‘मां’ तुम ममता की मूरत हो
(12 मई, 'विश्व मातृ दिवस' पर विशेष)
‘मां’ शब्द ज़ेहन में आते ही मां की ममतामई मूरत सामने स्वतः प्रकट हो जाती है। मां संपूर्ण जगत की जन्म दात्री होती हैं । मनुष्य सहित सभी जीव जंतु मां की कोख से उत्पन्न होते हैं । मां को इसीलिए जन्मदात्री के नाम से भी पुकारा जाता है। प्रकृति को हम सब मां के नाम से संबोधन करते हैं । प्रकृति की वंदना मां के रूप में करते हैं। जिस धरती पर हम सब निवास करते हैं, उस धरती को धरती माता कहते हैं। मां का अर्थ बहुत ही व्यापक है। बच्चों के प्रति मां की ममता व करुणा जग जाहिर है। मां हम सबों को नौ महीने तक अपनी कोख में रखकर प्रसव की असहनीय पर पीड़ा सहकार इस दुनिया में लाती हैं । मां की महिमा को लेकर विविध धर्म ग्रंथों में काफी गुणगान किया गया है । देवी पुराण में वर्णन है कि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, लेकिन माता कदापि को कुमाता नहीं हो सकती है ।
विश्व मातृ दिवस पर हम सबों को अपनी अपनी मां का स्मरण जरूर करना चाहिए। मां के त्याग और उनकी ममता पर जरूर विचार करना चाहिए। मां का सुध सिर्फ मातृ दिवस पर ही नहीं बल्कि हर रोज लेना चाहिए । किसी ने दर्ज किया है कि मां है, तो सारी दुनिया है। मां नहीं है, तो मां की ममता से जीवन अनजान ही रह जाता हैं। जिनकी मां जन्म के देने के बाद ही इस दुनिया से विदा हो गई, उस बच्चे से पूछिए,..मां की ममता के बिना उसे कैसा लगता है ? मां की कमी उसे जीवन भर सालती रहती है । हम सब अपने-अपने बचपन के दिनों को याद कर ले । थोड़ी सी बुखार होने पर सबसे पहले मां को आभास हो जाता है कि मेरे बच्चे को बुखार हो गया है। मां तुरंत उपचार शुरू कर देती है । अपने बच्चों को लेकर डॉक्टर घर चली जाती है । मां डॉक्टर से अपने नवजात बच्चे का हाल बताती है। दवा लेती है । घर का काम कार्य करते हुए मां का ध्यान बच्चे पर लगा रहता है । पल-पल बच्चे को निहारती रहती है। मां ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि मेरे बच्चे को मेरी उम्र लग जाए। माताएं यहां तक कहती हैं कि हे प्रभु ! तुम मुझे इस दुनिया से उठा लो, लेकिन मेरे बच्चे को स्वस्थ रखो । एक मां का अपने बच्चों से जो लगाव रहता है, इस लगाव को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है । चाहे मां किसी भी परिस्थिति में हों , वह हर हाल में अपने बच्चों का सुख ही चाहती हैं ।
आज की बदली सामाजिक परिस्थिति में बच्चे पढ़ लिख कर नौकरी पेशा में बाहर चले जाते हैं । बच्चे बाहर जरूर रहते हैं, लेकिन एक मां का ध्यान हर वक्त अपने बच्चों पर ही लगा रहता है। मां बार-बार फोन करके अपने बच्चों का हाल-चाल लेते रहती हैं । बच्चे बाहर में स्वस्थ हैं । कुशल हैं । यह जानकर एक मां को शांति मिल जाती है । बच्चे की जरा सी भी तकलीफ की खबर मां को मिल गई तो उसकी नींद ही उड़ जाती है। आज बच्चे मैट्रिक, प्लस टू करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए बाहर चले जाते हैं । मां अपने बच्चों की पढ़ाई के दौरान हर एक बात का ख्याल रखती हैं । बच्चे जरूर बाहर पढ़ रहे होते हैं। लेकिन मां का ध्यान बच्चों पर ही बना रहता है। बाहर में बच्चों को किसी भी तरह की कोई कमी नहीं हो, इसे दूर करने का हर संभव प्रयास एक मां करती रहती हैं। इस प्रयास में उन्हें अपने पति और अपनी सासू मां का कोप भाजन भी बनना पड़ता है। लेकिन वह इससे तनिक भी विचलित नहीं होती हैं । वह सिर्फ यही चाहती हैं कि उनके बच्चे जहां भी पढ़ रहे हैं, अच्छे से पढ़ें। उन्हें वहां किसी भी तरह की कोई तकलीफ न हो ।
