आस्था शरण की यूपीएससी में सफल होने की अनुकरणीय कहानी 

आस्था शरण ने आईआईटी बीएचयू से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद एक निजी कंपनी में बतौर इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर के रूप में  काम प्रारंभ किया था। वह दो वर्षों तक  पूरे लगन और निष्ठा के साथ एक इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर रूप में काम की थी।

आस्था शरण की यूपीएससी में सफल होने की अनुकरणीय कहानी 

2024 संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में ऑल इंडिया रैंकिंग में 354 वां स्थान प्राप्त कर हजारीबाग जिले के बरही  प्रखंड के जहरिया ग्राम की बेटी आस्था शरण  की इस  सफलता की कहानी सकल समाज के लिए अनुकरणीय है। यह सफलता सिर्फ लड़कियों तक ही सीमित नहीं है अपितु लड़कों के लिए भी अनुकरणीय है।‌ वहीं दूसरी ओर लड़कियों के जन्म लेने पर घर वालों  की खुशी सिर्फ दिखावे की खुशी  होती हैं। उनकी खुशी में कहीं न कहीं लड़की के जन्म ले लेने की पीड़ा छुपी रहती है । वहीं  लड़के के जन्म होने पर जो खुशी देखी जाती है, वह खुशी लड़कियों के जन्म होने पर नहीं दिखती है।  आज इसी का परिणाम है कि भ्रूण हत्या जैसी प्रथा हमारे समाज को नृशंस बनाती चली जा रही है।  हम सब चाहे जितना भी पढ़ लिख लें, आधुनिक बन जाएं, लेकिन अभी भी लड़कियों के प्रति जो हमारे  समाज का नजरिया बदला नहीं है । इसी  कारण  दहेज प्रथा जैसी कुप्रथा हमारे समाज में जीवित है । आज लड़कियों की शादी के लिए  पिता को दरबदर की ठोकरें खाते देखें जाते हैं। लड़की के पिता को दहेज का पैसा इंतजाम करने के लिए बैंकों,  मित्रों और परिवार वालों से कर्ज लेने के लिए विवश होना पड़ रहा है। ऐसे सामाजिक हालात में आस्था शरण जैसी साहसी और मेहनतकश लड़की ने जो सफलता हासिल की है, यह सकल समाज के लिए अनुकरणीय है ।
   अगर समाज के लोग लड़कियों को  लड़कों के समान  अवसर दें, तो लड़कियां किसी भी मायने में लड़कों से कम सिद्ध नहीं होगी। हमारा समाज लड़कियों  को लड़कों की तरह पूर्ण आजादी दें, तो लड़कियां भी  आस्था शरण की तरह परचम लहरा सकती हैं । लड़कियों के जन्म लेने पर परिवार के लोग इसे बोझ समझने लगते हैं । इस मानसिकता को पूरी तरह बदलने की जरूरत है। आज भी भारत के अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों को स्कूल न भेज कर घर के चूल्हा चौकी के कामों में झोंक दिया जाता है।  जबकि केंद्र सरकार, देश की सभी राज्य सरकारें और कई  स्वयंसेवी संस्थाएं भी लड़कियों को शिक्षित करने के लिए जन जागरण अभियान चला रहे हैं । इसके बावजूद लड़कियों का   शिक्षा स्तर जो  होना चाहिए, पुरुषों की तुलना में 60 % कम है । यह बेहद चिंता की बात है ।
    विचारणीय यह है कि आस्था शरण को अगर उनके पिता शिव शरण  पूरी आजादी नहीं दिए होते, तब क्या वह यूपीएससी की परीक्षा में इतना बेहतर परिणाम दे पातीं ? शिव शरण ने अपनी पुत्री आस्था शरण को लड़की की भांति नहीं बल्कि एक लड़का की भांति बेहतर से बेहतर स्कूलों में दाखिला दिलवाया था । आस्था शरण ने केंद्रीय विद्यालय चंडीगढ़ से मैट्रिक और इंटरमीडिएट परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की ।‌ उस समय तक आस्था शरण को भी यह नहीं मालूम था कि एक दिन वह यूपीएससी की परीक्षा में सफल होगी।
  आस्था शरण ने पूरी निष्ठा और लगन के साथ अपनी पढ़ाई जारी रखीं थीं। आस्था शरण ने आईआईटी बीएचयू से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद एक निजी कंपनी में बतौर इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर के रूप में  काम प्रारंभ किया था। वह दो वर्षों तक  पूरे लगन और निष्ठा के साथ एक इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर रूप में काम की थी। उक्त निजी कंपनी द्वारा उन्हें सालाना 32 लख रुपए दिया जा रहा था । इसी दौरान आस्था शरण के मन में देश की सर्वोच्च परीक्षा संघ लोक सेवा आयोग ‌ में बैठने का  हो गया।  उन्होंने इस बात को अपने पिता -  माता के समक्ष रखा।  इसके साथ ही उन्होंने निजी कंपनी की नौकरी छोड़ने की भी बात बताई। उनके पिता - माता ने उन्हें अपने करियर में क्या करना है ?  