माता चंद्रघंटा की कृपा से मनुष्य के समस्त बाधाएं विनष्ट हो जाती हैं
(1 अप्रैल, वासंतिक चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की आराधना पर विशेष)

हिंदू धर्म के पौराणिक और प्रसिद्ध धर्म ग्रंथ देवी पुराण के अनुसार वासंतिक चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की आराधना करने का विधान बताया गया है। माता चंद्रघंटा की कृपा से मनुष्य के समस्त पाप और बाधाएं विनष्ट हो जाती हैं । इस दिन साधक का मन मणिपुर चक्र में प्रविष्ट होता है। इसलिए हर एक साधक को बहुत ही ध्यान और पवित्रता के साथ माता चंद्रघंटा की उपासना करनी चाहिए। माता का नाम चंद्रघंटा इसलिए पड़ा की माता के ललाट पर विशाल आकार का एक घंटा स्थित है। यह घंटा बिना रुके हर पल अपनी ध्वनि से दुष्टों को प्रकंम्पित करता रहता है। माता जब अपने साधकों के यहां दस्तक देती हैं, तब उनके यहां के समस्त रोग और प्रेत आदि बाधाएं विनिष्ट हो जाती हैं । दुष्ट घंटे की प्रकंम्पित आवाज सुनकर ही भाग खड़े होते हैं । इसलिए साधक को माता चंद्रघंटा का ध्यान हमेशा करना चाहिए माता। ताकि उनके जीवन में कभी भी प्रेत आदि बढ़ाएं उत्पन्न ही न हो सके ।
माता चंद्रघंटा कई दिव्य अलौकिक शक्तियों को प्रदान करने वाली एक देवी के रूप में सुविख्यात हैं। नवरात्र के दिन हम सब चंद्रघंटा माता की आराधना करते हैं। चंद्रघंटा माता का जो स्वरूप है, परम शांति दायक और कल्याणकारी है। इनका स्वरूप बहुत ही कांतिमय और समस्त सुखों को प्रदान करने वाला है। चंद्रघंटा माता के दस हाथों के साथ सुशोभित हो रही हैं। चंद्रघंटा माता के आठ हाथों में विविध दिव्यास्त्र हैं। माता के आठ हाथों में विविध प्रकार के शस्त्र होने के बावजूद माता के एक हाथ में कमंडलु और दूसरा हाथ अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए उद्धत है। माता का यह स्वरूप बहुत ही सुंदर और मोहक है। एक ओर माता चंद्रघंटा के चेहरे पर दुष्टों के लिए गुस्सा और भक्तों के लिए आघात प्रेम परिलक्षित होता रहता है । माता चंद्रघंटा शेर पर सवार होकर भक्तों के समीप पहुंची हैं। यह शेर युद्ध के लिए आतुर दिखाई पड़ता है। शेर के पैर दुष्टों का नाश करने के लिए आगे बढ़े हुए हैं। जो भी भक्त माता के इस स्वरूप का ध्यान करते है, उनके भीतर शेर के समान शक्ति का अनुभव होता है।
माता चंद्रघंटा की कृपा से कई आलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं ।जब भक्त माता चंद्रघंटा का ध्यान पूरी श्रद्धा और निर्मल मन से करते हैं, तब उन्हें माता चंद्रघंटा के दिव्य दर्शन के साथ ही कई अलौकिक वस्तुओं के भी दर्शन होते हैं। जैसे साधक रणभूमि में माता के साथ मिलकर दुष्टों का नाश कर रहे हों । साधक माता के चरणों पर शरणागत होकर जगत का कल्याण कर रहे हों आदि । इस तरह के कई दृश्य भक्तों के मन मस्तिष्क में दस्तक देते रहेंगे। इन अलौकिक दृश्यों के दर्शन मात्र से भक्तों का जीवन अलौकिक खुशियों से भर उठता है। इसके साथ ही दिव्य सुगंधों का भी अनुभव होता है। जब साधक का ध्यान पूरी तरह माता चंद्रघंटा पर केंद्रित हो जाता है, तब विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियां भी सुनाई देती है।जब साधक को ऐसी ध्वनि सुनाई पड़े तो उन्हें बहुत ही सावधानी के साथ सुननी चाहिए। अर्थात माता की कृपा की बारिश उन पर हो रही हो।
