क्या BSNL फिर बनेगी ग्राहकों की पहली पसंद? सिम लेने के लिये फिर लगानी होगी लंबी लाइन, जानिए BSNL कनेक्टिंग इंडिया को

ये वो वक़्त था जब BSNL का SIM 2000-3000 रुपये में ब्लैक में मिलता था। कंपनी ने 2000 में इंटरनेट, 2002 में 2G मोबाइल, 2005 में ब्रॉडबैंड सेवा और 2010 में 3G मोबाइल सेवा शुरू की।

क्या BSNL फिर बनेगी ग्राहकों की पहली पसंद? सिम लेने के लिये फिर लगानी होगी लंबी लाइन, जानिए BSNL कनेक्टिंग इंडिया को

याद कीजिए BSNL का वह दौर जब ग्राहक BSNL का SIM लेने के लिये रात-रात भर लाइन में खड़े रहते थे। बाजार पर BSNL के एकाधिकार और लोकप्रियता का मंजर ये था कि जब प्राइवेट कंपनियां अपना सिम 20-25 रुपये में देती थीं, BSNL का SIM 2000-3000 रुपये में ब्लैक में मिलता था। 15 साल पहले 4 लाख करोड़ रुपए की वैल्यू वाली कंपनी आज कर्ज चुकाने के लिए अपनी संपत्ति बेचने को मजबूर हो गई। यदि BSNL 2008 में लिस्ट होती तो देश की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी होती। कंपनी ने 2000 में इंटरनेट, 2002 में 2G मोबाइल, 2005 में ब्रॉडबैंड सेवा और 2010 में 3G मोबाइल सेवा शुरू की। लेकिन पिछले 20 सालों में इस कंपनी ने दम तोड़ दिया। इन्हीं 20 सालों में दूसरी ओर निजी कंपनियों ने भारतीय बाजार पर पूरी तरह से कब्जा जमा लिया है। पिछले तीन-चार सालों में ही JIO ने 40 करोड़ से ज्यादा ग्राहक बना लिए। मुंबई और दिल्ली को छोड़कर पूरे भारत को कनेक्ट करने वाली BSNL का यह हाल कैसे हुआ है और क्यों हुआ, यह भी एक दिलचस्प कहानी है। आखिर कभी सरकार और ग्राहकों दोनों की चहेती BSNL दोनों के लिए बोझ क्यों बन गई? आइये जानते हैं :

कैसे हुई थी बीएसएनएल की शुरुआत?

BSNL तब शुरू हुआ जब देश में इसका कोई भी प्रतिद्वंदी नहीं था। डिपार्टमेंट ऑफ़ टेलिकॉम (DOT) से BSNL का जन्म अक्टूबर 2000 में हुआ। इसमें भारत सरकार की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। 1 अक्टूबर 2000 से केन्द्र सरकार के तत्कालीन दूरसंचार सेवा विभागों (DTS) और दूरसंचार संचालन (DTO) के दूरसंचार सेवा और नेटवर्क प्रबंधन के लिए इसका गठन हुआ। BSNL भारत में दूरसंचार सेवाओं की व्यापक रेंज उपलब्ध कराने वाली सबसे बड़ी और प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में से एक है। BSNL की डोर DOT के हाथों में है जो भारत सरकार के संचार मंत्रालय का हिस्सा है। MTNL मुंबई और दिल्ली में ऑपरेट करती थी जबकि बाकी देश में BSNL की मौजूदगी है। साल 2000 में स्थापना के बाद BSNL के अधिकारी जल्द से जल्द मोबाइल सेवाएं शुरू करना चाहते थे ताकि वो निजी ऑपरेटरों को चुनौती दे सकें लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक उन्हें ज़रूरी सरकारी सहमति नहीं मिल पा रही थी।विमल वाखलू उस वक्त BSNL में वरिष्ठ पद पर थे। वो बताते हैं, “हम काफ़ी निराश थे। हम एक रणनीति पर काम करना चाहते थे ताकि हम मुक़ाबले को पीछे छोड़ सकें।” वो कहते हैं, “BSNL के बोर्ड ने प्रस्ताव पारित कर सेवाओं को शुरू करने का फ़ैसला किया।” उस वक्त डॉक्टर डीपीएस सेठ BSNL के पहले प्रमुख थे। वो कहते हैं कि शुरुआत में फ़ैसले लेने में जो आज़ादी थी वो धीरे-धीरे कम होने लगी।

