सम्मान झेलना भी टेढ़ा काम है साहब ! बेइज्जत सम्मानशुदा

अगर कोई अपनी तारीफ से सहमत होने लगे, तो समझिये कि वह बदतमीज आदमी है।

सम्मान झेलना भी टेढ़ा काम है साहब ! बेइज्जत सम्मानशुदा

अपमान झेलना मुश्किल काम है (अगर आप नेता ना हों, तो), पर साहब सम्मान झेलना भी आसान काम नहीं है। आप कल्पना करें कि आपका सम्मान समारोह हो रहा हो, लेक्चर चल रहे हों कि वाह साहब क्या आदमी हैं। क्या शानदार रचनाकार हैं। सोचिये अगर आप इससे सहमत होने लगें समारोह में कि जी हां, मैं बहुत बढ़िया आदमी हूं। जी आप ठीक कहते हैं कि मैं शानदार रचनाकार हूं। अगर कोई अपनी तारीफ से सहमत होने लगे, तो समझिये कि वह बदतमीज आदमी है। वो समझे या नहीं कि पब्लिक समझने लगती है कि कतई छिछोरा और बदतमीज बंदा है, खुद अपनी ही तारीफ से बढ़-चढ़ कर सहमत हो रहा है।

तो बंदा क्या करे, अपनी तारीफ से असहमत हो जाये-ना मैं कतई बढ़िया आदमी नही हैं। ना मैं कतई शानदार रचनाकार नहीं हूं, अपने सम्मान समारोह में जाकर कोई ऐसे करे, तो उसे कतई बेवकूफ माना जायेगा। अबे तुम्हे पता था कि तुम अपने सम्मान समारोह में आ रहे हो और आकर ऐसी बातें कर रहे हो, तो बेवकूफ तो माने जाओगे।

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तीसरा रास्ता है कि ग्रामीण नव-वधू की तरह धीमे-धीमे शर्मीली मुस्कराहट चेहरे पर चेंपे रहे। वैसे अब तो ग्रामीण वधुएं भी वैसी शर्मीली नहीं रहीं। सम्मान झेलना भी टेढ़ा काम है साहब। शर्मीले पोज में मुस्कुराते हुए दिखना कतई-कतई मूर्खतापूर्ण काम है। सम्मान झेलना हरेक के लिए आसान काम नहीं है, एक हद तक निर्लज्ज होना पड़ता है। ये बात कहो, तो लोग कह उठते हैं अगर जरा भी लज्जा होती तुममें, तो इतना और ऐसा काहे लिखते।

सम्मान से डरने लगता हूं मैं और अपने सम्मान-समारोह के इच्छुकों से कह देता हूं कि आप मेरा सम्मान करते हैं अच्छी बात है, पर इस बात को कैश के जरिये अभिव्यक्त कीजिये। 11000, 21000, 51000 के चेक या कैश लिफाफे में बंद करके मुझे दे जाइये, चुपके से। दान की तरह सम्मान को भी गुप्त रखिये। हर साल करते रहिए सम्मान।

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अभी कल दिल्ली में एक सम्मान समारोह में मुझे सम्मान के तौर पर एक शाल गिफ्ट किया गया, गिफ्टिंग की फोटू अखबार में छपी। फोटू में सम्मान करनेवाली संस्था के अध्यक्ष, महासचिव, उपसचिव, ट्रेजरार, वित्तीय अधिकारी, प्रचार सचिव, एक शाल और मैं था। कुल फोटू में मेरा हिस्सा दशमलव 10 प्रतिशत था। सम्मानक संस्था के अधिकारी और शाल सारी फोटू घेर गये।

मेरी मां ने डपटा मुझे-ये तेरे सम्मान का फोटू या अपमान का। एक शाल तक तुझे छह लोग मिलकर देते हैं। किसी लेडी किट्टी पार्टी के किसी मेंबर के परिवार में शादी होती है, तो हर लेडी 1000 रुपये देती है, एक शानदार गिफ्ट का डौल बन जाता है। ऐसी हालत तेरे सम्मान की हो गयी, छह लोगों ने पचास -पचास रुपये शाल के इकठ्ठे किये और तुझे एक शाल दे दिया। अगली बार तीन सौ रुपये मुझसे ले लेना शाल के, खबरदार आगे से ऐसे सम्मान की फोटू किसी अखबार में दिखी तो।

अपने सम्मान की फोटू मां को दिखाने में डर लगे, ऐसे सम्मान से डरना चाहिए साहब।

सम्मान-पुरस्कार विषयक शोध से पता चला कि सम्मान दूर के लोग ही करते हैं, दूर के ही कर सकते हैं, क्योंकि पास के करीब लोग बहुत करीब से सब कुछ जानते हैं। मेरे पैतृक शहर में कुछ मित्रों ने शहर के नामी लोगों से मेरे सम्मान की बात चलायी कि लेखक-वगैरह हो गये हैं वह, कुछ सम्मान-पुरस्कार दिया जाये उन्हे। नामी लोगों में से अधिकांश मेरे बचपन के मित्र निकले, चार्टर्ड एकाउंटेंट, डाक्टर, उद्योगपति वगैरह। एक चार्टर्ड एकाउंटेंट ने मेरे बारे में साफ कह दिया कि बचपन में तो वह कंचे चुराते थे और घर से पैसे चुराकर चित-पट नाम का लघु-स्तरीय जुआ खेला करते थे। इन हरकतों के लिए उनकी मां ने उनकी सार्वजनिक ठुकाई कई बार सड़क पर की थी, हमने ही कई बार उन्हे ऐसे पिटते देखा है। ऐसे आदमी को सम्मानित करें और हम उसका अतीत अब बच्चों को बतायें, तो कैसा असर पड़ेगा नये बच्चों पर। अपने सम्मान की यह बात सुनकर मैं सहम गया।

जैसा भी हो, गैरों से शालवाला सम्मानित अर्जित करके खुश रहना चाहिए। अपने लोग सम्मान पर उतर आयें, तो आदमी को बेइज्जत होते देर ना लगती।

वक्त से ज्यादा बेइज्जत कोई न कराता, आर के लक्ष्मण का कार्टून बताता है कि कुछ सीटों के लिए कई नेताओं की चिरौरी करने वाले उद्धव ठाकरे के पिता बाल ठाकरे महाराष्ट्र में कभी कैसे सीट गठबंधन किया करते थे