प्रेमचंद की कहानियां समाज में एक नई चेतना पैदा करना चाहती है
(31 जुलाई, कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 144 वीं जयंती पर विशेष)
प्रेमचंद का रचना संसार बहुत ही विस्तृत और महत्वपूर्ण है । इनकी कृतियां हर कालखंड में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करती रही थीं, रही हैं और रहेंगी । कथाकार/ स्तंभकार विजय केसरी ने कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 144 वीं जयंती पर कहा कि प्रेमचंद की कृतियां सदा पाठकों के बीच जीवित रहेंगी। प्रेमचंद हिंदी साहित्य के एक ऐसे लेखक बनकर उभरे, जिन्होंने अपनी कलम और सोच की बदौलत प्रचलित कहानियों की धारा को ही बदल कर रख दिया था। उन्होंने, समकालीन व पूर्व के लेखकों को कहानी रचना कर्म की एक नई धारा से परिचित कराया था। उस कालखंड में यह बात प्रचलित थी कि हिंदी कहानियों में तिलस्म और ऐय्यारी का ही बोलबाला था । प्रेमचंद ने इस तिलस्म और ऐय्यारी को ध्वस्त कर रख दिया था ।
आगे उन्होंने कहा कि समाज में नित क्या घटनाएं घट रही हैं ? समाज किस ओर जा रहा है ? समाज में रहने वाले लोगों की स्थिति क्या है ? पुरुषों और स्त्रियों की दशा क्या है ? उनका जीवन स्तर क्या है ? वे किस तरह जीवन निर्वाह कर रहे हैं ? समाज में बच्चों की स्थिति क्या है ? लड़कियों और बहुओं की स्थिति क्या है ? समाज में गरीबी और अमीरी की इतनी खाई क्यों है ? समाज में परिवारों के बीच तालमेल कैसा है ? लोगों का दांपत्य जीवन का कैसा है ? मेहनतकश मजदूरों की स्थिति कैसी है ? खून पसीना बहा कर खेती करने वाले कृषकों की स्थिति कैसी है ? ये तमाम महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे हमारी प्रचलित कहानियों से दूर थे। प्रेमचंद ने कहानियों के महत्व को समझा और अपनी कहानियों के माध्यम से समाज में एक बड़ा परिवर्तन लाने का सार्थक प्रयास किया था। प्रेमचंद ने अपनी कहानियों के माध्यम से समाज के सच से लोगों को परिचित कराया। उनकी कहानियों का भारतीय जनमानस पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने लगभग तीन सौ कहानियां और बारह उपन्यास लिखा । इन कहानियों और उपन्यासों को पढ़ने से प्रतीत होता है कि उनकी तमाम कृतियां समाजिक यथार्थ से जुड़ी हुई हैं। उनकी कृतियां सामाजिक मुद्दे पर समाज में एक नई चेतना लाना चाहती हैं। उनकी कृतियां समाज में एक नई बहस कराना चाहती हैं, जिसका उद्देश्य सिर्फ सामाजिक परिवर्तन है । उन्होंने अपनी कहानियों में सामाजिक सच को उसी रूप में प्रस्तुत किया है ।