बढ़िया से बढ़िया स्कूल में पढ़ाए  हैं। उसका नाम कोटा में सबसे  नामचीन कोचिंग में कराए।  इस तरह के कई विचार मुन्ना के भी मन में चल रहे थे।

नीट का रिजल्ट और पिता के अरमान  

   ठीक बारह बजे नेट पर  नीट का रिजल्ट आ गया । राजेश नेट पर अपने बेटे का परिणाम जानने के लिए नंबर मिला रहा था।  लेकिन उसका नंबर मिल ही नहीं रहा था।‌ वह बार-बार मोबाइल पर अपनी उंगलियों को इधर-उधर घुमा रहा था।  परिणाम जानने के लिए बार-बार  मोबाइल को चेक कर रहा था । लेकिन उसका नंबर सफल छात्रों की सूची में नहीं दिख रहा था। पास बैठी उषा भी मोबाइल पर ही निगाहें लगाई हुई थीं ।‌ लेकिन उसके बेटे का नंबर कहीं दिख ही  नहीं रहा था । 
  तभी राजेश ने उषा से कहा,-  'देखो!  मुन्ना का नंबर कहीं दिख ही नहीं रहा है। कहीं मुझसे गलती तो नहीं हो रही है?
 यह सुनकर उषा बहुत ही सावधानी के साथ  मुन्ना का नंबर चेक करने लगी।‌ लेकिन उसे  भी मुन्ना का नंबर नहीं मिला।
  तब उषा ने कहा,- 'मुझे भी मुन्ना का नंबर नहीं मिल रहा है। लगता है,मुन्ना सफल नहीं हो पाया है।
    राजेश यह सुनकर बहुत ही निराश हुआ।‌ वह खुद को हताश महसूस करने लगा।  जैसे उस पर कोई बड़ा स बज्र  गिर गया हो। वह सपने में भी नहीं सोचा था कि मुन्ना नीट की परीक्षा में सफल नहीं हो पाएगा।  राजेश की सारी खुशी फुर्र हो गई थी। जैसे किसी ने उसके सारे अरमानों को एक ही बार में चकनाचूर कर दिया हो। 
   मुन्ना अपने पिता के कमरे के बाहर छुपकर इस दृश्य को देख रहा था। पिता को हताश-निराश देखकर वह भी बहुत दुःखी हुआ। लेकिन वह कर भी क्या सकता था ?  उसने परीक्षा तो पूरी तैयारी के साथ दिया था । लेकिन सफल कैसे नहीं हो पाया ?  उसे भी समझ में नहीं आ रहा था। उसे इतनी भी हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि अपने हताश - निराश पिता को जाकर  सहारा  दे सके।

पुत्र का लगन और पिता की उम्मीद भरी आस 

   राजेश बिल्कुल शांत होकर पलंग के कोने पर जा बैठा था। थोड़ी देर पहले राजेश, मुन्ना का नीट परीक्षा का रिजल्ट जानने के लिए कितना उतावला हो रहा था । नंबर जानने के लिए उसने अपनी दुकान तक बंद रख दी थी।  लेकिन जैसे ही बेटे का नंबर सफल छात्रों की सूची में नहीं पाया, उसके सारे सपने बिखर से गए।‌ 
  राजेश के चेहरे पर उभरे निराशा के भाव को पढ़ते हुए  उषा ने कहा, - 'आप इतना दुखी और परेशान क्यों हो रहे हैं ? मुन्ना पहली बार नीट की परीक्षा दिया है।  इस बार सफल नहीं हुआ तो क्या हुआ ? आगे  दोबारा नीट की परीक्षा देगा । वह जरुर सफल होगा। कई बच्चे तो दो या तीन बार में नीट की परीक्षा निकाल पाते हैं। आप अकारण निराश हो रहे हैं। देखिएगा, आगे मेरा मुन्ना जरूर नीट की परीक्षा में सफल होगा।
  यह  सुनकर राजेश को थोड़ी हिम्मत हुई। उसने मन ही मन विचार किया कि उनके कई साथी तीसरी बार में नीट की परीक्षा में सफल हुए थे । मैं अकारण ही निराश  हो रहा हूं । अब आगे की सुध लेने  की जरूरत है । 
  तब राजेश ने कहा,- 'यह तो तुम ठीक ही बोल रही हो। मैं बेकार में इतना परेशान हो रहा हूं । मुन्ना नीट परीक्षा की तैयारी पूरे मन से की थी ।  वह इस बार सफल नहीं आ पाया तो कोई बात नहीं । अगली बार वह जरुर सफल होगा।'
 कमरे के बाहर खड़ा मुन्ना  अपने माता-पिता की बातों को सुनकर, उसे खुद पर  बहुत गुस्सा आ रहा था। वह अंदर ही अंदर पश्चाताप की अग्नि में जल रहा था। वह  इतने अच्छे  ढंग से परीक्षा की तैयारी की थी ।  फिर भी वह नीट की परीक्षा में निकाल नहीं पाया।  इसी उधेड़बुन में दिन और रात भर मुन्ना रहा।  इस कारण वह भी  उदास रहा। रात में वह ढंग से सो भी नहीं पाया। रात में निराश पिता का चेहरा जब जब भी उसकी आंखों के सामने आ जाता, वह भय से कांप  जाता था। उसने मन ही मन यह संकल्प किया कि इस बार और मेहनत कर नीट की तैयारी करेगा और जरुर सफल होगा।

