‘भारत यायावर’ की कृतियां एक ‘रचनावली’ की मांग करती हैं
29 नवंबर, कवि भारत यायावर की 68 वीं जयंती पर विशेष
विजय केसरी:
झारखंड के जाने माने साहित्यकार कवि, संपादक, आलोचक, समीक्षक भारत यायावर की कृतियां एक रचनावली की मांग कर रही है। भारत यायावर का संपूर्ण जीवन साहित्य सृजन और खोज में बीता था। उन्होंने अपने जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण समय महान कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु एवं महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचनावली के निर्माण में लगा दिया था। अपने जीवन के अंतिम दौर में उन्होंने रमणिका गुप्ता की रचनावली को भी पूरा कर लिया था। झारखंड के प्रख्यात कथाकार राधा कृष्ण की रचनावली पर काम कर ही रहे थे, कि उनका निधन हो गया था। उनका मत था कि एक साहित्यकार अपने जीवन में बहुत कुछ रचता है। वह विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपता रहता है। इन पत्र-पत्रिकाओं में उक्त साहित्यकार की कई महत्वपूर्ण रचनाएं छप चुकी होती हैं। जिसका साहित्यिक मूल्यांकन होना बाकी होता है। जब मूल्यांकन का समय आता है, तब तक पत्रिकाओं में छपी उस लेखक की रचनाएं साहित्यकारों, आलोचकों, समीक्षकों और शोधकर्ताओं की पहुंच से दूर हो जाती है। अगर किसी खोजकर्ता व शोधकर्ता ने उस लेखक की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपी रचनाओं को संकलित कर एक रचनावली का रूप प्रदान कर देता है, तब उस लेखक की रचनाएं पुनर्जीवित हो जाती हैं। अब उसकी रचनाएं समय के साथ संवाद करने लगती हैं। अर्थात रचनावली उक्त लेखक की रचनाओं को एक नया जीवन प्रदान कर देता है।
भारत यायावर ने साठ से अधिक पुस्तकों का सृजन किया था। फणीश्वर नाथ रेणु रचनावली एवं महावीर प्रसाद द्विवेदी रचनावली कुल सोलह खंडों में है। शेष उनकी पुस्तकें काव्य संग्रह, आलोचना, समीक्षा एवं विविध साहित्यिक विषयों पर आधारित है । इसके अलावा भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं फेसबुक पर इनकी अनगिनत रचनाएं बिखरी पड़ी हुई हैं। वे नियमित रूप से लिखते थे। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अपनी सामग्रियां भेजा करते थे। अब चूंकि वे इस धरा पर नहीं है। उनका सृजन रुक गया। उनकी सामग्रियां जहां की तहां पड़ी हुई हैं। उनकी कविताएं, आलोचनाएं, समीक्षाएं और हिंदी साहित्य के विविध विषयों पर लिखे लेख बहुत ही महत्वपूर्ण है । उनकी रचनाएं नए लेखकों कवियों, समीक्षकों, संपादकों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं। आज भारत यायावर की रचनाएं एक प्रश्नावली की मांग कर रही हैं।
जब तक भारत यायावर इस धरा पर रहें, सदा गतिशील रहें, सदा रचना रत रहें । साहित्य के अलावा उन्होंने इधर उधर बिल्कुल झांका नहीं। हिंदी साहित्य ही उनके जीवन का सब कुछ था । वे हिंदी साहित्य के इनसाइक्लोपीडिया बन गए थे । हिंदी साहित्य पर क्या कुछ लिखा जा रहा है ? उनके पास बिल्कुल ताजा जानकारी रहती थी । पूर्व के रचनाकारों ने हिंदी साहित्य को किस तरह समृद्ध किया है ? इस पर उनकी टिप्पणी सुनते बनती थी । उनकी बातों को सुनकर प्रतीत होता था कि उन्हें हिंदी साहित्य की कितनी जानकारी थी।
भारत यायावर की प्रकाशित व अप्रकाशित रचनाओं की खोज हिंदी साहित्य के लिए बहुत जरूरी है। भारत यायावर एक तपस्वी की तरह अपना संपूर्ण जीवन हिंदी साहित्य को समर्पित कर दिया था। उन्होंने साहित्य की गहराइयों में जाकर जीवन भर खोज, चिंतन और मनन किया था । उन गहराइयों की खोज को अपनी कलम से लिपिबद्ध भी किया था। उनकी खोज पूर्ण रचनाएं समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती थीं। उनकी कई महत्वपूर्ण रचनाएं हिंदी दैनिक अखबारों में भी छपती रहती थी । वे पिछले लगभग आठ दस वर्षों से फेसबुक पर नियमित रूप से कुछ ना कुछ लिखा करते थे। उनके एक-एक लेख पर सैकड़ों टिप्पणियां आती थीं। अब जरूरत है, उनके लेखों को संकलित कर एक रचनावली का रूप देने की।
