जेरीएट्रिक केयर (geriatric care): यदि आपके घर में हैं बुजुर्ग तो जानिए इसे
बुढ़ापे में हेल्थ केयर सर्विस की सबसे ज्यादा जरुरत होती है और बुजुर्गों के देखभाल के लिए अलग से हेल्थ प्रोफेशनल की व्यवस्था को ही Geriatric Care Management कहते हैं।
जब बच्चा छोटा होता है तो उसे अपने माता−पिता या किसी अन्य बड़े व्यक्ति की देखभाल की जरूरत होती है। ठीक उसी तरह, जब व्यक्ति बूढ़ा हो जाता है तो भी उसकी देख−रेख के लिए किसी वयस्क व्यक्ति की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन पिछले कुछ समय में एकल परिवारों का चलन बढ़ा है, जिसके कारण घर के वृद्ध व्यक्ति अलग−थलग पड़ जाते हैं। ऐसे बहुत से वृद्ध व्यक्ति हैं जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। प्रत्येक वृद्ध व्यक्ति की अपनी कहानी होती है। कई वृद्ध लोग घर पर अपने जीवन की लंबी अवधि का आनंद लेते हैं क्योंकि उनके पास इस अनुभव का स्वतंत्र रूप से आनंद लेने के लिए संसाधन और समर्थन है।कुछ वृद्ध लोगों को पुरानी बीमारी होती है। दूसरों को कुछ हद तक निर्भरता का अनुभव होता है। अन्य वरिष्ठ अकेलेपन का अनुभव करते हैं। और कई अन्य महत्वपूर्ण विकास और विकास की अवधि का आनंद लेते हैं। उम्र बढ़ने के आसपास की वास्तविकताओं को उम्रवाद की किसी भी अभिव्यक्ति से दूर देखा जाना चाहिए। एक बड़े वयस्क की प्रत्येक कहानी व्यक्तिगत होती है।
बुजुर्गों की देखभाल से जुड़ा है : जेरीएट्रिक केयर (geriatric care)
बुढ़ापे में हेल्थ केयर सर्विस की सबसे ज्यादा जरुरत होती है और बुजुर्गों के देखभाल के लिए अलग से हेल्थ प्रोफेशनल की व्यवस्था को ही Geriatric Care Management कहते हैं।किसी भी तरह की इमरजेंसी में इसके प्रोफेशनल और एक्सपर्ट बुजुर्गों की हेल्थकेयर, होम केयर, हाउसिंग, डे केयर खाने-पीने की व्यवस्था से लेकर उनके आर्थिक और कानूनी जरुरतों को भी पूरा करते हैं। घर के सदस्यों के साथ मिल कर हर दिन 3 से 5 घंटे उनके घर में रह कर बुजुर्गों की देखभाल करते हैं। इनके देखभाल करने का तरीका बिल्कुल नियोजित तरीके से होता है और अपने ग्राहक (बुजुर्ग) की हर गतिविधि को लगातार मॉनिटर करते हैं।
हमारे देश में अभी बुजुर्गों के देखभाल(geriatric care) के लिए कोई प्रबंधन पश्चिमी मुल्कों की तरह तैयार नहीं हो पाया है। सरकारी अस्पतालों में भी ओल्ड एज के लिए अलग से ओपीडी की व्यवस्था नहीं है। हालांकि कई महानगरों में बुजुर्गों के देखभाल के लिए डे केयर सेंटर, ओल्ड एज होम और परामर्श केंद्र खुले हैं, मगर उनके स्वास्थ्य के जरुरतों के लिए अस्पतालों में अलग से ओपीडी नहीं खुली है।
जराचिकित्सा चिकित्सा का एक क्षेत्र है जो बुजुर्गों में बीमारियों और उनके उपचार के तरीकों का अध्ययन करता है। बुजुर्गों को उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा (देखभाल) प्रदान करने के लिए सबसे पहले इसकी आवश्यकता है।
कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे हैं
एजिंग यानी उम्र बढ़ना एक प्रक्रिया है जिससे हम सभी गुजरते हैं। आमतौर पर सफेद होते बाल और चेहरे पर आती झुर्रियों को ही लोग एजिंग के लक्षण मानते हैं। मगर बालों का सफेद होना ही एजिंग नहीं है।
- ललाट पर लकीरें स्पष्ट दिखने लगती हैं ।
- गालों पर मोटापा यानि वसा घटने लगती है ।
- चेहरे के बीच वाले हिस्से में गड्ढा हो जाना ।
- जबड़ों का ढांचा बदलना ।
- नाक के दोनो बगल और नीचे फोल्ड बनना ।
- चेहरे पर लंबी और सीधी रेखाओं में झुर्रियां ।
- ठुड्ढियों पर झुर्रियां ।
एजिंग के न दिखने वाले लक्षण, इन रोगों के लक्षण दिखें तो समझें बुढ़ापा आ गया
- एजिंग की प्रक्रिया में आपके दिल, दांत, हड्डी, मांसपेशियां, पाचन तंत्र और आपकी यौन क्षमता तक कमजोर होती जाती हैं।
- जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ने लगती है आपके दिल की धड़कन यानि हार्ट बीट (Heart Beat) धीमी होने लगती है। दिल को रक्त पहुंचाने वाली नलिका और धमनियों की परत मोटी होने लगती है और रक्त का प्रवाह दिल में धीरे-धीरे होने लगता है। इससे हाइपरटेंशन और कार्डियोवास्कुलर बिमारियां आपको सताने लगती हैं।
- उम्र बढ़ने के साथ हड्डियों का आकार और घनत्व कम होने लगता है। कैल्शियम का बनना कम होने लगता है। नतीजा हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। मांसपेशियों में लचीलापन कम होने लगता है और आप खड़े होने में संतुलन नहीं बना पाते हैं।
- नित्य क्रिया पर नियंत्रण नहीं कर पाना उम्र बढ़ने के लक्षण हैं। मेनोपाज और बेड सोर यानि बिस्तर गीला हो जाने की शिकायत उम्र बढ़ने के साथ होने लगती है। पाचन तंत्र सही ढ़ंग से काम नहीं कर पाती है।
- उम्र बढ़ने के साथ भूलने की बीमारी भी शुरु हो जाती है। यहां तक कि कई लोग अपने परिवार के लोगों के नाम और चेहरे भी भूलने लगते हैं। ऐसा अल्जाइमर बीमारी के कारण होता है जो मस्तिष्क से संबंधित एक बीमारी है।
- मोतियाबिंद या ग्लूकोमा उम्र बढ़ने के साथ परेशान करने लगती है। नतीजा लोगों के देखने की क्षमता कमजोर होने लगती है। कानों से सुनने की क्षमता भी कम होने लगती है।
- दांतो का टूटना और मसूढ़ों में दर्द के साथ और भी कई परेशानी है जो उम्र बढ़ने के साथ होने लगती है। दांतो का एनामेल झड़ने लगती है और मसूढ़े उखड़ने लगते हैं।
- उम्र के साथ ही मांसपेशियों का वजन भी कम होने लगता है और शरीर में जमा हुई वसा अपना जगह लेना शुरु कर देती है। वसा के जलने के साथ ही शरीर में कैलोरी की कमी भी होने लगती है और पुराने वजन को पाने के लिए आपको बहुत सारे कैलोरी की जरुरत होती है जो आपका शरीर इजाजत नहीं देता है।
- उम्र बढ़ने के साथ ही यौन शक्ति भी कम होने लगती है। आपके सेक्स की आदतें और जरुरत में कमी और उसके तरीके में बदलाव आने लगते हैं। पुरुषों में स्खलन नहीं हो पाता है और औरतों के जननांग में जो द्रव होती है वह सूखने लगती है।
