देश ने एक महानतम अर्थशास्त्री को खो दिया 

स्मृति शेष 

देश ने एक महानतम अर्थशास्त्री को खो दिया 

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री सह अर्थशास्त्र के विद्वान डॉ  मनमोहन सिंह का जाना एक अपूरणीय क्षति के समान है।  उनका संपूर्ण जीवन अर्थशास्त्र के गहन अध्ययन और सृजन में बीता  था। उन्होंने अपने जीवन काल में अर्थशास्त्र से संबंधित कई नए सूत्रों को शोधार्थियों के बीच रखा। मनमोहन सिंह का भारत का प्रधानमंत्री बनना,  उनका अर्थशास्त्र की विद्वता की ही देन थी। उनकी विद्वता का डंका न सिर्फ देश को ही गुंजित किया था, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर तक उनकी गूंज थी। विश्व भर में होने वाले अर्थशास्त्र की संगोष्ठियों में उन्होंने अपनी विद्वत्ता  पूर्ण व्याख्यान को प्रस्तुत कर दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया था। वे भारत के एकमात्र ऐसे राजनेता थे, जो राजनीति में न रह कर भी देश की  राजनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बने थे। वे भारत  जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश के दो टर्म प्रधानमंत्री बने थे।
  वे जब पहली बार 2004 में  देश के प्रधानमंत्री बने थे, इसे अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी के निर्णय के तौर पर जाना जाता है। 2004 में देश में हुए संसदीय लोकसभा चुनाव में मनमोहन सिंह कहीं भी प्रधानमंत्री की दौड़ में  न थे। इसके बावजूद उन्हें प्रधानमंत्री बनने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। 2009 के लोकसभा संसदीय चुनाव में देश की जनता ने मनमोहन सिंह के पांच साल के कार्यकाल को दोनों सही माना था। देश  की जनता ने उन्हें एक बार फिर से प्रधानमंत्री बनने का अवसर प्रदान किया था। लेकिन 2014 के लोकसभा संसदीय चुनाव में एनडीए गठबंधन ने उन्हें शिकस्त दे दिया था। इस पराजय को उन्होंने सहर्ष से स्वीकार किया था । आज की बदली राजनीतिक परिदृश्य में चुनाव के दौरान जिस तरह नेता एक दूसरे पर आरोप लगाते रहते हैं, डॉ मनमोहन सिंह सदा ऐसे वक्तव्य से खुद को दूर रखे थे । वे बहुत कम बोलते थे । इसलिए उन्हें मौनी बाबा भी कहा जाता था । वे बहुत ही सोच विचार कर  सीमित और संतुलित शब्दों में अपनी बातों को रखते थे। वे दस वर्षों तक देश के प्रधानमंत्री रहे थे।‌ इस दौरान देश में कई चुनौतियां  उपस्थित हुईं थीं । पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन ने भी कई  सीमा क्षेत्र में कई परेशानियां उत्पन्न किए थे । इन परेशानियों से मनमोहन सिंह बिल्कुल विचलित नहीं हुए बल्कि देश के हित में जो निर्णय लेना था, लिए थे । तब देश को  आर्थिक संकट और वैश्विक उदारीकरण का भी सामना करना पड़ रहा था। वे इन तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी वे देश का सफल संचालन किए थे।
  मनमोहन सिंह एक सफल अर्थशास्त्री के साथ एक सफल प्रधानमंत्री के रूप में भी जाने जाते हैं। उनका जन्म पाकिस्तान के पंजाब में 26 सितम्बर,1932 को हुआ था। उनका निधन 26 दिसम्बर 2024 को हुआ। अर्थात वे इस धरा पर 92 वर्षों तक रहे थे। देश के विभाजन के बाद मनमोहन सिंह का परिवार भारत चला आया था। यहां उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय  से  स्नातक तथा स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई पूरी की थी। बाद में वे उच्चतर शिक्षा के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय चले गये थे।  उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से  पीएच. डी. किया था। इसके बाद उन्होंने  ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयसे डी. फिल. भी किया था। डॉ॰ मनमोहन सिंह ने अर्थ शास्त्र के अध्यापक के तौर पर काफी ख्याति अर्जित की। वे पंजाब विश्वविद्यालय और बाद में प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकनामिक्स में प्राध्यापक रहे थे। इसी बीच वे संयुक्त राष्ट्र व्यापार  और विकास सचिवालय में सलाहकार भी रहे थे । वे  1987 तथा 1990 में जेनेवा में साउथ कमीशन में सचिव भी रहे थे।  