साम्प्रदायिकता के फन को कुचलना बहुत जरूरी
पूरा शहर अथवा गांव सांप्रदायिकता की आग में झुलस जा रहा है। संबंधित जिलों में पुलिस प्रशासन द्वारा सख्ती के साथ कार्रवाई भी की जा रही है, लेकिन घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं । यह बेहद चिंता की बात है।

सांप्रदायिकता के खिलाफ देश को एक होने की जरूरत है। देश को सांप्रदायिकता की आग में झोंकने की नाकाम कोशिशें लगातार की जाती रही हैं । देश में सांप्रदायिकता के बार-बार फूफकारने सेे हमारी एकता और अखंडता प्रभावित होती है। यह बात बिल्कुल देश हित में नहीं है । इसलिए सांप्रदायिकता के फन को बहुत ही सख्ती के साथ कुचलना जरूरी है । बीते कुछ वर्षों से विभिन्न त्योहारों पर निकलने वाले जुलूसों पर एक योजना बद्ध तरीके से पत्थर बाजी की जा रही है। परिणाम स्वरूप पूरा शहर अथवा गांव सांप्रदायिकता की आग में झुलस जा रहा है। संबंधित जिलों में पुलिस प्रशासन द्वारा सख्ती के साथ कार्रवाई भी की जा रही है, लेकिन घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं । यह बेहद चिंता की बात है। नये वक्फ बोर्ड कानून को राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी मिल जाने के बाद पश्चिम बंगाल सहित देश के विभिन्न हिस्सों में जिस तरह सांप्रदायिकता को हवा दी जा रही है, यह किसी भी सूरत में उचित नहीं है।
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में जिस तरह उग्र प्रदर्शन हो रहे हैं। लोगों के घर जलाए जा रहे हैं। निजी संपत्तियों सहित सरकारी संपत्तियां जलाई जा रही है। लोगों को अपने-अपने घर छोड़ने को विवश होना पड़ रहा है। स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए काफी मात्रा में सेना के जवानों को तैनात किया गया है। यह सब क्या है ? सरकारी नीतियों के खिलाफ आंदोलन करने का भारत का संविधान ने अधिकार दिया है । लेकिन विरोध का कतई मतलब यह नहीं होना चाहिए कि सांप्रदायिकता को हवा दी जाए।
हमारा यह देश प्रारंभ से ही विभिन्न धर्म, पंथ और विचारकों का रहा है । हम सब मिलजुल कर एक दूसरे के पर्वों को मनाते हैं । एक दूसरे के पर्वों का मिलजुल कर आनंद उठाते हैं। हम सबों की रीति - रिवाज,रहन - सहन और भाषा विविध होने के बावजूद हम सब एक हैं। इस देश में निवास करने वाले सभी धर्म, मजहब, पंथ और विचार के लोग भारत के नागरिक हैं । सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं । हम सब अपने पुर्वजों द्वारा निर्मित भारत के संविधान के अनुरूप आचरण करते हैं । देश की एकता ही हमारे पहचान है ।
हमारी एकता पर किसी की नजर लग गई है। मैं ऐसा मानता हूं । देश में निवास करने वाले चाहे वे जिस जाति, धर्म, पंथ और विचार के हों, सभी एक दूसरे के सुख - दुख में सहभागी होते हैं । भारत की बढ़ती विश्वव्यापी लोकप्रियता और आर्थिक प्रगति पर विश्व के कई देशों की नजर है । भारत विश्व गुरु की ओर कदम बढ़ा चुका है । देश की सैन्य शक्ति लगातार बढ़ती चली जा रही है । प्रति व्यक्ति आय में भी काफी वृद्धि हुई है । गरीबी रेखा से नीचे निवास करने वाले लोगों की संख्या में भी कमी आई है । इन उपलब्धियों का भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत ही अनुकूल प्रभाव पड़ा है । भारत एक महाशक्ति के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हुआ है । वहीं दूसरी ओर त्योहारों के समय किसी बात को लेकर हम सब आमने - सामने हो जाते हैं , और कुछ ऐसा कर गुजरते हैं, जिस कारण दूसरे दिन सामने वाले से आंख मिलाने में दिक्कत हो जाती है।
पर्व और त्योहार का कतई उद्देश्य यह नहीं होता है कि त्योहार के नाम पर सांप्रदायिकता भड़के बल्कि पर्व का अर्थ यह होता है कि समाज के सभी वर्ग के लोग चाहे वे जिस जाति, धर्म,पंथ और विचार के हों, मिलजुल कर पर्व का हिस्सा बने ना कि एक दूसरे को नफरत की निगाह से देखें ।
