पार्टिशन का पोस्टमार्टम…

अंग्रेजों ने 1945 में ही भारत के विभाजन का मन बना लिया था। लेकिन अंतिम वायसराय लार्ड माउंट बेटन तक को भी अंधेरे में रखा था।

पार्टिशन का पोस्टमार्टम…

नवीन शर्मा
आज पाकिस्तान का स्थापना दिवस है। यह वाजिब मौका है थोड़ा पलट कर भारत के विभाजन को देखने जानने व समझने का।
दो साल पहले निर्माता निर्देशक गुरिंदर चड्डा की फिल्म पार्टिशन ने एक तरह से इस दुखती रग पर हाथ रखा था। इन्होंने लैरी कालिन्स और डोमनिक लैपियरे के प्रसिद्ध उपन्यास फ्रीडम एट मिडनाइट के आधार पर यह फिल्म बनाई है। फिल्म बढिय़ा बनी है। किरदारों का चयन भी अच्छा हुआ है। फिल्म की फोटोग्राफी भी बेहतरीन है। इतने गंभीर विषय को पर्याप्त सावधानी तथा संवेदनशीलता से दिखाया गया है।
इसमें दिखाया गया है कि अंग्रेजों ने 1945 में ही भारत के विभाजन का मन बना लिया था। लेकिन अंतिम वायसराय लार्ड माउंट बेटन तक को भी अंधेरे में रखा था। ब्रिटेन के पीएम चर्चिल की भारतवासियों के बारे में अवधारणा अच्छी नहीं थी। इन्हे डर था कि अगर भारत अविभाजित होकर स्वतंत्र राष्ट्र बनता तो वो एशिया कि सबसे बड़ी ताकत होता। चर्चिल का मकसद था कि सोवियत संघ और भारत को अरब देशों के तेल के भंडार तक पहुंच से दूर रखा जा सके। इस जाते-जाते भी देश का बंटवारा कर भारत के भविष्य में पलीता लगा दिया। अंग्रेजों ने अरब देशों और भारत के बीच पाकिस्तान नाम का एक कृत्रिम राष्ट्र बनवा दिया।
ब्रिटेन और अमेरिका जानते थे कि नेहरू जैसे समाजवादी विचारधारा का व्यक्ति अगर स्वतंत्र भारत का प्रधानमंत्री बनेगा तो यह देश मित्र राष्ट्रों का पिछलग्गू नहीं बनेगा। बहुत संभव है वो सोवियत संघ के खेमे में चला जाए। इसलिए उन्होंने देश विभाजन का खतरनाक खेल खेला इसमें जिन्ना और नेहरू एक तरह से मोहरे बन गए। अमेरिका ने भी पाकिस्तान के निर्माण के समय से ही उसे अपने कैंप में रखने के लिए डोरे डाले। वो चाहता था कि सोवियत संघ को पाकिस्तान में पैठ बनाने का मौका ना मिले।

काफी पहले बोए गए थे विभाजन के बीज

मोहम्मद इकबाल जिन्होंने सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा जैसा शानदार देशभक्ति वाला गीत लिखा था, उन्हीं उलमा इकबाल (महान विद्धान) की बुद्धिभ्रष्ट हो गई और उन्होंने ही सबसे पहले भारत के विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना का विचार उठाया था। 1930 में इन्हीं के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने सबसे पहले भारत के विभाजन की माँग उठाई। इसके बाद इन्होंने जिन्ना को भी मुस्लिम लीग में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और उनके साथ पाकिस्तान की स्थापना के लिए काम किया।

विभाजन के कई कारण थे। सबसे बड़ा कारण यह कि 1857 के गदर में हिंदू-मुसलमानों ने मिलकर अंग्रेजी हुकूमत की ऐसी की तैसी कर दी थी काफी मुश्किल से अंग्रेजी सत्ता फिर से स्थापित हुई। इसके बाद से ही अंग्रेजों ने फूट डालो और शासन करो की नीति शुरू की। मुसलमानों में अलगाववाद की भावना को उन्होंने हवा दी। सयैद अहमद जैसे मुस्लिम नेताओं को तरजीह दी जाने लगी।

पृथक मताधिकार और अलग निर्वाचक मंडल
1909 में मुसलमानों के लिए पृथक मताधिकार और अलग निर्वाचक मंडल बना दिए गए। मुसलमानों को उनकी साम्राज्य के प्रति सेवा के इनाम के तौर पर उन्हें उनकी संख्या से अधिक प्रतिनिधित्व दे दिया गया। इस कदम का कांग्रेस को जोरदार विरोध कर आंदोलन चलाना चाहिए था., लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा कुछ नहीं हुआ। जवाहर लाल नेहरू ने भी इसे चाल को पहचाना था। उन्होंने लिखा था कि शताब्दी से चले एकता और मिलने के किए गए सारे प्रयासों को पलट दिया गया। इसके बाद सिखों को 1919 तथा 1935 हरिजनों को भी अलग प्रतिनिधित्व दे दिया गया।

