हर एक माता-पिता बच्चों के मनोभावों को समझें
बाल मनोविज्ञान पर आधारित एक शोध परख आलेख : बच्चों का चरित्रवान,संस्कारवान और नैतिकवान होना जरूरी है। एक ताजा सर्वेक्षण के अनुसार यह बात उभर कर सामने आई है की माता-पिता से ही बच्चें संस्कार और नैतिकता का प्रथम पाठ सीखते हैं। चूंकि माता-पिता ही उनके सबसे निकट होते हैं ।

माता-पिता ही सच्चे अर्थों में बच्चों के कुंभकार होते हैं । कुंभकार का यहां मतलब है, बच्चों को संस्कारित करने के साथ एक योग्य नागरिक बनने से है। बच्चें गिली मिट्टी के समान होते हैं, यह वही समय होता है, जब बच्चों की भावी जिंदगी के निर्माण की आधारशिला को बहुत ही सूझबूझ के साथ रखा जाए। यही बच्चें कल जाकर अपने घर के मुखिया बनेंगे। उनके कंधों घर परिवार के साथ सामाज और देश की जवाबदेही रखी होगी । इसलिए बच्चों का चरित्रवान,संस्कारवान और नैतिकवान होना जरूरी है। एक ताजा सर्वेक्षण के अनुसार यह बात उभर कर सामने आई है की माता-पिता से ही बच्चें संस्कार और नैतिकता का प्रथम पाठ सीखते हैं। चूंकि माता-पिता ही उनके सबसे निकट होते हैं । जब बच्चें तीन -चार साल के हो जाते हैं, तब उन्हें स्कूल के हवाले किया जाता है। इसके बावजूद भी बच्चें किसी न किसी रूप से अपने माता-पिता के ही निकट होते हैं। इस उम्र में बच्चें अपने माता-पिता से ही सबसे ज्यादा जुड़े रहते हैं । बच्चों को समय पर नाश्ता, समय पर स्कूल भेजना और समय से स्कूल से लाना आदि माता-पिता ही करते हैं। लेकिन आज परिस्थितियां बदलती चली जा रही है। मां-बाप दोनों अपने इस नैतिक जवाबदेही से धीरे-धीरे कर दूर होते चले जा रहे हैं। फलस्वरुप बच्चों में चिड़चिड़ापन, क्रोध, छोटी-छोटी बातों पर भड़क उठाना, थोड़े सी परेशानी होने पर घबरा जाना, धैर्य का काम होना, मामूली सी बात पर आत्महत्या करने का निर्णय ले लेना।
अब सवाल यह उठता है कि इस हालात के लिए जिम्मेवार कौन है है ? निष्पक्ष पूर्वक कहा जाए तो इस हालात के लिए माता-पिता ही जिम्मेवार है। माता-पिता का जो समय बच्चों को मिलना चाहिए, नहीं मिल पा रहा है। माता पिता को इस समय बच्चों के साथ सबसे अधिक समय बिताना चाहिए लेकिन वे अपने बच्चों के हाथों में मोबाइल थमा कर राहत की सांस लेते हैं। यही राहत की सांस उन बच्चों के लिए भारी पड़ जाती है। साथ ही इतने समय तक बच्चों को माता-पिता से दूर भी कर देता है। माता-पिता दोनों बच्चों को मोबाइल थमाकर अपने नैतिक जवाबदेही दूर खड़े होते हैं। यह उनकी सबसे बड़ी भूल होती है। इस भूल की उन्हें बड़ी कीमत अदा करनी पड़ती है।
माता-पिता के इग्नोरेंस के कारण मजबूरी वश बच्चें मोबाइल के साथ खेलने के लिए बाध्य हैं। दूसरी ओर माता-पिता को कुछ अन्य काम करने का अवसर मिल जाता है। बाद में यह अवसर माता-पिता को बहुत ही महंगा पड़ जाता है। अगर माता-पिता नौकरी पेशे से जुड़े हैं, तब ऐसी स्थिति में बच्चें मेड सर्वेंट के जिम्मे में लगा दिए जाते हैं। अब बताइए, मां बाप से अलग रह कर बच्चें क्या संस्कार ग्रहण कर पाते हैं? इस बिषय पर सम्यक रूप से विचार करने की जरूरत है। मां बाप के बिना ये बच्चें अपने-अपने मेड सर्वेंट के साथ किस तरह समय बिताते होंगे ? ये बच्चे उसे पल को किस तरह काटते होंगे। ? समाज के हर वर्ग के लोगों को विचार करने की जरूरत है। जबकि इन बच्चों को इस वक्त अपने माता-पिता के साथ की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।
