सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ संघर्षरत रै दास के पद
भक्ति काल के महान संत,कवि रविदास की जयंती पर विशेष
विजय केसरी
महान समाज सुधारक, संत कवि रैदास का प्रादुर्भाव समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने के लिए हुआ था। समाज में व्याप्त कुरीतियां के खिलाफ उनके पद आज भी संघर्षरत है। जिस कालखंड में रैदास का प्रादुर्भाव हुआ था। उस काल को भक्ति काल के रूप में जाना जाता है। इसी भक्ति काल में रैदास सहित कई जाने-माने संतों का प्रादुर्भाव इस धरा पर हुआ था । रै दास का जन्म चमार जाति में हुआ था। रैदास चर्मकार का काम किया करते थे। वे बहुत ही मन लगाकर चप्पल – जूतों को बनाया करते थे। उनकी प्रसन्नता देखते बनती थी। किसी ने उन्हें कभी उदास देखा था।
जब उन्हें काम से फुर्सत मिलती, वे ईश्वर भक्ति में लीन हो जाए करते थे । उनकी भक्ति सबसे निराली थी। वे किसी भी धर्म , पंथ और विचार में भेद नहीं किया करते थे। उनका मानना था कि जब संसार एक है ,हवा और पानी एक है, तब अलग-अलग ईश्वर कैसे हो सकते हैं ? वे एक ईश्वरवाद के पक्के समर्थक थे। उनका संपूर्ण जीवन ईश्वर भक्ति में बीता था। वे अपने ही घर के बाहर बनी दुकान में चर्मकार का काम किया करते थे। उनकी ईश्वर भक्ति को देखकर आसपास के लोग रोजाना उनसे मिलने आया करते थे । वे अपने मिलने वालों का बहुत ही आदर सत्कार किया करते थे । वे ईश्वर भक्ति के गूढ़ रहस्यों को बताया करते थे । धीरे धीरे कर रैदास की प्रसिद्धि देश के विभिन्न राज्यों तक पहुंच गई थी । उनसे मिलने के लिए कई रियासतों के राजवाड़े आया करते थे। रैदास को स सम्मान अपने महलों में बुलाया करते थे। उनकी वाणी ऐसी थी, जो भी एक बार उन्हें सुन लेता था, उनका मुरीद बन जाता था। रै दास ने कभी भी किसी भक्त से कुछ भी नहीं मांगा।
उन्हें यह पक्का विश्वास था कि जिसने यह जीवन दिया है , वही उसका लालन-पालन करेगा। वे इसी अटल विश्वास के साथ लगातार अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए आगे बढ़ते रहे थे । रैय दास जातिवाद के कट्टर विरोधी थे। वे जात पात के बंधनों में बंटे भारतीय समाज को जात पात के बंधनों से आजाद करना चाहते थे । इस संदर्भ में उन्होंने लिखा ,..जाति, जाति में जाती है, जो केतन के पात,’ रैदास मनुष ना जुड़ सके, जब तक जाति ना जात ‘ अर्थात भारतीय समाज के लिए जाति का बंधन एक ऐसा बंधन था, जो केले के तंबू के समान है। परत दर परत केले के थंब को छिलते चले जाइए। अंत में कुछ भी ना निकलेगा । उसी तरह जात पात का बंधन है, जात पात के बंधन से मनुष्य को कुछ भी हासिल नहीं हो सकता है। हर व्यक्ति को चाहिए कि जात पात के बंधनों से मुक्त होकर सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करें। जब तक भारतीय समाज जात पात के बंधनों से मुक्त नहीं होगा, तब तक हमारा यह समाज खुशहाल नहीं हो सकता है । जाति प्रथा के कारण कई कुरीतियां और विषमताएं हमारे समाज में जन्म ले ली है। यह हमारे विकास की गति को पूरी तरह अवरुद्ध कर दिया है। जात पात के कारण हमारा यह समाज कई खंडों में बंटता चला जा रहा है। इससे देश की एकता और अखंडता भी प्रवाहित हो रही है।
आज से साढ़े छः सौ वर्ष पूर्व संत रैदास ने जात पात के खिलाफ जो लड़ाई शुरू की थी। आज भी उनके पद जाति प्रथा के खिलाफ संघर्षरत नजर आ रहे हैं ।