पिता की चाहत और पुत्र की कोशिस 

  समय को बीतते देर नहीं लगता है।  दूसरी बार मुन्ना बहुत ही मन लगाकर  नीट की परीक्षा दिया।  इस बार उसे पूरी उम्मीद थी कि वह नीट की परीक्षा में जरूर सफल होगा। वह अपने पिता के सपने को जरूर पूरा करेगा । लेकिन दुर्भाग्य मुन्ना को यहां भी पीछा नहीं छोड़ा। इस बार भी वह नीट की परीक्षा निकल नहीं पाया। वह  सिर्फ कुछ नंबरों से पीछे रह गया ।
    फिर से अपने पिता को उदास - हताश और परेशान देखकर मुन्ना अंदर ही अंदर बहुत दुखी हो रहा था। वह एक तरह से टूट सा गया था।   इतनी अच्छी तरह से तैयारी करने के बावजूद नीट की परीक्षा निकल नहीं पाया। वह इसके लिए खुद को ही कसूरवार समझना शुरू कर दिया। जबकि इस असफलता के लिए राजेश के पिता ने मुन्ना को एक शब्द भी नहीं कहा।  लेकिन मुन्ना जब-जब भी अपने पिता से मिलता,  पिता के चेहरे पर उभरे उदासी के भाव को देखकर बहुत ही मर्माहत हो जाया करता। मुन्ना पहले से ही इंट्रोभर्ट था। अब और भी ज्यादा इंट्रोभर्ट बन चुका था ।
   उषा, मुन्ना के इस असफलता पर उसे हिम्मत देने की बहुत कोशिश करती। मुन्ना मां की बातों को बहुत ही गंभीरता के साथ सुनता जरूर, लेकिन कुछ बोलता नहीं। 
  नीट की परीक्षा दो दो बार देने और असफल होने के कारण मुन्ना थोड़ा उदास भी रहने लगा था। इधर उसने खाना पीना भी कम कर दिया था। थोड़ा कमजोर भी दिखने लगा था। 
   एक दिन उसने अपनी मां से कहा,- 'मां! मेरे असफलता से पापा बहुत ही हताश और उदास रहने लगे हैं।  मैं उनके सपने को पूरा नहीं कर पाया हूं । लगता है, मुझ में ही कोई कमी है।'
   बेटे की यह बात सुनकर उषा ने कहा,- 'तुम खुद को दोषी क्यों समझते हो ?  तुमने नीट की तैयारी में कोई कमी की नहीं है । तुमने तो पूरी मेहनत की।  तुम्हारी मेहनत पर मुझे नाज है।  लेकिन कुछ नंबरों से तुम पीछे रह गए तो इसमें तुम्हारी क्या गलती है ? दौड़ने वाला ही हारता है और जीतना है। देखो ! लाखों बच्चे नीट की परीक्षा देते हैं।  उसमें कुछ ही बच्चे सफल हो पाते हैं।  तुम तो मात्र तीन ही नंबर से पीछे रह गए । इसके लिए ज्यादा परेशान होने की कोई बात नहीं। खैर ! इस बात को इतना मन  पर मत लो। तुम्हारी मेहनत पर मुझे पूरा विश्वास है कि इस बार तुम जरूर सफल होगे।'
  मां की यह बात सुनकर मुन्ना ने कहा, - 'मां!  मैं अब और नीट की परीक्षा नहीं देना चाहता हूं । आप पापा से बात कीजिए। नीट परीक्षा का परिणाम आने और मेरे असफल होने के बाद पापा को हताश - निराश,उदास और परेशान देखकर मुझे बहुत ही बुरा लगता है। मैं पापा को और निराशा और उदास नहीं देखना चाहता हूं। जब जब भी रात में पापा का उदास चेहरा मेरी आंखों के सामने आ जाता है। मै डर से कांप जाता हूं। इसलिए मैं तीसरी बार नीट की परीक्षा में नहीं देना चाहता हूं।  मैं एक डॉक्टर नहीं बन पाया तो क्या हुआ ?  मैं एक शिक्षक बनकर आप सबों का नाम रौशन करुंगा।'
   मुन्ना की मन की व्यथा  सुनकर उषा ने कहा,- 'ठीक है, बेटे!  मैं पापा से इस विषय पर बात करता हूं।'
   मां की यह बात सुनकर मुन्ना  को लगा कि उसके मन का बोझ कुछ हल्का हुआ । 

