एक पत्रकार की जुबानी दास्तान-ए-प्रेस क्लब,अरविंद प्रताप की कलम से

एक पत्रकार की जुबानी दास्तान-ए-प्रेस क्लब,अरविंद प्रताप की कलम से

रांची : ये मत सोचियेगा कि चुनाव लड़ना है इसलिए लिख रहा हूं प्रेस क्लब के कई साथी इसके गवाह है कि मैंने समय समय पर उन्हें इन समस्याओं से अवगत कराया है, ये बात अलग है कि कुछ हुआ नहीं। अध्यक्ष जी के साथ भी पत्रकार हित में कदम उठाने के लिए कई बार बैठा हूँ, घण्टों बातें हुईं है। चाहे पत्रकारों के मेडिक्लेम की बात हो, उनकी मृत्यु या पेंशन, आवास योजनाओं की बात हो कई मसलों पर मैंने उन्हें कई सुझाव दिए हैं। कई बार कैन्टीन में गया हूं खुद भी और पत्रकार मित्रों के भी साथ अपनी क्षुधा मिटाने, कभी चाय पीने, कभी पकौड़े खाने तो कभी लंच करने। मैनें कई बार कैंटीन वाले से पूछा कि मेनू क्यों नहीं है, रेट चार्ट क्यों नहीं है और ये मुंह चिढ़ाता हुआ पम्पलेट जो चिपकाए हो कि बाहरी फ़ूड और कैटरिंग यहां अलाउ नहीं है उसे कब हटाओगे और मेनू कब लाओगे। लेकिन हमेशा ही वही ढाक के तीन पात वाली बात। हर बार कैंटीन में जाने के बाद मैंने बहुत पीड़ा झेली है। अफसोस होता है देख कर कि क्या हालत हो गयी है प्रेस क्लब के कैंटीन की सब कुछ बेगाना बेगाना सा लगता है। जो मन मे आता है कैंटीन का इंचार्ज पैसे काटता है बिल भी नहीं देता। पैसों के हिसाब से कोई क्वालिटी नहीं।
आज चुकी मैं फिर से क्लब में उसी हादसे का शिकार हुआ तो खुल कर लिखना चाहता हूँ कि हमें प्रेस क्लब इस लिए चाहिए ताकि:-


हम घर की टिफिन वहां खा पाएं।
इसलिए चाहिए कि हम अपने अपने ऑफिस के काम के तनाव पूर्ण मौहाल से निकल कर सुकून खुशी के दो पल वहां गुज़ार पाएं।
प्रेस क्लब इसलिए चाहिए ताकि कभी सपरिवार वहां के व्यंजनों या मनोरंजक एक्टिविटी का लुफ़्त उठा पाएं।
प्रेस क्लब इसलिए चाहते हैं कि कैंटीन में बाहर के खाने से कम रेट में हमें अच्छा खाना मिल पाए।
प्रेस क्लब इसलिए चाहिए ताकी रिक्रिएशन रूम का मज़ा ले पाएं मसलन स्पोर्ट्स एक्टिविटी या अन्य एक्टिविटी। जिस प्रेस क्लब के पास खर्च करने के बाद भी लाखों की राशि बची रही वहां कोई एक्टिविटी नहीं होना तो कई सवाल खड़े करता ही है।

प्रेस क्लब इसलिए चाहिए कि मेम्बरों को 600 रुपये में प्राइवेट होटलों की तरह रुम सर्विस मिले। हालांकि मेरा मानना है कि यह रकम मेम्बरों के लिए बहुत ज़्यादा है।

बातें तो बहुत सारी है फ्रेंड्स, लिखते लिखते शायद मेरे शब्द भी कम पड़ जाएं। में ये भी जानता हूं कि बातें करना अलग बात है और उसे अपने कार्यों में उतारना अलग बात है। लेकिन ये मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इन दो सालों में प्रेस क्लब के हित या पत्रकार हित में जो काम होने चाहिए थे वह नहीं हुए।
आप सबों की मदद से अडने, लड़ने और भिड़ने वाला टीम चाहिए। प्रेस क्लब के पुराने कर्मठ साथी तो रिपीट हों ही। साथ ही नए जोश के साथियों के हाथ में इस बार हो प्रेस क्लब की कमान।