रैदास मन की पवित्रता बहुत कुछ लिखा। उनका एक बहुत ही लोकप्रिय पद है । मन चंगा तो कठौती में गंगा’, अर्थात अगर मन पवित्र है , तो कठौती में गंगा अवतरित हो सकती है । मन कलुषित कामनाओं से युक्त है, और हम गंगा का स्नान कर ले तो ऐसे गंगा के स्नान करने का कोई मतलब नहीं रह जाता है । अगर मन मेरा पवित्र है। भाव मेरे पवित्र है , तो गंगा कठौती में अवतरित हो सकती है । उनका यह पक्का विश्वास था कि मंदिर मस्जिद , गुरुद्वारा ये सभी पवित्र स्थल है। इन जगहों पर भक्तों का जाना अच्छा माना जाता है । लेकिन उन्हीं भक्तों को इन पवित्र स्थानों से पुण्य लाभ मिल सकता है, जिनके मन पवित्र हैं। जिन भक्तों के मन पवित्र नहीं है, तो इन मंदिरों में जाकर कितनी भी पूजा-अर्चना कर लें कोई मतलब नहीं रह जाता है। मन की पवित्रता ही व्यक्ति को ईश्वर तक पहुंचा सकता है। उन्होंने ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग बताया है , ईश्वर से सच्चा स्नेह और मनका पवित्र होना। ईश्वर से सच्चा स्नेह का तात्पर्य है, एक ईश्वर पर विश्वास रखना। अपना सब कुछ ईश्वर के हाथों में सौंप देना । रैदास के पदों की लोकप्रियता आज चरम पर है। विश्व के लगभग पुस्तकालयों में संत रैदास के पद उपलब्ध हैं। विश्व के कई विश्वविद्यालयों में रैदास के पद पढ़ाए जाते हैं। रै दास के पदों पर विश्व भर में निरंतर शोध हो रहे हैं। रै दास के पदों में हमेशा कुछ न कुछ नूतन बातें निकलते ही रहती है ।
रै दास एक सच्चे समाज सुधारक के साथ एक क्रांतिकारी कविभी थे। उनके पद आज भी समय के साथ संवाद करते नजर आ रहे हैं। उनके पदों में क्रांतिकारी विचार हैं। उनके पद समाज में व्याप्त छुआ छूत से लड़ने की प्रेरणा भी प्रदान करता है। असमानता के खिलाफ मिलजुल कर लड़ने की ताकत भी प्रदान करता है । पाखंड के खिलाफ एकजुट होने की प्रेरणा भी प्रदान करता है । संत रैदास ने दर्ज किया है कि ‘कृष्ण, करीम राम, हरि, राघव, जब लग एक पेखा, वेद, कतेब, कुरान, पुरातन सहज नहीं देखा।’ उनकी दृष्टि में कृष्ण करीम, राम ,हरि, राघव में कोई भेद नहीं था । वेद कतेब पुराण आदि सब में एक ही बात दर्ज है । सबों का एक ईश्वर एक है। ईश्वर से साक्षात्कार, एक ईश्वर पर अटूट विश्वास ही आज की बदली परिस्थिति से मुकाबला करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। आज चंहुओर अशांति , मारकाट व्याप्त है, जाति प्रथा जैसी कुरीति आज भी तांडव करने से बाज नहीं आ रही है, छोटे बड़े का भेद भी हमारे समाज में व्याप्त है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि जब तक इन कुरीतियों के खिलाफ हम सब एक नहीं होंगे, तब तक हमारा समाज बेहतर बन नहीं सकता है। रैदास ने लिखा, ‘रविदास जन्म के कारनै, होत ना कोऊ नीच , न कर कूं नीच करें डारी है, ओछे काम की नीच’। अर्थात कोई भी व्यक्ति निम्न जाति में जन्म लेकर अगर उसके गुण महान है, तो उसकी पूजा होती है। उच्च कुल में जन्म लेकर अगर उसका कर्म नीचा है, वह कदापि पूजनीय नहीं हो सकता है। आज रै दास के पदों की प्रासंगिकता समाज के हर वर्ग में बढ़ गई है।आज उनके जन्मदिन पर हम सबों को जात पात के बंधनों से मुक्त होकर एक खुशहाल समाज बनाने की ओर बढ़ना चाहिेए। सच्चे अर्थों में संत रविदास के प्रति यह संकल्प सच्ची श्रद्धांजलि होगी।