पुत्र का सपना और पिता की जिद 

   हर दिन की तरह राजेश दुकान बंद कर रात नौ बजे तक घर आ जाता है। आज भी वह समय से ही घर आ गया। रात में डीनर  उपरांत  उषा ने अपने पति से कहा,-  'मुन्ना कह रहा है कि अब वह नीट की परीक्षा नहीं देना चाहता है।  वह आपको और ज्यादा हताश और उदास नहीं देखना चाहता है। उसे आपकी उदासी देखी  नहीं जा रही है । वह  एक शिक्षक बनना चाहता है। वह एक शिक्षक बनकर हम सबों का नाम रौशन करना चाहता है। इसलिए मैं भी चाहती हूं कि मुन्ना का जो मन है, वही करें।'
  राजेश यह बात सुनकर स्तब्ध रह गया। जैसे किसी ने उसके सपने को एक ही बार में चकनाचूर कर दिया हो। वह कुछ समय के लिए नि:शब्द स  हो गया। 
   राजेश अपने मौन को तोड़ते हुए कहा,-'यह तुम क्या कह रही हो? मुन्ना इस बार नीट की परीक्षा जरूर निकाल लेगा । कई छात्र तीसरी बार में नीट  की परीक्षा निकाले हैं। मैं हताश और निराशा कहां हूं ? मैं तो बस ! यही चाहता हूं कि मुन्ना नीट की परीक्षा निकालकर एक डॉक्टर बने । मैंने आज तक मुन्ना को एक शब्द भी नहीं कहा है। वह अकारण मेरे लिए परेशान हो रहा है।'
  यह सुनकर उषा ने कहा,-   मुन्ना अब और आगे नीट की परीक्षा में शामिल नहीं होना चाहता है। उसे उसका मन का करने दीजिए। आप भी मुन्ना को डॉक्टर बनाने की जिद छोड़ दीजिए। शायद भगवान की ही मर्जी नहीं है कि मुन्ना एक डॉक्टर बने। 
      राजेश ने कहा,- 'मैं जिद कहां कर रहा हूं।‌ मैं जो कर रहा हूं, मुन्ना की भलाई के लिए ही कर रहा हूं। देखना इस बार मुन्ना जरूर नीट की परीक्षा में सफल होगा।‌ मैं डॉक्टर नहीं बन पाया, यह बात मुझे हर पल सालती रहती है। तुम मेरी भावना को भी समझने की कोशिश करो। अगर मुन्ना डॉक्टर नहीं बन पाया तो मेरे जीवन की  खुशी ही चली जाएगी।' 
  राजेश की ये बातें सुनकर उषा चुप सी हो गई । अब वह  अपने पति से क्या बोले ? एक तरफ पति के सपने हैं, तो दूसरी ओर बेटा के सपने । इन दोनों के सपनों के बीच आखिर एक  मां क्या करती। उषा अपने बेटे को पापा से  हुई बातों से अवगत कराती है । पापा के सपने की मान  रखने के लिए तीसरी बार परीक्षा देने के लिए किसी तरह मुन्ना को मना लेती है ।     

