सांस्कृतिक हमले के विरुद्ध उठ खड़े होने की जरूरत है : सुनील बादल
आज देश में जो भी जघन्य अपराध व अमानवीय विभत्स घटनाएं घट रही हैं, इनका संबंध सीधे तौर पर इन सांस्कृतिक हमले से है । इस महत्वपूर्ण विषय को लेकर झारखंड के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार सुनील बादल ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण आलेख 'सुरक्षा ही नहीं, सांस्कृतिक हमले का भी विरोध हो' शीर्षक से लिखा है। उन्होंने उक्त आलेख में कई महत्वपूर्ण बिन्दुओं को उठाया है।

आज भारत की संस्कृति पर जिस तरीके से हमले हो रहे हैं, इसके खिलाफ संपूर्ण देशवासियों को उठ खड़े होने की जरूरत है । इस सांस्कृतिक हमले से देश की भाषा, रीति - रिवाज, रहन-सहन, खान-पान, आम जन की दैनंदिन की चर्या पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है । फलस्वरुप आज देश में जो भी जघन्य अपराध व अमानवीय विभत्स घटनाएं घट रही हैं, इनका संबंध सीधे तौर पर इन सांस्कृतिक हमले से है । इस महत्वपूर्ण विषय को लेकर झारखंड के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार सुनील बादल ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण आलेख 'सुरक्षा ही नहीं, सांस्कृतिक हमले का भी विरोध हो' शीर्षक से लिखा है। उन्होंने उक्त आलेख में कई महत्वपूर्ण बिन्दुओं को उठाया है। उन्होंने दर्ज किया है कि देशभर में एक के बाद एक जघन्य अपराधिक घटनाएं जन्म लेती चली जा रही हैं । ऐसी अमानवीय विभत्स घटनाओं पर विरोध में स्वर भी फूट रहे हैं । देश में कड़े कानून के बावजूद एक के बाद एक महिलाएं ऐसी घटनाओं का शिकार बनती चली जा रही हैं।
आखिर इतने सख्त कानून के बावजूद ऐसी घटनाएं क्यों नहीं रूक रही हैं ? यह बड़ा अहम सवाल है । उन्होंने दर्ज किया है कि 'कोलकाता में एक अध्यनरत चिकित्सा छात्रा की नृशंस हत्या ने पूरे देश को आंदोलित कर दिया है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के व्यापक कवरेज से लेकर राजनीति तेज हो गई है।' आज कोलकाता रेप मर्डर कांड को लेकर संपूर्ण देश उत्ठ खड़ा हुआ है । महिलाओं की सुरक्षा देश हित और विकास के लिए बहुत जरूरी है। आज भारत का संविधान महिला और पुरुष को एक समान अधिकार प्रदान करता है। देश की अधिकांश महिलाएं घर गृहस्थी संभालती देखीं जाती हैं। वहीं पुरुषों को नौकरी व अन्य व्यवसाय पेशे से जुड़कर धनोपाजर्न करते देखे जाते हैं। आज की बदली परिस्थिति में कई महिलाएं घर की चौखट लांघकर हर क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं । यह देश की महिलाओं के लिए एक अच्छी खबर है।
केंद्र की सरकार के साथ देश के सभी राज्यों की सरकारें भी महिलाओं के बेहतरी के लिए काम कर रही हैं । झारखंड सरकार भी मंईयां सम्मान योजना के तहत झारखंड की 21 से 50 वर्ष तक की महिलाओं को हर साल बारह हजार रुपए देने का देने की घोषणा की है। इस तरह की महिलाओं के उत्थान के लिए कई योजनाएं चल रही हैं। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कई कड़े कानून हैं । इसके बावजूद महिलाएं नृशंसता का शिकार बनती चली जा रही हैं। यह बेहद ही चिंता की बात है ।
