समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक अमावस्या के दिन लक्ष्मी माता प्रकट हुई
(20 अक्टूबर, कार्तिक अमावस्या, दीपावली पर्व पर विशेष)

दीपावली पर्व का नाम जेहन में आते ही दिल में खुद ब खुद पटाखे फूटने लगते हैं। दीपावली प्रकाश का एक जीवंत पर्व है। भारत सहित विश्व के जिन देशों में भी भारतीय मूल के लोग निवास करते हैं, बड़े ही धूमधाम के साथ यह पर्व मानते हैं । इस दिन बड़े ही श्रद्धा के साथ माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की संयुक्त रूप से की पूजा की जाती है। घर - घर में प्रसाद के रूप में मिठाइयां बनती हैं, जिसे लोगों के बीच बांटा जाता है। लोग रात भर जागरण कर माता लक्ष्मी भगवान गणेश की आराधना करते हैं । चूंकि यह दिन अमावस्या का होता है, इसलिए शमशान भूमि भी जागृत हो चुकी होती है। इस दिन लोग बड़े श्रद्धा के साथ माता काली की आराधना भी करते हैं । देश के हर काली मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ जुटती है। यह दिन अघोरियों के लिए बड़ा विशेष दिन होता है। ऐसी मान्यता है कि अघोरी इस अमावस्या की रात अपनी सिद्धियां सिद्ध करते हैं। वहीं दूसरी और देश भर के कारोबारियों के लिए दीपावली सबसे बड़ा पर्व होता है। लोग दीपावली से पूर्व अपने-अपने घरों और प्रतिष्ठानों को बहुत ही अच्छे ढंग से साफ-सुथरा करते हैं और दीपावली के दिन बड़े श्रद्धा के साथ माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करते हैं । दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस पर इस देश में सबसे बड़ा कारोबार होता है। इस कारोबार से देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होने के साथ व्यवसायी गण भी आर्थिक रूप से लाभान्वित होते हैं। वही दूसरी ओर देश भर के ग्राहक गण कीमती धातु के बने आभूषण एवं अन्य जरूरी सामान खरीद कर स्वयं को धन्य समझते हैं।
दीपावली पर्व से जुड़ी कई धार्मिक और सांस्कृतिक घटनाओं का विवरण हमारे हिंदू धर्म ग्रंथो में वर्णित है । सबसे प्रमुख कथा भगवान राम के चौदह साल के वनवास के बाद लंका पर रावण को हराकर अयोध्या लौटने की है, जिस पर लोगों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। दीपावली पर्व का संबंध लक्ष्मी पूजा से भी है, जो समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक मास की अमावस्या को लक्ष्मी माता प्रकट हुईं थीं। जैन धर्मावलंबियों के लिए भी यह दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस दिन भगवान महावीर को निर्वाण प्राप्ति के प्रतीक के रूप में स्मरण किया जाता है। वहीं दूसरी और सिख धर्मावलंबियों के लिए भी यह दिन बहुत ही महत्वपूर्ण दिन के रूप में स्मरण किया जाता है। सिख धर्मावलंबी इस दिन बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं। इस दिन गुरु हरगोबिंद सिंह जेल से रिहा किए गए थ। हिंदू धर्म ग्रंथ के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए हिंदू धर्मावलंबी इस दिन लक्ष्मी माता की पूजा कर धन और समृद्धि की कामना करते हैं। समुद्र मंथन से भगवान धनवंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। धनतेरस के दिन उनकी पूजा की जाती है और बर्तन खरीदने की परंपरा है। द्वापर में भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था, और इस विजय को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है।
ध्यातव्य है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। आदिकाल से कृषि परंपरा हमारी अर्थव्यवस्था के केंद्र में रही है। यही कारण है कि दीपावली की उत्पत्ति को फसल उत्सव से भी जोड़ा जाता है, जिसमें फसल की कटाई के बाद दीप जलाने की परंपरा थी। समय के साथ, दिवाली में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं जुड़ गईं, जिससे यह भारत का एक महत्वपूर्ण वार्षिक त्योहार बन गया। भारत में प्राचीन काल से दीपावली को विक्रम संवत के कार्तिक माह में गर्मी की फसल के बाद के एक त्योहार के रूप में दर्शाया गया। पद्म पुराण और स्कंद पुराण में दीपावली