एक नई राह तलाशने की ओर चंपाई सोरेन के बढ़ते कदम
अब कुछ ही दिनों में यह स्पष्ट हो जाएगा कि कब चंपाई सोरेन भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण करेगें।
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक सदस्य चंपाई सोरेन एक वैकल्पिक नई राह की ओर अपने कदम बढ़ा चुके हैं। नई राह की तलाश में चंपाई सोरेन के बढ़ते कदम की आहट ने झारखंड की राजनीति को गरमा से दिया है । ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि उनकी नई राह की तलाश में और भी कई नेता जाने की तैयारी में हैं। चंपाई सोरेन जमीन से जुड़े एक ऐसे नेता हैं, जिन्होंने खेती किसानी और मजदूरी कर जन सरोकार से जुड़े मुद्दे को लेकर हमेशा संघर्षरत रहे हैं। चंपाई सोरेन के चार दशकों की लंबी राजनीतिक जीवन में कभी भी उन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा है । उन्होंने झारखंड अलग राज्य निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। साथ ही उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन के एक सहयोगी के रूप में झारखंड अलग प्रांत की लड़ाई में बढं-चढ़ कर हिस्सा लिया था। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा से ही अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की थी। लेकिन बीते एक डेढ़ महीने के भीतर उनके समक्ष जो राजनीतिक परिस्थितियों उत्पन्न हुईं, जिस कारण चंपाई सोरेन एक नई राह तलाशने के लिए विवश होना पड़ा है।
2 जनवरी को चंपाई सोरेन राज्य के 12 वें मुख्यमंत्री बने थे
31 जनवरी को ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने के पूर्व हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था । तब झारखंड मुक्ति मोर्चा के ईमानदार छवि व अनुभवी नेता चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त माना गया था। उन्हें शीघ्र ही विधायक दल का नेता चुन लिया गया था । 2 जनवरी को चंपाई सोरेन ने विधिवत राज्य के 12 वें मुख्यमंत्री के रूप में कार्य भार संभाल लिया था। वे लगभग पांच महीने तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान रहे थे। उन्होंने बीते पांच महीने के दरमियान झारखंड के चतुर्दिक विकास के लिए जो कुछ भी किया, बेहतर कहा जा सकता है। वे राज्य के विकास के लिए हर दिन बैठकें करते रहे थे। उन्होंने इस दरमियान एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली थी।
कम समय में ही राज्य की विधि-व्यवस्था को दुरुस्त किया
टाइगर के नाम से मशहूर चंपाई सोरेन वास्तविक जीवन में उतने ही सहज, सरल और आमजन के लिए उपलब्ध रहे हैं। उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री के रूप में झारखंड की मूलभूत बुनियादी समस्याओं के समाधान के लिए हर संभव प्रयास किया था। उन्होंने इस राज्य की चरमराई विधि व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए पुलिस के उच्चाधिकारियों के साथ कई बैठकें की थी। उन्होंने राज्य की विधि व्यवस्था दुरुस्त करने के निमित्त आवश्यक निर्देश भी दिया था। जिसका राज्य की विधि व्यवस्था पर अनुकूल प्रभाव पड़ा था। राज्य से भ्रष्टाचार दूर हो, इस निमित्त उन्होंने राज्य के उच्चाधिकारियों के लिए कई महत्वपूर्ण आदेश भी किया था । सरकारी कार्यालयों में चंपाई सोरेन के इन आदेशों का असर भी देखा गया था।
कभी सोचा भी नहीं था की मुख्यमंत्री बनेंगे
