कल इन्हीं बच्चों के कंधों पर परिवार व देश की जवाबदेही होगी

14 नवंबर, बाल दिवस सह पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती विशेष

कल इन्हीं बच्चों के कंधों पर परिवार व देश की जवाबदेही होगी

आओ ! हम सब  मिलजुल कर  बच्चों के जीवन को खुशहाल बनाने में जुटें।  कल इन्हीं बच्चों के कंधों पर अपने - अपने घर, परिवार, समाज, प्रांत और देश की जवाबदेही होगी।  अगर आज इनका बचपन खुशहाल नहीं होगा, तब ये कैसे अपने दायित्व का निर्वहन मजबूत इच्छाशक्ति करेंगे।  इनके कंधे पर कल बहुत बड़ी जवाबदेही आने वाली ।  अगर आज  इनके कंधे बोझिल और कमजोर होंगे, तब ये कैसे अपने जीवन के झंझावातों से मुकाबला करेंगे ?  इसलिए बच्चों का बचपन हर हाल में खुशहाल होना बहुत जरूरी है।   बच्चों को मानसिक रूप से  मजबूत होना बहुत जरूरी है।
   आज की बदली परिस्थिति में वैज्ञानिक आविष्कारों ने समाज को एक नई सूरत प्रदान किया है।  पाश्चात्य संस्कृति वैश्विक बन चुकी है। पूरी दुनिया कंप्यूटर के एक छोटे से कैबिनेट में समा चुकी है। पलक झपकते ही विश्व की कोई भी खबर इस कोने से दूसरे कोने तक पहुंच सकती है।  बच्चों का लालन-पालन विश्व के किस देश में किस रूप में हो रहा है ? कंप्यूटर के स्क्रीन पर देखा जाना जा सकता है। भारत आदिकाल से  गुरु -  शिष्य परंपरा का देश रहा है। चाहे बच्चें राजा के हों, चाहे आम आदमी के बच्चें  हों, सबों की शिक्षा गुरुकुल में हुआ करती थी।  बच्चें  योग्य गुरु के मार्गदर्शन में शिक्षा प्राप्त किया करते थे । राजा के पुत्र और प्रजा के पुत्र,  दोनों को एक प्रकार की शिक्षा मिला करती थी।  गुरुकुल से प्रशिक्षित होने के बाद बच्चें गुरु दक्षिणा और एक नए संकल्प के साथ गुरुकुल से बाहर निकलते थे । फलत: वे सभी अपने अपने दायित्व का निर्वहन पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ किया करते थे।  हमारी इस सांस्कृतिक विरासत ने कई महापुरुषों को जन्म दिया । ये महापुरुष कालजई बन चुके हैं।  इन महापुरुषों के विचार चांद और सूरज की तरह सभी को रौशन करते रहेंगे । 
  आज बच्चों का बचपन कहीं खोता चला जा रहा है । इन्हीं बच्चों के कंधे पर कल  घर परिवार की जवाबदेही होगी । अगर ये बच्चें नैतिकवान नहीं होंगे , मजबूत नहीं होंगे,  तब ये अपने दायित्व का निर्वहन कैसे पूरी ईमानदारी के साथ कर पाएंगे ?
   देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का आज जन्मदिन है।  उन्हें बच्चों से बेहद प्रेम था । वे बच्चों को बहुत प्रेम किया  करते थे।  इसलिए उन्हें चाचा नेहरू के नाम से भी जाना जाता है । पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन पर ही बाल दिवस मनाया जाता है।  जवाहरलाल नेहरू स्वाधीनता आंदोलन के अग्रणी नेता के रूप में जाने जाते हैं । महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन को अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था। पंडित नेहरू जी का बच्चों से  यह लगाव जीवन पर्यंत बना रहा था।  उन्होंने जेल में कैद रहकर एक बहुत ही महत्वपूर्ण किताब की रचना की थी।  इस पुस्तक का नाम 'भारत एक खोज'  है। यह पुस्तक एक कालजई पुस्तक के रूप में तब्दील हो चुकी है।  इस पुस्तक का अनुवाद विश्व के कई भाषाओं में हो चुका है। 