बुढ़ापे में होने वाली बीमारियाँ जो बढ़ती उम्र में ज्यादा परेशान कर सकती हैं
बुढ़ापा खुद ही एक बीमारी है। मगर चालीस साल की आयु के बाद भी अगर आप सेहतमंद जीवनशैली अपनाते हैं तो बुढ़ापा आपको ज्यादा परेशान नहीं कर सकता। बुढ़ापे की अधिकांश बिमारियों की वजह जवानी में सेहत की अनदेखी और खराब जीवनशैली का होना है। हालांकि, कुछ बिमारियां बुढ़ापा आते ही शरीर की हड्डियों और मांसपेशियों के कमजोर होने और अंगों की शिथिल हो जाने से भी आती हैं। मोटापा अधिकांश बिमारियों का कारण बनता है। अगर जवानी में मोटापा पर कंट्रोल नहीं किया गया तो बुढ़ापे में यह गंभीर बिमारियां लाता है।
- पार्किंसंस – यह एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है जो शरीर और मस्तिष्क के स्नायु तंत्र को कमजोर करती है। इस बीमारी में लोग अपने मस्तिष्क और शरीर की मांसपेशियों पर नियंत्रण पूरी तरह खो देते हैं। इसमें कोमा तक की स्थिति आ जाती है।
- कैंसर –कैंसर 100 से ज्यादा बीमारियों का एक समूह है जिसमें शरीर के किसी भी अंग में अनियंत्रित ढ़ंग से कोशिकाओं की वृद्धि होने लगती है और यह शरीर के एक हिस्से से फैलते-फैलते अन्य अंगों को भी प्रभावित करने लगती है। हर साल डेढ़ लाख नए कैंसर के मामले सामने आते हैं। हमारे देश में बूढ़ी महिलाओं की बड़ी वजह स्तन और गर्भाशय की कैंसर होती है। स्वास्थ्य जागरुकता के अभाव में हम अभी भी कैंसर का पहचान सही समय पर नहीं कर पाते हैं। मुख कैंसर और ब्लड कैंसर से भी कई मौतें होती हैं।
- अर्थराइटिस या गठिया –गठिया आम तौर पर बुढ़ापे की बीमारी है, मगर अब यह चालीस से पहले भी लोगों को सताने लगी है। इसमें मांसपेशी, हड्डियों के जोड़, पीठ, गर्दन, कुल्हा, घुटना और एड़ी में असहनीय दर्द होती है। दर्द के साथ पैर- हाथ, कुल्हे के मूवमेंट में भी परेशानी होने लगती है।
एजिंग को लेकर वैज्ञानिकों ने कई कारण बताये हैं। पहला, हमारे जीन तय करते हैं कि हम कब तक जीवित रहेंगे। सारा कुछ पहले से हमारे डीएनए में प्रोग्राम रहता है। दूसरा, हमारे शरीर की कोशिकाएं जब पुनर्जीवित होना छोड़ देती है या डीएनए नष्ट होने लगते हैं तो एजिंग के लक्षण दिखने लगते हैं। आइए जानते हैं एजिंग के उन लक्षण और संकेतों (Symptoms of Aging) के बारे में।
बुढ़ापे में डिप्रेशन जानलेवा हो सकता है
बुजुर्गों को अकेलापन काफी सालता है। अकेलेपन में अवसाद या निराशा की बीमारी हो सकती है। ऐसी स्थिति में बुजुर्ग हमेशा उदास, मायूस और अपने में खोए-खोए रहते हैं। उन्हें किसी भी काम में रुचि नहीं लगती है और न ही दैनिक जीवन का वो आनंद उठा पाते हैं। बुजुर्गों में अवसाद के संकेत और लक्षण को समझने और जानने के तीन तरीके हैं- व्यवहार, सोच और अनुभव।
व्यवहार:
- सुस्त पड़ जाना या हमेशा बैचैन रहना
- जबावदेही को इंकार करना और अपने देखभाल पर ध्यान नहीं देना
- परिवार और दोस्तों से कट-कट कर रहना
- कोई भी काम करने की क्षमता में कमी, हमेशा परेशान रहना या गुस्सा में रहना
