भारत को बांग्लादेश के हिंदुओं की सुरक्षा के लिए आगे आने की जरूरत है
अल्पसंख्यक बांग्लादेश अलग देश निर्माण के पूर्व से ही वहां रहते चले आ रहे हैं। बांग्लादेश ही उनकी वास्तविक जन्मभूमि है।
भारत सरकार को बांग्लादेश में रह रहे अल्पसंख्यक हिंदूओं की सुरक्षा के लिए आगे आने की जरूरत है। बांग्लादेश में नई सरकार गठन हो जाने के बावजूद बांग्लादेश में रह रहे अल्पसंख्यक हिंदू, बौद्ध ,जैन और ईसाई धर्मावलंबियों पर रोजाना जानलेवा हमले हो रहे हैं । अल्पसंख्यक लोगो के घरों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को आग के हवाले कर दिया जा रहा है। वहां रह रहे अल्पसंख्यक परिवारों की महिलाओं और बच्चियों की दिनदहाड़े अस्मत लूटी जा रही है । वहां की सरकार और पुलिस यह सब खुले रूप से होने दे रही है। बहुसंख्यक बांग्लादेशी खुले रूप से नंगा नाच कर रहे हैं। उसके खिलाफ पुलिस कार्रवाई भी नहीं हो रही है। इससे उपद्रवियों का मन और बढ़ता चला जा रहा है। आखिर ऐसे में बांग्लादेश में रह रहे अल्पसंख्यक आगे अपना जीवन बसर कर सकेंगे ? यह एक अहम सवाल है। वहां रह रहे अल्पसंख्यक लोगों ने भी बांग्लादेश निर्माण में अपनी महती योगदान दिया था । तब फिर अल्पसंख्यकों के खिलाफ यह उपद्रव क्यों ?
बांग्लादेश में रह रहे अल्पसंख्यकों के खिलाफ यह उपद्रव इसलिए हो रहा है कि ये गैर इस्लामिक हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या गैर इस्लामिक लोगों को बांग्लादेश में रहने का कोई अधिकार नहीं है? इतिहास बताता है कि बांग्लादेश में रह रहे अल्पसंख्यक बांग्लादेश अलग देश निर्माण के पूर्व से ही वहां रहते चले आ रहे हैं। बांग्लादेश ही उनकी वास्तविक जन्मभूमि है। तब फिर इस्लाम धर्म के मानने वाले अनुयाई वहां रह रहे हिंदुओं पर इतना जुल्म क्यों ढा रहे हैं? बांग्लादेश में इस्लाम धर्म के मानने वालों को अपने देश में रहने का जितना हक है, उतना ही वहां रह रहे अल्पसंख्यकों को भी है।
सर्वविदित है कि 1947 में भारत की आजादी से पूर्व बांग्लादेश अखंड भारत का ही एक हिस्सा था। देश की आजादी के बाद भारत दो टुकड़ों में बट गया था । तब 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान एक नए देश के रूप में विश्व मानचित्र पर उभर कर सामने आया था । तब से पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं को इस्लाम कबूल करवाने के लिए साजिशें रची जा रही हैं । देश की आजादी के समय पाकिस्तान से लाखों की संख्या में हिंदू परिवार भारत आ गए थे। लेकिन लाखों की संख्या में हिंदू परिवारों ने पाकिस्तान को ही अपना वतन समझा। वे वहीं रहना पसंद किए। तब से लेकर आज तक वहां रह रहे हिंदू बिरादरी के लोगों को एक अलग नजरिए से देखा जाता आ रहा है । देश की आजादी के समय पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान में हजारों की संख्या में मंदिर थे। जिसे एक योजना के तहत जमीनदोज कर दिया गया । आज भी यह क्रम रुका नहीं बल्कि जारी है। अब सवाल यह उठता है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए आवाज कौन बुलंद करेगा ?
1947 से ही पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं के साथ जुल्म होता चला आ रहा है। जुल्म पाकिस्तान में रह रहे इस्लामिक लोग ही कर रहे हैं। वहां रह रहे लाखों की संख्या में हिंदूओं को इस्लाम धर्म कबूल करने के लिए विवश होना पड़ा। हर साल पाकिस्तान से सैकड़ों की संख्या में हिंदू परिवार जान बचाकर किसी तरह भारत आज ही जाते हैं । इन हिंदू परिवारों ने जो स्थिति पाकिस्तान की बताई हैं, सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। 1947 में पाकिस्तान में हिंदुओं की कुल आबादी में 17 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। आज पाकिस्तान में हिंदुओं की कुल आबादी में मात्र एक प्रतिशत रह गई है। पाकिस्तान में बीते 77 वर्षों में हिंदू अल्पसंख्यकों की घटी आबादी यह बताती है कि उन सबों पर कितना जुल्म हुआ होगा।
विश्व के लगभग सभी देश यह जानते हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे हिंदुओं पर कितने जुल्म उठाए जा रहे हैं। इन दोनों देशों के हिंदू मंदिरों को एक के बाद एक एक ध्वस्त किए जा रहे हैं । इसके बावजूद कोई देश पाकिस्तान और बांग्लादेश के इस कुकृत्य पर आवाज नहीं उठा रहे हैं । यह विश्व समाज के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। विश्व मानवाधिकार संगठन भी इस मुद्दे पर कितने वर्षों से मौन क्यों हैं ? वहीं जाने । इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ भी मौन क्यों है ? यह समझ से परे है। अब फिर वही सवाल उठता है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए आवाज कौन बुलंद करेगा?
