लोगों का दुख-दर्द बांटना तुषार की दिनचर्या

लोगों का दुख-दर्द बांटना तुषार की दिनचर्या

रांची। वर्तमान जीवन शैली और भाग-दौड़ की जिंदगी के बीच परोपकार के लिए समय निकालना व्यक्ति की महानता का परिचायक होता है। कुछ लोग अपनी व्यस्ततम दिनचर्या के बीच पारिवारिक और व्यावसायिक जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन करते हुए समाजसेवा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान देते हैं। ऐसे ही लोगों में एक नाम शुमार है राजधानी रांची के निवारणपुर मोहल्ला निवासी तुषार कांति शीट का। तुषार सामाजिक संस्था श्रीरामकृष्ण सेवा संघ के सहायक सचिव हैं। पीड़ित मानवता की सेवा के प्रति समर्पित श्री शीट दया और करुणा की प्रतिमूर्ति हैं। समाज के किसी भी वर्ग के लोगों के दुख-दर्द की जानकारी होने पर वह स्वयं को रोक नहीं पाते और उनके सहायतार्थ हाजिर हो जाते हैं। गरीब, बेसहारा और जरूरतमंदों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहना उनकी आदत में शुमार है। वे मानव सेवा के प्रति समर्पित हैं। लॉकडाउन के दौरान बेघर और बेसहारा गरीबों को भोजन की व्यवस्था सहित उनके परिवारों के लिए खाद्य सामग्री की भी व्यवस्था कर उन्होंने मानवता की सेवा की मिसाल पेश की है। तुषार पर्यावरण प्रेमी और पशु प्रेमी भी हैं। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में जागरूकता के लिए वह समाज के विभिन्न वर्गों के साथ मिलकर पौधरोपण सहित अन्य कार्यों को धरातल पर उतारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। बेजुबान लावारिस जानवरों के प्रति भी उनका सहयोग सकारात्मक होता है। वैश्विक महामारी कोरोना से बचाव के मद्देनजर लागू देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान सड़कों और मोहल्लों पर लावारिस घूमते जानवरों को भी निवाले पर आई आफत को देखते हुए वे प्रतिदिन निवाला का इंतजाम करते रहे। लावारिस लाशों के दाह संस्कार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने, गरीब परिवारों के परिजनों की मौत पर उनके दाह संस्कार और अंत्येष्टि कर्म के लिए भी वे अपने सहयोगियों संग सहयोग करने में सदैव आगे रहते हैं। समाज के हर वर्ग के लोगों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझ कर पीड़ित मानवता की सेवा के प्रति समर्पित भाव से लगे रहते हैं। यह उनकी विशेषता है। इस संबंध में श्री शीट कहते हैं कि पीड़ित मानवता की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं होता है। गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करना पुण्य का काम है। इस दिशा में मनुष्य होने के नाते सबों को सकारात्मक सोच के साथ अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर होते रहने की आवश्यकता है। यही मानव जीवन की सार्थकता है।