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हजारीबाग जेपीएम मार्ग निवासी, स्वर्गीय गुरु सहाय ठाकुर ने 1918, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जन्मदिन (चैत्र नवमी) पर अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर पहला महावीरी झंडा का जुलूस निकाला था।
विजय केसरी:
हजारीबाग इंटरनेशनल रामनवमी जुलूस का इतिहास जितना गौरवशाली है, उतना ही हजारीबाग के मंगला जुलूस का इतिहास भी गौरवपूर्ण है । हजारीबाग के मंगला जुलूस का इतिहास रामनवमी जुलूस से जुड़ा है । एक शोध के अनुसार मंगला जुलूस निकालने की परंपरा की शुरुआत 1955 के आसपास हुई थी। मंगला जुलूस निकालने की परंपरा की शुरुआत पर चर्चा को आगे बढ़ाने से पूर्व रामनवमी जुलूस के गौरवमई इतिहास की चर्चा करना बेहद जरूरी है । चूंकि रामनवमी जुलूस निकलने के लगभग सैंतीस वर्षों बाद ही मंगला जुलूस निकालने की परंपरा की शुरुआत हो पाई थी । यह बात प्रचलित है कि मंगला जुलूस वृहद रामनवमी जुलूस की पूर्व तैयारी की भूमिका होती है। रामनवमी जुलूस का विस्तार जैसे-जैसे बढ़ता गया । उसी तरह इसकी लोकप्रियता भी बढ़ती गई । बृहद रामनवमी जुलूस के अवसर पर बेहतर ढंग से शस्त्र प्रदर्शन हो, इस निमित्त हर मंगलवार को जुलूस निकालने की परंपरा शुरू हुई थी।
चूंकि रामनवमी से पूर्व हजारीबाग में निकलने वाले मंगला जुलूस का इतिहास रामनवमी पर्व से जुड़ा हुआ है। इसलिए यह जानना जरूरी हो जाता है कि हजारीबाग में रामनवमी की शुरुआत कैसे हुई ? इसकी कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। हर नगर वासियों को इस कहानी को जानना चाहिए । हजारीबाग जेपीएम मार्ग निवासी, स्वर्गीय गुरु सहाय ठाकुर ने 1918, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जन्मदिन (चैत्र नवमी) पर अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर पहला महावीरी झंडा का जुलूस निकाला था। स्व०गुरु सहाय ठाकुर ने हाथ में महावीरी झंडा लेकर बाजे गाजे के साथ नगर के विभिन्न मंदिरों का परिक्रमा कर जुलूस का समापन किया था । इस जुलूस में शामिल उनके मित्रों ने बढ़ चढ़कर उन्हें सहयोग किया था। तब शायद किसी ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि यह जुलूस आने वाले समय में हजारीबाग की रामनवमी जुलूस के रूप में परिवर्तित हो जाएगी। जिसमें हजारों की संख्या में लोग सम्मिलित होंगे। गुरु सहाय ठाकुर ने रामनवमी का पहला जुलूस भगवान राम चंद्र जी के जन्मदिन चैत्र नवमी को निकाला था । इस संबंध में स्वर्गीय गुरु सहाय ठाकुर के नाती सेवा निवृत्त शिक्षक कृष्णा राम ठाकुर ने बताया कि गुरु सहाय ठाकुर बचपन से ही भगवान राम के अनन्य भक्त रहे थे। वे समाज में जात – पात, व्याप्त कुरीति, अंधविश्वास और अस्पृश्यता को दूर करना चाहते थे। वे बाल काल से ही सामाजिक नव जागरण में सक्रिय थे । एक रात गुरु सहाय ठाकुर ने स्वप्न देखा कि वे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जन्मदिन पर महावीरी झंडा लेकर नगर का भ्रमण करते हुए विभिन्न मंदिरों में पूजा अर्चना की । उन्होंने सुबह इस स्वप्न का जिक्र अपने परिवार सहित कुछ मित्रों से किया । तब लोगों ने उन्हें सलाह दिया था कि भगवान राम आपके माध्यम से महावीरी झंडा निकलवाना चाहते हैं। यह सुनकर गुरु सहाय ठाकुर ने संकल्प ले लिया था कि इस बार चैत्र रामनवमी के दिन महावीरी झंडा जरूर निकालूंगा । 1918 में उन्होंने कुछ मित्रों के साथ पहला महावीर झंडा निकाला था। 1918 में शुरू हुआ यह पहला महावीरी झंडा धीरे धीरे कर रामनवमी जुलूस में परिवर्तित होता चला गया था।
