UCC : समान नागरिक संहिता से क्या होगा बदलाव ? क्या भारत में लागू हो पाएगा? जानिए क्या है मुश्किलें?

भारत में हिंदुओं के लिए हिंदू मैरिज एक्ट 1956 है, मुसलमानों के लिए पर्सनल लॉ बोर्ड है। शादी, तलाक, संपत्ति विवाद, गोद लेने और उत्तराधिकार आदि के मामलों में हिंदुओं के लिए अलग कानून हैं, जबकि मुसलमानों के लिए अलग।

UCC : समान नागरिक संहिता से क्या होगा बदलाव ? क्या भारत में लागू हो पाएगा? जानिए क्या है मुश्किलें?

यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) यानी समान नागरिक संहिता भाजपा के शुरुआत से ही तीन प्रमुख एजेंडों में शामिल रहा है। जिनमें से अयोध्या में पवित्र राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण और जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 की समाप्ति, यह दोनों संकल्प पहले ही पूरे हो चुके हैं। अब बारी है समान नागरिक संहिता की, जिसको लेकर खुद प्रधानमंत्री मोदी ने शुरुआत कर दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का जिक्र किया। पीएम मोदी ने भोपाल में दिये अपने भाषण में कहा, “समान नागरिक संहिता के नाम पर लोगों को भड़काने का काम हो रहा है। देश दो कानूनों पर कैसे चल सकता है? भारत के संविधान में भी नागरिकों के समान अधिकार की बात कही गई है। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि समान नागरिक संहिता लाओ, लेकिन ये वोट बैंक के भूखे लोग हैं।”

भारत में समान नागरिक संहिता केंद्रीय और राज्य सरकारों की आम रुचि का मुद्दा रहा है। साल 1970 से राज्य अपने ख़ुद के क़ानून बना रहे हैं। देश की आज़ादी के बाद से समान नागरिक संहिता या यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड (UCC) की मांग चलती रही है। इसके तहत इकलौता क़ानून होगा जिसमें किसी धर्म या लिंग का कोई भेद नहीं रहेगा। हमारा संविधान कहता है कि राष्ट्र को अपने नागरिकों को ऐसे क़ानून मुहैया कराने के ‘प्रयास’ करने चाहिए। समान नागरिक संहिता की विचारधारा एक देश-एक कानून-एक विधान पर आधारित है। संविधान के अनुच्छेद 44 के भाग 4 में यूनिफॉर्म सिविल कोड शब्द का जिक्र है। इसमें कहा गया है कि भारत में हर नागरिक के लिए एक समान नागरिक संहिता को लागू करने का प्रयास होना चाहिए। संविधान निर्माता डॉक्टर बीआर अंबेडकर ने संविधान को बनाते समय कहा था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड जरूरी है। भारत में जाति और धर्म के आधार पर अलग-अलग कानून और मैरिज एक्ट हैं। अलग-अलग कानूनों के कारण न्यायिक प्रणाली पर भी असर पड़ता है। भारत में हिंदुओं के लिए हिंदू मैरिज एक्ट 1956 है, मुसलमानों के लिए पर्सनल लॉ बोर्ड है। शादी, तलाक, संपत्ति विवाद, गोद लेने और उत्तराधिकार आदि के मामलों में हिंदुओं के लिए अलग कानून हैं, जबकि मुसलमानों के लिए अलग।

UCC से क्या होगा बदलाव ?
  • UCC लागू हो गया तो हिंदू कोड बिल, शरीयत कानून, पर्सनल लॉ बोर्ड समाप्त हो जाएंगे।
  • धार्मिक स्थलों के अधिकारों पर असर पड़ेगा। अगर मंदिरों का प्रबंधन सरकार के हाथों में हैं, तो फिर मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारा आदि का प्रबंधन भी सरकार के हाथों में होगा। लेकिन अगर मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरिजाघर का प्रबंधन उनके अपनी-अपनी धार्मिक संस्थाएं करती हैं तो फिर मंदिर का प्रबंधन भी धार्मिक संस्थाओं को ही देना होगा।
  • बहुविवाह पर रोक लगेगी। लड़कियों की शादी की आयु बढ़ाई जाएगी ताकि वे शादी से पहले ग्रेजुएट हो सकें। लिव इन रिलेशनशिप का डिक्लेरेशन जरूरी होगा। माता-पिता को सूचना दी जाएगी।
  • उत्तराधिकार में लड़कियों को लड़कों के बराबर हिस्सा मिलेगा, चाहे वो किसी भी जाति या धर्म के हों। गोद लेना (एडॉप्शन) सभी के लिए मान्य होगा। मुस्लिम महिलाओं को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार मिलेगा। गोद लेने की प्रक्रिया आसान की जाएगी।
  • हलाला और इद्दत (भरण पोषण) पर रोक लगेगी। शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा। बगैर रजिस्ट्रेशन किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ नहीं मिलेगा।
  • पति-पत्नी दोनों को तलाक के समान आधार होंगे। तलाक का जो ग्राउंड पति के लिए लागू होगा, वही पत्नी के लिए भी लागू होगा। नौकरीशुदा बेटे की मौत पर पत्नी को मिलने वाले मुआवजे में वृद्ध माता-पिता के भरण पोषण की भी जिम्मेदारी होगी। अगर पत्नी पुर्नविवाह करती है तो पति की मौत पर मिलने वाले कंपेंशेसन में माता-पिता का भी हिस्सा होगा।