अटल बिहारी बाजपेयी ने BSNL मोबाइल सेवा को लॉंच किया था 

19 अक्टूबर 2002 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने लखनऊ से BSNL मोबाइल सेवा की शुरुआत की। अगले दिन BSNL ने जोधपुर में सेवा की शुरुआत की जहां अनुपम श्रीवास्तव BSNL के जनरल मैनेजर के पद पर थे। अनुपम श्रीवास्तव बताते हैं, “जब हमें BSNL की SIM मिलती थीं तब हमें पुलिस, प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों को सुरक्षा देने के लिए बताना पड़ता था क्योंकि अव्यवस्था का ख़तरा पैदा हो जाता था। ये वो दिन थे जब BSNL SIM के लिए तीन से चार किलोमीटर लंबी लाइनें लगती थीं।” ये वो वक़्त था जब निजी ऑपरेटरों ने BSNL के लॉन्च के महीनों पहले मोबाइल सेवाएं शुरू कर दी थीं लेकिन BSNL की सेवाएं इतनी लोकप्रिय हुईं कि BSNL के ‘cellone’ ब्रैड की मांग ज़बर्दस्त तरीक़े से बढ़ गई थी। अधिकारी गर्व से बताते हैं कि “लॉन्च के कुछ महीनों के बाद ही BSNL देश की नंबर वन मोबाइल सेवा बन गई थी ।” विमल वाखलू बताते हैं, “जब BSNL की सेवाओं की शुरुआत हुई, उस वक़्त निजी ऑपरेटर 16 रुपए प्रति मिनट कॉल के अलावा 8 रुपए प्रति मिनट इनकमिंग के भी पैसे चार्ज करते थे। हमने इनकमिंग को मुफ़्त किया और आउटगोइंग कॉल्स की कीमत डेढ़ रुपए तक हो गई। इससे निजी ऑपरेटर हिल गए।” BSNL कर्मचारी 2002-2005 के इस वक्त को BSNL का सुनहरा दौर बताते हैं जब हर कोई BSNL का SIM चाहता था और कंपनी के पास 35 हज़ार करोड़ तक का कैश रिज़र्व था, जान-पहचान वाले BSNL SIM के लिए मिन्नतें करते थे।

2006-07 में देश की नंबर वन मोबाइल सेवा देनेवाली कंपनी 

2006-07 में समय BSNL के पास 7.5 करोड़ ग्राहक थे। भारती एयरटेल के पास 5 करोड़ ग्राहक थे। आर कॉम के पास 4 करोड़ ग्राहक थे। उस समय BSNL रेवेन्यू और ग्राहक, दोनों के आधार पर सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी थी। कंपनी का कुल रेवेन्यू 2006-07 में 39,715 करोड़ रुपए जबकि शुद्ध लाभ 7,805 करोड़ रुपए था। 2008 का वह दौर था, जब बाजार अपनी तेजी पर था। रिलायंस पावर इसी समय जनवरी 2008 में सबसे बड़ा आईपीओ लाकर 10,400 हजार करोड़ रुपए जुटाई थी। BSNL की योजना भी जनवरी 2008 से ही शुरू थी।

2006-12 BSNL के लिए बुरा दौर 

BSNL कर्मचारी और अधिकारी 2006-12 के वक्त को आज की BSNL की स्थिति से सीधा जोड़ते हैं। ये वो वक़्त था जब मोबाइल सेगमेंट में जबर्दस्त उछाल था लेकिन BSNL लाल फ़ीताशाही में फँसी थी। मार्केट में अपनी क्षमता को बढ़ाने के लिए BSNL के लिए ज़रूरी था कि वो जल्द फ़ैसले ले, नए उपकरण ख़रीदे। निजी कंपनियां जहां ऐसे फ़ैसले तुरंत ले लेती थीं, सरकारी कंपनी होने के कारण जहां BSNL के लिए टेंडर की प्रक्रिया पूरे होने में महीनों लग जाते थे। एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी ने नाम ना लेने की शर्त पर बताया कि वो BSNL के विस्तार का छठा चरण था। उस वक्त भारत में करीब 22 करोड़ मोबाइल कनेक्शंस में BSNL का मार्केट शेयर 22 प्रतिशत था। वो बताते हैं, “कंपनी ने 93 मिलियन लाइंस क्षमता बढ़ाने के लिए टेंडर निकाला लेकिन किसी न किसी कारण से उसमें महीनों लग गए। कभी भ्रष्टाचार के आरोप से देरी होती, कभी किसी और कारण से।