 पंडित जवाहरलाल नेहरू का कथन है,  'बच्चों को पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए । चाहे पढ़ाई का क्षेत्र हो  खेल का ।  जो भी क्षेत्र हो, बच्चों को उस क्षेत्र में जाने की पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए'। मैं समझता हूं कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के इस वक्तव्य से कोई भी अलग नहीं होंगे । पंडित नेहरू ने यह बात बहुत पहले कही थी।  अब विचारणीय यह है कि हम सब अपने बच्चों को कितनी स्वतंत्रता दे रहे हैं ?  बच्चों को पढ़ाई के  विषय चुनने की कितनी स्वतंत्रता प्रदान कर रहे हैं ?  बच्चे किस क्षेत्र में जाना चाहते हैं ?  बच्चे क्या करना चाहते हैं ?  बच्चे अपने जीवन में क्या बनना चाहते हैं ? आदि उठते प्रश्नों पर कभी हम सबों ने विचार किया है ?  हम सब अपनी सोच को बच्चों बच्चों में पूरा करना चाहते हैं । हम सब अपने अपने जीवन में जहां असफल हुएं, जिस पद को प्राप्त नहीं कर पाएं।  बच्चों के माध्यम से उसे पूरा करना चाहते हैं।  अब सवाल यह उठता है कि ऐसा करना कहां तक उचित है ?  लगभग सभी माता-पिता अपने बच्चों को डॉक्टर,इंजीनियर और उच्च अधिकारी बनाना चाहते हैं। यह तो ठीक है।  क्या कभी  हमने अपने अपने बच्चों के भावों को पढ़ने का प्रयास किया है ?   हमारे बच्चें किस फील्ड में जाना चाहते हैं ? हमारे बच्चें डॉक्टर बनना चाहते हैं या नहीं?  हमारे बच्चे वकील बनना चाहते हैं कि नहीं ?  हमारे बच्चे इंजीनियर बनना चाहते हैं कि नहीं ? इन प्रश्नों पर विचार करने की जरूरत है।  समय से पूर्व बच्चों पर एक पढ़ाई की एक विशेष जवाबदेही दे देते हैं।  बच्चें क्या बनना चाहते हैं ? इन बातों से हम सब पूरी तरह अनजान बन जाते हैं।  यह हम सबों की सबसे बड़ी भूल है।  बच्चें का मन विज्ञान की पढ़ाई में बिल्कुल भी नहीं लगता है, लेकिन हम सब जबर्दस्ती बच्चे को विज्ञान पढ़ने के लिए मजबूर कर देते हैं।  बच्चें माता-पिता के दबाव में विज्ञान जरूर पढ़ लेते हैं।  अंक भी अच्छा ले आते हैं, लेकिन    यह कर बच्चों पर अकारण मानसिक दबाव डाल देते हैं।   बच्चें कला के क्षेत्र में कुछ करना चाहते हैं, हम सब उसे विज्ञान पढ़ाकर रोक देते हैं।  बच्चों के   जिंदगी जीने के लिए अच्छे से अच्छे  फूडिंग का इंतजाम करते हैं।  पढ़ने के लिए एक से एक बेहतर ट्विटर का इंतजाम करते हैं।  इन तमाम सुविधाएं प्रदान कर भी बच्चे की असली खुशी को हम सब छीन लेते हैं । हर माता-पिता को विचार करने की जरूरत है कि हमारी गुरुकुल  परंपरा में गुरु, बच्चों को शिक्षित करते हुए बच्चों के स्वभाव,  पढ़ाई के विषय और  रूचि को समझते थे। वे  उसी रूप उसको शिक्षा दिया करते थे।  रूचि के अनुसार बच्चे पढ़ते थे ।  उदाहरण के तौर पर अर्जुन को तीर चलाने में बहुत मन लगता था।  गुरु द्रोणाचार्य उन्हें तीर चलाने के लिए प्रशिक्षित किया। भीम में  गदा संचालन की रूचि थी।‌ अगर इन दोनों को उनके रुचि के प्रतिकूल   शिक्षा दी जाती तो दोनों अपने-अपने क्षेत्र में असफल होते। 
  आज बाल दिवस पर हर माता-पिता को यह विचार करने की जरूरत हम सब अपने जीवन में जिस फिल्ड में असफल हुए हैं, उसे अपने बच्चों के माध्यम से  पूरा करने की कोशिश न  करें।  बच्चों को  पूरा समय दें।  बच्चों की हर गतिविधि पर ध्यान दें।  बच्चे की क्या रूचि है ? उस पर ध्यान दें।  बच्चे क्या चाहते हैं?  उस पर ध्यान दें। बच्चे किस विषय  की पढ़ाई करना चाहते हैं ?  उस पर ध्यान दें।  बच्चे को जिस फिल्ड में जाने की इच्छा है। उसी फिल्ड में भेजे ।  बच्चे उस फिल्ड निश्चित रूप से सफलता हासिल करेंगे।   हर साल हजारों की संख्या में बच्चे आत्महत्या करते हैं । उसके पीछे सबसे बड़ा कारण होता है, उसकी रुचि के विरुद्ध विषय का चुनाव करना होता है।  ये बच्चें अपने जीवन को बोझिल समझने लगते हैं । माता पिता की इच्छाओं को पूरा न करने के कारण ये बच्चें आत्महत्या करने के लिए विवश हो जातें हैं।  बाल दिवस पर बच्चों के मानसिक अवस्था विचार करने की जरूरत है । बच्चों के साथ खेलें।  बच्चों के साथ पढ़ें।  बच्चों के मनोभाव के अनुरूप कार्य करें।  आज लोग पैसे तो बहुत कमा लिए हैं, लेकिन बच्चों को समय देने के लिए उनके पास समय नहीं है । अब बताइए, बच्चे कैसे मजबूत बनेंगे ?  सिर्फ पैसे, बेहतर ट्यूशन एवं अन्य सुविधाएं प्रदान कर देने से भर से बच्चें महान नहीं बन सकतें । बच्चों के मनोभावों के अनुकूल कार्य करने से  उनके कंधे मजबूत हो सकते हैं। आइए, हम सब मिलकर बच्चों के जीवन को खुशहाल बनाएं।