इसलिए यह बार-बार दर्ज कर रहा हो कि माता-पिता ही सच्चे अर्थों में बच्चों के कुंभकार होते हैं। कुंभकार का मतलब यह है कि जब एक कुम्हार चाक पर गिली मिट्टी को डाल कर अपनी उंगलियों से उसे आकार दे रहा होता है, तब उसका सारा ध्यान चाक पर रखें गीली मिट्टी पर होता है। अगर उसका ध्यान थोड़ा भी इधर-उधर हो जाए, तब गीली मिट्टी वह आकार नहीं ले पाता है । इसलिए उसका ध्यान और उसकी उंगलियां चाक पर रखे गीली मिट्टी पर पूरी तरह केंद्रित होता है। तब जाकर वह गीली मिट्टी किसी बर्तन का रूप धारण कर पाती है। ठीक उसी तरह मां-बाप अपने बच्चों के वास्तविक कुंभकार की भूमिका में होते हैं।
बच्चें जन्म के साथ ही सबसे पहले अपने माता-पिता को ही देखते हैं । ये बच्चें अपने माता-पिता से ही कुछ-कुछ सीखना प्रारंभ करते हैं। ये बच्चें सबसे पहले माता-पिता ही बोलना सीखते हैं। इसीलिए बच्चें सबसे ज्यादा अपने माता-पिता के करीब होते हैं। ये बच्चें अपने माता-पिता के भविष्य भी होते हैं। इन भविष्य के बच्चों के निर्माण में माता-पिता की अहम भूमिका होती है। लेकिन परिस्थिति वश बच्चों के साथ माता-पिता कम समय बिता पाते। यह सबसे बड़ी त्रासदी है।
वहीं दूसरी ओर हर मां-बाप चाहते हैं कि उनके बच्चें पढ़ लिखकर डॉक्टर, इंजिनियर, आईएएस, आईपीएस बने। इसलिए बच्चों के कैरियर बनाने हेतु धन अर्जन करने में लग जाते हैं। माता-पिता अपने अपने बच्चों को हर तरह की पढ़ाई से संबंधित सुविधाएं उपलब्ध करातें है। माता-पिता की यह सोच अच्छी है । माता-पिता अपनी इच्छाओं को इन बच्चों के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं। यह भी गलत नहीं है। लेकिन जो बच्चे उनके हैं, क्या कभी माता-पिता अपने मनोभाव को पढ़ने की कोशिश किए है ? यह अहम सवाल है। ।बच्चें जैसे ही पढ़ाना प्रारंभ करते हैं, माता-पिता उनसे उतने ही दूर होते चले जाते हैं । जबकि इस वक्त इन बच्चों को माता-पिता की सबसे ज्यादा जरूरत है । बच्चें अपने अपने माता-पिता की इच्छाओं को पूरा करने के लिए पढ़ाई में जुड़ जरूर जाते हैं। लेकिन कुछ ही बच्चें माता-पिता की इच्छाओं को पूरा कर पाते हैं। अब विचारणीय यह है कि बच्चे क्या पढ़ाई करना चाहते हैं ? वे क्या बनना चाहते हैं ? बच्चों के मन में उठते इन सवालों को कौन समझेगा ? इसका एक ही जवाब है, माता-पिता। लेकिन माता-पिता तो अपने बच्चों के माध्यम से अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहते हैं।
माता-पिता को चाहिए कि उनके बच्चें क्या पढ़ना चाहते हैं ? क्या बनना चाहते हैं ? को जानें। बच्चों के इन बातों से माता-पिता पूरी तरह अनजान बने रहते हैं। यही सबसे बड़ी भूल है। माता-पिता बच्चों के मेडिकल की तैयारी के लिए अच्छे से अच्छे कोचिंग सेंटर में दाखिला दिलवा देते हैं। बच्चों की पढ़ाई पर होने वाले खर्चे माता-पिता कड़ी मेहनत कर उठते हैं। बच्चे जी जान लगाकर तैयारी तो करते हैं । सभी तो सफल नहीं हो पाते हैं। जो बच्चे सफल नहीं हो पाते हैं, उनकी मानसिक स्थिति को समझा जा सकता है। ऐसी स्थिति में बच्चें मानसिक रूप से कितना परेशान होते होंगे, समझा जा सकता है। इस मानसिक दबाव के कारण कई बच्चों को आत्महत्या जैसी स्थिति से गुजर जाना पड़ता है ।
हर एक माता पिता बच्चों के मनोभावों को समझें । सब बच्चें एक समान नहीं होते हैं। कई बहुत तेज होते हैं। कई माध्यम होते हैं । कई निम्न होते हैं। अगर सबके साथ एक जैसा व्यवहार किया जाए। एक जैसी अपेक्षाएं की जाए। यह कदापि उचित नहीं है। हर बच्चों में कुछ ना कुछ संभावना जरूर होती है। बस जरूरत है। बच्चों में समाहित उन संभावनाओं और मनोभावों को समझने की । धैर्य पूर्वक देखिए, बच्चें जरूर कुछ ना कुछ करेंगे । माता-पिता अपने बच्चों को समय दें । सच्चे अर्थों में माता-पिता ही बच्चों के वास्तविक कुंभकार की तरह होते हैं, जो गीली मिट्टी के समान अपने बच्चों में संस्कार भरने का काम करते हैं। इसके बाद ही आप सब एक सफल मां-बाप बन सकते हैं । तभी आपको अपने बच्चें का माता-पिता का कहलाने का अधिकार होगा।