मां, मां होती हैं । मां की ममता को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। मां हमें जन्म देती हैं । बड़े जतन से पालती हैं। बड़ा करती है। मां हमारी पहली शिक्षिका होती हैं। सबसे पहले बच्चें मां ही बोलना शुरू करते हैं। यह बात पशुओं में भी पाई जाती हैं । नवजात पशु भी म म करके ही अपनी भावना को प्रकट करते हैं । मां तन मन से जीवन भर बच्चों के साथ रहती हैं । मां, बच्चों को बड़ा करने में कब बुढ़ी हो जाती हैं, उन्हें पता ही नहीं चलता है। मां अपना संपूर्ण प्यार बच्चों पर लुटा देती हैं । बदले में मां सिर्फ यही चाहती हैं कि मेरे बच्चे पढ़ लिखकर काबिल बने और अपने परिवार का देखभाल करें।
आज के बदली परिस्थिति स्थिति में हम सब पढ़ लिखकर काबिल जरूर बन गए हैं। आईएएस बन गए हैं । आईपीएस बन गए हैं। उच्च अधिकारी बन गए हैं। इंजीनियर बन गए हैं । वैज्ञानिक बन गए हैं। डॉक्टर बन गए हैं। बड़े नेता बन गए हैं। बड़े व्यवसाई बन गए हैं। अब सवाल यह है कि जिसने मुझे इस काबिल बनाया कहीं हम सब उस मां को भूल तो नहीं गए हैं ? मातृ दिवस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने की परंपरा इसलिए शुरू की गई थी कहीं हम सब अपनी-अपनी मां को भूल तो नहीं गए हैं ? मातृ दिवस हम सबों को याद दिलाता है । कहता है । कहीं तुम सब अपनी अपनी मां को तो कहीं भूल नहीं गए हो ? इसलिए हर एक बेटा – बेटी को अपने व्यस्त दैनंदिन दिनचर्या से कुछ समय निकाल कर अपनी मां का हाल-चाल जरूर लेना चाहिए । बच्चें जब अपनी मां से हाल-चाल लेते हैं। मां से हंसकर बातें करते है । मां मानसिक रूप से तृप्त हो जाती हैं । मां खुश हो जाती हैं। मां की सारी थकान दूर हो जाती हैं ।मां को महसूस होता है कि उनके बच्चें याद तो करते हैं।
आज भागम भाग भरी जिंदगी में समाज भौतिकवादी और आधुनिकता की अंधी दौड़ में बहुत आगे निकल गया है। यह लिखते हुए दुःख होता है कि बच्चें अपनी मां से काफी दूर चले गए हैं । लेकिन मां की ममता उसी रूप में एक मां के अंदर विराजमान है। जब बच्चे मां से बातें नहीं करते हैं । मां की सुध नहीं लेते हैं । एक मां पर क्या गुजरती होगी ? मातृ दिवस पर हम सबों को यह विचार करने की जरूरत है। मुंबई की एक घटना जो कुछ वर्ष पूर्व घटी थी। एक मां का बेटा अपनी मां के लिए हर सुख सुविधा मुंबई के घर में करके विदेश में जा बसा था। उसने मां से महीनों बात नहीं किया था। जब उसे मां याद आई। मां से मिलने के लिए भारत लौटा । पता चला कि उसकी मां तो काफी दिन पहले मर चुकी थी । पलंग पर मां की सिर्फ सड़ी गली लाश पड़ी हुई थी । इस खबर ने विश्व के सभी बेटों को कटघरे में खड़ा कर दिया था।
यही मां अपने बच्चे को पालने पोसने, पढ़ाने लिखाने और बड़ा करने में अपना संपूर्ण जीवन लगा दी थी । बेटा पढ़ लिखकर विदेश में जा बसा था । बरसों मां से मिलने के लिए नहीं आया था । उसने महीनों मां से बातचीत नहीं की थी । अब बताइए उसे मां पर क्या गुजरती होगी ? हम सब को अपनी जन्मदात्री मां के प्रति जो कर्तव्य है, पूरी निष्ठा के साथ निभानी चाहिए ।
आज यह लिखते हुए बहुत दुख होता है कि वृद्धा आश्रम में कई माताएं जीवन निर्वाह करने के लिए विवश हैं। जबकि लगभग माताओं के परिवार है । बेटे हैं। बेटियां हैं। नाती – पोते है । जब सबों को रहने के लिए पैतृक मकान भी है, लेकिन अपनी मां को रखने के लिए उनके पास जगह नहीं है । हर एक बच्चे का कर्तव्य बनता है कि अपने माता-पिता का ख्याल रखें ।
जब बेटा – बेटी अपने माता-पिता की सेवा करते हैं, उनके छोटे-छोटे अपने बच्चे भी मां-बाप की सेवा करने की सीख लेते हैं
मातृ दिवस पर हम सबों को अपनी मां के प्रति जो फर्ज है, जिसे हम सब भूल चुके हैं । उससे याद करने की जरूरत है। हमारी उम्र कितनी भी बड़ी क्यों ना हो जाए । मां के पास जब हम होते हैं, तो एक बच्चे के ही समान होते हैं। उनकी गोद में जो शांति मिलती है, दुनिया की किसी भी जगह में मिल नहीं सकती।