देश ने एक महान जैन संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज को खो दिया

आचार्य विद्यासागर को श्रद्धांजलि स्वरूप.... उनकी प्रमुख कृतियों में 'नर्मदा का नरम कंकर', 'डूबा मत लगाओ डुबकी' , 'तोता रोता क्यों ?' , 'मूक माटी' आदि शामिल हैं। ये सभी कालजई ग्रंथ बन चुके हैं। इसके साथ ही विद्यासागर जी महाराज ने अपने जीवन काल में देश भर के विभिन्न विशिष्ट मंचों से प्रवचन दिया था।

देश ने एक महान जैन संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज को खो दिया

आज देश में जैन धर्म के एक महानतम संत विद्यासागर जी महाराज को खो दिया है। आचार्य विद्यासागर जी महाराज का संपूर्ण जीवन जैन धर्म व सत्य और अहिंसा के प्रचार में बीता था। भगवान महावीर के सत्य और अहिंसा के अमर संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने में उनके अवदान को कभी विश्व अमृत नहीं किया जा सकता है। नाम के अनुरूप विद्यासागर जी का स्वभाव था । वे बचपन से ही सहज, सरल और मृदुभाषी स्वभाव के रहे थे । उनका यह स्वभाव जीवन के अंतिम क्षण तक बना रहा था। विद्यासागर जी महाराज का बचपन से ही आध्यात्मिक की ओर झुकाव था। वे जिसे मिलते थे, प्रेम से मिलते थे । वे अपनी बातों को प्रेम के साथ ही रखा करते थे । ऐसे उनका पूरा परिवार आध्यात्मिक प्रकृति का रहा था। विद्यासागर जी महाराज का एक आध्यात्मिक परिवेश में लालन पालन हुआ था। विद्यासागर जी के परिवार के सात सदस्यों ने सत्य और अहिंसा के प्रचार में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था। विद्यासागर जी महाराज की विद्वता भारत सहित पूरे विश्व में फैली हुई थी। विद्यासागर जी के शिष्य जैन धर्म के अलावा अन्य धर्म लंबी भी हैं। वे जैन मुनि आचार्यों की श्रेणी में सबसे शीर्ष पर विराजमान रहे थे। इनकी कही बातों का भक्तों पर बहुत ही अनुकूल प्रभाव पड़ता था। विद्यासागर जी महाराज के प्रवचन कार्यक्रम में हजारों हजार की संख्या में भक्तगण जुटा करते थे ।

जैन धर्म पर कई अनमोल पुस्तकों की रचना की

आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के समाधि ले लेने से संपूर्ण देश में शोक व्याप्त है। लाखों की संख्या में हर धर्म, पंथ और विचार के लोग अपने-अपने स्तर से शोक संवेदना प्रकट कर रहे हैं। इससे प्रतीत होता है कि आचार्य विद्यासागर जी महाराज कितने लोकप्रिय व महानतम संत थे। आचार्य विद्यासागर जी महाराज जितने बड़े विद्वान थे, उतने ही प्रखर वक्ता भी रहे थे। उन्होंने जैन धर्म पर कई अनमोल पुस्तकों की रचना भी की थी। उनकी पुस्तकें विश्व भर में पढ़ी जाती हैं।

सेकंड का आपके जीवन में क्या महत्व है बताया

1980 में विद्यासागर जी महाराज का हजारीबाग की पवित्र धरती पर आगमन हुआ था । हजारीबाग जैन धर्मावलंबियों सहित विभिन्न धर्मावलंबियों ने मिलजुल कर उनका शानदार स्वागत किया था। उनका हजारीबाग में प्रवास के दौरान प्रवचन भी हुआ था । उनका वह प्रवचन एक कालजई प्रवचन था ।‌ जिन लोगों ने भी विद्यासागर जी महाराज का वह प्रवचन सुना था, आज भी उन सबों के स्मृति में है। विद्यासागर जी महाराज का वह कालजई प्रवचन सुनने का मुझे भी अवसर प्राप्त हुआ था । जहां तक मेरी स्मृति में है। विद्यासागर जी महाराज ने एक सेकंड के महत्व पर अपनी बातों को रखा था । उन्होंने प्रश्न खड़ा कर कहा था कि एक सेकंड का आपके जीवन में क्या महत्व है ? एक सेकंड के अंतराल में जीवन और मृत्यु बिल्कुल निकट से एक दूसरे से मिलकर गुजर जाते हैं। एक सेकंड में प्रकृति कितना बदल जाती है । एक सेकंड के अंतराल में मनुष्य के जीवन में क्या-क्या बदलाव हो सकते हैं ? उन्होंने कहा था कि मनुष्य का जीवन बहुत ही अनमोल है। कई योनियों से विचारण के पश्चात मनुष्य की योनि प्राप्त होती है । समय, एक-एक सेकंड कर आगे बढ़ता ही रहता है । एक सेकंड भी किसी का इंतजार नहीं करता है। जो महापुरुष महान बने हैं, उन सब ने अपने एक सेकंड का बिना समय गंवाए सदुपयोग किए, तभी वे सब महापुरुष बन पाए थे । एक सेकंड पर उनका सारगर्भित प्रवचन आज भी लोग याद कर अभिभूत हो जाते हैं। मैं भी इस प्रवचन से पूर्व एक सेकंड के महत्व पर इतना सारगर्भित प्रवचन नहीं सुना था।

