जीबीएम कॉलेज में हिन्दी विभाग द्वारा मुंशी प्रेमचंद की 144वीं जयंती पर लघु संगोष्ठी का आयोजन

गौतम बुद्ध महिला कॉलेज में उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 144 वीं जयंती पर हिन्दी विभाग की ओर से एक लघु-संगोष्ठी का आयोजन किया गया

जीबीएम कॉलेज में हिन्दी विभाग द्वारा मुंशी प्रेमचंद की 144वीं जयंती पर लघु संगोष्ठी का आयोजन

गया । गौतम बुद्ध महिला कॉलेज में उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 144 वीं जयंती पर हिन्दी विभाग की ओर से एक लघु-संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका शुभारंभ कॉलेज के प्रभारी प्रधानाचार्य डॉ सहदेब बाउरी, हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ प्यारे माँझी, डॉ सुनीता कुमारी एवं डॉ सुरबाला कृष्णा, राजनीतिशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ शगुफ्ता अंसारी, अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ. कुमारी रश्मि प्रियदर्शनी, गृहविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. प्रियंका कुमारी एवं उपस्थित छात्राओं ने मुंशी प्रेमचंद के छायाचित्र पर माल्यार्पण तथा पुष्पार्पण करके किया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. माँझी ने लघु-संगोष्ठी के विषय 'प्रेमचंद का साहित्य एवं वर्तमान समय' पर अपने सारगर्भित विचार रखे। उन्होंने छात्राओं को प्रेमचंद की जीवनी और कृतियों से परिचित करवाया। 

प्रभारी प्रधानाचार्य डॉ सहदेब बाउरी ने छात्राओं से मुंशी प्रेमचंद के बारे में अनिवार्य रूप से जानकारी रखने की बात कही क्योंकि प्रेमचंद को पढ़े बिना हिन्दी साहित्य की जानकारी बिल्कुल अधूरी है। उन्होंने हिन्दी विभाग को इस आयोजन हेतु हार्दिक शुभकामनाएं दीं। मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखे गये 'गबन', 'सेवासदन', 'निर्मला', 'गोदान' 'कर्मभूमि', 'रंगभूमि', 'प्रतिज्ञा', 'वरदान' जैसे चर्चित उपन्यासों के प्रसिद्ध चरित्रों का स्मरण दिलाते हुए अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी ने एक उपन्यासकार के रूप में मुंशी प्रेमचंद की लोकप्रियता का मूल कारण उनके द्वारा चयनित महत्त्वपूर्ण सामाजिक विषयों और विषयों के अनुरूप प्रयुक्त सरल, सहज व मनोविश्लेषणात्मक भाषाशैली को ठहराया। डॉ रश्मि ने कहा कि प्रेमचंद ने अपनी कहानियों एवं उपन्यासों में समाज के हर वर्ग की मानवीय संवेदनाओं को स्पर्श करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने दलितों, शोषितों, पीड़ितों एवं उपेक्षितों की समस्याओं पर अपनी लेखनी चलाते हुए साहित्य द्वारा भारतीय समाज में सुधार लाने का यथासंभव प्रयत्न किया है। डॉ रश्मि के अनुसार, प्रेमचंद जयंती समारोह मनाना तभी सार्थक होगा जब छात्राएं नियमित रूप से पुस्तकालय जाकर प्रेमचंद द्वारा लिखित उपन्यासों एवं कहानियों को पढ़ें, उनमें चित्रित भारतीय समाज की समस्याओं की गंभीरता को समझकर समाज में मौजूद विसंगतियों पर अपनी भी लेखनी चलायें। उन्होंने छात्राओं को महाविद्यालय पत्रिका 'गरिमा' के लिए भी छोटी-छोटी कविताएँ और कहानियाँ लिखने को प्रेरित किया। 

डॉ शगुफ्ता अंसारी ने मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी कहानी 'बड़े घर की बेटी' एवं 'ईदगाह' पर प्रकाश डाला। प्रेमचंद की सभी कहानियों को रोचक तथा समाजोपयोगी ठहराते हुए कार्यक्रम में छात्राओं की सक्रिय सहभागिता की प्रशंसा की। डॉ प्रियंका कुमारी, डॉ सुनीता कुमारी एवं डॉ. सुरबाला कृष्णा ने मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों एवं कहानियों को हृदयस्पर्शी एवं मार्मिक बतलाते हुए अपने विचार रखे। संगोष्ठी में छात्रा मानसी कुमारी, नैना कुमारी, स्वाति कुमारी, पूजा कुमारी ने भी मुंशी प्रेमचंद की प्रतिनिधि कहानियों में से 'बड़े घर की बेटी', ईदगाह, 'ठाकुर का कुँआ', 'पूस की रात', क़फ़न, 'दो बैलों की कथा', 'सवा सेर गेहूँ' आदि पर अपने विचार रखे। कार्यक्रम के अंत में मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी 'पंच-परमेश्वर' पर आधारित वृत्तचित्र भी दिखाया गया। कार्यक्रम का संचालन छात्रा दीपशिखा मिश्रा एवं शैली पाठक ने किया।