सरकार ने सब्सिडी छीन ली 

सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र में दूरसंचार सेवाओं के विस्तार और सोशल ऑब्लिगेशन के तहत 1999 की टेलीकॉम पॉलिसी में BSNL के लाइसेंस फी और स्पेक्ट्रम चार्जेज को माफ कर दिया था। लेकिन इस छूट को 2006-07 में खत्म कर दिया गया। इसके बाद BSNL को हर साल 3000 करोड़ रुपये का घाटा होने लगा। नतीजा ये हुआ कि 2006-12 के बीच BSNL की क्षमता में जहां मामूली इज़ाफ़ा हुआ, कंपनी के मार्केट शेयर में गिरावट आई जबकि निजी ऑपरेटर्स आगे निकल गए।” वो कहते हैं, “वो वक्त कंपनी के कर्मचारियों, अधिकारियों में बेचैनी थी। हम सोचते थे हम क्यों पीछे छूट रहे हैं। लोगों ने नेटवर्क कंजेशन और अन्य समस्याओं के कारण BSNL छोड़ निजी कंपनियों की ओर रुख किया।” लोग BSNL की सेवा से बेहद नाराज़ थे।

आज 10 लाख करोड़ की कंपनी होती BSNL 

BSNL साल 2007-8 में 40 हजार करोड़ रुपए का IPO लाने की तैयारी कर चुकी थी। बोर्ड ने इसके लिए मंजूरी दे दी थी। लेकिन मामला सरकार के पास फंस गया। सरकार की ओर से मंजूरी नहीं मिली। यह उस समय का सबसे बड़ा IPO था। BSNL ने इस राशि में से 15 हजार करोड़ रुपए मोबाइल और ब्रॉडबैंड नेटवर्क के विस्तार पर खर्च करने की योजना बनाई थी। 2010 तक इसकी योजना 60 हजार करोड़ रुपए के निवेश की थी। 7 नवंबर 2008 को BSNL बोर्ड ने आईपीओ को मंजूरी दी थी। उस समय के BSNL चेयरमैन कुलदीप गोयल ने कहा था कि बोर्ड ने पास किया था। उस समय टेलीकॉम मंत्री ए. राजा थे। हालांकि इस योजना के असफल होने के बाद BSNL की कहानी खत्म होती नजर आई। साल 2012 में इसका घाटा 9,000 करोड़ रुपए पर पहुंच गया। जबकि इसका रेवेन्यू साल 2006-07 की तुलना में 30 प्रतिशत घटकर 28 हजार करोड़ रुपए पर आ गया। BSNL इस IPO के जरिए 10 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचना चाहता था। इस हिसाब से भारतीय मुद्रा में इसका वैल्यूएशन 4 लाख करोड़ रुपए का था। करीबन 15 साल बाद जियो 5 लाख करोड़ रुपए के वैल्यूएशन के साथ सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी है। अगर 15 साल पहले BSNL लिस्ट हो जाती तो यह आज 10 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के वैल्यूएशन वाली कंपनी होती। लेकिन सरकारी मंसूबों ने BSNL को लिस्ट ही होने नहीं दिया। उस समय BSNL का यह वैल्यूएशन लिस्टेड टेलीकॉम कंपनियों भारती एयरटेल (183,283 करोड़) और अनिल अंबानी की आरकॉम के (163,683 करोड़) को मिला भी दें तो उससे यह ज्यादा वैल्यूशएन की कंपनी थी। टेलिकॉम सेक्टर मामलों के जानकार प्रोफ़ेसर सूर्या महादेवन के मुताबिक़ स्थिति इतनी बिगड़ी कि बाज़ार में एक सोच ऐसी भी थी कि मंत्रालय में कुछ लोग कथित तौर पर चाहते थे कि BSNL का मार्केट शेयर गिरे ताकि निजी ऑपरेटरों को फ़ायदा पहुंचे।