चैत्र रामनवमी के दिन गुरु सहाय ठाकुर द्वारा निकाले गए जुलूस को जन-जन तक पहुंचाने में हजारीबाग नगर के हीरा लाल महाजन, टीबर गोप, कर्मवीर , कन्हैया गोप,घनश्याम कहार, पांचू गोप, महावीर मिस्त्री मूर्तिकार, गजाधर महाजन, कस्तूरी मल अग्रवाल जैसे सैकड़ों जन ने महती भूमिका निभाई थी । बाद के कालखंड में जब मंगला जुलूस हजारीबाग में निकलना प्रारंभ हुआ था, तब उपरोक्त हिंदू धर्मानुरागियों ने बढ़ चढ़कर अपनी मां की भूमिका अदा की थी।
हजारीबाग नगर में स्थापित राधा कृष्ण मंदिर, जिस मंदिर में पूजा अर्चना 1901 से प्रारंभ हो गई थी । इसी वर्ष यह मंदिर एक दान पत्र के माध्यम से सार्वजनिक पूजा के लिए समर्पित कर दिया गया था। इस मंदिर में बनारस के कारीगरों द्वारा बनाया गया एक विशाल महावीरी झंडा लाया गया था । इस झंडा में भगवान राम और लक्ष्मण को अपने कंधे पर बैठाकर भक्त हनुमान की आकृति उकेरी हुई थी। झंडा मखमल के कपड़े का जरूर था, लेकिन चांदी की बहुत ही सुन्दर व बारीक काम गया किया गया था । इस झंडे को पहली बार भगवान राम के जन्मदिन पर पंच मंदिर के प्रांगण में लगाया गया था। इस झंडे को देखने के लिए दूर-दूर से के नगर और गांव से लोग आते थे। भगवान राम के जन्मदिन पर राधा कृष्ण पंच मंदिर में भव्य उत्सव का आयोजन होता था, जिसमें काफी संख्या में धर्म परायण स्त्री – पुरुष एवं बच्चे सम्मिलित होते थे। इस उत्सव में गुरु सहाय ठाकुर भेज सम्मिलित होते थे । उन्होंने पंच मंदिर के महावीरी झंडा को देखकर इच्छा व्यक्त की थी कि रामनवमी के जुलूस में इस के महावीरी झंडा को शामिल करने की इजाजत दी जाए । लेकिन तत्कालीन राधा कृष्ण मंदिर समिति के पदाधिकारियों ने इसकी इजाजत नहीं दी थी। इससे वे मायूस नहीं हुए थे। वे अपने एकल महावीरी झंडा के माध्यम से चैत्र रामनवमी के दिन जुलूस निकालते रहे थे । धीरे धीरे कर उनका एकल रामनवमी जुलूस की सूरत बदलती चली गई थी । अब सैकड़ों की संख्या में इस जुलूस में महावीरी झंडे शामिल होने लगे थे । रामनवमी जुलूस में बढ़ते महावीरी झंडे को देखकर राधा कृष्ण मंदिर समिति के पदाधिकारियों ने गुरु सहाय ठाकुर को पंच मंदिर के महावीरी झंडा को शामिल करने का आदेश दिया था। तब चैत्र नवमी के दिन पहली बार राधा कृष्ण पंच मंदिर का महावीरी झंडा रामनवमी के जुलूस में शामिल हुआ था ।
स्वर्गीय गुरु सहाय ठाकुर रामनवमी जुलूस के माध्यम से हिंदू समाज में जागृति लाना चाहते थे । वे हिंदुओं में एक संगठन पैदा करना चाहते थे । यह भी जानकारी मिली कि ब्रिटिश शासन काल में ईसाई धर्म प्रचार के क्रम में हजारीबाग सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के कई हिंदू परिवारों को ईसाई धर्म में परिवर्तित कराया गया था। स्वर्गीय गुरु सहाय ठाकुर इस महावीरी झंडा जुलूस के माध्यम से हिंदुओं के भीतर भगवान राम की भक्ति का अलख जगाना चाहते थे । हिंदू धर्मावलंबियों के अन्य धर्म में परिवर्तित होने के बाद उन्हें कतई पसंद नहीं थी। इस महावीरी जुलूस के माध्यम से गुरू सहाय ठाकुर धर्म परिवर्तन को रोकना चाहते थे। इसलिए उन्होंने हर हिंदू के घर में राम चरित मानस रखने की बात भी