1971 में पाकिस्तान से टूट कर बांग्लादेश के रूप में एक अलग देश का निर्माण हुआ था। बांग्लादेश के निर्माण में भारत की अहम भूमिका रही थी । एक कूटनीति के तहत पड़ोसी देश पाकिस्तान को कमजोर और सबक सिखाने के लिए बांग्लादेश का निर्माण हुआ था। बांग्लादेश के निर्माण को भारत के लिए एक कूटनीतिक जीत कहा गया था। तब उम्मीद की गई थी कि नवनिर्मित बांग्लादेश में बहुसंख्यक इस्लामी लोगों के साथ वहां के मूल हिंदू, जैन, बौद्ध, ईसाई और अन्य धर्मावलंबी मिलजुलकर रहेंगे। लेकिन यह सोच गलत साबित हो गई। 1971 में बांग्लादेश निर्माण के समय वहां की कुल आबादी में लगभग 18 प्रतिशत हिंदुओं की हिस्सेदारी थी। आज बंगलादेश में कुल आबादी में हिंदुओं की 5 से 6 प्रतिशत के बीच की हिस्सेदारी रह गई है। पांचजन्य के पूर्व संपादक तरुण विजय ने 20 वर्ष पूर्व बांग्लादेश की यात्रा कर एक रिपोर्ट अपने पत्र में प्रकाशित किया था। उस रिपोर्ट में उन्होंने वहां रह रहे हिंदुओं की व्यथा कथा को उसी रूप में प्रस्तुत किया था। वहां रह रहे हिंदू बांग्लादेशियों के को दुर्गा पूजा मनाने के लिए कितनी शिद्दतें करनी पड़ रही है। उसे रिपोर्ट में उन्होंने भारत सरकार से बांग्लादेश में रह रहे हिंदुओं की सुरक्षा की भी बात कही थी। वरिष्ठ पत्रकार तरुण विजय का यह प्रकाशित रिपोर्ट भी अन्य रिपोर्ट की ही तरह रह गई। तत्कालीन भारत सरकार ने इस ओर किसी भी तरह का कोई ध्यान नहीं दिया। आज इसका परिणाम यह है कि बांग्लादेश और पाकिस्तान से गैर इस्लामिक वजूद को ही समाप्त कर दिया जा रहा है।
चूंकि पाकिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे अल्पसंख्यक एक समय अखंड भारत के ही नागरिक थे । समय और परिस्थितियों के कारण अखंड भारत तीन देशों में विभक्त हो गया था। अखंड भारत का मूल धड़ा भारत आज भी अपनी पारंपरिक नीतियों पर चलकर विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल हुआ है। भारत में बहुसंख्यक हिंदू आबादी के साथ यहां रह रहे अल्पसंख्यक भी उसी रूप में आगे बढ़ते चले जा रहे हैं। इसलिए भारत की सरकार का अखंड भारत का मुख्य धड़ा होने के कारण यह फर्ज बनता है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में रह रहें अल्पसंख्यकों की सुध लें । इन दोनों देशों में जो बीते 77 वर्षों से हिंदू अल्पसंख्यकों पर जुल्म होते आ रहे हैं, उस पर विराम लगाने के लिए कोई ठोस कदम उठाए। ताकि इन दोनों देशों में रह रहे अल्पसंख्यकों को जीवन बसर करने में कोई परेशानी न हो।
बांग्लादेश और पाकिस्तान में हो रहे हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार के विरोध में संपूर्ण भारतवर्ष में रैलियां निकाली जा रही हैं। देशभर में सभाएं आयोजित की जा रही है। हिंदू धर्म सभा सहित विभिन्न हिंदू संगठनों के प्रमुखों ने भारत सरकार से बांग्लादेश और पाकिस्तान में रह रहे हिंदू बिरादरी के लोगों को पूर्ण सुरक्षा की मांग किया है । वहीं दूसरी ओर भारत के हिन्दू साधु - संतों ने भी भी पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदुओं की जान माल की रक्षा सहित धार्मिक कार्यों को करने की पूर्ण छूट की मांग किया हैं।
