संपूर्ण क्रांति के अग्रदूत लोकनायक जयप्रकाश नारायण

देश की आजादी के बाद सत्ता की तानाशाही के खिलाफ उन्होंने जो मोर्चा खोला था, इस मोर्चा की कोख से कई युवा नेताओं का भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ था।

संपूर्ण क्रांति के अग्रदूत लोकनायक जयप्रकाश नारायण

विजय केसरी:

स्वतंत्र भारत के संपूर्ण क्रांति के अग्रदूत लोकनायक जयप्रकाश  नारायण थे । राजनीति सिर्फ सत्ता प्राप्ति का एक मकसद बन गया था । सत्तासीनों की मनमानी से लोकतंत्र लहूलुहान हो रहा था। आजादी से पूर्व भारत की राजनीति का एक ही मकसद था, ब्रिटिश हुकूमत को भारत की धरती से बेदखल करना। लंबे संघर्ष के बाद देश को आजादी मिली थी। लाखों लोगों ने कुर्बानियां दी थी। जेपी चाहते तो सत्ता की किसी भी बड़ी कुर्सी पर आसीन हो सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा ना कर एक दूरद्रष्टा राजनीतिज्ञ होने का परिचय दिया था । सत्ता से बाहर रहकर सत्ता की राजनीति पर उनकी नजर थी। तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी की तानाशाही से लोकतंत्र लहूलुहान हो रहा था। सत्ता से उन्हें हटाने के लिए संपूर्ण देश में लोकनायक जयप्रकाश नारायण को संपूर्ण क्रांति का आह्वान करना पड़ा था। देश की आजादी के बाद यह उनका दूसरा बड़ा संघर्ष था। इस संघर्ष में संपूर्ण देशवासियों का उन्हें साथ मिला था। अंततः श्रीमती इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री की कुर्सी को खाली करना पड़ा था । यह जे .पी के संघर्षमय जीवन का दूसरी सबसे बड़ी जीत थी।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण का संपूर्ण जीवन राष्ट्र को समर्पित रहा था । देश की आजादी के पूर्व एक स्वाधीनता सेनानी के रूप में उन्होंने जो अदम्य साहस का परिचय दिया था सदा सदा के लिए इतिहास के पन्नों में  दर्ज हो गया । देश की आजादी के बाद सत्ता की तानाशाही के खिलाफ उन्होंने जो मोर्चा खोला था, इस मोर्चा की कोख से कई युवा नेताओं का भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ था।

एक सच्चे लोकतांत्रिक समाजवादी
लोकनायक जयप्रकाश नारायण का संपूर्ण जीवन त्याग और बलिदान से ओतप्रोत रहा था । श्रीमती इंदिरा गांधी के तानाशाही कदमों के खिलाफ जब उन्होंने  देश के युवाओं को आह्वान किया था, तब देश के युवाओं ने जो समर्थन दिया था, वह अद्वितीय था।  लोकनायक जयप्रकाश नारायण अगर चाहते तो सत्ता की राजनीति में आ सकते थे, लेकिन वे सत्ता से दूर रहकर सत्ता की चाल पर नजर रखे हुए थे। वे एक सच्चे लोकतांत्रिक समाजवादी नेता थे ।
जे.पी. आंदोलन की शुरुआत कैसे हुआ ? यह आंदोलन किस प्रकार संपूर्ण देश में फैला ?  खासकर देशभर के छात्रों का इस आंदोलन में कैसे प्रवेश हुआ ? आदि मन में उठते प्रश्नों को युवा पीढ़ी को जाननी चाहिए और इस आंदोलन से प्रेरणा लेनी चाहिए।  जे.पी. की आवाज को दबाने की जबरदस्त कोशिश की गई थी। आज भी जे.पी की बातें सकल समाज को संदेश देती नजर आ रही है। उन पर केंद्र सरकार के लाख दमन चक्र चले, इसके बावजूद भी उनके आंदोलन को दबाया नहीं जा सका। बल्कि आंदोलन धीरे धीरे बढ़ता ही चला गया ।