भारत यायावर का जन्म हजारीबाग के एक छोटे से गांव कदवा में जरूर हुआ था, लेकिन उनका साहित्यिक संसार बहुत ही विशाल था। उन्होंने प्रांत की सीमा को अपनी विशिष्ट लेखकीय प्रतिभा के बल पर बहुत ही कम उम्र में लांघ दिया था। उन्होंने राष्ट्रीय क्षितिज पर अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई थी। उनकी गिनती देश के एक वरिष्ठ साहित्यकार के रूप में होने लगी थी । उनकी रचनाएं देशभर में पढ़ी जाने लगी। देशभर से उन्हें बड़ी बड़ी गोष्ठियों से आमंत्रण मिलता था । वे इन गोष्ठियों में बहुत ही गर्मजोशी के साथ शिरकत करते थे। इन गोष्ठियों में उनकी साहित्यिक बातों एवं कविताओं को सुनने के लिए लोग दूर दूर से आया करते थे । वे इन गोष्ठियों के मुख्य वक्ता बन जाते थे । उनकी विद्वता पूर्ण बातों की चर्चा आज भी होती है। अपने वक्तव्य की तारीफ सुनकर भारत यायावर कहा करते थे, ‘वक्तव्य दिया, लोग सुने । बातें वहीं खत्म हो जाती हैं। अगर बातें कागज पर दर्ज हो जाती हैं, वही बातें जीवित रह पाती हैं। इसलिए बोलने से कई गुना महत्वपूर्ण है,लिखना।’ आज उनकी कही बातों पर मनन करने से प्रतीत होता है कि वे कितने दूरद्रष्टा थे । उन्होंने बात ही बात में कितनी बड़ी बात कह दी थी। यह बात समाज में कहीं जाती है कि लिखतम के आगे वक्तम नहीं ।
भारत यायावर निश्चित तौर पर एक बड़े साहित्यकार थे । वे एक सहज, सरल, प्रकृति के साहित्यकार थे । जीवन पर्यंत नए लेखकों को प्रोत्साहन करते रहे थे। उन्होंने नए लेखकों को आगे बढ़ाने में कभी भी कोई कोर कसर छोड़ा नहीं। उनसे पढ़ें- सीखे कई साहित्यकार आज राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक रहे हैं। भारत यायावर सभी से समान रूप से प्यार किया करते थे। वे हिंदी के साहित्यकार होने के बावजूद देश दुनिया में विभिन्न भाषाओं में क्या लिखा जा रहा है ? इसका भी व्यापक अध्ययन किया करते थे।
भारत यायावर की पुस्तकों की खासियत यह है कि एक बार जो भी पाठक पढ़ने की शुरुआत करता है, अंत करके ही छोड़ पाता है।
आज उनके जन्मदिन पर उनकी एक महत्वपूर्ण कृति ‘कविता फिर भी मुस्कुराएगी’ कविता संग्रह की विशेष रूप से चर्चा करना चाहता हूं। इस संग्रह में कुल उनहत्तर कविताएं दर्ज हैं। सभी कविताएं विविध विषयों पर लिखी गई हैं। कविताओं के पाठन के उपरांत मैं यह विमर्श कर रहा था कि आखिर भारत यायावर ने इस संग्रह का नामकरण ‘कविता फिर भी मुस्कुराएगी’ शीर्षक कविता को ही क्यों चुना ? इस संग्रह की कविताओं के पाठन से लगा कि उन्हें संपादन की भी बड़ी अच्छी समझ थी । इस संग्रह का नामकरण इससे बेहतर और कुछ हो भी नहीं सकता था।
‘कविता फिर भी मुस्कुराएगी’ कविता के माध्यम से कवि भारत यायावर ने दर्ज किया है। टहनियां सूख जाएंगी/ अपना होने का अर्थ मिट जाएगा/ कविता फिर भी मुस्कुराएगी। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि टहनियां सुख जाएंगी । अपना होने का अर्थ मिट जाएगा। फिर भी कविता मुस्कुराएगी । अर्थात यह जीवन एक वृक्ष के समान है । समय के साथ एक वृक्ष का उदय होता है । समय के साथ वृक्ष पुष्पित और पल्लवित होता है और अपना संपूर्ण आकार ग्रहण करता है । लेकिन एक न एक दिन उसकी टहनियां धीरे धीरे कर सूखती चली जाती है। एक समय ऐसा आता है, जब वृक्ष का अस्तित्व मिट जाता है। लेकिन मनुष्य के जीवन के वृक्ष से निकले उदगार और कर्म कविता के रूप में फिर भी मुस्कुराते रहेंगे । भारत यायावर की पंक्तियां एक जीवन के समान हैं। उनकी पंक्तियां चंद शब्दों के मिलान भर नहीं है, बल्कि मनुष्य का संपूर्ण जीवन है। मनुष्य का जीवन अनंत काल से है। और अनंत काल तक बना रहेगा । कविता का जन्म ना मरने के लिए होता है । कविता की पंक्तियां कालजई होती हैं । कविता अमरता का वरदान लेकर ही पैदा होती हैं। कविता जब भी किसी पाठक के पास पहुंचती हैं। कविता पुनः गतिशील हो जाती हैं। कविता गीता के श्लोकों की तरह सदा साक्षी भाव में रहती हैं। कविता दुःख – सुख दोनों में सदा मुस्कुराती रहती हैं। यही कविता की खूबसूरती है। कविता किसी राजनेता की आलोचना कर रही होती है, तब भी मुस्कुराती रही होती है। कविता जब किसी श्रमिक के बहते पसीने पर अपनी बात कह रही होती है, तब भी कविता मुस्कुराती रही होती है । कवि के लिए कविता एक जीवन के समान है। जीवन के समान निरंतर गतिमान बनी रहती है । जीवन का आना जाना लगा रहता है। लेकिन कविता जीवन के आने जाने से मुक्त होकर कवि के मन के भावों को सदा सदा के लिए अमर बना देती हैं।