“सत्य: भव, मुक्त: भव, त्वं भव” अनंत धीश अमन

“सत्य: भव, मुक्त: भव, त्वं भव” अनंत धीश अमन

जीवन सत्य पथ पर अग्रसर करने हेतु यदि कठोर निर्णय भी लेना पड़े तो हिचकना नहीं चाहिए क्योंकि इससे आपके अंदर साहस का उदय होग और आपके जीवन को प्रकाशमान करेगा जो की आपको सच्चे इंसान के रुप में प्रवृत्त करेगा। जब आप स्वयं के अंदर इस प्रकाश को अनुभूति करेंगे तो आप स्वयं के भीतर के उर्जा का सदुपयोग करना प्रारंभ करेंगे। तो आप सबकुछ निर्वहन करते हुए आप किसी भी तरह के बंधन में आप स्वयं को महसूस नहीं करेंगे और आप स्वतंत्र भाव से अपने जीवन पथ पर आरूढ़ हो सकेंगे जिससे आपके अंदर निर्भीकता का आगमन होगा जो कि आपको हर क्षेत्र मे सफल बनाएगा। आप अपने परिवार, समाज से जुङे रहकर भी मुक्त हो सकते है और उन्हें संबलता प्रदान करते हुए आप अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है। ठीक उसी प्रकार, जैसे वटवृक्ष की टहनियां मुख्य अंग से जुङकर भी अपना विस्तार करता है वह बंधन में होते हुए भी मुक्त है स्वतंत्र है और अपने साहस और उर्जा का सदुपयोग करके विशाल वृक्ष का रुप लेता है। हमें भी अपने जीवन में वटवृक्ष की तरह कार्य करना चाहिए क्योंकि अध्यात्म प्रयत्न और साधना का नाम है जब आप प्रयत्न कर रहे होते है तो आप उसे साध रहे होते है और जब आप उसे साध लेते है तो वही साधन हो जाता है।
श्रीमद्भगवद्गीता में एक श्लोक इस प्रकार है
श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।
इसका अर्थ है कि, जो जितेन्द्रिय तथा साधन-परायण है, ऐसा श्रद्धावान् मनुष्य ज्ञानको प्राप्त होता है और ज्ञानको प्राप्त होकर वह तत्काल परम शान्तिको प्राप्त हो जाता है। इसलिए जीवन में सत्य पथ पर चलते हुए जीवन को प्रकाशित करना चाहिए और यह प्रकाश आपको स्वतंत्र भाव से परिपूर्ण करेगा और एक सफल जीवन यापन करने हेतु यह आपको करना हीं होगा।
जिसे संस्कृत के श्लोक में इस प्रकार कहा गया है-
सत्य: भव, मुक्त: भव, त्वं भव
सच्चे बनो, स्वतंत्र बनो, तुम बनो।