ज्ञान भूमि से निर्वाण भूमि तक.
प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग और फाहियान के यात्रा वृतांतों में भी इस प्राचीन नगर का उल्लेख मिलता है। पालि साहित्य के ग्रंथ त्रिपिटक के अनुसार भी बौद्धकाल में यह स्थान षोडश महाजनपदों में एक था। मल्ल राजाओं की राजधानी तब कुशीनारा के नाम से ही जानी जाती थी। बताया जाता है कि 5 वीं शताब्दी के अंत तक या छठी शताब्दी के शुरुआत में कुशीनगर में भगवान बुद्ध का आना हुआ था। कुशीनगर में ही उन्होंने अपना अंतिम उपदेश देने के बाद महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था।ज्ञान से निर्वाण तक एक एक पल संजोए है कुशीनगर।
यात्रा वृतांत
..सुनील सौरभ
भगवान बुद्ध से जुड़े स्थलों में कुशीनगर भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। मोक्ष भूमि गया और तथागत की तपःस्थली बोधगया में रहने के कारण भगवान बुद्ध से जुड़े स्थलों से जुड़ाव होना लाजिमी है। पश्चिम चंपारण के बगहा में ‘हिन्दुस्तान’ अखबार में कार्य करने के दौरान भी मैं कुशीनगर गया था। आठ नवम्बर, 2019 को कुशीनगर की मेरी यह तीसरी यात्रा थी। इसके पूर्व की यात्रा में मैं अपने कुछ पत्रकार मित्रों के साथ बाइक से कुशीनगर घूम आया था। लेकिन, इस बार पटना के अपने पत्रकार मित्र राजकिशोर सिंह के साथ कुशीनगर की सुखद यात्रा की।साथ में बगहा के वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द नाथ तिवारी भी थे। उन्हीं के घर पर हम दोनों ठहरे थे।
रात को ही यह तय हो गया था कि सुबह-सुबह ही निकल चला जाये कुशीनगर को। इस बीच, बगहा के तिरुपति सुगर मील की स्थिति को देखते हुए रास्ते मे पड़ने वाले मदनपुर देवी स्थान में माता के दर्शन करने का निर्णय हुआ। लेकिन, सुबह में हम लोग को निकलने में कुछ देर हो गई। चीनी मील के प्रबंधक से भेंट नहीं हुई।
हमलोग वाल्मीकि बाघ आरक्ष क्षेत्र होते हुए बगहा-छितौनी (अब पनियहवा) के रास्ते पर स्थित मदनपुर देवी स्थान पहुँच गए। कहने को तो यह रास्ता नेशनल हाईवे है, परन्तु दिल्ली कैम्प तक की करीब आठ किलोमीटर सड़क कच्ची है और गड्ढे में तब्दील है। शुक्रवार होने के चलते यहाँ काफी भीड़ थी। मैं अनेक बार यहाँ आ चुका हूँ। अब तो सैकड़ों दुकानें लग गईं हैं। डेढ़ दशक पूर्व चार-पाँच दुकानें ही लगती थीं। शाम होते-होते दुकानदार दुकान बंद कर घर लौट जाते थे। लेकिन, अब ऐसी स्थिति नहीं है।
राजकिशोर सिंह और अरविन्द नाथ तिवारी के साथ मैं माता का दर्शन कर बगहा-छितौनी के सीधे रास्ते पर आ गया। बिहार की सड़क से मन खिन्न था, किन्तु उत्तर प्रदेश का क्षेत्र आते ही अच्छी सड़क आ गयी।
पनियहवा में हम सभी पिपरासी के दैनिक भास्कर के पत्रकार सुग्रीव कुमार शर्मा का इंतजार करने लगे। पहले से तय था, इसलिए हमलोग वहाँ पर एक चाय दुकान पर रुककर चाय पीने लगे। तभी, सुग्रीव ने फोन किया कि आगे आइये हम वहीं मिल लेंगे। चाय पीकर कुशीनगर के रास्ते में हम सभी बढ़ चलें। छितौनी से आगे बढ़ने पर सुग्रीव रोड किनारे हमलोग का इंतजार करते नजर आए। कुछ बातें हुईं, उसने कुशीनगर जाने में असमर्थता जताई। फिर, हमलोग कुशीनगर के लिए चल पड़े। घंटे भर के बाद हमलोग कुशीनगर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के द्वारा संरक्षित विशाल परिसर के प्रवेश द्वार के सामने थे। गाड़ी को एक किनारे खड़े कर हम तीनों अंदर प्रवेश कर गए। लेकिन, वह आध्यात्मिक अहसास और शांति यहाँ नही मिली, जो बोधगया में मिलती है। इस बात पर किसी ने कहा कि बोधगया भगवान बुद्ध की ज्ञानभूमि रही है, जबकि कुशीनगर निर्वाण भूमि है। यहाँ तो शमशान जैसा अनुभव ही प्राप्त होगा।
भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण मंदिर में गौतम बुद्ध को शांत भाव में निंद्रा मुद्रा में स्थापित लंबी मूर्ति को देखने के बाद कुशीनगर के इतिहास को हम सब ने जानने का प्रयास किया। कुशीनगर के ऐतिहासिक संदर्भों को खरोंचा, तो बहुत सारी जानकारी मिली। पता चला कि कुशीनगर अतिप्राचीन काल से प्रसिद्ध रहा है। त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के दो पुत्र यथा लव और कुश थे। कुश ने इसे बसाकर अपनी राजधानी बनाया था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार उस समय कुशीनगर को कुशावती नाम से जाना जाता था। प्राचीन काल में यह नगर मल्ल वंश की राजधानी थी और यह 16 महाजनपदो में से एक था।
प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग और फाहियान के यात्रा वृतांतों में भी इस प्राचीन नगर का उल्लेख मिलता है। पालि साहित्य के ग्रंथ त्रिपिटक के अनुसार भी बौद्धकाल में यह स्थान षोडश महाजनपदों में एक था। मल्ल राजाओं की राजधानी तब कुशीनारा के नाम से ही जानी जाती थी। बताया जाता है कि 5 वीं शताब्दी के अंत तक या छठी शताब्दी के शुरुआत में कुशीनगर में भगवान बुद्ध का आना हुआ था। कुशीनगर में ही उन्होंने अपना अंतिम उपदेश देने के बाद महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था। कुशीनगर के निकट फाजिलनगर नामक कस्बा है। यहाँ के छठी गाँव में किसी ने महात्मा बुद्ध को सुअर का कच्चा माँस खिला दिया था, जिसके कारण उन्हें दस्त की बीमारी शुरू हो गई थी। और, मल्लों की राजधानी कुशीनगर तक आते-आते वे महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुए।
कुशीनगर को प्रकाश में लाने का श्रेय प्रसिद्ध अंग्रेज पुरातत्व विद ए. कनिंघम और ए.सी. एल. कार्लाइल को जाता है, जिन्होंने 1861 में इस स्थान की खुदाई करवाई। खुदाई में छठी शताब्दी की बनी बुद्ध की लेटी हुई प्रतिमा मिली थी। इसके अलावा रामा भार स्तूप, माथा कुंवर मंदिर समेत अन्य कई मठों की जानकारी मिली थी। बाद में, 1904 से 1912 के बीच ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने यहाँ के अनेक स्थानों की खुदाई करवाई थी, जिसमें प्राचीन काल के अनेक मंदिर-मठों को देखा जा सकता है। इस खुदाई में मिली भगवान बुद्ध की 6.10 मीटर की मूर्ति चुनार के बलुआ पत्थर को काटकर बनाई गई है।इस मूर्ति के नीचे खुदे अभिलेख से पता चलता है कि इस प्रतिमा का संबंध 5 वीं शताब्दी से है। महापरिनिर्वाण मंदिर में इस मूर्ति को स्थापित किया गया है। इस मंदिर के आसपास पुरातत्व विभाग की खुदाई में मिले मठों-मंदिरों के अवशेष कुशीनगर की प्राचीनता को दर्शाता है। ऐसे तो महापरिनिर्वाण मंदिर के एक-डेढ़ किलोमीटर के दायरे में अनेक नए पुराने बौद्ध मठ मंदिर हैं, लेकिन हमलोग लौटने की तैयारी में थे, इसलिए उन स्थानों पर नहीं जा सके। मित्र राजकिशोर सिंह ने कहा कि कुशीनगर से कई बार गुजरे हैं, लेकिन भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण भूमि को नहीं देख पाए थे। आज मन की मुराद पूरी हुई। पास में बर्मिज विहार, जिसे अब म्यांमार स्तूप या म्यांमार बौद्ध मठ के नाम से जाना जाता है, पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। करीब डेढ़ घंटे तक भगवान बुद्ध की निर्वाण भूमि को गहराई से जानने और नमन करने के बाद हम तीनों मैं, बगहा के वरिष्ठ पत्रकार अरविंद नाथ तिवारी और राजकिशोर सिंह अपने गंतव्य बगहा की ओर लौट पड़े। दोपहर होने पर हम सभी को तेज भूख लगी, भेज खाने का होटल खोजा, तो कुशीनगर जिला मुख्यालय पडरौना में एक छोटा लेकिन अच्छा होटल मिला, जहाँ हम सभी को भोजन से संतुष्टि मिली।कुल मिलाकर, भगवान बुद्ध की ज्ञान भूमि बोधगया से निर्वाण भूमि कुशीनगर की यात्रा दो अच्छे मित्रों के कारण बहुत ही अच्छी रही।