श्रद्धांजलि : तबला ने एक श्रेष्ठतम उस्ताद जाकिर हुसैन को खो दिया
उस्ताद जाकिर हुसैन की उंगलियां तबला पर जब थिरकती थी, उससे उत्पन्न लयबद्ध को सुनकर लोग खो जाते थे।
भारत ने एक लब्ध प्रतिष्ठित तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन साहब को हमेशा हमेशा के लिए खो दिया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तबला वादन कर भारत का नाम गौरांवित किया । उनकी बनाई धुने सदा गूंजती रहेगी। एक कालजई व अमर धुन के रूप में सदा लोगों को आनंदित करती रहेगीं । उनका इस तरह अकस्मात जाना एक अपूरणीय क्षति के समान है। उनका संपूर्ण जीवन तबला वादन को समर्पित रहा था। उस्ताद जाकिर हुसैन की उंगलियां तबला पर जब थिरकती थी, उससे उत्पन्न लयबद्ध को सुनकर लोग खो जाते थे। तबला तो अभी है, लेकिन जाकिर हुसैन की कलात्मक उंगलियां अब उस पर कभी थिरक नहीं पाएगी ।वे जिस अंदाज में मंचों पर अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करते थे, लोग वाह-वाह किए बिना नहीं रह पाते थे। वे निरंतर तबला वादन के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग करते रहते थे। इसके साथ ही वे तबला वादन की पुरानी परंपरा के धुन को पाश्चात्य धुन के साथ मिलकर प्रस्तुत करने वाले विश्व के पहले तबला वादक रहे थे। वे स्वयं में तबला वादक के एक विश्वविद्यालय बन चुके थे। वे तबला वादन के साथ नए तबला वादकों को भी प्रशिक्षित किया करते थे । विश्व भर में हजारों की संख्या में शिष्य उनसे की सीख ले रहे थे।
जाकिर हुसैन साहब जितने बड़े तबला वादक थे, वे उतने ही सहज सरल प्रकृति के व्यक्ति थे । हमेशा मुस्कुराकर लोगों से मिलते थे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इतनी ख्याति अर्जित कर लेने के बावजूद उनमें रत्ती भर भी घमंड नहीं था। वे हमेशा छोटे से छोटे तबला वादक कलाकारों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करते रहते थे। उनका जन्म मुंबई के एक प्रख्यात प्रतिष्ठित तबला वादक घराना में 9 मार्च 1951 में हुआ था। उनकी मृत्यु 15 दिसंबर 1924 को सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में हुई। वे इस धरा पर लगभग 73 वर्षों तक जीवित रहे थे। वे प्रख्यात तबला वादक अल्लाह रक्खा के सबसे बड़े पुत्र थे । उन्होंने तबला वादन की सीख अपने पिता अल्लाह रक्खा से ही लिया था। अल्लाह रक्खा उनके पिता के साथ गुरु भी थे। अल्लाह रक्खा और जाकिर हुसैन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कई बार संयुक्त रूप तबला वादन कर हजारों तबला प्रेमियों का दिल जीत लिया था।
जाकिर हुसैन साहब का बचपन से ही संगीत की ओर रूचि थी । चूंकि घर में माहौल संगीत का ही था। इस माहौल ने उन्हें संगीत की ओर जाने के लिए और भी प्रेरित किया था। वे बचपन से ही एक कला प्रेमी थे। उनके पिता अल्लाह रक्खा ने जाकिर हुसैन को तबला के प्रति उसकी निष्ठा और उंगलियों को तबला पर थिरकते हुए जब देखा था, तब उन्होंने यह बात कही थी कि 'जाकिर हुसैन आने वाले दिनों में भारत ही नहीं अपितु विश्व का सर्वश्रेष्ठ तबला वादक बनेगा।' यह बात आगे चलकर सच साबित हो गई। जाकिर हुसैन ने अपनी प्राथमिक शिक्षा मुंबई के माहिम में सेंट माइकल हाई स्कूल से पूरी की थी। उन्होंने मुंबई के ही सेंट जेवियर्स कॉलेज से स्नातक की तक की पढ़ाई पूरी की थी। वे स्कूल और कॉलेज में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया करते थे। जब स्कूल और कॉलेज में होने वाले कार्यक्रमों में तबला वादन करते थे तो छात्रों सहित शिक्षकों की भारी संख्या में भीड़ जुड़ जाती थी।
