रतन वर्मा की जिंदगी की कहानी भी एक संघर्षशील योद्धा से कम नहीं है
(6 जनवरी, प्रख्यात कथाकार रतन वर्मा के 75 वें जन्मदिन पर विशेष)
हिंदी साहित्य को समर्पित प्रख्यात कथाकार रतन वर्मा की जिंदगी की कहानी भी एक संघर्षशील योद्धा से कम नहीं है । अपनी उम्र के 75 वें वर्ष में दस्तक देने के बावजूद उनका मन - मस्तिष्क आज भी एक नई कहानी के पात्रों की तलाश में लगा रहता है। हाथों की अंगुलियां जबाब दे दी हैं, लेकिन एक नवोदित रचनाकार की तरह ही उन्हें तल्लीन ही पाता हूं। एक साहित्यिक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि ' हर रचनाकार अपनी प्रत्येक रचना के साथ नवोदित होता है'। उन्होंने यह बात बिल्कुल अपने लंबे साहित्यिक तजुर्बे के आधार पर कहा था । मैं उन्हें उनकी हर एक नई कृति के साथ एक नवोदित कथाकार के रूप में पाता हूं। आज के साहित्यकारों को उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से बहुत कुछ सीखने, अनुकरण और आत्मसात करने की जरूरत है। उनकी एक से बढ़कर एक सैकड़ों कृतियां बीते चालीस - बियालीस वर्षों में अनगिनत पाठकों के दिलों - दिमाग में दस्तक दे चुकी हैं। इन तमाम उपलब्धियां के बावजूद उनका हर कृति के साथ नवोदित होना, उन्हें सबसे अलग करता है। साथ ही उनकी सहजता और विनम्रता को भी प्रदर्शित करता है।
हिंदी साहित्य के सुधि पाठकों को यह जानना चाहिए कि रतन वर्मा की हर एक कृति एक नई राह तलाशती नजर आती हैं। उनकी कृतियां जीवन के अर्थ को समझाने का प्रयास भी करती हैं। उनकी नई राह की तलाश की कोई सीमा नहीं है। उनकी कहानियां एक के बाद एक नई राह की ओर स्वत: नदी की धार की बढ़ रही होती है। साथ ही उनकी कहानी समाज को एक नई राह व दृष्टि भी दिखाती नजर आती हैं।
रतन वर्मा जितने अच्छे कहानीकार हैं, उतने ही पारंगत कवि भी हैं। उन्होंने दोनों ही विधाओं पर जमकर लिखा है। उनका ज्यादातर गद्य पक्ष ही आम पाठकों तक पहुंच पाया है। उन्होंने पद्य पक्ष को छुपाकर क्यों रखा है ? यह तो वही जाने । उनकी कविताएं जब कभी सोशल मीडिया पर नज़र आ जाती हैं । उनकी कविताओं पर पाठकों की जबरदस्त सराहना भी मिलती रहती हैं। उनकी कविताएं बहुत ही सहजता और सरलता के साथ अपने भावों को कह गुजरती हैं । उनकी हर एक कविता एक नए अंदाज और नूतनता से ओतप्रोत होती हैं। यही कारण है कि उनकी समग्र रचनाएं देशभर में बहुत ही चाव के साथ पढ़ी और सराही जा रही हैं । उनकी कृतियां एक ओर जीवन के संघर्ष से जूझती नजर आती हैं, वहीं दूसरी ओर जीवन के झंझावातों से मुकाबला करने की भी ताकत देती है ।
रतन वर्मा के जीवन की विविधता, संघर्ष और उनकी संवेदना ही उन्हें एक कहानीकार निर्मित करती है। रतन वर्मा ने जिन मूल्यों और सिद्धांतों को अपनी कृतियों में स्थापित किया, उन मूल्यों और सिद्धांतों पर स्वयं खरा उतरने का हर संभव प्रयास भी किया है। उनकी दृष्टि की परिधि बड़ी व्यापक है। समाज के बदलते परिदृश्य, एक - दूसरे को मात देने की दौड़, परिवार के बनते बिगड़ते रिश्ते, वोट की राजनीति, और सत्ता की स्वार्थ युक्त राजनीति पर वे चुप नहीं बैठते, बल्कि अपनी कहानियों के माध्यम से समाज में नव जागरण पैदा करते हैं। उनकी कहानियां यथार्थ की भूमि पर को स्पर्श करती नजर आती हैं । समाज के यथार्थ को उसी रूप में प्रस्तुत करने में भी वे सफल होते दिखते हैं। इसके साथ ही उन्होंने बाल मनोविज्ञान आधारित कई यादगार कहानियां भी लिखी हैं। वे बाल मनोविज्ञान पर लिखी कहानियों के माध्यम से लोगों को उनके बालपन के दिनों की याद करा जाते हैं। उनसे बातचीत के दरमियान उनके बालपन व बालमन को समझा जा सकता है।
उनकी एक चर्चित कहानी 'बबूल' है। बबूल कहानी, गांव की एक युवती रैना के इर्द-गिर्द घूमती है। रैना के जीवन संघर्ष और शोषण के खिलाफ कथाकार आवाज भी बुलंद करते नजर आते हैं। इस कहानी के 'बबूल' शीर्षक नामकरण के पीछे भी जीवन के झंझावातों के संघर्ष छुपे हैं । एक के बाद एक सामूहिक दुष्कर्म की घटनाएं घट रही है। जो नृशंसता की सारी हदें पार करती चली जा रही है। उसके खिलाफ रैना जोरदार आवाज लगाती नजर आती है। रैना, स्त्री जाति को नृशंसता के खिलाफ उठ खड़े होने का आह्वान करती हैं।