- किसी भी काम में मन नहीं लगना
- सुबह की चुस्ती-फुर्ती में कठिनाई महसूस करना
- कुछ असंगत और अटपटा सा व्यवहार करना जो चरित्र से मेल नहीं खाता हो
सोच:
- हिचकिचाहट
- आत्मसम्मान में कमी
- हमेशा मरने की बात करना, जीवन से मोह भंग होना
- नकारात्मक टिप्पणी करना
- आर्थिक स्थिति के लिए ज्यादा चिंता में रहना
- परिवार में अपने हैसियत में हुए बदलाव से नाखुश रहना
अनुभव:
- चिड़चिड़ापन और गुस्सा
- उदासी, खालीपन और लाचार महसूस करना
- हारा हुआ महसूस करना
- अपराध बोध होना
शारीरिक लक्षण:
- सोने की आदत में गड़बड़ी, कभी ज्यादा देर तक सोना तो कभी कम सोना
- हमेशा थके-थके रहना
- चलने-फिरने में धीमापन आना
- सिरदर्द, पीठ दर्द और शरीर में हमेशा दर्द की शिकायत रहना
- याददाश्त में कमी, भूलने की बीमारी
- पाचन क्रिया में गड़बड़ी और हमेशा पेट की बीमारी रहना
- भूख कम लगना और खाने की आदत में बदलाव आना
- वजन अचानक कम हो जाना या बढ़ जाना
उपर बताए गए लक्षण हो सकता है आप भी महसूस करते हों तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप भी अवसाद की बीमारी से ही ग्रसित है। वैसे ही अगर किसी को डिप्रेशन है तो यह जरुरी नहीं है कि उसे ये सारे लक्षणों का अनुभव होता हो। हो सकता है बूढ़े लोग अपने अवसाद, निराशा या उदासी दूसरे तरीके से भी जताते हों।
अवसाद और पागलपन:
पागलपन के 5 में से 1 मरीज को अवसाद (Depression) की बीमारी होती है। जब यह दोनों एक साथ हो तो दोनों को पहचानना मुश्किल हो जाता है। दोनों ही बीमारी के इलाज और इलाज के तरीके भी अलग-अलग हैं।
अवसाद के क्या हैं खतरे:
- हार्ट स्ट्रोक
- हाइपरटेंशन
- कैंसर
- पुराने दर्द का तेज होना
- मौत का भय
- सामाजिक विलगाव (Social Separation)
ऐसे मरीजों के लिए जरुरी है जेरीएट्रिक केयर प्रोफेशनल्स
ये प्रोफेशनल्स बुजुर्गों के अकेलेपन को काफी नजदीक से समझते हैं। ये उनको मानसिक और शारीरिक रुप से सक्रिय करने के लिए समय-समय पर सामाजिक समारोह आयोजित करते हैं और उनको इसमें भागीदारी सुनिश्चित करते हैं। इस तरह के आयोजन में बुजुर्गों के मन बहलाने से लिए कई तरह के सांस्कृतिक और मनोरंजक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
- अपने ग्राहक(बुजुर्ग) को जरुरत होने पर मुकदमे की पैरवी करने या वसीयत बनवाने में वकीलों के साथ मिलने का समय फिक्स कराते हैं और एक्सपर्ट सलाह दिलवाते हैं।
- बैंक का काम हो या फिर बिजली-पानी, गैस का बिल जमा करना हो ये अपने ग्राहक के हर जरुरत का ख्याल रखते हैं।
- यह अपने ग्राहक(बुजुर्ग) के साथ उनके घर में समय बिताते हैं। साथ ही उन्हे अपने घर में चलने-बैठने या गिरने से बचने के लिए किस तरह के सुरक्षा उपकरण की जरुरत होगी इसकी व्यवस्था करते हैं।
- इतना ही नहीं बुजुर्गो के साथ आए दिन होने वाले हिंसा और उत्पीड़न के बारे में भी उन्हे आगाह करते हैं और इससे बचने के तरीके भी बताते हैं।