1971 में डॉ॰ मनमोहन सिंह भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किये गये थे। इसके तुरन्त बाद 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। इसके बाद के वर्षों में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष बने थे। इसके बाद वे रिजर्व बैंक के गवर्नर बने  थे । इसके बाद प्रधानमन्त्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग  के अध्यक्ष भी रहे थे। भारत के आर्थिक इतिहास  में हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया था, जब डॉ॰ मनमोहन सिंह  1991  से 1996 तक भारत के वित्त मंत्री भी रहे थे। तब देश के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव थे। उन्होंने, मनमोहन सिंह को उनके आर्थिक मामलों के जानकार के तौर पर बनिया था।‌। इस पद पर रहकर मनमोहन सिंह ने देश को आर्थिक संकट से उबारा था। इसलिए मनमोहन सिंह को भारत के आर्थिक मामलों का प्रणेता माना गया।
   देशवासियों को यह जानना चाहिए कि मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण को उपचार के रूप में प्रस्तुत किया और भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाज़ार के साथ जोड़ दिया था। डॉ॰ मनमोहन सिंह ने आयात और निर्यात को भी सरल बनाया था। लाइसेंस एवं परमिट गुज़रे ज़माने की चीज़ हो गई थी। उन्होंने निजी पूंजी को उत्साहित करके रुग्ण एवं घाटे में चलने वाले सार्वजनिक उपक्रमों हेतु अलग से नीतियां विकसित किया था। नई अर्थव्यवस्था जब घुटनों पर चल रही थी, तब पी. वी. नरसिम्हा राव को कटु आलोचना का शिकार होना पड़ा था।  विपक्ष उन्हें नए आर्थिक प्रयोग से सावधान कर रहा था। लेकिन श्री पीवी नरसिंह राव ने मनमोहन सिंह पर पूरा यक़ीन रखा था। मात्र दो वर्ष बाद ही आलोचकों के मुंह बंद हो गए थे । उदारीकरण के बेहतरीन परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्था में नज़र आने लगे थे । इस प्रकार एक ग़ैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति जो अर्थशास्त्र का प्रोफ़ेसर था, का भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ ताकि देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके।
 डॉ मनमोहन सिंह के निधन पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश के सबसे प्रतिष्ठित नेताओं में से एक डॉ मनमोहन सिंह के निधन पर देश शोक में है। साधारण पृष्ठभूमि से उठकर वे एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री बने थे । उन्होंने वित्त मंत्री समेत विभिन्न पदों पर कार्य किया और वर्षों तक हमारी आर्थिक नीति पर अपनी गहरी छाप छोड़ी थी । हमारे प्रधानमंत्री रूप में उन्होंने लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए काफी प्रयास किया था। आगे नरेंद्र मोदी ने दर्ज किया है कि जब डॉ मनमोहन सिंह जी प्रधानमंत्री थे, और मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था, तब मेरे और उनके बीच नियमित बातचीत होती थी। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उक्त वक्तव्य से प्रतीत होता है कि डॉ मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों कितना बेमिसाल था।  डॉ मनमोहन सिंह ने कभी भी अपने क्रिया कलापों को बहु प्रचारित नहीं किया था।  बल्कि उन्होंने जो कार्य अपने जीवन काल में किया,  उनके कार्य ही खुद-ब-खुद प्रचारित होते रहे थें।।
   डॉ मनमोहन सिंह जितने महान अर्थशास्त्री थे । वे उतने ही सहज और सरल प्रकृति के व्यक्ति थे। वे बहुत ही सूझबूझ के साथ अपनी बातों को रखा करते थे  वे बहुत ही सहजता और सरलता के साथ अपनी बातों को रखते थे । उनकी बातें विद्वता और शोध पूर्ण होती थी । उनकी बातों का जनमानस पर बहुत ही अनुकूल प्रभाव पड़ता था । लोग उनके आर्थिक मामलों की बातों को बहुत ही ध्यानपूर्वक सुनते थे। उन्होंने विश्व पटल पर आर्थिक मामलों का जो गुण सूत्र रखा था, वह  संपूर्ण विश्व के लिए ग्राही था । विश्व के कई देशों ने मनमोहन सिंह के आर्थिक विचारों को अपने देश  में लागू किया था ,फलत: उसका लाभ  उन देशों को मिला।
  डॉ मनमोहन सिंह को आर्थिक मामलों में नए  गुणसूत्र दिए जाने पर उन्हें भारत सहित विश्व के कई देशों से कई प्रतिष्ठित पुरस्कार भी मिले थे। उनका इस दुनिया से विदा होना न सिर्फ भारत के लिए ही नहीं  बल्कि विश्व ने एक महानतम अर्थशास्त्री को खो दिया है।