महिलाओं की सुरक्षा के साथ किसी भी तरह का खिलवाड़ न हो, सरकार सख्त भी है। फिर भी महिलाओं के खिलाफ होने वाली अपराधी घटनाएं रुक नहीं रही है। महिलाओं सुरक्षा को लेकर और भी सख्त कानून बनाने की दिशा में देश की सरकार को काम करना चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार सुनील बदल ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर देशवासियों से आग्रह किया है इस तरह के मुद्दे पर बिल्कुल ही राजनीति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने आश्चर्य प्रकट किया है कि कोलकाता रेप मर्डर केस की घटना के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस घटना के विरोध में रैली निकाली ।
अब सवाल यह उठत है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एक महिला है । वह स्वयं एक संवैधानिक पद पर है। उन्हीं की राज्य में ऐसी अमानवीय नृशंस घटना घट जाती है। वह खुद सड़कों में निकल कर इस घटना का विरोध कर क्या जताना चाहती है। यह विरोध पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का एक राजनीतिक ड्रामा नहीं है तो क्या है ? उनका दायित्व बनता है कि राज्य की हर एक महिला की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए । लेकिन ऐसा करने में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पूरी तरह नाकाम रही है । इस घटना को लेकर देश की सर्वोच्च न्यायालय लेने सीधे तौर पर संज्ञान लिया और इस घटना के लिए आरजी कॉलेज, पुलिस प्रशासन और राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
ऐसी अमानवीय नृशंस घटना के विरोध में कोलकाता सहित संपूर्ण देश आंदोलन रत है । देश भर में कोलकाता रेप मर्डर केस के विरोध में कैंडल मार्च निकाले जा रहे हैं। धरना प्रदर्शन भी किए जा रहे हैं । सुनील बादल ने महिला सुरक्षा को लेकर एक बहुत ही उम्दा बातें दर्ज की हैं कि 'वैदिक काल में भी अपवाद के रूप में महिलाओं के शोषण की बड़ी घटनाएं हुई थी। जिसकी परिणीति रामायण और महाभारत के रूप में देखते हैं । पर सामान्यत: सीताराम, कुंतिनंदन, राधेय जैसे संबोधन और स्वयंवर जैसी परंपराएं बताती हैं कि महिलाओं की सामाजिक स्थिति क्या थी ? अर्थात भारत की धरती महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के गौरवशाली इतिहास से जुड़ी रही थी। मध्ययुगीन कालखंड में भारत में विदेशी हमलावरों से महिलाओं को बचाने के लिए बाल विवाह, चोरी छिपे रात्रि कालीन विवाह और बच्चों के कान नाक में छिद्र तथा बच्चियों में गोदना की परंपरा चल पड़ी थी। पर्दा प्रथा तथा धर्म और प्राणों की रक्षा के लिए पलायन की बड़ी घटनाएं घटी और भयभीत आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग अपनी आधी आबादी को घरों में बंद करने लगा जो आजादी के पहले तक के साहित्य में मिलता है।'
इसके साथ ही बीते सैकड़ो वर्ष पूर्व विदेशी आक्रांताओं ने भारतीय स्त्रियों को एक वस्तु की तरह लूटा था । फलस्वरूप स्त्रियों को बचाने के लिए गोदना, पर्दा प्रथा का और नाक - कान छिद्र प्रथा प्रारंभ हुई थी । इस कारण आधी आबादी को घर में रहने के लिए बाध्य होना पड़ा था । इस प्रसंग में विचारणीय पहलू यह है कि महिलाओं की सुरक्षा के साथ भारत की संस्कृति पर जो नित हमले हो रहे हैं, उस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की जरूरत है। अन्यथा भारत अपनी सांस्कृतिक पहचान को धीरे-धीरे खोता चला जाएगा ।
