प्रेम की एक नई परिभाषा गढ़ती 'प्यार के नाम' कविता

कवयित्री बहुत ही सुंदर शब्दों में बंया करती हैं कि 'सूखने दो गुलाब/ जिंदगी ता उम्र महकती रहेगी।'

प्रेम की एक नई परिभाषा गढ़ती 'प्यार के नाम' कविता

झारखंड की लब्ध प्रतिष्ठित कवयित्री सह लेखिका चेतना झा की 'प्यार के नाम' कविता की पंक्तियां प्रेम की एक नई परिभाषा गढ़ती नजर आती हैं ।  कविता की पंक्तियां अपने बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से प्रेम की एक नई कहानी बयां करती हैं । पंक्तियां अपने प्रतीकों और बिंम्बों  से विश्व मानव को जीवन जीने की कल से भी रूबरू कराती हैं । पंक्तियां देश की सीमाओं को तोड़ती संपूर्ण मानव जाति को प्रेम की नई दुनिया से भी परिचित कराती हैं। पंक्तियां कहती हैं,..

जिंदगी कोई कैद खाना नहीं है, जिसे कैद कर रखा जा सकता है। जिंदगी  को किसी बंधन अथवा घेरे में बांधकर रखना, उसके पंख को काट दैने के समान है। जिंदगी तो  एक खूबसूरत एहसास का नाम है। जिंदगी के  इस एहसास को खुले आकाश में उड़ने दो। जिसने भी इस जिंदगी को बांधने  की कोशिश की, उसका हश्र बंधा पानी से फैलते दुर्गंध के समान हो जाता है। इन पंक्तियों की लेखिका संपूर्ण मानव जाति से यह सवाल पूछना चाहती हैं कि  इतनी खूबसूरत जिंदगी आखिर कैसी हो ? उन्होंने इसका जवाब बहुत ही खूबसूरत ढंग से दिया है।  'बहती नदी सी हो, उसकी रवानी। अगर जिंदगी रूपी इस नदी से थोड़ा स पानी निकाल कर किसी टब में रख दिया जाए तो यह पानी कुछ दिनों में बदबू देना शुरू कर देगा।  अगर यह पानी नदी की धारा में बहता चला जाता, तब उसकी रवानी पल पल उसे और भी निर्मल और खूबसूरत बनाता चला जाता, जिसे देखकर लोग भी बाग बिग होते।  पानी के इस छल छल रवानी पर कविता की पंक्तियां भी लिखी जातीं । खुद पानी भी इन पंक्तियों को गुनगुनाता नदी की धारा में आगे बढ़ता चला जाता। 
   प्यार के नाम पर अब तक गुलाब फूल देने की परंपरा रही है। गुलाब फूल जिंदगी के इस खूबसूरत एहसास और उड़ान को प्यार के नाम पर कैदी बना देता है। उसकी उड़ान वहीं रुक जाती है। कवयित्री बहुत ही सुंदर शब्दों में बंया करती हैं कि 'सूखने दो गुलाब/ जिंदगी ता उम्र महकती रहेगी।'
'प्यार के नाम' शीर्षक कविता की पंक्तियों पर आगे बात करूं, इससे पहले कविता की पंक्तियों को एक लय ताल में पाठकों के समक्ष रख रहा हूं ।

'पलकों पर /सजने दो ख्वाब

किताबों में/ सूखने दो गुलाब 

जिंदगी ता-उम्र महकती रहेगी

गुजरने दो  कुछ पलों को यूं ही बेहिसाब 

बन जाने दो जंगल को महुआ पलाश

आवारा बादल - सा थोड़ा भटकने दो 

दुर्गंध देता है बंधा पानी भी

छिड़ी है बात तो बातों को बहकने दो

देखेगी तारों की ताकत भी दिन को जरा ढलने दो

हमें अब और न संभालो यारों गिरने दो

गिरकर/ खुद को संभलने दो

न रसायन के सूत्र - सी 

न शेफ  के किचन - सी

पैमानों में बंधी हो जिंदगानी

चहकने -  मचलने हमें भी जी

बहती नदी सी हो / उसकी रवानी ।'

