काशी विश्वनाथ की तरह महाबोधि मंदिर में भी बनेगा कॉरिडोर, बिहार में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा
महाबोधी कॉरिडोर के निर्माण होने से पर्यटकों उद्योग को काफी बढ़ावा मिलेगा. बोधगया में ड्रेनेज आदि की समस्या है तो अब कॉरिडोर के निर्माण होने से सभी समस्या दूर हो जाएगी.
बिहार सहित पूरे देश में प्रसिद्ध विष्णुपद और बोधगया के महाबोधि मंदिर को काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तर्ज पर कॉरिडोर बनाया जाएगा. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट में बिहार के दो शहर नालंदा और गया को लेकर प्लान बनाकर बजट में यह प्रस्ताव दिया गया है. वहीं, केंद्र के इस ऐलान पर गया के लोगों ने कहा कि इससे कई समस्या दूर हो जाएगी.
इस ऐलान पर बोधगया के होटल एसोसिएशन से जुड़े जय सिंह ने बताया कि महाबोधी कॉरिडोर के निर्माण होने से पर्यटकों उद्योग को काफी बढ़ावा मिलेगा. बोधगया में ड्रेनेज आदि की समस्या है तो अब कॉरिडोर के निर्माण होने से सभी समस्या दूर हो जाएगी. वहीं, टूरिस्ट गाइड के अध्यक्ष राकेश कुमार ने बताया कि वैशाली तक एक्सप्रेसवे का निर्माण होने से बुद्धिस्ट सर्किट से सीधा कनेक्टिविटी बढ़ने से पर्यटकों की संख्या में भी बढ़ोतरी होगी.
स्थानीय पर्यटन व्यवसाय का होगा विकास
जय सिंह ने आगे बताया कि पर्यटकों के लिए सुविधा बढ़ेगी. कॉरिडोर के तहत महाबोधी मंदिर के आस पास के क्षेत्रों को भी विकसित किया जाएगा. वहीं, आगे राकेश कुमार ने बताया कि विदेशी पर्यटकों का ठहराव नहीं होता है. महाबोधी दर्शन के बाद सीधे वाराणसी चले जाते थे जिससे पर्यटन उद्योग पर असर पड़ता था. कॉरिडोर का निर्माण हो जाने से पर्यटकों की सुविधा के साथ-साथ स्थानीय पर्यटन व्यवसाय और उद्योग को बढ़ावा मिलेगा.
बता दें कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को बजट में कहा कि काशी विश्वनाथ की तरह महाबोधि मंदिर में भी कॉरिडोर बनया जाएगा. साथ ही बिहार में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की मंजूरी मिली है.
विशेष धार्मिक महत्व है गया शहर का
बता दें कि बोधगया का महाबोधी मंदिर बौद्ध धर्मों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थान है. जहां अमेरिका, थाईलैंड, जापान, म्यांमार, श्रीलंका सहित दर्जनों देशों के बौद्ध श्रद्धालु और बौद्ध भिक्षु यहां आते हैं. बौद्ध धर्मों के लिए यह प्रमुख स्थान है. वहीं, विष्णुपद मंदिर हिंदू सनातन धर्मावलंबियों के लिए काफी महत्वपूर्ण है. जहां देश के विभिन्न राज्यों और विदेशों से भी हिंदू सनातन धर्मावलंबी यहां आकर अपने पितरों का उद्धार के लिए पिंडदान, तर्पण और कर्मकांड करते हैं.