भारत विविध पर्वों का देश है। भारतवर्ष में लगभग सालों भर कुछ ना कुछ पर्व - त्यौहार विभिन्न धर्मावलंबियों के चलते रहते हैं । ये पर्व हम सबों को आपस में जुड़ने के लिए उपस्थित होते हैं । देश की यह संस्कृति है कि हम सब एक दूसरे के पर्वों की बधाई देते हैं । उन से गले मिलते हैं । एक दूसरे के पर्वों में समान रूप से भाग लेते हैं। यही हमारी एकता और अखंडता की पहचान है। लेकिन देश के भीतर देश को अस्थिर करने वाली कुछ ऐसी शक्तियां काम कर रही हैं , इससे संबंधित कई रिपोर्टें विभिन्न समाचार पत्रों और समाचार चैनलों में दिखाए जाते रहते हैं । भारत की प्रगति, भारत की चट्टानी एकता और अखंडता को तोड़ने के लिए ये विदेशी शक्तियां हम सबों को आपस में लड़ाने का कार्य कर रही हैं । हमारे ही कुछ भाइयों को दिग्भ्रमित और बहला-फुसलाकर अपने पक्ष में कर ले रहे हैं और उन के माध्यम से कुछ ऐसा करवा देते हैं, जिससे हमारी सांप्रदायिक सौहार्द पर कड़ी चोट पहुंची जाती है ।
भारतवर्ष का ताना-बाना ऐसा है कि हम सभी एक दूसरे से इस तरह गुथें हुए हैं, जुड़े हुए हैं कि एक दूसरे के बिना रह भी नहीं सकते हैं । हम सबों की आवश्यकताएं और मांगें एक दूसरे से बहुत ही मजबूत धागे से जुड़ी हुईं हैं । हम सब चाह कर भी अलग-अलग नहीं रह सकते हैं । यह भारतवर्ष की एकता की सबसे खूबसूरत तस्वीर है। जिसे हम सबों को देखने की जरूरत है।
सत्ता की राजनीति हमारी दूरियों को बढ़ाती चली जा रही है । अगर मैं ऐसा लिखता हूं तो कोई अतिशयोक्ति न होगी । हमारे नेतागण चाहे वे सत्ता में बैठे हों अथवा विपक्ष में बैठे हों। चुनाव के समय सत्ता प्राप्ति के लिए ये नेता गण कुछ इस तरह की घोषणाएं कर देते हैं , जिसका हमारी एकता और अखंडता पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । फलत: एक ही समाज में रहकर हम सभी अकारण एक दूसरे का दुश्मन बन जाते हैं । सत्ता की राजनीति के कारण कुछ ऐसी घोषणाएं हो जाती हैं, जिसका दुर्गामी परिणाम बहुत ही विद्रूप होता है । सत्ता हासिल करने के लिए हमारे नेतागण इस विद्रूपता को जाने बिना ही कुछ घोषणाएं कर गुजरते हैं । वोट की राजनीति के तहत देश के कुछ धर्म, जाति के लोगों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य हमारे नेतागण समय-समय पर तरह-तरह की घोषणाएं करते रहते हैं। फलस्वरूप उनकी घोषणाएं समाज में फूट डालती नजर आती हैं।
मैं इस लेख के माध्यम से देश के सभी बड़े नेताओं और प्रांत के सभी नेताओं से आग्रह करना चाहता हूं कि सत्ता की राजनीति के लिए कोई ऐसी घोषणा और कार्य ना करें जिससे समाज में सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगड़े । भारतवर्ष एक धर्मनिरपेक्ष देश है । इस देश में विभिन्न धर्म, पंथ और विचार के लोग रहते हैं । सभी धर्मों, पंथों और विचारकों के विचारों के पुष्पित और पल्लवित होने का मार्ग प्रशस्त होता रहे । इस निमित्त हमारे नेतागण आचरण करें । अगर समाज टूटता है तो इसका सबसे बड़ा नुकसान देश को ही होता है। सर्वविदित है कि भारत की आजादी की लड़ाई में सभी धर्मों के लोगों ने मिलकर लड़ी थी । आजादी मिलने के बाद भारत दो टुकड़ों में बंट चुका था । अब कल्पना कीजिए भारत के टुकड़े ना होते, तब आज भारत कहां होता ? आज भारत एशिया महादेश का ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व के मानचित्र पर शीर्ष स्थान पर खड़ा होता । देश के बंटवारे से भारत दो देशों में बट गया । हमारी ताकत कमजोर हो गई। आज भारत से अलग हुए टुकड़े की क्या हालत है यह बात किसी से छुपी नहीं है । इसलिए हमारे नेताओं को बहुत ही संयम के साथ बयान देना चाहिए । सत्ता की राजनीति से अलग हटकर आमजन और देश हित में राजनीति करनी चाहिए । भारत तभी तक मजबूत है, जब इस देश में निवास करने वाले सभी लोग एक दूसरे से जुड़े हों। भारत की एकता और अखंडता हमारी पहचान है । इस पहचान को कभी नष्ट न होने दें । यह मुकम्मल प्रयास करें की देश की एकता और अखंडता कभी प्रभावित ना हो। इसलिए समाज के सभी वर्गों के लोगों को मिलजुल कर सांप्रदायिकता के खिलाफ खड़े होने की जरूरत है।