प्रख्यात तबला वादक जाकिर हुसैन साहब जितने उच्च कोटि के तबला वादक थे, उतने ही अच्छे अभिनेता भी थे ।उन्होंने अपने जीवन काल में कई फिल्मों में भी अभिनय किया था। 'साज' और 'हिट एंड डस्ट' उनकी सबसे लोकप्रिय फिल्मों में एक थी। आज भी उन दोनों फिल्म में उनके किए गए अभिनय का चर्चा होती है। उनकी सबसे हालिया फिल्म 'मंकी मैन' 2000 में रिलीज हुई थी। यह भी एक बेहतरीन फिल्म साबित हुई। चूंकि जाकिर हुसैन तबला वादन के कार्यक्रमों में भारत सहित विश्व के कई देशों में होने वाले कार्यक्रमों में अनुबंधित होते रहते थे । इसलिए वे फिल्मों में अभिनय के लिए ज्यादा समय नहीं दे पाते थे। कई फिल्म निर्माता - निर्देशक उनसे अभिनय के लिए अनुरोध करते रहते थे। लेकिन वे तबला कार्यक्रमों में अनुबंधित रहने के कारण फिल्म के लिए समय नहीं दे पाते थे । अगर वे एक अभिनेता के रूप में फिल्म में अभिनय करते तो शायद इस क्षेत्र में भी परचम लहरा रहे होते।
देशवासियों को याद होगा कि जब देश में दूरदर्शन का शुभारंभ हुआ था, तब जाकिर हुसैन साहब रोजाना दूरदर्शन पर तबला बजाते हुए उपस्थित होते थे । जब उनका कार्यक्रम दूरदर्शन पर आता था, देश भर में लोग उनके तबला वादन कार्यक्रम को देखते थे। देखते ही देखते वे देश के सर्वश्रेष्ठ तबला वादक के रूप में लोकप्रिय हो गए थे। देश भर में होने वाले बड़े-बड़े आयोजनों में जाकिर हुसैन साहब अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करते रहे थे । उन्होंने तबला वादन के क्षेत्र में भारत में परचम लहराने के साथ ही विश्व के कई देशों के बड़े-बड़े स्टेज शो में तबला वादन कर अंतरराष्ट्रीय ख्याति अर्जित किया था । इसी का नतीजा था कि वे देश के कई उपभोक्ता ब्रांडों के ब्रांड एंबेसडर तक बन गए थे।
उनका पारिवारिक जीवन बहुत ही सु मधुर रहा। उन्होंने कथक नृत्यांगना और शिक्षिका एंटोनिया मिनेकोला से प्रेम विवाह किया था। दोनों के बीच बहुत ही बेहतर अंडरस्टैंडिंग थी। उनकी दो बेटियां अनीशा कुरैशी और इसाबेल कुरैशी हैं। उनका यह छोटा परिवार हमेशा एक दूसरे से बहुत ही मजबूती के साथ जुड़े हुए थे। जाकिर हुसैन साहब पिछले दस-बारह वर्षों से उच्च रक्तचाप से ग्रसित थे। उनकी दिनचर्या बहुत ही संतुलित थी। उनका खान-पान भी सादा था। लेकिन बढ़ती उम्र के प्रभाव को कोई रोक भी नहीं सकता था वे नियमित दवाइयां भी लेते थे । इसके बावजूद रोग उनको अपनी पकड़ में लेता गया था। इधर कुछ वर्षों से हृदय संबंधी विकारों से भी ग्रसित हो गए थे। जिस कारण वे इन दोनों कार्यक्रम भी बहुत कम कर पा रहे थे। जीवन और मृत्यु तो भगवान के हाथों में है l 2024 का 15 दिसंबर उनके जीवन के आखिरी दिन के रूप में उपस्थित हुआ और वे सदा सदा के लिए हम सबों को छोड़कर चले गए। जाकिर हुसैन साहब ने अपने जीवन काल में जो तबला वादन किया, सदा उसकी आवाज़ गूंजती रहेगी और तबला वादकों को मार्ग प्रशस्त करते रहेंगी।
तबला वादक जाकिर हुसैन साहब को भारत सहित विश्व के कई देशों से तबला वादन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया। भारत सरकार ने भी जाकिर हुसैन साहब को पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किया था। देश के जाने-माने उद्योगपति हर्ष गोयनका ने जाकिर हुसैन के अकस्मात निधन पर अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि 'दुनिया खामोश हो गई है, क्योंकि तबला अपने उस्ताद को खो चुका है। उस्ताद जाकिर हुसैन, एक लयबद्ध प्रतिभा जिसने भारत की आत्मा को वैश्विक मंचों पर पहुंचाया, हमें छोड़कर चले गए। मैं उन्हें एच एम वी के साथ उनके संबंध के माध्यम से जानने और अपने घर पर उनके अविश्वसनीय प्रदर्शन को देखने का सौभाग्य प्राप्त कर चुका हूं। उनकी धुने हमेशा गूंजती र