पिता के सपने को पूरा नहीं कर पाने की हताशा  

  समय किसी  के दुःख, सुख, परेशानी,हताशा, निराशा, सफलता और असफलता  का इंतजार थोड़ी ही करता है। समय तो अपनी निर्बाध गति से आगे बढ़ता ही रहता है।
    मुन्ना बहुत ही डरते डरते तीसरी बार भी नीट की परीक्षा दे देता है ।उसने विपरीत परिस्थितियों में भी नीट की तैयारी अच्छे  ढंग से की थी । परीक्षा देने को उपरांत वह यह निर्णय नहीं कर पा रहा था कि वह इस बार नीट  की परीक्षा निकाल पाएगा अथवा नहीं। नीट की परीक्षा के बाद आने वाले परिणाम को लेकर कुछ डरा हुआ महसूस कर रहा था। बार-बार मुन्ना के मन मस्तिष्क में  अपने पापा का हताश, निराश चेहरा ही सामने आ जाता था।  जिसे याद कर वह डर जाता था।  इधर मुन्ना अपने मित्रों से भी मिलना जुलना बंद कर दिया था । वह बराबर इसी ख्याल में रहा करता कि अगर वह तीसरी बार भी नीट  की परीक्षा में असफल रहा तो अपने पापा का सामना कैसे कर पाएगा  ? वह अब और अपने पापा को हताश और निराश नहीं करना चाहता था । इन्हीं विचारों को लेकर वह बहुत ही परेशान रह रहा था। उसे न दिन में चैन था और न ही रात में चैन।  वह अपने कमरे में ही उदास बैठा रहता। वह कभी-कभी  एक दो किताबें  लेकर पढ़ने लग जाता। वह अपने ध्यान को इधर-उधर भटकाने की पूरी कोशिश करता।  लेकिन बार-बार नीट की परीक्षा में असफल होने के बाद पापा के हताश  और निराश चेहरे को याद कर  ग्लानि से भर जाता। वह अपने पिता के सपने को पूरा नहीं कर पाने से बहुत ही दु:खी था। चूंकि कल ही नीट की परीक्षा का रिजल्ट आने वाला था । इसे  लेकर वह बहुत डरा हुआ था।‌ वह यह सोचकर और भी डर जाता कि अगर इस बार भी असफल रहा, तब क्या होगा ? वह धीरे-धीरे कर निराशा और अवसाद की गिरफ्त  में चला जा रहा था । उसने सोचा कि क्यों न  अपने जीवन को ही समाप्त कर दूं । बार-बार मेरे कारण मेरे पापा के सपने टूट रहे हैं।  मेरे पापा निराश, उदास और परेशान हो रहे हैं।  अगर मैं ही नहीं रहूंगा तो बार-बार पापा को हताश निराश नहीं होना पड़ेगा । क्यों न  मैं अपने जीवन को ही समाप्त कर दूं।

