हर जोर जुल्म से बेखौफ टकराने वाले जेपी,पुण्यतिथि पर विशेष

वर्ष 1975 में, जब अदालत में इंदिरा गांधी पर चुनाव के दौरान भ्रष्टाचार का आरोप साबित हुआ, तब जयप्रकाश ने विपक्ष को एकजुट कर उनके इस्तीफे की मांग की।

हर जोर जुल्म से बेखौफ टकराने वाले जेपी,पुण्यतिथि पर विशेष

नवीन शर्मा

जयप्रकाश नारायण #jayprakash_narayan या कहें जेपी #jp जैसे लोग बिड़ले होते हैं। हर जोर- जुल्म से बेखौफ टकराने का माद्दा रखने वाले इस शख्स की जीवन यात्रा बहुत ही प्रेरक रही है। उनके जीवन के बारे में जान कर हम अपने लिए भी बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं
जयप्रकाश नारायण का जन्म बिहार के सारण जिले के सिताबदियारा गाँव में कायस्थ परिवार में हुआ था।जब वह नौ वर्ष थे, तब वह अपना घर छोड़कर कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लेने के लिए पटना चले गए थे।
वहां उन्हें सरस्वती, प्रभा और प्रताप जैसी पत्रिकाएं पढ़ने का मौका मिला। यही नहीं उन्हें भारत-भारती, मैथलीशरण गुप्त और भारतेंदु हरिश्चंद्र की कविताएं पढ़ने का भी अवसर मिला। जिससे वह काफी प्रोत्साहित हुए।
वर्ष 1920 में, जब वह 18 वर्ष के थे, तब उनका विवाह बिहार के प्रसिद्ध गांधीवादी बृज किशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती के साथ हुआ था।
जेपी पढाई में काफी व्यस्त थे, जिसके कारण पत्नी प्रभावती को अपने साथ नहीं रख सकते थे, इसलिए प्रभावती कस्तूरबा गांधी के साथ गांधी आश्रम मे रहने लगीं।
मौलाना अबुल कलाम आजाद के भाषण से प्रभावित होकर उन्होंने पटना कॉलेज को छोड़ दिया और ‘बिहार विद्यापीठ’ में दाखिला ले लिया।

अमेरिका के विश्वविद्यालय से ली उच्च शिक्षा

वर्ष 1922 में, बिहार विद्यापीठ से पढ़ाई करने के बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए थे, जहां उन्होंने आठ वर्षों तक अध्ययन किया।
जनवरी 1923 में, उन्होंने अमेरिका जाकर बर्कले विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। पढाई का खर्चा उठाने के लिए उन्होंने कंपनियों, होटलों, इत्यादि में छोटे-मोटे काम करने शुरू किये।
वर्ष 1929 में, जब वह अमेरिका से लौटे, उस समय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम तेज़ी पर था। तभी उनका सम्पर्क जवाहर लाल नेहरू से हुआ।इसके बाद ये भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बने।
वर्ष 1932 में गांधी, नेहरू और अन्य महत्त्वपूर्ण कांग्रेसी नेताओं के जेल जाने के बाद, इन्होंने भारत में अलग-अलग हिस्सों में स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया। इससे नाराज ब्रिटिश हुकूमत ने सितम्बर 1932 में,इन्हें मद्रास से गिरफ्तार किया गया और नासिक जेल में भेज दिया गया।

कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की

जेपी जेल में कई कांग्रेसी नेताओं के संपर्क में आए। उन्होंने आचार्य नरेंद्र देव आदि के साथ मिलकर कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी (सी॰ एस॰ पी॰) की स्थापना की। वर्ष 1934 में, जब कांग्रेस पार्टी ने चुनाव लड़ने की घोषणा की, तब जयप्रकाश नारायण व सीएसपी ने इसका विरोध किया था।
वर्ष 1939 में, उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लोक आन्दोलन का नेतृत्व किया।