समाधी की अवस्था में भी उनके चेहरे पर एक आभा प्रकट हो रही थी

18 फरवरी 2024 को छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्तिथ चंद्रगिरी तीर्थ में संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज का सल्लेखना व्रत के द्वारा समतापूर्वक समाधि मरण हुआ । समाधी की अवस्था में भी उनके चेहरे पर एक आभा प्रकट हो रही थी। उनके चेहरे पर मुस्कान बनी हुई थी । जैसे लग रहा था कि अब वे बोल उठेंगे। आचार्य विद्यासागर जी महाराज के समाधी पर चले जाने से जैन समाज ने एक महान संत को खो दिया, के समान है। उनका जाना अथवा समाधि पर चले जाने के शोक स्वरूप अखिल भारतीय जैन समाज ने अपने-अपने कारोबार को पूरी तरह बंद रखा है । जैन मंदिरों में उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना सभाएं और विशेष प्रार्थना की जा रही हैं । इसके साथ ही विविध धर्मलंबी भी उनकी आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में हुआं था । उनकी जन्मभूमि कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा थी। इस दिन शरद पूर्णिमा था। उनके पिता श्री मल्लप्पा थे, जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने थे । उनकी माता श्रीमंती थी, जो बाद में आर्यिका समयमति बनी थी।

22 वर्ष की आयु में दीक्षा ली थी

विद्यासागर जी को 30 जून 1968 में अजमेर में 22 वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी थी, जो आचार्य शांतिसागर के वंश के थे। आचार्य विद्यासागर को 22 नवम्बर 1972 में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था। वे भारतवर्ष के एक ऐसे परिवार में जन्म लिए थे। जिनका परिवार आध्यात्मिकता से उत्प्रोत रहा । इतनी संख्या में एक ही परिवार से मुनि और आचार्य बनना अपने आप में एक अनूठा उदाहरण है। विद्यासागर जी के मुनि बन जाने के पश्चात उनके भाई सभी घर के लोग संन्यास ले चुके थे। । उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर और मुनि समयसागर कहलाये। उनके बङे भाई भी उनसे दीक्षा लेकर मुनि उत्कृष्ट सागर जी महाराज कहलाए।

काव्य “मूक माटी” की रचना की थी

आचार्य विद्यासागर जी महाराज संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते थे । उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की थीं। विश्व भर के कई शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है। । उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की थी। उनका यह काव्य ग्रंथ बहुत ही लोकप्रिय है। विभिन्न संस्थानों में यह काव्य ग्रंथ स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है। आचार्य विद्यासागर कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे थें।

आचार्य विद्यासागर की जीवनी है “आत्मान्वेषी”

आचार्य विद्यासागर के शिष्य मुनि क्षमासागर ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है। प्रणम्यसागर ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।

आचार्य विद्यासागर ने कालजई ग्रंथों की रचना की

आचार्य विद्यासागर जी महाराज एक आचार्य मुनि के साथ भाषा साहित्य के भी मर्मज्ञ विद्वान थे। वे विविध भाषाओं के ज्ञाता थे। आठ भाषाओं पर उनकी विशेष पड़ थी। वे आठ भाषाओं में धारा प्रवाह प्रवचन करते थे। उनकी हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी आदि भाषाओं में एक दर्जन से अधिक मौलिक रचनाएँ प्रकाशित हैं। सभी रचनाएं अपने आप में बेमिसाल हैं। उनकी लगभग सभी कृतियां बड़े ही श्रद्धा और भक्ति भाव से पढ़ी जाती हैं। उनकी प्रमुख कृतियों में ‘नर्मदा का नरम कंकर’, ‘डूबा मत लगाओ डुबकी’ , ‘तोता रोता क्यों ?’ , ‘मूक माटी’ आदि शामिल हैं। ये सभी कालजई ग्रंथ बन चुके हैं। इसके साथ ही विद्यासागर जी महाराज ने अपने जीवन काल में देश भर के विभिन्न विशिष्ट मंचों से प्रवचन दिया था। इन प्रवचनों पर आधारित सैकड़ो की संख्या में वीडियो और ऑडियो कैसेट ते बाजार में उपलब्ध है। प्रवचनों पर आधारित कैसेटों में प्रवचन परिजात, प्रवचन प्रमेय ,प्रवचन संग्रह आदि सदा लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते रहेंगे।

आचार्य विद्यासागर के अनमोल संदेश लोगों के मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे

यह निर्विवाद सत्य है कि इस धरा पर जिनका जन्म हुआ है । एक दिन उसे इस दुनिया से जाना ही होगा । जन्म तो सभी का होता है। और मरण भी सभी का होता है। यह अकाट्य सत्य है। आप जिस भी धर्म, पंथ और विचार के हों । इस कटु सत्य को काट नहीं सकते हैं। लेकिन कुछ लोग अपने जन्म को सदा सदा के लिए अमरता का वस्त्र पहनकर इस दुनिया से जरूर रुखशत हो जाते हैं । लेकिन उनकी मृत्यु भी जन्म के समान हमेशा पुष्पित और पल्लवी होती रहती है। विद्यासागर जी महाराज उन्हीं में एक थे। विद्यासागर जी महाराज का जन्म एक मनुष्य के रूप में जरूर हुआ था। लेकिन उन्होंने अपने जन्म को अपने त्याग, अपने वर्त और अपने संकल्प से इतना महान बना दिया था कि आज करोड़ों की संख्या में उनको याद करने वाले लोग मौजूद हैं । आज करोड़ लोगों की आंखें नम हैं । उन्होंने न विवाह किया, न गृहस्थी बसाई और न ही व्यापार किया। इसके बावजूद उनका एक बड़ा विश्व परिवार बन गया है ।उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानव कल्याण और सत्य हिंसा के प्रचार में लगा दिया था । विद्यासागर जी महाराज के समाधि लेने के बावजूद उनके अनमोल संदेश सदा लोगों के दिलों में जीवित रहेंगे। उनके अनमोल संदेश सदा लोगों का मार्ग प्रशस्त भी करते रहेंगे।