प्रस्तुत कविता की खासियत यह है कि यह किसी धारा व  वाद के  खूंटे से बंधी हुई नहीं।  कविता की पंक्तियां मनुष्य की जिंदगी से जुड़ी कई बातों को लेकर  उन्मुक्त, छल छल  कर आगे बढ़ती हैं ।‌ कविता  की पंक्तियां अपने स्वतंत्र बिम्बों  और प्रतीकों के माध्यम से खुले  मन से अपनी बातों को कहती हैं । बातें जिंदगी की है।  बिल्कुल सहज और सरल शब्दों में है।  न कोई विशिष्टता का बोध है।  न ही कोई ज्ञान का बखान।  
कविता का शीर्षक है, 'प्यार के नाम',  यह कविता प्यार को संबोधित एक खुला पत्र है । अक्सर प्रेमी- प्रेमिका प्यार में एक दूसरे को जरूर मिल जाते हैं। एक हो जाते हैं। लेकिन  दोनों की जिंदगी सिमट कर रह जाती है।  दोनों एक दूसरे के कैद में कैद हो जाते हैं। यह कविता प्रेमी - प्रेमिका के प्यार से इतर जिंदगी के प्यार की बात कहती है। यह जिंदगी बहुत ही बेशकीमती है। ब मुश्किल जिंदगी मिली है। चंहुओर प्रकृति की मोहक व  सुंदर अविरल धारा बह रही है। कवयित्री इस खूबसूरत जिंदगानी को प्रकृति की इस मोहक और सुंदर अविरल धारा में बह जाने की बात कहती है। अगर जिंदगी कैद हो जाती है, तब प्रकृति की सुंदर अविरल धारा से यह खूबसूरत जिंदगी वंचित रह जाएगी। कैद से मुक्ति  और प्रकृति की मोहक व सुंदर अविरल धारा में बहने की बात 'प्यार के नाम' कविता में दर्ज है।
  कविता की शीर्ष पंक्तियां  है,  'पलकों पर/  सजने दो ख्वाब।' जिंदगी का ख्वाब से बहुत ही गहरा रिश्ता है । जिंदगी है, तभी ख्वाब है । पंक्तियां कहती है, जिंदगी जिंदादिली का नाम है।  इसे कभी भी रोकर  नहीं गुजारा जाना चाहिए अन्यथा यह जीवन ही दुष्कर बनकर रह जाएगा। यह जीवन बोझ नहीं बल्कि ईश्वर का एक सुंदर वरदान है। जीवन के सफर में लाख परेशानी और चुनौतियां आए, उसका मुकाबला डंटकर और हंसकर करना चाहिए। संघर्ष और परेशानियां किसके जीवन में नहीं है ? इन्हीं परेशानियों और संघर्षरत  जूझकर ख्वाब हकीकत में बदलते हैं। आज तक जो भी लोग बुलंदियों को छू पाएं,  पहले ख्वाब ही देखे थे । इसलिए पलकों पर ख्वाबों को सजने से रोकिए नहीं। ये ख्वाब हम सबों को जीवन संघर्ष से लड़ने की ताकत देता है। अवसाद को खुद तक फटकने नहीं देता है।
कविता का दूसरा बिम्ब है,  'किताबों में/सूखने दो गुलाब/ जिंदगी ता उम्र महकती रहेगी। जिंदगी से जुड़ी ये पंक्तियां बहुत ही महत्वपूर्ण है । इन पंक्तियों में लड़कियों की आजादी की भी बात निहित है।गुलाब यहां प्यार के प्रतीक के रूप में आया है, जब  प्रेमी प्रेमिका प्यार में एक दूसरे को पहली बार  मिलते हैं, एक दूसरे को गुलाब फूल देते हैं। एक दूसरे को गुलाब देने का अर्थ है, एक दूसरे से हमेशा हमेशा के लिए विवाह के बंधन में बंध कर मिल जाना। पंक्तियां यहां उन्हें रोकती हैं। जिंदगी के खूबसूरत एहसास और उड़ान से परिचित कराती हैं। इतनी जल्दी क्यों ? अभी तो जिंदगानी शुरू हुई है। आगे बहुत कुछ और है।  