मन में राम,तन में राम, रोम-रोम में राम हैं : तुषार कांति
रांची। राजधानी के निवारणपुर स्थित आम्रपाली अपार्टमेंट निवासी जाने-माने समाजसेवी तुषार कांति शीट ने कहा है कि तपोभूमि अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन और शिलान्यास समारोह के मौके पर पूरा देश जिस प्रकार राममय दिखा,वह राम नाम की महिमा के प्रताप का परिचायक है। इस अवसर पर देशवासियों ने जिस तरह से उल्लास और आनंद व्यक्त किया, इससे एक बार फिर इस बात की पुष्टि हुई कि भारत देश के रोम-रोम में राम बसते हैं। इस ऐतिहासिक अवसर पर झारखंड का भी कोना-कोना अयोध्या के साथ कदमताल करता नजर आया। झारखंडवासियों ने भी श्रद्धा और भक्ति दर्शाते हुए घर-घर में भगवान श्रीराम के नाम पर दीप जलाए और आतिशबाजी कर इस शुभ मुहूर्त की महत्ता प्रदर्शित की। श्री शीट ने कहा कि राम मंदिर निर्माण का शुभारंभ हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना का उदय है। भगवान श्री राम की स्मृति संजोने का यह बड़ा काम देशवासियों की एकजुटता,श्रद्धा, आस्था, भक्ति और उल्लास से संभव हो सका। जिसकी प्रतीक्षा में सदियां गुजर गई। श्री शीट का मानना है कि इससे भारतीय समाज में सद्भाव और समरसता बढ़ेगी। भगवान राम की महिमा सुशोभित करने वाला मंदिर देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के लिए भी एक उदाहरण बनेगा। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम वनवास के दौरान झारखंड (छोटानागपुर) क्षेत्र में भी लंबे समय तक रहे। पश्चिम सिंहभूम जिले के वैतरणी नदी के तट के पास रामतीरथ धाम, सिमडेगा का रामरेखा धाम और रांची जिले के सीता फाॅल में मौजूद भगवान श्रीराम की कई निशानियों से इसके संकेत मिलते हैं। उक्त सभी जगहों पर भगवान श्री राम के ठहराव-पड़ाव से संबंधित निशानियां अभी भी मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि समस्त देशवासियों सहित झारखंड के लोगों के लिए भी यह प्रण लेने और संकल्प करने का दिन है कि प्रभु श्री राम के बताए सत्य और धर्म के मार्ग पर चलकर हम रामराज की परिकल्पना को साकार करें। श्री शीट ने कहा कि इससे भारत की संस्कृति,सामर्थ्य और शक्ति से परिचित कराने संबंधी संदेश भी दुनिया में जाएगा। यह राष्ट्र को उत्कर्ष के उस शिखर की ओर ले जाने में भी सहायक होगा, जिसकी परिकल्पना हर भारतवासियों के दिलो-दिमाग में है। उन्होंने कहा कि श्रीराम मंदिर का निर्माण भारत के नवनिर्माण का शुभारंभ है। ऐसे समय हमारा हृदय भी राम का बसेरा होना चाहिए। सभी दोषों से, विकारों से, द्वेषों से, शत्रुता से मुक्त होना चाहिए।ऐसे समय हम हृदय से सभी प्रकार के विकारों को तिलांजलि देकर संपूर्ण जगत को अपनाने का संकल्प लें। यही भगवान श्रीराम के प्रति सच्ची श्रद्धा, आस्था और समर्पण होगी।