चूं चूं और चूं चूं का मुरब्बा
चुनाव के ठीक पहले बहुत कमाल के सीन दिख रहे हैं। कोई कह कुछ रहा है, कर कुछ और रहा है। किसी को वादा किया गया था कि चुनावी टिकट दिया जायेगा, पर चुनावी टिकट किसी और को मिल गया। सर्कस टाइप का सीन चल रहा है।
जिसकी औकात होती है, वह घोषणा कर देता है, जिसकी हैसियत ना होती वह मिमियाता है।
हर राज्य में लगभग यही हो रहा है। गठबंधन में जो मजबूत पार्टनर है, वह अपने कैंडीडेट घोषित कर देता है , बाकी के पार्टनर चूं चूं करते हैं।
पालिटिक्स में दो ही तरह के नेता होते हैं-एक जो कुछ करते हैं, दूसरे चूं चूं करते हैं।
चूं चूं से कुछ नहीं होता। बिहार में यही हुआ, अब बाकी गठबंधन पार्टनर चूं चूं कर रहे है। महाराष्ट्र में उध्दव ठाकरे ने जो करना था, कर दिया, बाकी के चूं चूं कर रहे हैं।
चूं चूं से कुछ ना होता।
पर यह तो गलत बात है गठबंधन है तो मिल जुलकर फैसले होने चाहिए।
ठीक जी है, तो मिलजुलकर यह फैसला कर तो कि बिहार में फैसला लालू यादव करेंगे, और महाराष्ट्र में गठबंधन में फैसला उध्दव ठाकरे करेंगे।
सब फैसले जब कुछ मजबूत नेताओं को करने हैं तो गठबंधन काहे का जी।
जी इस पर आप या कोई चूं चूं कर सकता है।
चूं चूं करते रहिये, उससे भी हल ना निकलता, उससे सिर्फ चूं चूं ही निकलती है।
चुनाव के ठीक पहले बहुत कमाल के सीन दिख रहे हैं। कोई कह कुछ रहा है, कर कुछ और रहा है। किसी को वादा किया गया था कि चुनावी टिकट दिया जायेगा, पर चुनावी टिकट किसी और को मिल गया। सर्कस टाइप का सीन चल रहा है। बंदा इधर से छलांग मारता है उधर के लिए, पर बीच में ही कोई उससे टकरा जाता है और वह कहीं और गिर जाता है। पालिटिक्स में कोई किसी का नहीं है। जी बहुत बुरा वक्त आ गया है, टाइप बातें ना कहें। पालिटिक्स में हमेशा ही बुरा ही वक्त रह है, कौन कब कहां निकल ले ,यह कुछ तय ना होता था। अलाउद्दीन खिलजी ने कई शताब्दियों पहले अपने चाचाजी को निपटा दिया था, और कई शताब्दी पहले इब्राहीम लोदी को उसके चाचा निपटाने में लगे थे, यह अलग बात है कि इब्राहीम लोदी को फाइनली बाबर ने निपटाया। काहे के चाचा, काहे के भतीजे, कुरसी ही सब कुछ है, वक्त अब बुरा नहीं आया, साहब, पालिटिक्स में हमेशा ही वक्त बुरा था। आंध्र में मुख्यमंत्री की बहन अपने भाई को निपटाने में लगी हैं, बहुत बुरा वक्त आ गया है क्या , जी बिलकुल नहीं। मुगल सल्तनत में दारा शिकोह को निपटाने में उनकी एक बहन की बहुत बड़ी भूमिका थी। कुरसी गीता यही है कि कोई किसी का नहीं है, सब अपने भी नहीं पूरे तौर पर, सब सिर्फ कुरसी के ही हैं, और कुरसी किसी की नहीं है। सो साहब सर्कस देखिये और यह ना कहिये कि बुरा वक्त आ गया है।
कुरसी का इतिहास कोई पढ़ ले, तख्त का कोई इतिहास पढ़ ले तो सन्यासी हो सकता है। पर अब की पालिटिक्स खालिस मनोरंजन है। संजय राऊत कहते हैं कि महाऱाष्ट्र में हमारा गठबंधन फाइनली सैट हो गया है। एक गठबंधन पार्टनर कहता है कि अभी सैट ना हुआ कुछ भी। महाराष्ट्र में कांग्रेस खुश नहीं है गठबंधन में सीटों के बंटवारे से। अमीर रिश्तेदारी की शादी में गरीब रिश्तेदारों को चिरकुट टाइप की गिफ्ट मिलती है, तो गरीब रिश्तेदार चूं चूं करता है पर उसकी सुनता कौन है। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे अमीर हैं। बाकी सब चूं चूं ही कर रहे हैं। करते रहिये।