आज की बदली परिस्थिति में जहां चंहुओर भौतिकतावाद का बोलबाला है। अपने देखते ही देखते पराए बन जाते हैं । हर तरह रिश्ते तार-तार हो रहे हैं। इस विषय को केंद्र में रखकर उनकी एक कहानी "रिश्तों का गणित" है। यह कहानी रिश्तों के तार - तार होते विद्रूप रूप से पर्दा हटाते हुए बड़ी बात कहने की कोशिश की गई हैं। रिश्तो का गणित की नायिका रश्मि एक ब्राह्मण परिवार से आती हैं। रश्मि एक कुर्मी जाति के लड़के संतोष से प्रेम कर लेती हैं। दोनों अपने - अपने परिवार की मर्जी के खिलाफ शादी कर लेते हैं। दोनों का अपने - अपने परिवार से रिश्ते टूट स जाते हैं। रश्मि और संतोष दोनों कड़ी मेहनत से नौकरी प्राप्त कर लेते हैं। समाज में अपनी हैसियत भी मजबूत कर लेते हैं । पिता की मृत्यु के पश्चात संतोष का अपने भैया - भाभी से मिलना होता है । संतोष की बड़ी हैसियत से परिवार के सभी लोग खुश होते हैं। भाभी, देवर से खर्च करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ती है । जब संतोष का रश्मि के साथ पैतृक भूमि पर बार-बार आना - जाना होता है तो संतोष की भाभी इसे दूसरे अर्थ में ले लेती है । उसे डर सताने लगता है कि कहीं संतोष और रश्मि पैतृक संपत्ति में आधा हिस्सा ना मांग ले। अपनी दीदी के मुख से जब यह सच जानती है तो रश्मि को बहुत दुख होता है । दूसरे दिन संतोष से विचार-विमर्श कर उसके हिस्से की आधी संपत्ति भैया के नाम कर दोनों चले जाते हैं। रिश्तो का गणित कहानी के माध्यम से कथाकार ने रिश्तो के तार तार होते संबंधों को बिल्कुल उसी रूप में प्रस्तुत किया है। कहानी इतनी जीवंत प्रतीत होती है कि लगता है कि यह हमारे आसपास की ही घटना है। रैना और संतोष कहीं आस-पास ही विद्यमान है। रिश्ते को आज लोग नफा - नुकसान अथवा लाभ - हानि के गणित से तौल रहे हैं । जहां भावना की कोई कद्र दिखती नहीं है । एक तरफ भाभी का पैतृक संपत्ति पर पूरा मालिकाना हक जताना तो दूसरी तरफ देवर के अंतरजातीय विवाह कर लेने उसे पैतृक संपत्ति से बेदखल कर देने की बात सामने आती है । लेखक यहां पर यह भी सवाल खड़ा करते हैं कि अगर संतोष जातीय विवाह करता तो क्या उसकी भाभी उसे पैतृक संपत्ति से बेदखल होने की बात कहती क्या अंतर्जातीय विवाह का कर संतोष ने बहुत बड़ा गुनाह कर लिया ? जिस कारण उसे पैतृक संपत्ति से दूर रहने की बात कही गई है। इंसान जीवन संघर्ष से जितना भी पीछा छुड़ाना चाहता है, जीवन संघर्ष के कांटे पीछा छोड़ते ही नहीं। हर व्यक्ति के जीवन से संघर्ष का बड़ा गहरा नाता होता है । रतन वर्मा जीवन के इस संघर्ष को अपनी कहानियों में पूरी तरह उड़ेल कर रख दिया है। उनकी कहानियों के पात्र जीवन संघर्ष से भागते नहीं बल्कि जूझते हैं, और अंत में सफल भी होते हैं।
'घराना", "हैप्पी क्रिसमस", 'मारिया", "जूठन", "वेतन का दिन", "डाल से बिछड़ी सूरजमुखी", "घोंचू", '"अपराजिता", "मेरा सहयात्री", "कबाब,' 'अंततः', 'हरिश्चंद्र का पुनर्जन्म'' 'सस्ती गली' 'गुलाबिया' 'दस्तक' आदि कहानियां सामाजिक यथार्थ के धागों से बुनी गई है। जिसमें दैहिक भूख, रिश्ते, बिछुड़न, संघर्ष, पराजय, अपराजय, पीड़ा और संघर्षरत लोगों के स्वर साफ सुनाई देते हैं। ये कहानियां परिवर्तन की मांग करती है, जो परिस्थितियों से मुकाबला कर आगे बढ़ना चाहती है। हर एक कहानी एक नई बात कहने के साथ जीवन संघर्ष से मुकाबला करने की ताकत प्रदान करती है । उनकी कलम कहानियां तक ही सीमित नहीं रही है बल्कि उन्होंने कई महत्वपूर्ण उपन्यासों के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने का भी काम किया है । वे अभी देश के पौराणिक पात्रों को लेकर उपन्यास लिख रहे हैं। 42 साल के लेखकीय जीवन में उन्हें राष्ट्रीय स्तर के कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से नवाजा गया है।