आपातकाल के बावजूद आंदोलन रूका नहीं, बल्कि और तेज होती गई
तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा आपातकाल की घोषणा की गई थी। बावजूद यह आंदोलन रूका नहीं, बल्कि इसकी चिंगारी और तेज होती गई । अंततः तानाशाह इंदिरा सरकार को आपातकाल समाप्त कर चुनाव की घोषणा करनी पड़ी थी । सत्ता परिवर्तन के इस आंदोलन में देशभर के छात्रों की महती भूमिका रही थी। देश की आजादी के बाद छात्रों का राजनीति में प्रवेश एक नई राजनीति का सूत्रपात हुआ था । लोकनायक  जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया था। आज की बदली राजनीतिक परिदृश्य में  संपूर्ण क्रांति की जरूरत महसूस की जा रही है।
1974 जे.पी आंदोलन में झारखंड प्रांत के छात्रों एवं अन्य आंदोलनकारियों की भूमिका बड़ी अहम थी।  इस आंदोलन के कई आंदोलनकारी सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ अपनी आवाज आज भी बुलंद करते नजर आ रहे हैं। कई आंदोलनकारी आज इस दुनिया में नहीं रहे । उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए गर्व होता है।अर्पित करती  है।  जे.पी के आह्वान पर युवा आंदोलनकारियों के लंबे संघर्ष के बाद सत्ता परिवर्तन संभव हो पाया था । आज ये आंदोलनकारी युवा से वृद्धावस्था की ओर प्रवेश कर गए हैं।  इस आंदोलन में उनकी क्या भूमिका रही ? वे इस आंदोलन में किस तरह सक्रिय रहे ?  वे कैसे इस आंदोलन से जुड़े ? वे कैसे पढ़ाई लिखाई छोड़ कर दिन रात आंदोलन में व्यस्त हो गए? कैसे परिवार के लोगों से नजरें बचाकर आंदोलन में सक्रिय होते थे ? जब पहली पहली बार लोकनायक जयप्रकाश नारायण से मिले, तब उन्हें कैसा अनुभव हुआ ?  आदि कई ऐसी रोचक बातों से आज की युवा पीढ़ी को प्रेरणा लेनी चाहिए।