आगे कुछ और की ओर भी जिंदगी ले जाने की जरूरत है। इतनी जल्दी प्यार के खूंटे से जिंदगी को बांधकर किताबों में सुख रहे गुलाब के महक दूर न करें। कुछ सालों पहले तक हम सब अपनी बच्चियों की शादी बाल उम्र में कर दिया करते थे।  उस बच्ची के मन:  भाव को पड़े  बिना घर से विदा कर दिया करते थे।  वह चाहती क्या है ?  क्या बनना चाहती है?  जीवन में क्या करना चाहती है? ये पंक्तियां बाल विवाह पर भी सवाल खड़ी करती हैं।
   आगे कविता की पंक्तियां दर्ज है, 'गुजरने दो/ कुछ पलों कों। यूं ही बे हिसाब। भागम भाग भारी जिंदगी। हर ओर दौड़ ही दौड़।  काम के बोझ से हर कोई परेशान । इस विषम परिस्थिति में कविता की पंक्तियां लोगों से पूछती हैं । इतना भागम भाग क्यों ?  इतनी दौड़ क्यों  ? किसके लिए ? खुद के लिए समय है क्या ? यह, धन संपदा और पद सब कुछ यहीं रह जाएंगे। इतनी खूबसूरत प्रकृति की अविरल बहती धारा को देखे और जाने बिना जिंदगी यूं ही गुजर जाएगी। इसलिए थोड़ा ठहरो। ‌ कुछ पलों को यूं ही बेहिसाब बहने दो। देखो ! जिंदगी की दिशा और दिशा ही बदल जाएगी।
  कविता की पंक्तियां आगे बढ़कर कहती हैं, 'बन जाने दो /जंगल को महुआ पलाश/आवारा बदला - स/ थोड़ा भटकाने दो।' जंगल यहां प्रकृति के प्रतीक रूप में प्रस्तुत हुआ है । प्रकृति में निहित महुआ और पलाश के पेड़ है।  दोनों अपनी खूबसूरती के लिए जाने जाते हैं।  पलाश के फूल जब खिलते हैं, पूरी प्रकृति खील उठती है। वहीं महुआ के पेड़ में भी फूल लगते हैं । इन फूलों से महुआ के फल रुपांतरित होते। महुआ अपने पेड़ से खुद टपकते  हैं। महुआ के टपकने से  वातावरण में एक मादकता आ जाती है।  अर्थात प्रकृति खूबसूरत पलों का एहसास है । इस एहसास में महुआ के पेड़ से टपकते फल जो हमें मदहोश होने के लिए कहता है । आगे पीछे के सब कुछ भूल जाने को कहता है । और खुद को  प्रकृति के आनंद से जुड़ जाने को कहता है। किस प्रकार बादल, न उसका कोई पता न कोई ठिकाना होता है।  बस हवा के झोंकों के साथ यहां से वहां भटकता रहता है। जहां न कोई राग और न कोई विद्वेष होता है।
  आगे पंक्तियां लोगों को झकझोर कर कहती हैं, दुर्गंध देता है/ बंधा पानी भी/ छिड़ी है बात तो/  बातों को बहकने दो।' जिंदगी की धारा बहता  पानी के समान होना चाहिए अन्यथा जिंदगी उस टब में रखें पानी की तरह बदबू देना शुरू कर देगा। पंक्तियां कहती है कि छिड़ी है बात तो बातों को बहकने दीजिए। तात्पर्य यह है कि आज लड़कियां हर क्षेत्र में आकर अपनी प्रतिभा दिखा रही हैं । और परचम लहरा रही हैं । उन्हें कम उम्र में विवाह के बंधन में बांधकर उसकी आजादी को कैद करने का किसी को अधिकार नहीं है।  उसे भी खुले आकाश में उड़ने की छूट है । यह उसका अधिकार है । अगर यह बात कही  जाती है , आलोचनाएं होती हैं, होती रहे।  इसकी कतई परवाह नहीं।  बात को तो बहकने दीजिए । दूर तकतो जाने दीजिए।