का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि ये ग्रन्थ पहली सहस्त्राब्दी के दूसरे भाग में किन्हीं केंद्रीय पाठ को विस्तृत कर लिखे गए थे। दीपक को स्कन्द पुराण में सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है, सूर्य जो जीवन के लिए प्रकाश और ऊर्जा का लौकिक दाता है। दीपक के प्रकाश का हमारे हिंदू धर्म ग्रंथो में बहुत ही महत्व दिया गया है। पूजा के शुभारंभ में दीप प्रज्वलित होता है। पूजा के अंत में दीप जलाकर आरती की जाती है। आहुति देने से पूर्व अग्नि प्रज्वलित की जाती है। इसलिए हमारे हिंदू धर्मावलंबियों के बीच प्रकाश का विशेष महत्व है । दीपावली पर्व प्रकाश का पर्व है। लोग इस पर्व को दीपावली और दिवाली दोनों नामों से संबोधित करते हैं।
कुछ क्षेत्रों में हिन्दू धर्मावलंबी दीपावली पर्व को यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ते हैं। नचिकेता की कथा जो सही बनाम गलत, ज्ञान बनाम अज्ञान, सच्चा धन बनाम क्षणिक धन आदि के बारे में बताती है।इस पर्व से जुड़ी कई बातें प्रचलित हैं,जिसे हम सब को जानना चाहिए। सातवीं शताब्दी के संस्कृत नाटक नागनंद में राजा हर्ष ने इसे दीप प्रतिपादुत्सवः कहा, जिसमें दीप जलाये जाते थे और नव वर-बधू को उपहार दिए जाते थे। नवीं शताब्दी में राजशेखर ने काव्यमीमांसा में इसे दीपमालिका कहा, जिसमें घरों की पुताई की जाती थी और तेल के दीयों से रात में घरों, सड़कों और बाजारों सजाया जाता था। फारसी यात्री और इतिहासकार अल बेरुनी, ने भारत पर अपने ग्यारहवीं सदी के संस्मरण में, दीपावली को कार्तिक महीने में नये चंद्रमा के दिन पर हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार दर्ज किया था । आज हम सब दीपावली का पर्व जिस रूप में मनाते हैं, इसे इस रूप में ढलने में हजारों साल लगे।
दीपावली पर्व का व्यवहारिक, सामाजिक और धार्मिक दृष्टियों से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात अन्धकार की ओर नही, प्रकाश की ओर जाओ। यह उपनिषदों की आज्ञा है। इस पर्व को सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग मनाते ही हैं। वहीं दूसरी ओर भारत में निवास करने वाले लगभग सभी धर्मों पंथों और विचारों के लोग मिलजुल कर मानते हैं। यह पर्व राष्ट्रीय एकता और अखंडता का पर्व बन चुका है। हम सब विभिन्न भाषा, रीति रिवाज के लोग इस देश में एक साथ मिलजुल कर रहते हैं, यही पर्व त्यौहार हम सबों को एक दूसरे के साथ बांधे रखता है। इस दिन बच्चे अपने माता-पिता और बड़ों से अच्छाई और बुराई या प्रकाश और अंधेरे के बीच लड़ाई के बारे में प्राचीन कहानियों, कथाओं, मिथकों के बारे में सुनते हैं। हिन्दुओं के योग, वेदान्त, और सांख्य दर्शन में यह विश्वास है कि इस भौतिक शरीर और मन से परे वहां कुछ है, जो शुद्ध, अनन्त, और शाश्वत है, जिसे आत्मा कहा गया है। दीपावली, आध्यात्मिक अन्धकार पर आन्तरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव है।
दीपावली के दिन हम सबों को बहुत ही ध्यान के साथ माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। मन बिल्कुल शांत रहना चाहिए। आराधना करते समय मस्तिष्क सिर्फ माता लक्ष्मी और भगवान गणेश पर ही केंद्रित होना चाहिए। घर के पुरोहित अथवा आचार्य जो समय पूजा हेतु निर्धारित करते हैं। उसका विधिवत पालन करना चाहिए। पुरोहित अथवा आचार्य जो कर्मकांड बताते हैं, उसका भी विधि पूर्वक पालन करना चाहिए । यह पूजा पवित्र मन से बिना अचार्य और पुरोहित के भी संपादित किए जाते हैं। घर की महिलाएं इस दिन अपने-अपने कुल देवता सहित माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की आराधना स्वयं से करती हैं। दीपावली के दूसरे दिन बहुत ही विधि विधान के साथ माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की आरती कर अपने-अपने प्रतिष्ठानों और घरों में दोनों मूर्तियों स्थापित करना चाहिए। हर दिन स्थापित माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्ति की पूजा करनी चाहिए ।ऐसा करने से हमेशा जातक के घर में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है।