‘1974 जे.पी आंदोलन’ पुस्तक का लोकार्पण
पिछले दिनों लोकनायक जयप्रकाश नारायण आंदोलन के छात्र नेताओं द्वारा ‘1974 जे.पी आंदोलन’ शीर्षक से एक पुस्तक का लोकार्पण हुआ था।  इस पुस्तक में आंदोलनकारियों की कलम से कुछ ऐसी बातें खुलकर सामने आई जिसे पढ़कर राजनीति की बहुत सी बातें जानी जा सकती है। इस  पुस्तक का प्रथम पृष्ठ बेहद ही रोचक और ऐतिहासिक महत्व का है । प्रथम पृष्ठ पर हजारीबाग में जन आंदोलन – 15 अगस्त 1974 के समय वीर कुंवर सिंह मैदान में गांधी का अंतिम व्यक्ति स्व० मानकी महतो द्वारा झंडोत्तोलन का एक दृश्य है। इस चित्र में छात्र गण राष्ट्रीय ध्वज को सैल्यूट कर रहे हैं । यह दृश्य देखकर मन साहस से भर उठता है। साथ ही प्रथम पृष्ठ पर सभी को अभिवादन करते हुए लोकनायक जयप्रकाश नारायण की एक तस्वीर भी ऊपर लगी हुई है। इस पुस्तक के अंतिम पृष्ठ पर सप्ताहिक ‘दिनमान’ (1977) की एक तस्वीर भी अंकित है। यह तस्वीर भी एक ऐतिहासिक महत्व की बन गई है । जनता पार्टी, चुनाव में विजयी होने के बाद  जयप्रकाश नारायण जी के साथ पटना में विचार विमर्श करते हुए की तस्वीर है।  लगभग सभी चेहरे युवा छात्रों के हैं। सभी  चेहरे सत्ता परिवर्तन की चाहत से ओतप्रोत हैं।
इस पुस्तक के संपादक मंडल के सदस्य गौतम सागर राणा, प्रभात रंजन, संजय शरण, हरीश श्रीवास्तव और संतोष सत्यार्थी हैं। संपादक मंडल के सभी सदस्य 1974 छात्र आंदोलन के सक्रिय आंदोलन कर्मी रहे। तब से लेकर आज तक ये सभी किसी ना किसी राजनीतिक दल में रहकर अपनी अहम भूमिका निभाते चले आ रहे हैं। विशेष रूप से गौतम सागर राणा आज देश के जाने-माने नेता है।  उन्होंने  लोकनायक जयप्रकाश नारायण से समाजवाद की सीख ली । जब बिहार में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में सरकार बनी , तब वे बगोदर विधानसभा से विधायक निर्वाचित हुए। दो बार यहीं से निर्वाचित हुए।  फिर बिहार विधानसभा के सदस्य बने। राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार की  विभिन्न समितियों के सदस्य के रूप में अपनी महती भूमिका निभाते चले आ रहे हैं । गौतम सागर राणा ने इस पुस्तक के प्राक्कथन में दर्ज किया है कि ‘हजारीबाग में आंदोलनकारियों की सक्रियता व सघनता इतनी अधिक थी कि इससे निपटने के लिए बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स के अधिकारी व जवानों की  प्रतिनियुक्ति की गई थी । शहर में बीएसएफ के जवान गश्त करते थे । आंदोलनकारियों पर नियंत्रण स्थानीय पुलिस के बस के बाहर था। बीएसएफ के एक कमांडेंट  पांडेय जी थे। वे बीएसएफ फोर्स के इंचार्ज थे ।अनेकों बार हमारी बैठकों में सम्मिलित हो जाते और हमारी बातें सुनते। कभी छुपकर तो कभी सामने आकर’। आगे उन्होंने दर्ज किया है कि जेपी आंदोलन की शुरुआत कैसे हुई ? उन्होंने लिखा है कि ‘सर्वप्रथम गुजरात में अपनी मांगों के समर्थन में छात्रों ने आंदोलन प्रारंभ किया ।जे. पी को छात्रों ने गुजरात बुलाया । गुजरात छात्र आंदोलन से प्रेरणा लेकर बिहार एकीकृत में भी छात्रों ने आंदोलन की शुरुआत की। आंदोलन सक्रियता से प्रारंभ हुआ । छात्रों ने सम्मिलित रूप से जेपी से अनुरोध किया कि वे इस आंदोलन का नेतृत्व करें।  जेपी ने अहिंसा आदि शर्तों पर आंदोलन का नेतृत्व करना स्वीकार किया’। जे .पी के नेतृत्व संभालते ही यह आंदोलन देखते ही देखते चंद दिनों में राष्ट्रव्यापी बन गया ।

‘तानाशाही नहीं सहो’
इस पुस्तक में एक लेख ‘तानाशाही नहीं सहो’ शीर्षक  से दर्ज है । यह लेख पटना के 1974 आंदोलन के एक छात्र नेता अख्तर हुसैन जी ने लिखा है। उन्होंने लिखा है कि ‘आज युवा छात्र के सामने फिर से यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या यह सरकार तानाशाह नहीं हो सकती ? यह सही है कि जनता पार्टी की सरकार आने से हमें तत्कालिक तानाशाही से मुक्ति मिल गई ।पर सारी व्यवस्था पुरानी जैसी ही है।  जिससे मूल समस्या कभी भी खत्म नहीं हो सकती।  सारी पुरानी व्यवस्था जब तक रहेगी , तब तक हमेशा तानाशाही की प्रवृतियां रहेगी ही। जनता पार्टी की सरकार से कहीं भी ऐसी आशा नहीं बंध रही है  कि पुरानी व्यवस्था पर जोर नहीं होगा’ । अख्तर हुसैन जी ने अपने छोटे से आलेख में बहुत बड़ी बात कहने की कोशिश की है।
पुस्तक के दूसरे भाग में जयप्रकाश आंदोलन के  दस्तावेज सैद्धांतिक आयाम  व जे . पी के व्याख्यान को प्रस्तुत किया गया है। इस खंड में कुल 12 लेख प्रकाशित हैं  सभी ऐतिहासिक महत्व के लेख हैं। ‘ गांधी होने का अर्थ’, ‘गांधी और जयप्रकाश’, ‘अधनंगा फकीर’, ‘अंतिम व्यक्ति’ जैसे शीर्षकों के माध्यम से लोकनायक जयप्रकाश नारायण के व्यक्तित्व और कृतित्व के साथ  संपूर्ण क्रांति के आह्वान को बहुत ही मजबूती के साथ स्थापित करता नजर आता  है।