बतौर मुख्यमंत्री तौर पर उन्होंने राज्य के विकास को गति देने में कोई कसर नहीं छोड़ा था। यह कतई मालूम भी नहीं था कि एक दिन उन्हें झारखंड प्रांत का मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा। उन्होंने अपने पाँच महिने के मुख्यमंत्रित्व काल में जितने भी सार्वजनिक सभाओं को संबोधित किया, हर संबोधन में उन्होंने हेमंत सोरेन के कार्यों को ही आगे बढ़ाने के संकल्प को दोहराया था।
चंपाई सोरेन के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव में JMM का अच्छा प्रदर्शन
वे झारखंड मुक्ति मोर्चा के एक निष्ठावान नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल रहें । चंपाई सोरेन के मुख्यमंत्री बनने से झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रति आदिवासियों सहित अन्य राज्यवासियों का झुकाव भी बढ़ा था। इसी दरम्यान 18 वीं लोकसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बेहतर प्रदर्शन भी किया। चंपाई सोरेन भारतीय जनता पार्टी पर जमकर प्रहार भी किया था। मुख्यमंत्री रहते हुए चंपाई सोरेन जेल में बंद हेमंत सोरेन से हमेशा मिलते भी रहे थे । जेल में बंद हेमंत सोरेन से आवश्यक निर्देश भी लेते रहते थे। उन्होंने यूपीए गठबंधन में शामिल सभी दलों के नेताओं से भी बेहतर तालमेल बनाया बना कर रखा था । वे बराबर समय पर मंत्री परिषद की बैठकें भी करते रहे थे। उन्होंने पूरी सूझबूझ के साथ इस पद की गरिमा को बरकरार रखा था।
कभी भी अवसर का लाभ लेने की कोशिस नहीं की
चंपाई सोरेन एक किसान के पुत्र हैं। उन्होंने अपने किसान पिता के संग खेती किसानी भी की थी । उन्होंने दसवीं तक की ही पढ़ाई की थी । लेकिन उन्होंने लंबे राजनीतिक जीवन की पाठशाला से बहुत कुछ सीखा था। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने जिस अंदाज में अपना पहला वक्तव्य जारी किया था, उसी समय पता चल गया था कि वे जितना सहज, सरल दिखने में लगते हैं, बौद्धिक रूप से उतने ही मजबूत और विचारवान हैं। इस दौरान उन्होंने सार्वजनिक स्वभाव में जिस अंदाज में अपनी बातों को रखा था, उससे पता चला कि उनकी शिक्षा महाविद्यालय तक नहीं हुई लेकिन उनके पास राजनीतिक जीवन की शिक्षा का अनुभव है । उन्हें इस बात की कतई जानकारी नहीं थी कि हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनने का अवसर प्राप्त होगा । उन्होंने इस अवसर को कभी भी भंजाने का काम नहीं किया।
मुख्यमंत्री रहते पार्टी के कार्यक्रमों से दूर रखा गया
उन्होंने अपने पांच महीने के मुख्यमंत्रित्व काल में ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे कि उन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप लगा हो। इसी दरम्यान हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने के बाद जो राजनीतिक परिस्थितियों बनी उससे चंपाई सोरेन बहुत आहत हुए । आहत होने के बाद उन्होंने कहा कि उनके मुख्यमंत्री रहते हुए उनके सार्वजनिक कार्यक्रमों को विधायक दल द्वारा रद्द कर दिया गया था, जबकि वे खुद विधायक दल के प्रमुख है। इस दरम्यान वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जरूर रहे, लेकिन सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूर रहे थे। यह उन्हें बहुत ही नागवार लगा। उन्होंने साफ शब्दों में कहा की मुझे कुर्सी पर बने रहने की कोई चाह नहीं थी। लेकिन मेरे मान और सम्मान को कुचल कर जिस तरह मुझे मुख्यमंत्री पद में रहते हुए अलग-थलग कर दिया गया था, इससे मैं बहुत ही आहत हुआ । बाद में उन्हें त्यागपत्र देने के लिए कह दिया गया। उन्होंने तुरंत त्यागपत्र दे दिया । इसके बाद हेमंत सोरेन फिर से मुख्यमंत्री बन गए ।
चंपाई सोरेन के पास तीन विकल्प
हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनेने से चंपाई सोरेन को कोई दुःख नहीं हुआ। बल्कि उन्होंने हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने पर खुले दिल से स्वागत किया था । लेकिन जिस तरह उन्हें बेइज्जत कर मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाया गया था, ये बातें उन्हें अंदर से तोड़कर रख दिया था। इस संबंध में चंपाई सोरेन ने कहा कि मेरे पास तीन विकल्प हैं। पहला राजनीति से संन्यास। दूसरा अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा इस राह में अगर कोई साथी मिले तो उसके साथ आगे सफर तय करना। आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव तक मेरे लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं । उन्होंने वर्तमान हालात को निजी संघर्ष बताते हुए कहा कि इस संघर्ष में पार्टी के किसी सदस्य को शामिल करने अथवा संगठन को किसी प्रकार की क्षति पहुंचाने का मेरा कोई इरादा नहीं है। जिस पार्टी को हमने अपने खून पसीने से सींचा था, उसका नुकसान करने के बारे में कभी कुछ भी नहीं जा सकता । उनकी बातों से प्रतीत होता है कि चंपाई सोरेन एक संवेदनशील राजनेता हैं ।
नई राह की तलाश में बढ़ाये कदम
चंपाई सोरेन एक सुलझे हुए राजनीतिज्ञ हैं। राजनीति के संबंध में उनकी दृष्टि बिल्कुल स्पष्ट है। वे पार्टी और पार्टी के संघर्ष को बखूबी समझते हैं। अब चूंकि चंपाई सोरेन नई राह की तलाश में कदम बढ़ा चुके हैं । अब उनके बढ़े हुए कदम वापस लौटने वाले नहीं है। चंपाई सोरेन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद इस बारे में बहुत ही गंभीरता के साथ विमर्श किया। तब उन्होंने एक वैकल्पिक नई राह की ओर अपना कदम बढ़ाया ।
भाजपा में शामिल होने की पूरी संभावना
राजनीतिक गलियारे में यह भी चर्चा हो रही है कि चंपाई सोरेन आखिर किस दल में जाएंगे ? उनके साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा के कौन-कौन से विधायक व नेता शामिल हैं ? यह बात अब खुले तौर पर स्पष्ट हो गया है कि चंपाई सोरेन की नई राह की मंजिल भारतीय जनता पार्टी तक जाती है। दिल्ली की राह भाजपा की ओर ले जाती है । अगर उन्हें अपना अलग ही दल बनाना होता, तब वे कोलकाता के रास्ते दिल्ली की ओर सफर तय नहीं करते, बल्कि झारखंड में ही रहकर एक नई पार्टी का गठन करते। यह भी खबर आ रही है कि भाजपा के कई बड़े नेताओं से उनकी अब तक गुप्त बैठकें भी हो चुकी हैं । अब कुछ ही दिनों में यह स्पष्ट हो जाएगा कि कब चंपाई सोरेन भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण करेगें। चंपाई सोरेन झारखंड के एक कद्दावर नेता हैं । झारखंड में 2024 में होने वाले विधानसभा चुनाव में चंपाई सोरेन भाजपा के एक नेता के रूप में यूपीए को कड़ी टक्कर देने की स्थिति में आ जाएंगे।
इसका BJP और JMM पर क्या होगा असर ?
चंपाई सोरेन के नई राह की ओर बढ़ते कदम पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि पैसे के दम पर उनकी पार्टी को तोड़ने की कोशिस की जा रही है । भाजपा पहले घर और अब पार्टी को तोड़ रहे हैं। यह सच है कि शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा से त्यागपत्र देकर लोकसभा का चुनाव लड़ा था । वहीं दूसरी ओर झारखंड मुक्ति मोर्चा के एक मजबूत सिपाही चंपाई सोरेन भी एक नई राह की ओर कदम बढ़ा चुके हैं। वर्ष के अंत तक झारखंड में विधानसभा का चुनाव होना है। अब देखना यह है कि सीता सोरेन और चंपाई सोरेन के झारखंड मुक्ति मोर्चा छोड़ देने से यूपीए गठबंधन पर कितना असर डालता है ? इसके साथ ही भाजपा चंपाई सोरेन और सीता सोरेन को साथ लेकर झारखंड विधानसभा के 2024 में होने वाले चुनाव में सत्ता में वापस आती है अथवा नहीं ?