युद्ध से बुद्ध तक ……अनंत धीश अमन
गया । जीवन का आखिरी रास्ता युद्ध नहीं होता है बल्कि जीवन का प्रथम राह हीं युद्ध है। यदि आप जीवन को सुरक्षित और संरक्षित रखना चाहते हैं तो युद्ध से भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि संघर्ष का एक चरण युद्ध हीं है। युद्ध से आपके अंदर नेतृत्व की क्षमता बढ़ती है और जिसके अंदर नेतृत्व की क्षमता नहीं वह दास की भांति जीवन व्यतीत करता है और अपने परिवार समाज राष्ट्र को कमजोर एवं कायर बनाता है।
युद्ध के बगैर बुद्ध का कोई अर्थ ही नहीं है
बुद्ध का अर्थ अध्यात्म है जहां सुख-शांति, कांति- वैभव त्याग-तप और तपस्या है जो जीवन को उत्थान के उत्कर्ष के शिखर पर पहुंचाता है। किंतु जो स्वतंत्र नहीं जिसने दासता को जीवन का अंग बना लिया हो वह किसी भी तरह के आत्मिक एंव अध्यात्मिक उत्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता है। जिसका जीवन भयमुक्त ना हो वह अध्यात्मिकता के उत्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता है इसी कारण युद्ध आवश्यक है युद्ध से ही आप भय मुक्त होते हैं और जीवन को अध्यात्मिक उत्कर्ष प्रदान करते हैं। युद्ध का तात्पर्य अन्याय कदापि नहीं हो सकता है अन्याय के खिलाफ जो लड़ाई लड़ी जाती है वह हीं युद्ध है अन्याय का प्रतिकार युद्ध है और जो अन्याय को जीवन का अंग बना लिया है उससे युद्ध करना धर्म के मार्ग का बाधा कैसे हो सकता है इसलिए युद्ध के लिए सदैव तत्पर तैयार रहना चाहिए। जिससे आपका मन और तन दोनों निर्भय रह सके और आप सुख शांति कांति वैभव त्याग तप और तपस्या के लिए आपके जीवन में भरपूर स्थान हो। जिसमें आपके जीवन का आत्मिक और अध्यात्मिक विकास होता रहे और तन-मन, समाज-राष्ट्र एंव विश्व को सुरक्षित-संरक्षित एंव पोषित करते रहे ऐसा जीवन ही सर्व कल्याणकारी है।