जागृत भारत के वक्ता : स्वामी विवेकानंद

11 सितंबर, विश्व धर्म सभा, शिकागो में स्वामी विवेकानंद के व्याख्यान के 129 वर्ष पूरा होने पर विशेष ।

जागृत भारत के वक्ता : स्वामी विवेकानंद

विजय केसरी:

स्वामी विवेकानंद के विचार सदैव देशवासियों के मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे । आज से 129 वर्ष पूर्व शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सभा में स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति, रीति रिवाज, रहन सहन, समृद्ध भाषा और पौराणिक ग्रंथों की महत्ता पर प्रकाश डाला था । स्वामी विवेकानंद से पूर्व किसी भी वक्ता ने अपने धर्म और धर्म ग्रंथों की इतनी विद्वता पूर्ण व्याख्यान नहीं दिया था । मंच पर मौजूद कोई भी धार्मिक गुरु ने यह नहीं सोचा था कि भारत से आया यह युवा संन्यासी इस तरह अपनी बातों को रखेगा । दर्शक दीर्घा में बैठे विभिन्न देशों से आए श्रोता गण को भी विश्वास नहीं हो रहा था कि भारत का यह युवा सन्यासी इतनी गहराई और विद्वता पूर्ण तरीके से अपनी बातों को रखेगा । स्वामी विवेकानंद बहुत ही मुश्किलों का सामना करते हुए इस धर्म सभा में सम्मिलित हो पाए थे । जिस कालखंड में स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म सभा में अपनी बातों को रखा था, भारत ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था । भारत एक गुलाम देश के रूप में जाना जाता था। भारत को गरीबों का एक देश, अनपढ़ों का देश, सपेरों का एक देश के नाम से पश्चिम वाले पुकारा करते थे । स्वामी विवेकानंद की विद्वता पूर्ण प्रस्तुति ने भारत वासियों को अब तक देखने की दृष्टि को ही बदल कर रख दिया था । स्वामी विवेकानंद का शिकागो में दिया गया यह व्याख्यान एक नए भारत व स्वतंत्र भारत का शंखनाद था।
जिस कालखंड में स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था,तब संपूर्ण देश ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था । ब्रिटिश हुकूमत बहुत ही मजबूती के साथ अपनी पैठ भारत में स्थापित करती जा रही थी। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ 1857 क्रांति दर्ज होने के बाद देशवासियों के भीतर  ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़  जागृति की लहरें पैदा होना शुरू हो गई थी। स्वामी विवेकानंद का शिकागो में दिया गया व्याख्यान ने भारत वासियों को जगाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ।
देशवासियों के मन में अपने गौरवशाली पुरखों के इतिहास हिलकोरे मार रहे थें। उन जागृति की लहरों को जन-जन तक पहुंचाने में स्वामी विवेकानंद के विचार ने देशवासियों के भीतर एक नई चेतना पैदा कर दी थी। उनका जन्म देश को जगाने के लिए ही हुआ था।
 स्वामी विवेकानंद विलक्षण प्रतिभा के महान संत थे। उन्होंने भारतीय उपनिषद, वेद, पुराण सहित विभिन्न ग्रंथों का व्यापक अध्ययन किया था। मानो उन्होंने भारत की गौरवशाली विरासत से साक्षात्कार कर लिया था। उन्हें यह पक्का विश्वास हो गया था कि जिस देश का इतना गौरवशाली इतिहास हो सकता है, वह देश कैसे परतंत्र रह सकता है ? देश की परतंत्रता के कारणों की जड़ तक पहुंचने वाले स्वामी विवेकानंद कुछ ऐसा करना चाहते थे कि संपूर्ण विश्व, भारत के गौरवशाली इतिहास से परिचित हो सके। इसलिए उन्होंने 11 सितंबर 1893 का विश्व धर्म सभा का दिन चुना था। वे कई परेशानियों को झेलते हुए विश्व धर्म सभा के मंच तक पहुंच पाए थे । उस ऐतिहासिक मंच पर वे करोड़ों भारतवासियों के अकेले प्रतिनिधि थे । उन्हें यकीन था कि भारत के प्रति  पश्चिम वासियों की जो सोच थी, उसे सदा सदा के लिए बदल देना था।   वे इसी उद्देश्य को लेकर मंच पर आसीन हुए थे।  उनका सीना गर्व से चौड़ा था। ये बातें उनकी आंखें खुद-ब-खुद बंया कर रही थीं। इस विश्व धर्म सभा में सम्मिलित विचारको ने जब स्वामी विवेकानंद को देखा तो उन सबों को अहसास हो गया था कि  स्वामी विवेकानंद कुछ चमत्कार जरूर करेंगे। परंतु भारत के संदर्भ में विश्व भर में प्रचारित बातों को ध्यान में रखते हुए उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह युवा सन्यासी ऐसा व्याख्यान देगा। पश्चिमी देशों की सोच के विपरीत विवेकानंद जी ने यह चमत्कार कर दिखाया था। जिसकी गूंज आज भी विश्व भर में गूंजित हो रही है ।

उन्होंने कहा, ‘मेरे प्रिय अमेरिका वासी भाइयों और बहनों ! आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया है। उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा है।  संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परंपरा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूं।  धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूं।  सभी संप्रदायों एवं मतों के कोटि-कोटि हिंदुओं की ओर से धन्यवाद देता हूं।  मैं इस मंच पर बोलने वाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूं।  जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयाई होने में गर्व का अनुभव करता हूं, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति दोनों की ही शिक्षा दी है। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, वरण समस्त धर्मों को सच मानकर स्वीकार करते हैं।  मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है, जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ित और शरणार्थियों को आश्रय दिया है’। 