गोवा में UCC लागू है

संविधान में गोवा को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है। यहां हिंदू, मुस्लिम और ईसाईयों के लिए अलग-अलग कानून नहीं हैं। जिसे गोवा सिविल कोड कहा जाता है। इस राज्य में सभी धर्मों के लिए फैमिली लॉ है। यानी शादी, तलाक, उत्तराधिकार के कानून सभी धर्मों के लिए एक समान हैं। गोवा में 1867 का समान नागरिक क़ानून है जो कि उसके सभी समुदायों पर लागू होता है लेकिन कैथोलिक ईसाइयों और दूसरे समुदायों के लिए अलग नियम हैं। जैसे कि केवल गोवा में ही हिंदू दो शादियां कर सकते हैं।

इन देशों में UCC है ?

फ्रांस, अमेरिका, रोम, सऊदी अरब, तुर्की, पाकिस्तान, मिस्र, मलेशिया, नाइजीरिया आदि देशों में पहले से कॉमन सिविल कोड लागू है।

UCC पर विभिन्न पार्टियों के स्टैंड  :

भाजपा (BJP)

केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा है, ‘UCC पर पीएम ने जो कुछ भी कहा है, वह संविधान के अनुसार है और आर्टिकल 44 में उसका जिक्र है।’ बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी के मुताबिक, ‘संविधान सभा से लेकर संसद तक, सड़कों से लेकर सिविल सोसाइटी और सुप्रीम कोर्ट तक, कई मौकों पर यूसीसी की मांग की गई है और आवश्यकता जताई गई है। हालांकि, इस पर सांप्रदायिक भ्रम पैदा किए जाने से संवैधानिक प्रतिबद्धता का अपहरण हो गया और UCC संविधान का हिस्सा बनने के बजाय नीति-निर्देशक सिद्धांतों का हिस्सा बनकर रह गया।’

कांग्रेस

कांग्रेस UCC के विरोध में खड़ी है। पार्टी का कहना है कि यह अपनी विफलताओं से ध्यान हटाने के लिए ‘एजेंडा पर चलने वाली बहुसंख्यकवादी सरकार’ की रणनीति का हिस्सा है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने कहा, ‘बीजेपी के शब्दों और कर्मों की वजह से देश आज विभाजित है। लोगों पर UCC थोपने से यह विभाजन और बढ़ेगा। पीएम ने राष्ट्र की तुलना एक परिवार से की है, जबकि UCC पर जोर दे रहे हैं….एक परिवार में भी विविधता होती है।’

जदयू (JDU)

जदयू ने UCC पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान को ‘पॉलिटिकल स्टंट’ बताया है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा ‘हमारी पार्टी इसे आने वाले आम चुनावों के लिए पॉलिटिकल स्टंट के तौर पर देखती है और मोदी का हालिया बयान का अल्पसंख्यकों के कल्याण से कोई मतलब नहीं है।’

आप (AAP)

दिल्ली और पंजाब में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी ने ‘सैद्धांतिक तौर पर’ समान नागरिक संहिता का समर्थन किया है। पार्टी नेता संदीप पाठक के मुताबिक, ‘AAP सैद्धांतिक रूप से UCC का समर्थन करती है। आर्टिकल 44 भी इसका समर्थन करता है। हमें लगता है कि इसे तभी लागू किया जाना चाहिए, जब इसपर सर्वसम्मति हो।’

शिवसेना (UBT)

शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने UCC का समर्थन करते हुए कहा- इसका विभिन्न समुदायों पर क्या असर पड़ेगा, इसके लिए केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण चाहती है। उद्धव की पार्टी के एक नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि मुस्लिम प्रतिनिधियों से उद्धव ने कहा है कि बाल ठाकरे के जमाने से उनकी पार्टी इसका समर्थन कर रही है। ‘उन्होंने कहा कि हालांकि पार्टी ने सैद्धांतिक तौर पर UCC का समर्थन किया है, लेकिन कानून किस तरह से बनता है, यह भी महत्वपूर्ण है।’

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP)

समान नागरिक संहिता पर NCP के कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल ने कहा, ‘हमने UCC का न तो समर्थन किया है और न ही विरोध। हम सिर्फ यह कह रहे हैं कि इतने बड़े फैसले जल्दबाजी में नहीं होने चाहिए।’ उन्होंने कहा, ‘अचानक साढ़े नौ साल बाद सरकार अब UCC की बात कर रही है। यह अगले चुनावों को देखते हुए एक राजनीतिक चाल है।’

शिरोमणि अकाली दल (SAD)

