दहेज जैसी कुप्रथा को जड़ से मिटाने की दिशा में 'सामुहिक विवाह' एक कारगर कदम

हमारे भारतीय समाज और भारत का संविधान का भी यह मत  है कि लड़का और लड़की में कोई फर्क नहीं है, तो फिर हमारे समाज में लड़कियों की शादी में लड़के के पिता लड़की के  पिता से दहेज क्यों मांगते हैं ?

  दहेज जैसी कुप्रथा को जड़ से मिटाने की दिशा में 'सामुहिक विवाह' एक कारगर कदम

समाज से दहेज जैसी कुप्रथा को  जड़ से मिटाने की दिशा में सामूहिक विवाह का आयोजन मील का पत्थर साबित होगी। आज संपूर्ण देश में दहेज प्रथा के खिलाफ एक अनुकूल माहौल बनता चला जा रहा है। धीरे-धीरे कर लोगों में जन जागृति आ रही है। कानूनन  दहेज लेना और देना दोनों अपराध की  श्रेणी में आता है।‌ इसके बावजूद दहेज जैसी प्रथा  हमारे समाज में अब तक जीवित क्यों है ?  यह बड़ा सवाल है।  हमारे भारतीय समाज और भारत का संविधान का भी यह मत  है कि लड़का और लड़की में कोई फर्क नहीं है, तो फिर हमारे समाज में लड़कियों की शादी में लड़के के पिता लड़की के  पिता से दहेज क्यों मांगते हैं ? जबकि सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा दहेज जैसी कुप्रथा को  मिटाने  के लिए जबरदस्त ढंग से अभियान चलाया जा रहा है। इतना सब कुछ होने के बावजूद दहेज जैसी कुप्रथा खत्म नहीं हो पा रही है। आज देश भर के न्यायालयों में लाखों की संख्या में दहेज के लेन देन से जुड़े मुकदमे चल रहे हैं। दहेज के लिए ही बहू को जलाकर मार देने की आए दिन घटनाएं हमारे समाज में दस्तक देती रहती हैं। दहेज के लिए हर दिन बहुएं जलाई जा रही है। 

  हालात इतने बद से बद्तर होती चली जा रही है कि दहेज के लिए लड़की के पिता को समाज के आगे हाथ तक फैलाना पड़ रहा है । अर्थात लड़की के पिता जो कन्या का दान करने वाले होते हैं। अपनी ही बेटी के लिए उसे भिखारी तक बन जाना पड़ रहा है। अगर लड़का सरकारी नौकरी में हो तो लड़के वाले की मांग सुरसा के मुख समान हो जाती है। पहले तो लड़के वाले साइकिल, रेडियो और घड़ी की मांग किया करते थे। अब मोटरसाइकिल फोर व्हीलर तो साधारण लड़के वालों की मांग बन गई है। अगर किसी के घर में दो-तीन लड़कियां जन्म ले लेती हैं, तो उनके पिता के लिए बड़ी परेशानियों का सबब बन जाता है।  लड़की कितनी भी पढ़ी-लिखी क्यों ना।  हो ? नौकरी में क्यों न हो ? उसे दहेज की तराजू में तौल कर ही विदा किया जाता है। जबकि आज की बदली परिस्थिति  में लड़का और लड़की में कोई फर्क दिखता नहीं है।  जो काम लड़के कर सकते हैं।  वही काम लड़कियां भी उसी रूप में अंजाम दे रही हैं। विभिन्न क्षेत्रों में लड़कों की तरह लड़कियां भी अपना परचम लहराने में पीछे नहीं रह रही है। इसके बावजूद दहेज जैसी कुप्रथा लड़कियों का पीछा नहीं छोड़ रही है। 

 दहेज जैसी कुप्रथा को जड़ से मिटाने के लिए सामूहिक विवाह का आयोजन एक वरदान साबित हो रही है। समाज के हर वर्ग के लोग अपने-अपने स्तर से सामूहिक विवाह का आयोजन कर रहे हैं। ऐसे आयोजनों से कम खर्चे में  लड़कियों की शादी हो जा रही हैं। अब बड़े-बड़े घरों के लोग भी ऐसे आयोजनों में अपने बेटे बेटियों की शादियां कर रहे हैं। सामूहिक विवाह आयोजन समिति द्वारा लड़के और लड़कियों के अभिभावकों से संपर्क कर दोनों परिवारों का परिचय सम्मेलन करवाते हैं। दोनों परिवार परिचय सम्मेलन में एक दूसरे से परिचित होते हैं। परिचय सम्मेलन में अभिभावक गण लड़का - लड़की  पसंद कर सामूहिक विवाह उत्सव में अपने बच्चें और बच्चियों की शादी करा देते हैं । इस तरह के सामूहिक विवाह कार्यक्रम के शादियां संपन्न होने से लड़का लड़की के माता-पिता बहुत से फिजूल खर्ची से बच जाते हैं । साथ ही कम खर्चे में ही कई  शादियां सम्पन्न हो जाती है।