मुस्लिम लीग बना ब्रिटिश हुकूमत का मोहरा

वहीं इसके कुछ साल पहले 1906 में ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना की गई थी। 1909 के इस विनाशकारी निर्णय ने मुस्लिम लीग को अच्छा खाद पानी दिया। धीरे-धीरे मुस्लिम लीग ताकतवर होती गई। मोहम्मद अली जिन्ना शुरू में कांग्रेस के नेता थे। वे राष्ट्रवादी थे लेकिन उन्होंने जब महसूस किया कि नेहरू रहते उन्हें कांग्रेस में सर्वोच्च स्थान नहीं मिलेगा तो उसने अलगाववाद की राह पकड़ ली।
इसके बाद 1942 में क्रिप्स मिशन के समय मुस्लिम बहुल प्रांतों की स्वायत्ता मंजूर कर ली। गांधीजी ने 1944 में जिन्ना से अपनी वार्ता मुस्लिम बहुल प्रांतों के आत्मनिर्णय का अधिकार भी मान लिया। इससे भी आगे जाकर 1946 में कांग्रेस ने इस बात को भी मान लिया कि मुस्लिम बहुल प्रांत अपनी अलग संविधान सभा भी बना सकते हैं। यानि किस्त-दर किस्त ब्रिटिश हुकूमत, मुस्लिम लीग, कांग्रेस और देश के मुसलमानों के बहुमत ने यह तय कर लिया था कि इस देश का विभाजन हो ही जाना चाहिए। इसका सबसे टर्निंग प्वाइंट तब आया जब 1946 के चुनाव में मुस्लिम लीग ने
मुस्लिम प्रतिनिधित्व वाली 90 प्रतिशत सीटें जीत लीं। यानि अब मुसलमानों की सबसे बड़ी प्रतिनिधित्व करनेवाली पार्टी मुस्लिम लीग हो गई थी, और लीग की एक ही मांग थी मुसलमानों के लिए अलग देश। लीग इसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार थी। इसलिए जब कैबिनेट मिशन में मुस्लिम लीग की दाल नहीं गली तो वो शुरू में अंतरिम सरकार में भी शामिल नहीं हुई। बाद में अपने फायदे के लिए शामिल हुई।

कलकत्ता से डायरेक्ट एक्शन का खून-खराबा

पाकिस्तान बनाने की बेताबी में 1946 जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन की बंदूक दाग कर कोलकाता में मुस्लिम लीग के गुंडों को खून-खराबे का लाइसेंस दे दिया। यहां याद दिलाना होगा कि बंगाल में उस समय मुस्लिम लीग की मिलीजुली सरकार थी। इस दंगे की आग देश के अन्य भागों में भी फैली। खासकर पंजाब और बंगाल में दंगों की बाढ़ आ गई। लाखों बेगुनाह लोग मारे गए जिनमें बच्चे,महिलाएं, वृद्ध भी शामिल थे। आखिरकार विभाजन की लकीरें खींच दी गईं।
मैं कभी-कभी सोचता हूं कि मुस्लिम लीग ने कोलकाता में डायरेक्ट एक्शन के नाम पर जो दंगों की श्रृंखला शुरू की थी वो अगर अमेरिका के गृहयुद्ध की माफिक हो जाता तो बेहतर होता। इसमें एक पक्ष इस बात के लिए लड़ता कि देश का विभाजन ना हो। लेकिन दुर्भाग्य से उस समय केवल बेवजह की मारकाट में लाखों लोग मारे गए और देश का विभाजन भी हो गया।
इससे भी अधिक नुकसानदेह यह बात हुई की नफरत और अलगाववाद की बुनियाद पर पड़ोस में जो नया मुल्क बना उससे भारत के रिश्ते पहले दिन से ही तनावपूर्ण रहे। 1947 में पाकिस्तान ने कश्मीर में कबिलाइयों की आड़ में कब्जा किया था। इसके बाद 1965 और 1971 में भी पाकिस्तान के साथ पूर्ण युद्ध हुए। 1971 में पाकिस्तान की करारी हार के बाद बांग्लादेश का निर्माण हुआ। इसके बाद 1999 में करगिल में भी लड़ाई हुई। यानी देश बंट जाने के बाद भी भारतीयों के लिए समस्या हल नहीं हुई बल्कि और जटिल होती चली गई। अभी हाल के वर्षों में भी तनाव बढ़ा और भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी।

दंगे नहीं रुके
वहीं दूसरी तरफ मुसलमानों के लिए अलग देश बन जाने के बाद भी भारत में दंगे नहीं रुके। आजादी के बाद से दर्जनों बड़े सांप्रदायिक दंगे हुए हैं तथा छोटे-मोटे दंगों की संख्या तो सैकड़ों है।
इस तरह से हमारे देश में अलगाव की विषबेल हमेशा ही जीवित रही है और विभिन्न राजनेता तथा कïट्टपंथी धार्मिक नेता अपने फायदे के लिए इसे खाद-पानी देते रहे हैं। ऐसे में अगर हमें अपने देश को सचमुच एक आधुनिक और विकसित राष्ट्र बनाना है तो सांप्रदायिकता के इस जहर को मिटाना होगा। सभी देशवासियों को तहेदिल से यह मानना होगा कि उनका देश सचमुच सारे जहां से अच्छा है और इसके भलाई और विकास में सभी अपना योगदान दें।