मोदी सरकार की पूर्व सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने समान नागरिक संहिता के विचार को खारिज कर दिया है। उसके मुताबिक इससे अल्पसंख्यकों और आदिवासियों पर असर पड़ेगा। पार्टी नेता दलजीत सिंह चीमा ने कहा, ‘हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि संविधान निर्माताओं ने UCC को मौलिक अधिकार का दर्जा नहीं दिया। इसे समवर्ती सूची में रखा गया और नीति निर्देशक सिद्धांतों में डाला गया। इस स्थिति को बदलने की आवश्यकता नहीं है, इससे समाज में मतभेद पैदा होंगे।’

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML)

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने भी समान नागरिक संहिता का विरोध किया है। पार्टी नेता मोहम्मद बशीर के मुताबिक, ‘कर्नाटक चुनाव के बाद केंद्र UCC का इस्तेमाल राजनीतिक रणनीति के तहत कर रहा है, जो कि चिंताजनक है।’ उन्होंने कहा, यह ‘चुनावी एजेंडा सेट करने की कोशिश’ है, जिसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं।

द्रमुक (DMK)

तमिलनाडु में सत्ताधारी DMK ने कहा है कि भाजपा पहले हिंदुओं के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करे। पार्टी प्रवक्ता टीकेएस एलंगोवन ने कहा, ‘सरकार को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का कोई अधिकार नहीं है। अगर वह UCC लाना चाहते हैं तो पहले हिंदू धर्म से शुरू करें, जहां कुछ लोगों को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता और ना ही पूजा करने दी जाती है।’

समान नागरिक संहिता लागू करने में आनेवाली मुश्किलें : ज़्यादातर राज्यों के अपने-अपने क़ानून हैं 

भारत जैसे बेहद विविध और विशाल देश में समान नागरिक क़ानून को एकीकृत करना बेहद मुश्किल है। एक तरफ़ यहाँ के हिंदू भले ही व्यक्तिगत क़ानूनों का पालन करते हैं लेकिन वो विभिन्न राज्यों में विभिन्न समुदायों की प्रथाओं और रीति-रिवाजों को भी मानते हैं। वहीं दूसरी ओर मुस्लिम पर्सनल लॉ भी पूरी तरह सभी मुसलमानों के लिए समान नहीं हैं। जैसे कुछ बोहरा मुसलमान उत्तराधिकार के मामले में हिंदू क़ानूनों के सिद्धांतों का पालन करते हैं, वहीं संपत्ति और उत्तराधिकार के मामलों में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग क़ानून हैं। पूर्वोत्तर भारत के ईसाई बहुल राज्यों जैसे कि नागालैंड और मिज़ोरम में अपने पर्सनल लॉ हैं और वहां पर अपनी प्रथाओं का पालन होता है न कि धर्म का। वर्ष 2005 में एक संशोधन किया गया जिसके बाद मौजूदा केंद्रीय हिंदू व्यक्तिगत कानून में बेटियों को पूर्वजों की संपत्ति में बेटों के बराबर हक़ दिया गया। कम से कम पांच राज्यों ने इसे सक्षम करने के लिए अपने क़ानूनों में पहले ही बदलाव कर दिया था।

हिंदू परंपरा के मुताबिक़ धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक दोनों उद्देश्यों के लिए किसी को गोद लिया जा सकता है क्योंकि संपत्ति का वारिस एक पुरुष हो सकता है और परिजनों का अंतिम संस्कार पुरुष ही कर सकता है। दूसरी ओर इस्लामी क़ानून में गोद लेने को मान्यता नहीं दी जाती है लेकिन भारत में एक धर्मनिरपेक्ष ‘जुवेनाइल जस्टिस’ लॉ है जो नागरिकों को धर्म की परवाह किए बग़ैर नागरिकों को गोद लेने की अनुमति देता है।

बेंगलुरु स्थित एक स्वतंत्र क़ानूनी नीति सलाहकार आलोक प्रसन्ना कुमार कहते हैं – “आप कौन-सा सिद्धांत लागू करेंगे- हिंदू, मुस्लिम या फिर ईसाई? UCC को कुछ बुनियादी सवालों का जवाब देना होगा। जैसे कि शादी और तलाक़ का क्या मानदंड होगा? गोद लेने की प्रक्रिया और परिणाम क्या होंगे? तलाक़ के मामले में ग़ुज़ारा भत्ते या संपत्ति के बंटवारे का क्या अधिकार होगा? और अंत में संपत्ति के उत्तराधिकार के नियम क्या होंगे?”

समान नागरिक संहिता लागू करने के पहले कई सवाल ऐसे हैं जिनके बारे में सरकार को समझना होगा :
  • सरकार धर्मांतरण क़ानून और समान नागरिक क़ानून का सामंजस्य कैसे करेगी जो कि स्वतंत्र रूप से विभिन्न धर्मां और समुदायों के बीच विवाह की अनुमति देता है जबकि धर्मांतरण क़ानून अंतर-धार्मिक विवाहों पर अंकुश लगाने का समर्थन करता है।
  • छोटे राज्यों में लोगों की प्रथाओं को महत्वपूर्ण रूप से अव्यवस्थित किए बिना क़ानूनों को लाने की योजना कैसे बनाई जाएगी?
  • अगर एक कॉमन लॉ हुआ तो गोद लेन के लिए नियम बनाते हुए क्या तटस्थ सिद्धांत होंगे?