देश की आजादी के पूर्व देश के रहन-सहन, रीति रिवाज, खान-पान और व्यक्ति के दैनंदिन की चर्या से आज की तुलना में काफी भिन्न थी। तब लोग आज से ज्यादा स्वस्थ थे । शांतिपूर्वक मिलजुलकर जीवन जीते थे । देश में इतनी अशांति नहीं थी। ज्यादातर महिलाएं घर में ही रहकर गृहस्थी का काम देखा करती थीं। बहुत कम महिलाएं नौकरी पेशा में थी। तब आज की अमानवीय घटनाएं न के बराबर घटित हुआ करती थी । आजादी के बाद देश विकास की बुलंदियों को छूता चला जा रहा है। प्रति व्यक्ति आय में काफी वृद्धि हुई है । देश की जीडीपी काफी बढ़ा है । विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था वाला देश भारत बन चुका है । इन तमाम उपलब्धियां के बावजूद हमारा समाज कितनी नृशंसता की ओर बढ़ता चला जा रहा है, बेहद चिंता की बात है। छोटी-मोटी घटनाएं फसाद का रूप ले लेती हैं। आए दिन जाति ,धर्म, क्षेत्र और भाषा के नाम पर देंगे होते रहते हैं।
आरक्षण को लेकर 21 अगस्त को देशव्यापी बंद के आह्वान के दौरान आमजन को कितनी परेशानियां हुई, जिसे समझा जा सकता है। भारत बंद के कारण धनबाद की एक बच्ची को अपनी जान तक गंवानी गई । यह सब क्या है ? इन तामम घटनाओं पर गौर करने पर यह बात खुलकर सामने आती हैं कि भारत को अशांत करने की एक जबरदस्त साजिश देश के भीतर चल रही है । इसी साजिश के तहत हमारी संस्कृति पर हमले हो रहे हैं। आज लोग इतने क्रूर क्यों बनते चले जा रहे हैं ? हमारी बोलचाल भाषा बिल्कुल बिगड़ती चली जा रही है । बात-बात पर हम सब मरने और मारने के लिए उतरू हो जाते हैं ।
इस संदर्भ में सुनील बादल ने कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं की ओर देशवासियों का ध्यान आकृष्ट कर दर्ज किया है कि चलचित्र और टीवी चैनलों पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों से समाज पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। ध्यातव्य है कि भारत में चलचित्र की स्थापना दादा साहेब फाल्के ने रखा था । दादा साहब फाल्के ने समाज में जागृति लाने के लिए कई यादगार मूक फिल्मों का निर्माण किया था । तब हमारे देश में ऐतिहासिक पुरुषों के चरित्र पर फिल्में बना करती थी। देश की आजादी में इन फिल्मों का जनमानस पर बहुत ही अनुकूल प्रभाव पड़ा था । आजादी के बाद जैसे-जैसे भारत का चलचित्र समृद्ध होता गया, फिल्मों में क्रूरता, हिंसा और सेक्स विवाहेत्तर संबंधों पर आधारित फिल्में बनने लगी। टीवी चैनलों पर ऐसे ऐसे धारावाहिकों का प्रसारण होना प्रारंभ हुआ, जिसमें विवाहेत्तर संबंधों पर आधारित अश्लील दृश्यों का बढ़ना कदापि उचित नहीं है।
आज हमारे गीत और संगीत के क्षेत्र में भी काफी गिरावट आई है। संगीत शोरगुल का हिस्सा बन चुका है । अश्लील गाने लिखे जा रहे हैं। जबकि पांच दशक पूर्व तक देशभक्ति गीत रचे जाते थे। आज भी इन गीतों को सुनकर मन तृप्त हो जाता है। यही फिल्म इंडस्ट्रीज एक जमाने में रानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर फिल्म बनाती थी । आज इसी देश में ब्लू फिल्मों की सुपरस्टार सनी लियोन को भारतीय सिनेमा में एक नायिका के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रगतिशीलता के नाम पर फिल्मों में ऐसे अश्लील दृश्य दिखाए जाते हैं, जिसे परिवार के साथ देखना सभी को नागवार गुजर जाता है।
इसलिए देशवासियों को इस सांस्कृतिक हमले से देश को बचाना होगा । ऐसी फिल्मों और टीवी चैनलों पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों का बहिष्कार करना होगा, जिससे समाज में क्रूर हिंसा अश्लीलता फैलती हो। भारत सरकार सहित देश के सभी राज्यों की सरकारों को इस मुद्दे पर गंभीरता पूर्वक विचार करने की जरूरत है। महिलाएं की सुरक्षा से जुड़ी ये बातें अलग जरूर लगती हैं, लेकिन इसके तार सांस्कृतिक हमले से जुड़ी हुई है। कोलकाता रेप मर्डर केस में मुख्य आरोपी इस नृशंस घटना को अंजाम देने से पूर्ण अश्लील फिल्म मोबाइल पर देखा था।