   इसी सामूहिक विवाह आयोजन की कड़ी में हजारीबाग में आगामी 2 फरवरी, 2025 को स्थानीय कर्जन ग्राउंड के प्रांगण में सांसद 'सामूहिक विवाह उत्सव - 2025' के तत्वाधान में 101 जोड़ों का सामूहिक विवाह संपन्न होगा । इस सामूहिक विवाह आयोजन के आयोजक हैं,हजारीबाग संसदीय क्षेत्र के माननीय सांसद मनीष जायसवाल । इस दिन  विवाह  स्थल पर 101 अलग-अलग बने मंडपों में 101 जोड़ो की शादियां हिंदू रीति रिवाज द्वारा संपन्न संपन्न होगी । ध्यातव्य है कि सामुहिक विवाह हेतु सभी 101 जोड़े गरीब परिवार से आते हैं।‌ सामुहिक विवाह उत्सव ने काफी मेहनत कर 101 जोड़ों को विवाह हेतु निबंधित किया है।‌ सांसद सामूहिक विवाह उत्सव द्वारा सभी 101 जोड़ों को कुछ  ऐसे विशेष उपहार प्रदान किया जाएंगे ताकि वे रोजी रोजगार से जुट पाएं।

   आज के बदले सामाजिक परिदृश्य में लड़कियां परिवार के लिए बोझ  समझी जाती हैं। यह किसी भी मायने में एक स्वस्थ समाज के लिए उचित बात नहीं है। समाज में व्याप्त दहेज जैसी कुप्रथा के कारण लड़कियों की शादी करने में कई परिवार आर्थिक रूप से टूट जाते हैं। वहीं दूसरी ओर गरीब परिवारों का हाल और भी बुरा हो जाता है।  यह सामाजिक परिदृश्य हर हाल में बदलना चाहिए।‌ मेरी दृष्टि में सामूहिक विवाह जैसे आयोजनों से दहेज जैसी कुप्रथा पर बहुत हद तक अंकुश लग पाएगा

   शादी बोझ नहीं बल्कि एक उत्सव बने। लड़की के माता-पिता लड़की की शादी के लिए समाज के सामने हाथ न  फैलाएं बल्कि दाता बनें। इन बातों को ध्यान में रखकर सांसद सामुहिक विवाह उत्सव ने समाज के दबे कुचले वर्ग की बेटियों की शादी योग्य वर से करा कर इसे एक उत्सव में बदलने का पहला किया है। ताकि हमारा समाज लड़कियों के जन्म होने पर उत्सव मनाएं । लड़कियों को कदापि बोझ न समझें ।‌ ताकि समाज में व्याप्त भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथा जड़ से समाप्त हो सके।

  देश की महिलाओं को पुरुषों के समान, समान रूप से विकसित करने हेतु 2023 में नरेंद्र मोदी की सरकार ने 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' को पारित किया। इस 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' के अस्तित्व में आने के बाद देशभर की महिलाओं की स्थिति एक बड़ा परिवर्तन आएगा। जिसे देशवासी आने वाले कुछ ही सालों में देख पाएंगे। हमारे समाज में जो लड़का और लड़की भेद करते हैं, इस अधिनियम से सारा भेद खुद व खुद मिट जाएगा। 

    इसी परम उद्देश्य को लेकर हजारीबाग में पहली बार 2024 में मनीष जायसवाल द्वारा सामूहिक विवाह का आयोजन किया गया था। इस सामूहिक विवाह आयोजन में 101 जोड़ों की हिंदू रीति रिवाज से शादियां हुई थी।‌ आज सभी 101 जोड़े रोजी रोजगार से जुड़कर अपनी गृहस्थी हंसी-खुशी चला रहे हैं । सांसद मनीष जायसवाल का यह कदम निश्चित तौर पर समाज के हर वर्ग के लोगों के लिए अनुकरणीय है । उनके इस कदम से समाज में व्याप्त दहेज जैसी कुप्रथा पर अंकुश लगेगा। उनके इस कदम का समाज के हर वर्ग  के लोगों द्वारा सराहना मिल रही है। दहेज प्रथा जिस तरह एक सामाजिक कुरीति है।  उसी तरह जात-पात में भेदभाव भी एक सामाजिक कुरीति है । आज जात-पात को लेकर हमारे समाज में नियमित लड़ाइयां होती रहती हैं। जात-पात में बंटा हमारा यह समाज अगर एक हो जाए तो देश की तस्वीर ही बदल जाएगी। ‌ इस विषय पर समाज के हर वर्ग के लोगों को विचार करने की जरूरत है।  आज हम सब मिलजुल कर दहेज प्रथा के खिलाफ एक जुट होकर सामूहिक विवाह जैसे आयोजन को जन-जन तक पहुंचाने का जो काम कर रहे हैं, इस तरह जातिवाद जैसी कुप्रथा को जड़ से समाप्त करने के लिए समाज के हर वर्ग के लोगों को एकजुट होने की जरूरत है।

  देश भर के सांसदों, राज्यसभा के सदस्यों,  विधान परिषद के सदस्यों और विधानसभाओं के सदस्यों को हजारीबाग संसदीय क्षेत्र के सांसद मनीष जायसवाल द्वारा आयोजित होने वाले सामूहिक विवाह उत्सव से सबक लेने की जरूरत है । अगर सभी सांसद गण, राज्यसभा सदस्य गण ,बिहार परिषद के सदस्य गण और विधानसभा के सदस्य गण अपने-अपने क्षेत्र में सामूहिक विवाह उत्सव का आयोजन करने का संकल्प लेंगे, तो कुछ ही सालों में दहेज जैसी कुप्रथा से हमारा समाज सदा सदा के लिए मुक्त हो जाएगा।