जब बात बांग्लादेश और पाकिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यकों पर हो रहे जुल्म हो रही है, देशवासियों को यह जानना चाहिए कि एक सुनियोजित साजिश के तहत अखंड भारत को एक इस्लामिक स्टेट के रूप में तब्दील किए जाने की योजना 1700 वर्ष पूर्व रची गई थी। यह योजना धीरे-धीरे बरगद का रूप धारण कर ली है। अखंड भारत तब एक सोने की चिड़िया के रूप में जाना जाता था। तब भारत के पास सबसे अधिक संख्या में बड़ा पानी का जहाज था। भारत विश्व के कई देशों को कपड़ा और अन्य खाद्य सामग्रियां आपूर्ति किया करता था। भारत व्यावसायिक रूप से काफी उन्नत था। लेकिन अखंड भारत विभिन्न रियासतों में बंटा हुआ था। अखंड भारत बाहरी तौर पर बहुत उन्नत और मजबूत दिखता था, लेकिन अंदर से कई रियासतों में बंटे रहने कारण कमजोर भी था। अखंड भारत के विभिन्न रियासतों में बंटे रहने के कारण ही मुगल आक्रांता आये और भारत उपमहाद्वीप में घुस कर विभिन्न रियासतों को अपने कब्जे में लेते चले गए थे।
देशवासियों को यह जानना चाहिए कि भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम काल या इंडो - मुस्लिम काल को पारंपरिक रूप से सन् 712 में शुरू हुआ, माना जाता है। मुहम्मद इब्न अल-कासिम की सैन्य कमान के तहत उमय्यद खलीफा द्वारा सिंध और मुल्तान की विजय के बाद यह भारतीय उपमहाद्वीप में क्रमिक विजय के दौरान शुरू हुआ था। पंजाब में गजनवी के औपचारिक शासन के बाद घुरिद आए और ग़ौर के सुल्तान मुहम्मद (1173-1206) को आम तौर पर उत्तरी भारत में मुस्लिम शासन ने नींव रखा गया था । 712 में ये मुस्लिम आक्रांता चींटी बनकर भारत आए थे। आगे वे धीरे-धीरे कर भारत के राजवाड़ों को युद्ध में हराकर सियासत अपने हाथों में लेते चले गए थे। बीते 1700 वर्ष पूर्व ही अखंड भारत के हिंदू मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाने का काम शुरू हो गया था । यहां के मूल धर्मावलंबियों को एक योजना के तहत इस्लाम कबूल करवाया जाने लगा था। आज यह बात दावे के साथ कहीं जा सकती है कि भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में रहने वाले अधिकांश मुसलमानों के पूर्वज हिंदू ही थे।
1206 से लेकर 1290 तक गुलाम वंश ने भारतीय उपमहाद्वीप पर लगभग 84 वर्षों तक शासन किया था । भारत में शासन करने वाला यह पहला मुस्लिम राजवंश था। 1290 से लेकर 1320 तक खिलजी वंशज ने इस मुल्क पर शासन किया था। 1320 से लेकर 1430 तक तुगलक वंशज ने शासन किया था। 1414 से लेकर 1451 तक सैयद वंशज ने शासन किया था। 1451 से लेकर 1526 तक लोधी वंशज ने शासन किया था। इन सबों के लंबे शासन में हिंदू मंदिरों को ध्वस्त कर मस्जिदें बनाई गईं। इसके साथ ही कई नई मस्जिदों का भी निर्माण हुआ था।
1526 में जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर ने पानीपत के मैदान में सल्तनत के आखिरी सुल्तान इब्राहिम को हराकर मुगल साम्राज्य की स्थापना की थी। बाबर के ही वंश के एक शासक औरंगज़ेब के 50 वर्षों के शासनकाल में भारत में रह रहे हिंदुओं पर जबरदस्त कहर ढाया गया था। इस दौरान भी कई मंदिरों को ध्वस्त कर मस्जिदें बनाई गई थीं । यहां रह रहे हिंदुओं को इस्लाम धर्म कबूल करने के लिए विवश कर दिया गया था। इसी कालखंड में हिंदुओं पर हो रहे जुल्म के खिलाफ सिख धर्म के गुरु तेग बहादुर सिंह जी ने अपनी शहादत दी थी। गुरु गोबिंद सिंह ने हिंदुओं के रक्षार्थ अपने पूरे परिवार की शहादत दे दी थी। इसी दौरान विश्व का एकमात्र ख्याति प्राप्त नालंदा विश्वविद्यालय को जला दिया गया था। बीते 1700 वर्ष से हिंदुओं के नामोनिशान को मिटा देने की करवाई के बावजूद हिंदू अस्मिता को मिटाया जा नहीं पाया । भारत सरकार को इतिहास से सबक लेकर बांग्लादेश और पाकिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यकों की रक्षार्थ के लिए आगे आने की जरूरत है।