BSNL की ख़राब हालत पर 2004-07 तक संचार मंत्री रहे दयानिधि मारन कहते हैं, “मेरे वक़्त में बीएसएनएल फलफूल रही थी। बीएसएनएल बोर्ड के पास कोई भी निर्णय लेने के पूरे अधिकार थे। वो BSNL का सबसे बेहतरीन समय था और उसका विस्तार हो रहा था। मेरे वक़्त में एक भी टेंडर कैंसल नहीं हुआ। मेरे वक्त एक निजी आपरेटर BSNL को टेकओवर करना चाहता था तो हमने उसपर जुर्माना लगाया। ”दयानिधि मारन ने कहा, ‘मेरे समय में BSNL एग्रेसिव थी और प्राइवेट ऑपरेटर भाग रहे थे।”

साल 2010 में 3G स्पेक्ट्रम नीलामी से बाहर हुई BSNL

साल 2010 में 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी हुई जिसमें सरकारी कंपनी होने के कारण BSNL ने हिस्सा नहीं लिया। BSNL को पूरे देश के लिए स्पेक्ट्रम तो मिले लेकिन जिस दाम पर निजी कंपनियों ने नीलामी में स्पेक्ट्रम खरीदे थे, BSNL से कहा गया कि वो भी वही दाम दे। साथ ही BSNL को वायमैक्स तकनीक पर आधारित ब्रॉडबैंड वायरेलस ऐक्सेस (BWA) स्पेक्ट्रम के लिए भी भारी रक़म देनी पड़ी। इसका असर MTNL और BSNL की आर्थिक स्थिति पर पड़ा। एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक इस कारण BSNL ने इस नीलामी में 17,000 से 18,000 करोड़ खर्च किए जिससे उसका खज़ाना खाली हो गया जबकि MTNL को तो कर्ज़ लेना पड़ा जिसे चुकाने के लिए उसे 100 करोड़ रुपए महीना देना पड़ता था.

4G स्पेक्ट्रम नीलामी से भी बाहर रखा गया 

आश्चर्य की बात कि जब दुनिया 5G स्पेक्ट्रम की ओर बढ़ रही है, BSNL के पास 4G स्पेक्ट्रम नहीं है। अधिकारियों के मुताबिक जब 2016 में 4जी स्पेक्ट्रम की नीलामी हुई तो फिर BSNL को बाहर रखा गया। एक अधिकारी के मुताबिक BSNL मैनेजमेंट ने इस बारे में सरकार का ध्यान खींचने के लिए 17 पत्र लिखे लेकिन चीज़ें नहीं बदलीं। अधिकारी के मुताबिक, “फ़ाइल दफ़्तर में घूमती रहीं. फ़ाइल आगे क्यों नहीं बढ़ी इसके बहुत से कारण हो सकते हैं।” दयानिधि मारन के मुताबिक BSNL की स्थिति ख़राब होने के कारण उसे 4G स्पेक्ट्रम नहीं दिया गया। सरकार नहीं चाहती कि BSNL निजी आपरेटर्स के साथ मुक़ाबला करे। सरकार उसका गला घोटना चाहती है।

क्षमता और सब्सक्राइबर

BSNL मुख्य रूप से “cellone” ब्रांड के तहत पूरे भारत में अपनी सेवा देती है। इसके कुल ग्राहकों की संख्या 12 करोड़ से ज्यादा है। BSNL के पास फिक्स्ड लाइन में करीबन 49.34 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी देश में है। इंटरनेट के मामले में यह देश की चौथी सबसे बड़ी आईएसपी कंपनी है। BSNL के पास देश के अलग अलग जगहों पर ज़मीन है जिसकी बाज़ार में कीमत एक लाख करोड़ के आसपास है, 20,000 करोड़ रुपए के टॉवर्स हैं और 64,000 करोड़ रुपए के ऑप्टिकल फाइबर्स हैं जिनकी लंबाई करीब आठ लाख किलोमीटर है। कंपनी के पास 31 मार्च 2023 तक कुल 60104 कर्मचारी थे। 

