झारखंड एजुकेशन ट्रिब्युनल का आदेश भी निजी स्कूलों पर बेअसर
रांची। निजी स्कूलों में अभिभावकों के शोषण की शिकायतें थम नहीं रही है। राज्य सरकार के शिक्षा विभाग और झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण के आदेशों -निर्देशों की भी निजी स्कूल संचालक परवाह नहीं करते हैं। गौरतलब है कि निजी स्कूल संचालकों की मनमानी पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से वर्ष 2005 में झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण का गठन किया गया था। यह न्यायाधिकरण नख-दंत विहीन हो गया है। स्थापना काल से लेकर अब तक यह न्यायाधिकरण निजी स्कूलों की नकेल कसने में ठोस कामयाबी हासिल नहीं कर सका है। राज्य सरकार के शिक्षा विभाग और झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण के आदेशों-निर्देशों से बेपरवाह निजी स्कूल प्रबंधन की मनमानी बदस्तूर जारी है। चाहे शिक्षण शुल्क में वृद्धि का मामला हो या बस किराया, डेवलपमेंट शुल्क आदि से जुड़ा मुद्दा हो, निजी स्कूल बंधन इससे संबंधित जारी सरकारी दिशा-निर्देशों का अनुपालन नहीं करते हैं। राज्य के कई निजी स्कूलों की मनमानी और उनके प्रबंधकों/संचालकों द्वारा की जा रही अनियमितताओं के संबंध में अभिभावकों और शिक्षकों द्वारा झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण में शिकायतें दर्ज कराई जाती हैं। कई स्कूलों की मनमानी के विरुद्ध न्यायाधिकरण द्वारा आदेश भी जारी किया जाता है। लेकिन बताया जाता है कि न्यायाधिकरण के आदेशों का भी निजी स्कूल प्रबंधन पालन नहीं करते हैं।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण में फिलवक्त निजी स्कूल प्रबंधकों के खिलाफ तकरीबन डेढ़ सौ मामले विचाराधीन हैं। जानकारी के अनुसार प्रतिवर्ष पूरे झारखंड राज्य से निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ अभिभावकों शिक्षकों व अन्य लोगों द्वारा लगभग 40 से 50 मामले दर्ज कराए जाते हैं। कई मामलों में न्यायाधिकरण द्वारा स्कूल प्रबंधन को स्पष्ट निर्देश देते हुए सख्त हिदायत दी जाती है कि अभिभावकों या शिक्षकों का शोषण बंद कर उन्हें विधि सम्मत सुविधाएं मुहैया कराएं। बावजूद इसके निजी स्कूल प्रबंधन के कानों पर जूं नहीं रेंगता है।
जानकारी के अनुसार न्यायाधिकरण में डीएवी ग्रुप के स्कूलों के विरुद्ध सबसे अधिक शिकायतें दर्ज हैं। अभिभावकों व शिक्षकों का शोषण करने में डीएवी ग्रुप प्रबंधन आगे है।
इस वर्ष वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण काल के दौरान पूरे साल भर निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ लगभग दो दर्जन मामले दर्ज हुए। इन मामलों पर न्यायाधिकरण में सुनवाई जारी है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण के आदेशों और दिशा-निर्देशों को धता बताते हुए निजी स्कूल प्रबंधन अपनी मनमानी पर आमादा हैं।
स्थापना काल से अब तक
चार चेयरमैन हुए
झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण की स्थापना वर्ष 2005 में की गई थी। सर्वप्रथम न्यायाधिकरण के चेयरमैन के रूप में जस्टिस एलपीएन शाहदेव वर्ष 2005 से 2008 तक रहे। इसके बाद फिर उन्हें सेवा विस्तार दिया गया। वर्ष 2008 से 2011 तक वह इस पद पर बने रहे।
तत्पश्चात वर्ष 2012 से वर्ष 2015 तक सनातन चट्टोपाध्याय, अक्टूबर 2015 से वर्ष 2018 तक मुख्तियार सिंह और अक्टूबर 2018 से अभी तक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के विद्यासागर न्यायाधिकरण के चेयरमैन के पद पर सेवारत हैं।