स्वामी विवेकानंद ने जिस अंदाज में अपनी बातों को इस मंच से रखा, आज भी उनकी बातें भारत वासियों को गौरवान्वित करती रहती हैं। उन्होंने कहा कि भारत के समस्त हिंदुओं की ओर से मैं आप सभी को धन्यवाद देता हूं।  यह सुनकर विश्व धर्म सभा के सभी प्रतिनिधि आवाक रह गए थे । उन सबों ने ऐसी कल्पना भी ना की थी कि भारत का यह युवा सन्यासी इतने विद्वता पूर्ण ढंग से अपनी बातों को रखेगा। स्वामी जी ने बहुत ही तर्क पूर्ण ढंग से भारत की विरासत, भारत के धर्म, भारत के रीति रिवाज, रहन-सहन आदि से संबंधित बातों को रखा था। भारतवासी किस तरह सभी धर्मों का समान रूप से आदर करते हैं ? भारतवासी एक सहिष्णु देश के रूप में अपने सभी भाई बहनों के साथ मिलजुल कर रहते हैं। भारत सभी धर्मों का आदर करने वाला देश है। विश्व धर्म सभा से स्वामी विवेकानंद ने जिस तरह आह्वान किया, फलस्वरूप  भारत के प्रति पाश्चात्य देशों की सोच को सदा सदा के लिए बदल कर रख दिया । उन सबों को यह विचारने के लिए विवश होना पड़ा था कि जिस देश का इतना  गौरवशाली  इतिहास है।  वह देश कैसे परतंत्र रह सकता है ? उस धर्म सभा में स्वामी विवेकानंद ने ना कोई अनशन किया, ना ही धरना दिया था। लेकिन अपनी जागृति पूर्ण बातों से वह काम कर दिखाया, जो पिछले दो हजार वर्षों में किसी भारतीय ने नहीं किया था।

 भारत की आजादी का इतिहास बहुत ही गौरवशाली है। लंबे संघर्ष के बाद देश को आजादी मिली थी । इस आजादी में शामिल स्वाधीनता सेनानियों के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद के विचार रहें। स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रेरित होकर हमारे कई स्वाधीनता सेनानियों ने  राष्ट्र सेवा करने का संकल्प लिया था। स्वामी विवेकानंद के विचार जितने उनके जीवन काल में महत्वपूर्ण थे, आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं । उनके विचारों में देश की एकता और अखंडता का पुट मिलता है । भारतीय स्वाधीनता सेनानियों  के विचारों पर स्वामी विवेकानंद का गहरा प्रभाव था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के ने कहा,  ‘यद्यपि स्वामी विवेकानंद ने कोई राजनीतिक  संदेश नहीं दिया, लेकिन जो उनके संपर्क में आया या जिसने भी उनके लेखों को पढ़ा, वह देश भक्ति की भावना से ओतप्रोत हो गया।  उनमें स्वत: ही राजनीतिक चेतना पैदा हो गई’। सुभाष चंद्र बोस ने बिल्कुल सही दर्ज किया  कि स्वामी विवेकानंद ने कोई राजनीतिक विचार नहीं दिया था।  लेकिन उनके विचारों में देश की परतंत्रता की कोई बात स्वीकार नहीं थी।  उन्हें यह स्वीकार था कि कैसे भारतवासी परतंत्रता से मुक्त हो। जब भारत वासियों का इतना गौरवमई इतिहास रहा है। तब उनकी भावी पीढ़ी गुलाम कैसे रह सकती है ? स्वामी विवेकानंद का अपने धर्म और अपनी आस्था पर पूर्ण विश्वास था।

 उन्हें भारत वर्ष में जन्म लेने पर गर्व था । उनका कथन,  ‘तुम बस विचारों की बाढ़ लगा दो। बाकी प्रकृति स्वयं संभाल लेगी’। अर्थात वे एक एक भारतीय को शिक्षित होते देखना चाहते थे। हर भारतवासी के अंदर में शिक्षा का अलख जगाना चाहते थे । भारत की नारियां, जो देश की आधी आबादी है । उसको भी शिक्षित करना चाहते थे । उनका मत था कि देश की आधी आबादी जब अशिक्षित रहेगी, तब देश कैसे स्वालंबन, स्वाधीनता और स्वाभिमान का अनुभव कर सकता है ? इसलिए वे पुरुषों के साथ नारियों को भी शिक्षित करना चाहते थे । उन्होंने अपने भाषणों में नारियों की शिक्षा पर बहुत ही बल दिया था । नारी  शिक्षा पर उन्होंने कहा, ‘भारत की स्त्रियों को ऐसी शिक्षा दी जाए, जिससे वे निर्भय होकर भारत के प्रति अपने कर्तव्य को भलीभांति निभा सकें।  वे संघमित्रा लीला, अहिल्या बाई और मीराबाई आदि भारत की महान नारियों द्वारा चलाई गई परंपरा को आगे बढ़ा सके ।
स्वामी विवेकानंद सच्चे अर्थों में  भारत में नव जागृति लाने वाले पहले संत थे। वे एक महान वक्ता थे। वे  भारत के एक शिल्पकार के रूप में भी जाने जाते हैं। हम सब स्वामी विवेकानंद के विचारों को आत्मसात कर एक बेहतर भारत के निर्माण में महती भूमिका अदा कर सकते हैं।