टाटा स्टील में हड़ताल कराई

उन्होंने टाटा स्टील कंपनी में हड़ताल करवाई, क्योंकि वह चाहते थे कि वह ब्रिटिश सरकार को इस्पात का निर्यात न किया जाए। जिसके चलते उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और नौ महीने की कैद की सजा सुनाई गई।

भारत छोड़ो आन्दोलन के नायक
वर्ष 1942 में, भारत छोडो आन्दोलन के दौरान कई कांग्रेसी नेताओं के साथ जेपी को भी गिरफ्तार कर लिया गया। उनको आर्थर जेल रखा गया था लेकिन वे जेल से फरार हो गए थे।

सर्वोदय आंदोलन से जुड़े
19 अप्रैल 1954 में, जयप्रकाश नारायण स्वतंत्रता सेनानी विनोबा भावे से काफी प्रोत्साहित होने के कारण गया में आयोजित “सर्वोदय आंदोलन” से जुड़ गए। जे. पी. नारायण जी सर्वोदय आंदोलन के दौरान
वर्ष 1957 में, उन्होंने लोकनीति के पक्ष में राजनीति छोड़ने का फैसला किया।

इंदिरा की तानाशाही के खिलाफ तन कर खड़े हुए

वर्ष 1975 में, जब अदालत में इंदिरा गांधी पर चुनाव के दौरान भ्रष्टाचार का आरोप साबित हुआ, तब जयप्रकाश ने विपक्ष को एकजुट कर उनके इस्तीफे की मांग की। जिसके परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल लागू कर दिया था और जे.पी. समेत हजारों विपक्षी नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया।

पटना में लोकनायक का सिंहनाद

उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हथियारों के इस्तेमाल को अनिवार्य समझा, जिसके बाद उन्होंने नेपाल जाकर “आज़ाद दस्ते” का गठन किया और उन्हें प्रशिक्षण दिया।
जे. पी. ने पांच जून 1975 को पटना के गांधी मैदान में विशाल जनसमूह को संबोधित किया, जहाँ उन्हें ‘लोकनायक‘ की उपाधि दी गई। इसके कुछ दिनों बाद उन्होंने दिल्ली के रामलीला मैदान में ऐतिहासिक भाषण दिया। जे. पी. पटना गांधी मैदान में भाषण देते हुए
जनवरी 1977 को इंदिरा गांधी की सरकार ने आपातकाल को हटाने का फैसला किया, जिसके चलते मार्च 1977 में चुनाव हुए और लोकनायक “संपूर्ण क्रांति आंदोलन” के चलते भारत में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी।
जे. पी. समाजवादी, सर्वोदयी तथा लोकतान्त्रिक जीवन पद्धति के समर्थक थे। उनके अनुसार समाजवाद एक जीवन पद्धति है, जो मानव की स्वतन्त्रता, समानता, बन्धुत्व तथा सर्वोदय की समर्थक है, समाजवाद आर्थिक तथा सामाजिक पुनर्निमाण की पूर्ण विचारधारा है।
आपातकाल के दौरान जेल में बंद रहने के कारण उनकी तबियत अचानक ख़राब हो गई और 12 नवम्बर 1976 को उन्हें रिहा कर दिया गया और मुंबई के जसलोक अस्पताल में जांच के लिए ले जाया गया, जहां उनकी किडनी ख़राब हो गई थी, जिसके बाद वह डायलिसिस पर ही रहे और अंत में 8 अक्टूबर 1979 को पटना में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।

इन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं, जिनमें से Why Socialism? (1936) प्रमुख है।
ये श्री सत्य साईं के अनुयायी भी थे।

सम्मान में सिक्का जारी
वर्ष 2002 में, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जयप्रकाश नारायण के जन्मदिवस पर एक रुपए का सिक्का जारी किया गया था। अप्रैल 1994 में, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जे. पी. नारायण की याद में एक स्मारक बनाया गया।
वर्ष 2001 में, जे. पी. की याद में डाक टिकट जारी किया गया था।