आकाश के तारों को कमजोर समझने वालों पर निम्न पंक्तियां सवाल खड़ी करती हुई कहती हैं, 'दिखेंगी तारों की ताकत भी/ दिन को जरा ढलने दो। तारे यहां लड़कियों  के प्रतीक के रूप में हैं । आज  लड़कियों की  आजादी,अधिकार और उड़ने पर कई पाबंदियां लगा रखी गई है। लड़कियों को हम सब कमत्तर आंखते हैं। लेकिन कविता के पंक्तियां कहती हैं , ज़रा ठहरो! दिन को ढल जाने दो तब देखगी  तारों की ताकत। जहां-जहां भी लड़कियों व महिलाओं को अवसर मिला, परचम लहराने से पीछे नहीं रही।
आगे की पंक्तियां एक महत्वपूर्ण विषय की ओर ध्यान आकृष्ट कर कहती हैं, 'हमें अब और ना संभालो यारो/  गिरने दो, गिरकर/ खुद को संभालने दो।' गिरना भी जिंदगी के लिए बहुत जरूरी है।  जिंदगी के लिए जीत जरूरी है, तो पराजय भी जरूरी है । कब तक आप मुझे संभालते रहेंगे ?  कब तक मुझे सहारा देकर चलना सीखाते रहेंगे ? मुझे गिरने दीजिए।  मुझमें खुद इतनी ताकत है कि मैं गिर कर खड़ा हो जाऊंगा। ये पंक्तियां पूरी तरह आत्मविश्वास से लवरेज हैं।  गिरने के भय  से अवसाद ग्रसित लोगों में जिजीविषा का संचार करती हैं।
बंधन को तोड़ते हुए पंक्तियां कहती हैं, 'न रसायन के सूत्र - सी/ न शेफ के किचन - सी / पैमानों में बंधी हो जिंदगानी/ चहकने - मचलने हमें भी जी भर।' पंक्तियां रसायन विज्ञान के सूत्र के समान कदापि नहीं होनी चाहिए। और न ही शैफ के किचन के समान होनी चाहिए।  जिंदगी एक खुले आकाश की तरह होनी चाहिए।  बादलों की तरह स्वतंत्र होना चाहि। किसी एक पैमानों में जिंदगी बंद नहीं होनी चाहिए बल्कि जिंदगी की उड़ान स्वतंत्र होनी चाहिए। यहां फिर से कवयित्री कहती हैं कि लड़कियों को  चहकने मचलने के लिए पूरा अवसर मिलना चाहिए। लड़कियों की आजादी पर अंकुश न लगे। लड़कियों को भी बराबरी के साथ कदम से कदम बढ़ाकर चलने दें।
  'प्यार के नाम' कविता की अंतिम पंक्ति कहती हैं, 'बहती नदी सी हो/ उसकी रवानी।'  इन पंक्तियों में कवयित्री एक बड़ी बात कहने की कोशिश की हैं।  जिंदगी एक खुबसूरत एहसास का नाम है । जिंदगी भरपूर आनंद से जीने के लिए मिली है।  नदी के समान उसकी जीवन धारा होनी चाहिए।  इस जीवन धारा में  पड़ाव के लिए कोई जगह नहीं है।  बस!  जिंदगी नदी की धारा की तरह आगे बढ़ती रहे।  आगे बढ़ती चली जाए और इसी तरह पूरी जिंदगी बीत जाए। अगर इस दर्शन के मुताबिक लोग जीवन जिए तब समाज में व्याप्त, अराजकीता,  भ्रष्टाचार, घुसखोरी, हिंसा, घृणा आदि रहेंगे ही नहीं। किसी ने ठीक ही कहा है कि समान है सौ बरस की और पल की खबर नहीं। 'प्यार के नाम' कविता की पंक्तियां एक नए एहसास के साथ जीवन जीने की कला की ओर मार्ग प्रशस्त करती हैं।