पिता के सपनों की सफलता और पुत्र की कुर्बानी 

  दूसरे दिन सुबह में ही नेट पर नीट परीक्षा का परिणाम आ गया था। राजेश नेट पर मुन्ना के नीट परीक्षा में सफल होने का नंबर देखकर खुशियों से भर उठा था । उसने तुरंत खुशी से उषा को आवाज़ लगाई। उषा दौड़ी दौड़ी राजेश के पास आई। राजेश को इतना खुश देखकर उसे तो यह बात समझ में आ गई कि मुन्ना इस बार जरूर सफल हुआ होगा।
  उषा को देखते ही राजेश ने कहा,- 'देखो ! हमारा मुन्ना सफल हो गया है।  उषा भी नेट पर मुन्ना का नंबर  पर देखकर बहुत ही ख़ुश हुई।  दोनों एक दूसरे को बधाई देने लगे थे।
  तभी राजेश ने कहा,-'मैं कह रहा था न कि हमारा मुन्ना जरूर नीट की परीक्षा में सफल करेगा।  उसने मेरे सपने को साकार कर दिया है।  अब मेरा जीवन सफल हो गया। मेरा बेटा जरूर डॉक्टर बन जाएगा।  चलो - चलो जल्दी चलो।  मुन्ना को उसके सफल होने की खबर दे देता हूं।'
   दोनों तुरंत ऊपर के तल्ले में चले गए। जहां मुन्ना का कमरा था। कमरे  का दरवाजा अंदर से बंद था। कमरे के बाहर से उषा और राजेश दोनों मुन्ना -  मुन्ना कहकर दरवाजा खोलने के लिए कह रहे थे। 
तभी राजेश ने तेज आवाज में कहा,-  'बेटे। तुम नीट परीक्षा में सफल  हो गए हो। जल्दी उठो।  दरवाजा खोलो।'
  लेकिन मुन्ना दरवाजा  खोल ही  नहीं रहा था। फिर दोनों ने मिलकर दरवाजा जोरों से खटखटाया। उसके बाद भी मुन्ना दरवाजा नहीं खोला।  तब फिर से दोनों  जोर-जोर से मुन्ना - मुन्ना कर आवाज लगाने लगे। इसके बाद भी मुन्ना दरवाजा नहीं खोला। तभी ये आवाजें सुनकर राजेश की बीमार मां भी किसी तरह सीढियों से चढ़कर  वहां पहुंच गई।‌ उसने भी मुन्ना मुन्ना कहकर दरवाजा खोलने के लिए आवाज लगाई। 
 मुन्ना अंदर से न दरवाजा खोल रहा था और न ही कुछ बोल रहा था।  यह देखकर राजेश की मां ने कहा,-  लगता है! मुन्ना की तबीयत रात में खराब हो गई हो। कहीं उसे जोरों का बुखार तो नहीं आ गया है। इसलिए वह दरवाजा नहीं खोल पा रहा है। इसलिए मैं कहती हूं कि दरवाजा ही तोड़  दो।'
सासू मां की बातें सुनकर उषा कई अनहोनी आशंकाओं से घिरती चली जा रही थीं। कहीं मुन्ना कुछ ऐसा वैसा न कर बैठे। 
 यह विचार आते ही तुरंत उषा ने  कहा,-'मां ठीक कह रही हैं। दरवाजा ही तोड़ दीजिए।'
  यह सुनकर राजेश बिना समय गंवाए अपनी केहूनी से  दरवाजा पर जोरों से धक्का दिया। दो-तीन बार के धक्के में ही दरवाजा खुल गया। दरवाजा जैसे ही  खुला, तीनों हड़बड़ाहट में एक साथ अंदर घुसे । देखा कि मुन्ना अपने बिस्तर पर सीधा लेट हुआ है। एक तरफ पूरा खून से लथपथ उसका बिछावन है।  यह देखकर सभी स्तब्ध रह गए। यह देखकर तीनों रोने लगे। उषा, मुन्ना को जगाने का प्रयास करने लगी।  मुन्ना तो अचेत अवस्था में लेटा हुआ था।‌ वह  हिल-डुल नहीं कर रहा था । तभी राजेश का ध्यान मुन्ना के बांए हाथ पर गया।  अभी भी हाथ के नस से खून बह रहा था।  राजेश तुरंत वहां पड़े कपड़े  से उसका हाथ को बांधा। मुन्ना को जल्द ही हॉस्पिटल ले जाने की बात कहकर  उसे उठाया।  लेकिन मुन्ना जरा भी हिल-डुल नहीं रहा था।‌

मुन्ना पास हो गया .........

