रांची प्रेस क्लब : क्या पत्रकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को कायम रख पाएगा?
झारखंड के समस्त पत्रकारों की उम्मीद इस कदर बढ़ गई कि अब पत्रकार हित में रांची प्रेस क्लब एक “मील का पत्थर” साबित होगा, लेकिन अभी तक कि कार्य प्रणाली ने पत्रकारों के( क्लब से जुड़े सक्रिय सदस्यों और पदाधिकारियों को छोड़कर) मंसूबे पर पानी फेरते हुए रांची प्रेस क्लब को सिर्फ “कस्तूरी मृग” ही साबित किया है । सही मायने में आज कृष्ण बिहारी मिश्र झारखंड के पत्रकार जगत में किसी परिचय के मोहताज नहीं है। प्रदेश में जो भी पत्रकारिता से लंबे अरसे से जुड़े हैं वो इनका नाम काफी सम्मान से लेते हैं। भले ही वैचारिक मतभेद हो, लेकिन पत्रकारिता के धर्म को निभाने के लिए इनके कलम को सभी सलाम करते हैं । हां सरकार को आड़े हाथों लेने पर इनके ऊपर कई बार उंगलियां भी उठी, कई बार केस की धमकी मिली और इन पर केस भी दर्ज हुए। फिर भी इन्होंने अपने कलम को मजबूती से थामे रखा और अपने पत्रकारिता धर्म के प्रति अपनी ईमानदारी को डिगने ना दिया। ऐसा भी समय आया जब इन्हें कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ा । आर्थिक मजबूरियों ने इन्हें चारों ओर से घेर लिया। लेकिन किसी ने सच ही लिखा है “सत्यमेव जयते” ।सत्य की विजय होती है और आर्थिक मजबूरी के क्रम में ही इनके दो पुत्रों ने अपने पिता के दिए हुए संस्कारों और शिक्षा की बदौलत केंद्र सरकार में नौकरी ले ली । ये दोनों पुत्र श्री कृष्ण बिहारी मिश्र को अपना गुरु भी समझते हैं और अपने पिता को इन्होंने गुरुदक्षिणा स्वरूप इनके कलम में आजीवन रोशनाई भरते रहने का वचन दिया है और बख़ूबी इसे निभा भी रहे हैं। आर्थिक और मानसिक परीक्षा से गुजरने के बाद इनका मनोबल और भी मजबूत हो गया और इनके कलम ने भ्रष्टाचार और व्यभिचार के प्रति आक्रोश उगलना और तेज कर दिया। चाहे वह सत्ता में बैठे हुक्मरान हो या फिर अपने ताकत के बल पर समाज में दंभ भरने वाले व्यभिचारी। किसी को इन्होंने नहीं बख्शा। हालांकि कहने वाले तो इन्हें मानसिक विक्षिप्त और इनकी लेखनी को “कुकृत्य” तक कह डाले।
रांची प्रेस क्लब जो कि पत्रकारों के हित और समस्या को लेकर अपने आपको सजग पेश करता रहता है! क्या पत्रकार हित में वाकई खड़ा जान पड़ता है? चाहे सब जो बोले, मुझे तो नहीं लगता! जहां तक पत्रकारों की समस्या का सवाल है कोई भी पत्रकार अपने दिल पर हाथ रख कर प्रेस क्लब के भरोसे नहीं रह सकता है। ऐसे संस्थान का क्या काम? ऐसा संस्थान किस काम का है? आखिर में रांची प्रेस क्लब का गठन किस लिए किया गया? पत्रकारों की रोजी रोटी चलाने के लिए या फिर पत्रकारों की कलम को ताकत देने के लिए! यदि पत्रकारों की रोजी रोटी चलाने की ही बात थी तो सरकार एक फैक्ट्री खोल कर पत्रकारों को दे देती जहां पत्रकारों की सारी जरूरतें पूरी हो जाती , रोजमर्रा के जीवन में काम आने वाली और जीवन निर्वहन के सारी जरूरतें पूरी हो जाती । रांची प्रेस क्लब एक संस्था है, पत्रकारिता का संस्था। पत्रकारिता के धर्म का प्रेस क्लब को मंदिर भी कहा जा सकता है, जहां सभी पत्रकार अपने पत्रकारिता धर्म की उपासना कर सकें। जिस तरह से डॉक्टरों के लिए अस्पताल एक मंदिर है, जिस तरह से वकील के लिए न्यायालय एक मंदिर है ठीक उसी तरह से पत्रकारों के लिए प्रेस क्लब एक मंदिर है, जहां वे पत्रकारिता धर्म की पूजा कर सके, अपने कलम के साथ ईमानदारी बरतने की साधना कर सकें। मैं झारखंड के तमाम पत्रकारों से पूछना चाहता हूं कि श्री कृष्ण बिहारी मिश्र ईमानदार पत्रकार नहीं हैं क्या? ईमानदारी और सच्चाई के मामले में क्या उन पर उंगली उठाई जा सकती है? और यदि वे ईमानदार पत्रकार हैं तो ऐसी क्या वजह है जो आज उन्हें इस्तीफा देना पड़ा? और यदि विषम परिस्थितियां थी, तो क्या प्रेस क्लब के सदस्यों का धर्म नहीं बनता है कि कृष्ण बिहारी मिश्र जैसे पत्रकारों को प्रेस क्लब से सदैव जोड़े रखें, ताकि कहीं से भी यदि कुछ गलत होता है तो उस पर उंगली उठाई जा सके। एक संस्था होने के नाते प्रेस क्लब को व्यक्तिगत विचारधारा से ऊपर उठकर सोचना चाहिए। रांची प्रेस क्लब के पास साहसी, ईमानदार और बेबाक पत्रकार के रूप में एक अद्भुत शस्त्र मौजूद था। आज रांची प्रेस क्लब ने अपना सबसे मजबूत शस्त्र खो दिया। जिसके सहारे पत्रकारिता के स्तंभ को मजबूती दी जा सकती थी। झारखंड में पत्रकारिता को गौरवान्वित किया जा सकता था।
-
- सोशल मीडिया पर इनके इस्तीफा प्रकरण पर मिलीजुली प्रतिक्रिया लगातार आ रहे हैं। कई ने कहा कि इस्तीफा समस्या का समाधान नहीं है, उन्हें इस्तीफा नहीं देना चाहिए। कई ने उनके इस्तीफे को गलत फैसला भी करार दे दिया। सबके अपने-अपने स्वतंत्र विचार हैं। बकौल श्री कृष्ण बिहारी मिश्र- कुरीतियों के खिलाफ एक पत्रकार की लड़ाई में प्रेस क्लब सहायक भले ही हो सकता है, लेकिन लड़ाई की निर्भरता प्रेस क्लब पर ही टिकी नहीं रह सकती। इसलिए सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए उन्हें प्रेस क्लब का सदस्य बने रहना आवश्यक नहीं है। उनकी लड़ाई तो इन कुरीतियों से आखरी सांस तक चलती रहेगी। कृष्ण बिहारी मिश्र के अनुसार कठिन से कठिन विषम परिस्थितियों में भी उनकी कलम की धार कम नहीं हुई और न आने वाले समय में कभी कम होगी।
अब सवाल यह उठता है कि रांची प्रेस क्लब का निर्माण क्यों हुआ? पत्रकारों की निजी जरूरतों को पूरा करने के लिए या पत्रकारिता को लोकहित में एक मुकम्मल आयाम देने के लिए। आने वाले समय में क्या रांची प्रेस क्लब पत्रकारों के प्रति अपने प्रतिबद्धता को कायम रख पाएगा ,संशय बढ़ गई है।