करने की पूरी छूट दी । आस्था शरण अकेले दिल्ली जैसे बड़े महानगर में एक वर्ष तक यूपीएससी परीक्षा की तैयारी की । उन्होंने पूरे लगन के साथ  परीक्षा भी दिया।  लेकिन वह  पहले प्रयास में  मात्र नौ अंकों से पीछे रह गई थीं । इसके वह तनिक भी विचलित नहीं हुईं। बल्कि पूरे लगन से यूपीएससी की तैयारी में जुट गई । आस्था शरण को यह विश्वास था कि  यूपीएससी की परीक्षा जरूर निकाल लेगी । इस दौरान उनके परिवार और गुरु जनों का भी मार्गदर्शन मिलता रहा था । आस्था शरण ने पूरी निष्ठा के साथ दोबारा यूपीएससी की परीक्षा दी । 2024 संघ  लोक सेवा आयोग परीक्षा में ऑल इंडिया रैंकिंग में 354 वां स्थान प्राप्त कर हजारीबाग जिले का नाम को गौरवान्वित किया है ।    
  अब सवाल यह उठता है कि आस्था शरण को उनके परिवार वालों ने जो आजादी दी अपने करियर के चुनाव करने के लिए क्या हम सब अपनी बच्चियों को यह आजादी दे पाते हैं ?  लड़की जन्म ली तो भारी मन से हमारा समाज  स्वीकार करता है।  बाद में हम सब अपने बच्चियों को स्कूल तो भेज देते हैं।  लड़की जैसे  तैसे मैट्रिक अथवा बीए पास तो जरूर कर जाती हैं, लेकिन उसके मन की बात जाने बिना कि  वह क्या बनना चाहती है ?  सीधे उसकी शादी पर बात होनी शुरू हो जाती है । हम सब  उसकी शादी तो  कर देते हैं, लेकिन उस लड़की के अरमान सदा सदा के लिए चूल्हा चौकी में ही दफन हो जाते हैं । कई लड़कियों  की शादी होने के बाद  ससुराल वाले अच्छे मिल जाते हैं तो उसकी पढ़ाई जारी रह पाती है।  वह बहू क्या करना चाहती है ? अपने  जीवन में क्या बनना चाहती है ? इस  विषय पर बातचीत होती है । उन्हें आजादी मिलती है, तो कई लड़कियां शादी के बाद भी शिक्षिका, साइंटिस्ट, बैंकिंग आदि सेवाओं में चली जाती हैं । और एक लड़के की तरह अपने घर परिवार को चलाती हैं। लेकिन ऐसी कितनी लड़कियों को ऐसा ससुराल मिल पाता है ?
  अगर कोई लड़की शादी होने के बाद अपने करियर बनाने की बात अपने ससुराल वालों के समक्ष रखती हैं, तो उन्हें कई तरह के प्रताड़ना से गुजरना पड़ता है । उस लड़की को मन मार कर रह जाना पड़ता है। हमारे देश में हजारों ऐसे मामले मिल जाएंगे, जहां लड़कियां अपने कैरियर बनाने की बात की हो तो उन्हें  तलाक जैसे से विभत्स पीड़ा गुजरना पड़ा है ।‌
    आस्था शरण की सफलता समाज की सभी लड़कियों के लिए अनुकरणीय है । आस्था शरण बिना रुके।  बिना झुके। बिना समझौता किए, उसे जो प्राप्त करना था, अपने लगन से प्राप्त की।  इस सफलता पर आस्था शरण में कहा कि अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता, गुरुजनों और परिवार के सदस्यों को देता हूं । आगे उन्होंने कहा कि अगर सपना को हकीकत में बदलना है, तो समर्पण,अनुशासन और धैर्य जरूरी है ।‌ प्रतिभागियों को असफलता से घबराना नहीं चाहिए बल्कि उसे एक अनुभव के रूप में लेकर आगे बढ़ना चाहिए ।
   आस्था शरण ने जो बात कही है, हमारे सकल समाज के लिए अनुकरणीय है । उनकी बातें सिर्फ लड़कियों तक ही सीमित नहीं है बल्कि  लड़कों तक भी जाती हैं । आज हमारे समाज के लड़के एक दो परीक्षा में असफल हो जाने पर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं।  उनका डिप्रेशन उस मोकाम तक पहुंच जाता है कि वह साधारण नौकरी करने के लायक भी नहीं रह पाता है। ऐसे लड़कों और लड़कियों के लिए आस्था शरण एक उदाहरण के रूप में उभर कर सामने आई ।
  हजारीबाग जिले के बरही प्रखंड के जहरिया गांव में उनके पिता शिव शरण का जन्म हुआ था । उन्होंने उसी  गांव में पढ़ कर एयर फोर्स की नौकरी प्राप्त की थी।  लेकिन उन्होंने अपनी बेटी आस्था शरण को बेहतर से बेहतर शिक्षा किया प्रदान  था । उन्होंने अपनी बेटी को अपने कैरियर चुनने का पूर्ण अवसर प्रदान किया था।  फलस्वरुप आस्था शरण अपनी मंजिल तक पहुंच पाईं। आस्था शरण ने  प्रतिभागियों से साफ शब्दों में कहा है कि किसी भी परीक्षा की तैयारी में समर्पण और अनुशासन का होना जरूरी है । परीक्षा में सफलता असफलता दोनों हासिल हो सकती है। सफलता तो आपको आपके मंजिल तक पहुंचा देती है, किन्तु असफलता से बिल्कुल घबराने की जरूरत नहीं है बल्कि आगे की परीक्षा की तैयारी  पूरे  लगन के साथ करने की जरूरत है।