   मुन्ना का यह हाल देखकर राजेश का भी दिल  बैठा जा रहा था। मुन्ना को उठाकर वह भी रोने लगा था । साथ-साथ यह भी कहता चला जा रहा था की मुन्ना ! तुम तो पास हो गये  हो। अब क्या हो गया तुम्हें ?'
इधर उषा और मुन्ना की दादी का भी रो रो  कर बुरा हाल हो रहा था। राजेश, मुन्ना को  पास के नर्सिंग होम में ले गया।  डॉक्टरों ने मुन्ना का जांच कर बताया कि वह तो मर चुका है ।
 यह  बात सुनकर उषा वहीं मूर्छित हो गई।  राजेश का रो-रो कर बुरा हाल हो रहा था । दादी भी रो रही थी।  लेकिन होनी को कौन टाल  सकता है।
   राजेश बार-बार यह कह कर रो रहा था, -  'बेटे तुम क्यों चले गए? तुम तो इस बार सफल हो गए हो। ऐसा तुमने क्यों किया ? अब हम सबों का क्या होगा ? तुम हम सबों को किसके सहारे छोड़कर चले गए हो ?  मुन्ना!  तुम वापस आ जाओ। मुन्ना!  तुम वापस आ जाओ।'
   अब मुन्ना वापस आने वाला कहां था। वह तो सदा सदा के लिए चला गया था।अब  वह  और नहीं चाहता था कि पापा उसके कारण हताश और निराश हो। 
  चूंकि  मुन्ना ने आत्महत्या की थी । इसलिए पोस्टमार्टम के बाद ही मुन्ना के पार्थिव शरीर को  उनके परिवार वालों के सुपुर्द किया गया।  भारी मन से राजेश ने मुखाग्नि दी। कुछ ही घंटे में धू धू कर मुन्ना का पार्थिव शरीर जलकर स्वाहा हो गया। मुन्ना तो सदा सदा के लिए इस दुनिया को छोड़कर चला गया।  लेकिन हमारे समाज के बीच कई प्रश्नों को भी विचार करने के लिए छोड़ गया।

आखिर पिता के सपनों को पूरा कर ही गया "मुन्ना" 

   पुलिस, मुन्ना के कमरे की तलाशी व अनुसंधान कर  रही थी। इसी दौरान मुन्ना के कमरे से एक उसके ही हाथों लिखा एक  खत मिला।  आत्महत्या करने से पूर्व उसने यह ख़त लिखा था।
 मुन्ना ने  यह पत्र अपने मम्मी पापा को संबोधित करते हुए लिखा था।
 मेरे मम्मी पापा,
 मैं यह पत्र बहुत ही भारी मन से लिख रहा हूं। कल मेरा नीट परीक्षा का परिणाम आने वाला है । मुझे नहीं लगता कि मैं परीक्षा में पास हो पाऊंगा । इसके पहले भी मैं आप दोनों को दो बार निराश कर चुका हूं।  तीसरी बार मैं आप सबों को हताश, निराश और परेशान नहीं देखना चाहता हूं । नीट परीक्षा में मेरे असफल होने  के बाद पापा के चेहरे पर जो उदासी उत्पन्न होती हैं, उसे मैं तीसरी बार नहीं देखना चाहता हूं।  अब यह देखने  की हिम्मत मुझमें नहीं रही।
 मैंने पूरी कोशिश की थी कि पापा के सपने को पूरा कर सकूं । लेकिन मैं पूरी तरह नाकामयाब रहा। 
मैं एक शिक्षक बनना चाहता था।  लेकिन पापा के सपने को  पूरा करने के लिए  अपने सपने को ताक पर रखकर पूरी निष्ठा के  साथ नीट की तैयारी की थी।  लेकिन  बार-बार असफल ही रहा।
 मैं आपके सपने को पूरा नहीं कर पाया । इसलिए स्वेच्छा से मैं इस दुनिया को छोड़कर जा रहा हूं।
 इस जन्म में तो आपके सपने को पूरा कर नहीं पाया। ‌ अगले जन्म में जब मैं आपका बेटा बन कर आऊंगा।  तब शायद आपके सपने को पूरा कर पाऊंगा।
 मां और दादी दोनों मुझसे बहुत ही प्यार करते हैं।  मैं भी उन दोनों को उतना ही प्यार करता हूं।  शायद इस जन्म में इतना ही साथ आप दोनों के साथ लिखा था।
 आपका,
  मुन्ना.
 
  मुन्ना का यह खत पढ़कर राजेश रो रो कर यही कहे जा रहा था,-  'मुन्ना  तुम्हें हम समझ नहीं पाए। तुम्हारी मां ने तुम्हारे मन की बात भी मुझसे कही थी।  लेकिन मैंने अपनी जिद  की खातिर दरकिनार कर दिया था। हमने अपने सपने को पूरा करने के लिए तुम्हें ही कुर्बान कर दिया।  हमसे बड़ी भूल हुई मुन्ना । तुम्हारी मौत का मैं गुनहगार हूं। मैं न तुम्हें और न ही तुम्हारे सपने को समझ पाया। हमसे बड़ी भूल हो गई मुन्ना।'