मनुष्य अपने कर्मों के कारण ही इस धरा पर बार-बार जन्म लेता रहता है । देवी पुराण में उल्लेख है कि बार-बार के जन्म और मृत्यु से मुक्ति के लिए माता चंद्रघंटा की आराधना ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। इसलिए माता चंद्रघंटा के उपासकों को बिना मन को विचलित किए हुए पूरी श्रद्धा के साथ माता चंद्रघंटा की आराधना करनी चाहिए। इनकी आराधना से मनुष्य जन्म - जन्म के पापों से मुक्त हो जाता है। इनकी आराधना शीघ्र फलदाई है । माता चंद्रकांता अपने समस्त भक्तों को एक नजर से देखती हैं। माता, पापी लोगों को मुख्य धारा में आने के कई अवसर भी प्रदान करती रहती हैं, ताकि ये अपने सद्गुणों के साथ जीवन यापन करें । इसके बावजूद अगर मनुष्य अपने पाप कर्म से त्याग नहीं करते हैं, तब माता उन्हें अपनी दिव्य शक्तियों से दंड भी देती हैं ।
माता चंद्रघंटा के साधकों को यह जानना चाहिए कि माता चंद्रघंटा की मुद्रा सदैव युद्ध के लिए अभिमुख होती है। अतः भक्तों के कष्ट का निवारण वह अत्यंत शीघ्र ही कर देती हैं । इनका वाहन सिंह होने के कारण इनके उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय बन जाते हैं । माता के ललाट पर जो चंद्रघंटा विराजमान है। उस प्रकंपित घंटे की ध्वनि से अपने भक्तों की प्रेत बाधा आदि की रक्षा करती हैं । इनका ध्यान करते ही शरणागत की रक्षा के लिए इस घंटे की ध्वनि स्वत: पहुंच जाती है । अर्थात जो भी भक्त माता चंद्रघंटा का ध्यान करते हैं, माता चंद्रघंटा के ललाट पर विराजमान घंटा की ध्वनि स्वत : साधक के स्थल तक पहुंच जाती है। अपने प्रकंपित ध्वनि से समस्त बाधाएं दूर कर देती हैं। माता चंद्रघंटा का ध्यान जो भी भक्त पूरे मन से करते हैं, उन्हें कभी भी भय सता नहीं सकता है।
माता चंद्रघंटा, दुष्टों का दमन और विनाश करने में सदैव तत्पर रहती हैं ।इनका स्वरूप अत्यंत ही सौम्यता एवं शांति से परिपूर्ण रहता है । इनकी आराधना से प्राप्त होने वाला एक बहुत बड़ा सद्गुण यह भी है कि साधक में वीरता - निर्भयता के साथ सौम्यता और विनम्रता का भी विकास होता है। अर्थात जो भी साधक माता चंद्रघंटा का ध्यान करते हैं,उनमें वीरता निर्भरता के साथ सौम्यता और विनम्रता का भी विकास होता है। माता के मुख पर जो शांति दायक और कल्याणकारी भाव विराजमान हैं, इस प्रकार भाव साधकों के मुख मंडल पर भी विराजमान हो जाते हैं। माता की उपासना करने वाले साधकों में स्वर में दिव्य अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है।
देवी पुराण में यह भी वर्णन है कि माता चंद्रघंटा की उपासना करने वाले साधक जहां भी जाते हैं, जिस भी परिसर में रहते हैं, लोग उन्हें देखकर शांति और सुख का अनुभव करते हैं । ऐसे साधक के शरीर से दिव्य प्रकाशयुक्त परमाणुओं का अदृश्य विकिरण होता रहता है। यह दिव्य क्रिया साधारण आंखों से दिखलाई नहीं देती है। किंतु साधक और उसके संपर्क में आने वाले लोग इस बात का अनुभव भली भांति करते रहते हैं। आप ऐसे कई लोगों को जानते होंगे, जिनसे मिलते होंगे, जिनके समीप में बैठने से शांति का अनुभव करते होंगे । जिससे अपने मन की बात कह कर अपना मन हल्का महसूस करते होंगे । ऐसे लोगों पर निश्चित रूप से माता चंद्रघंटा की कृपा बरसती रहती है । यह कृपा आप पर भी बरसेगी वनस्पति की आप माता चंद्रघंटा की आराधना पूरे ध्यान से करेंगे।
माता चंद्रघंटा की आराधना के लिए अपने मन, वचन, कर्म और काया को विहित विधि विधान के अनुसार पूर्णतः परिशुद्ध एवं पवित्र करके माता चंद्रघंटा के शरणागत होकर उनकी उपासना आराधना करनी चाहिए। उनकी उपासना से हम सब समस्त सांसारिक कष्टों से विमुक्त होकर सहज ही परम पद के अधिकारी बन सकते हैं। हम सबों को निरंतर उनके पवित्र विग्रह स्वरूप का ध्यान रखकर उनकी आराधना की ओर अग्रसर होना चाहिए। उनकी आराधना से हम सबों का इहलोक और परलोक दोनों के लिए परम कल्याणकारी और सद्गति देने वाला हो जाता है । इसलिए हर साधक को बहुत ही पवित्र मन से माता चंद्रघंटा की आराधना करनी चाहिए। माता चंद्रघंटा दुनिया के हर एक मनुष्य के कल्याण के लिए सदा तत्पर रहती है।