बताई थी। वे समाज में व्याप्त जात पात, कुरीति,अंधविश्वास और अस्पृश्यता को जड़ से मिटा देना चाहते थे। इस कालखंड में नगर और ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकतर हिंदू घरों मे शराब का सेवन हुआ करता था। उन्होंने महावीर झंडे के माध्यम से घर-घर में होने वाले शराब के सेवन को बंद कराने का भी आह्वान किया था । फलत: समाज पर इसका बहुत ही व्यापक असर हुआ था । देश की आजादी के बाद जब पहला महावीर झंडा निकाला गया था, तब इसकी सूरत ही बदली हुई नजर आई थी। देश की आजादी के बाद जुलूस के स्वरूप में कर्मवार विस्तार ही होता चला गया । हजारीबाग नगर में रामनवमी जुलूस हेतु कई समितियों का निर्माण होना शुरु हो गया था। ग्रामीण क्षेत्रों में भी कई समितियों का निर्माण हुआ। गुरु सहाय ठाकुर महावीर झंडा जुलूस के माध्यम से नगर एवं ग्रामीण क्षेत्र के कई स्थानों पर देवी मंडप एवं अन्य देवी-देवताओं के पूजा स्थलों की स्थापना में अपनी महती भूमिका निभाई थी । यह सब उन्होंने हिंदू धर्म के जागृति पैदा करने के लिए किया था। आजादी के चार-पांच वर्षों के बाद मंगला जुलूस का निकलना प्रारंभ हुआ था। तब आज की तरह मंगला जुलूस का यह स्वरूप नहीं था । मंगला जुलूस हजारीबाग नगर के विभिन्न समितियों द्वारा निकाले जाते थे, तब यह निश्चित हो जाता था कि इतनी संख्या में रामनवमी जुलूस निकाले जाएंगे। धीरे धीरे कर मंगला जुलूस के स्वरूप में भी विस्तार होता चला गया। यह मंगला जुलूस नगर के प्रमुख मंदिर राधा कृष्ण मंदिर, बड़ा अखाड़ा ठाकुरबाड़ी, खजांची तालाब मंदिर, महावीर मंदि, कुमार टोली महावीर आदि मंदिरों में महावीरी लगोटा एवं प्रसाद चढ़ाकर, भ्रमण कर शस्त्र परिचालन प्रदर्शन कर अर्धरात्रि तक समाप्त हो जाया करता है । यह परंपरा आज भी अनवरत जारी है ।
रामनवमी जुलूस के बढ़ते स्वरूप को ध्यान में रखकर हजारीबाग रामनवमी जुलूस के माननीय सदस्यों ने 1958 के आसपास श्री चैत्र रामनवमी महासमिति का गठन किया था । इस सभा में हीरालाल महाजन, टीबर गोप, कर्मवीर, घनश्याम कहार,पांचू गोप सहित काफी संख्या में लोग सम्मिलित हुए थे । अब चैत्र रामनवमी महासमिति एक केंद्रीय महासमिति के रूप में स्थापित हो गई। इस महासमिति का कार्य था कि रामनवमी पर निकलने वाले जुलूस को शांतिपूर्ण ढंग से गुजार देना । बाद के काल खंड में इस महासमिति से स्वर्गीय दीपचंद जैन, स्वर्गीय काशी लाल अग्रवाल, स्वर्गीय सुरेश केसरी, स्वर्गीय के.डी . केसरी स्वर्गीय राजकुमार लाल, काली साव, राजकुमार गोप, अमरदीप यादव, प्रमोद यादव, अजय गुप्ता सहित कई प्रमुख लोगों ने महासमिति के दायित्व को सफलतापूर्वक निर्वहन किया । कोरोना महामारी के कारण विगत दो वर्षों से चैत्र नवमी पर निकलने वाले रामनवमी जुलूस बंद है । इस वर्ष स्थानीय बड़ा अखाड़ा ठाकुरबाड़ी में महासमिति का चुनाव आगामी 17 मार्च को निर्धारित किया गया है।। महंत विजय दास को रामनवमी महासमिति चुनाव का चुनाव प्रभारी नियुक्त किया गया है। महासमिति अध्यक्ष हेतु राहुल यादव, राहुल बाल्मिकी, पवन कुमार गुप्ता,मनीष शर्माएवं उमेश साव ने नामांकन दाखिल किया है। हजारीबाग की रामनवमी जुलूस का इतिहास जितना गौरवशाली है, उतना ही मंगला जुलूस का गौरवपूर्ण इतिहास है । रामनवमी जुलूस और मंगला जुलूस को शांतिप्रिय ढंग से गुजारने में श्री चैत्र रामनवमी महासमिति की महती भूमिका होती हैं।