सियाचिन और ग्लेशियर तक BSNL की सेवा

यह देश के दुर्गम स्थानों जैसे सियाचिन ग्लेशियर, देश के उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र तक अपनी पहुंच बना रखी है। अपनी व्यापक सेवाओं जैसे वायरलाइन, सीडीएमए मोबाइल, जीएसएम मोबाइल, इंटरनेट, ब्रॉडबैंड, कैरियर सेवाएँ, एमपीएलएस-वीपीएन, वीसैट, वीओआईपी, आईएन सेवाएँ, एफ़टीटीएच आदि के माध्यम से अपने उपभोक्ताओं की सेवा कर रही है। इसकी प्रमुख सेवाओं में लैंडलाइन, मोबाइल , ब्राडबैंड , एंटरप्राइज सर्विसेस हैं।

BSNL के पास अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी और मशीनरी है 

हालांकि बढ़ते टेक्नोलॉजी के जमाने में BSNL भी पीछे नहीं रहा। इसमें पिछले साल ही भारत फाइबर लांच किया। इसके जरिए आईपी पर टीवी, वीडियो ऑन डिमांड, ऑडियो ऑन डिमांड, बैंडविथ ऑन डिमांड, रिमोट एजुकेशन, वीडियो कांफ्रेंसिंग, इंटरैक्टिव गेम आदि दिए जाते हैं। 2018 में इसने BSNL विंग्स सर्विसेस लांच किया। यह 22 टेलीकॉम सर्कल में लांच हुआ। इसकी विशेषता यह है कि इसमें बिना किसी सिम कार्ड के और केबल वायरिंग के आप बात कर सकते हैं।

क्या होगा BSNL का?
  • एक पूर्व अधिकारी नाम ना लेने की शर्त पर बताते हैं BSNL में काम करने की स्वतंत्रता नहीं और वो खुद को बंधा महसूस करते हैं, जैसे और BSNL के विस्तार को लेकर होने वाले खर्च के प्रस्ताव सरकार के पास लंबे समय तक बिना किसी फ़ैसले के लटके रहते हैं। इसलिए ज़रूरत है काम के तरीके को सुधारने की।
  • BSNL के पहले प्रमुख डॉक्टर डीपीएस सेठ से लेकर आज के अधिकारी तक मानते हैं कि BSNL को सरकारी मदद की ज़रूरत है, कम से कम कुछ महीनों की।
  • अनुपम श्रीवास्तव कहते हैं, “भारत जैसे देश में एक पब्लिक सेक्टर ऑपरेटर की ज़रूरत है ताकि बाज़ार में एक सरकारी संस्था की उपस्थिति और संतुलन रहे।”
  • प्रोफ़ेसर सूर्य महादेवन BSNL के निजीकरण के पक्ष में हैं। वो कहते हैं, BSNL को आप जितना लंबा चलाएंगे, उसे उतना घाटा होगा। BSNL में कोई जवाबदेही नहीं है। न किसी को अच्छे काम के लिए ईनाम मिलता है न बुरे काम के लिए सज़ा। बहुत सी हमारी सरकारी संस्थाएं तभी काम करती हैं जब उन्हें बचाकर रखा जाए, उन्हें प्रतियोगिता से बाहर रखा जाए, और उनके सामने कोई चुनौती न हो।”
  • दयानिधि मारन कहते हैं कि वो निजीकरण के पक्ष में नहीं हैं लेकिन BSNL को ऐसा माहौल दिया जाना चाहिए ताकि वो निजी कंपनियों के साथ मुक़ाबला कर सके।
  • BSNL मैनेजमेंट के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मौजूदा सरकार कंपनी को बचाने के लिए “सर्वाइवल प्लान” पर सरकार काम कर रही है और इससे ज्यादा वो कुछ नहीं कह सकते।
BSNL के वर्तमान चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक प्रवीण कुमार पुरवार के अनुसार "BSNL की 4जी सेवा भारत के कुछ चुनिंदा शहरों में लॉन्च कर दिया गया है और अब हम कई और शहरों, राजमार्गों को बड़े पैमाने पर स्वदेशी रूप से डिजाइन 4G के साथ कवर करने की इच्छा रखते हैं। हमने 5जी तकनीक का उपयोग करते हुए कैप्टिव नॉन-प्राइवेट नेटवर्क (CNPN) को भी तैनात किया है।"