सूर्य की उपासना से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है

(27 अक्टूबर, कार्तिक सूर्य षष्ठी, छठ महापर्व  पर विशेष)

सूर्य की उपासना से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है

कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी और सप्तमी को मनाया जाने वाला यह त्यौहार संपूर्ण देश में सूर्य षष्ठी व छठ पर्व के नाम से सुविख्यात है। यह  साक्षात सूर्य देव  की आराधना  का पर्व है। हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथ  'सूर्य रहस्यम' के अनुसार सूर्य की आराधना से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । वैज्ञानिक शोधों ने यह सिद्ध कर दिया है कि जगत के प्राणियों, जीव जंतुओं और पेड़ - पौधों में जो भी जीवनी शक्ति निहित है, उसमें सूर्य की शक्ति की बड़ी भूमिका है। छठ एक ऐसा पर्व  है, जो हम सबों को सीधे साक्षात देव का दर्शन कराता है। छठ पर्व सूर्य की आराधना का एक महापर्व है।  यह पर्व लोगों को मिलजुल कर रहने की सीख प्रदान करता है।  आपसी सहयोग और भाईचारे की भी सीख प्रदान करता है। यह पर्व पवित्रता का प्रतीक बनकर हम लोगों के सामने उपस्थित होता है।  इस पर्व पर पवित्रता का बहुत ही अच्छे ढंग से ख्याल रखा जाता है।  घर की सफाई सहित तन और मन को भी साफ रख कर भक्तगण भगवान सूर्य की आराधना करते हैं।  चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व का बहुत ही गुढ़ और अध्यात्मिक अर्थ है,अन्त:करण की पवित्रता। सूर्य की आराधना आदिकाल से होती चली आ रही है। सृष्टि के उदय के समय से ही सूर्य संपूर्ण जगत को जीवनी शक्ति प्रदान करता चला आ रहा है ।  सूर्य संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्तियों का संचालक भी माना जाता है।  संसार में जितने भी प्रकार की ऊर्जा व शक्ति विद्यमान हैं, उसमें सूरज की ही शक्ति निहित है।
   छठ पर्व की महिमा अपरंपार है।   लोग अपने-अपने घर परिवार की सुख, समृद्धि और शांति के लिए छठ पर्व का अनुष्ठान करते हैं।  ऐसी भी बातें सुनने में आती हैं कि कई परिवारों में पुत्र अथवा पुत्री रत्न के ना होने से घर में एक निराशा का माहौल बन जाता है। ऐसी परिस्थिति में घर के बड़े बुजुर्ग भगवान सूर्य को स्मरण कर यह संकल्प करते हैं कि अगर उनके घर पुत्र व अथवा पुत्री रत्न का जन्म हो गया, तो वे स  परिवार मिलकर छठ पर्व अनुष्ठान करेंगे।  भगवान सूर्य की कृपा से ऐसे भक्तों के यहां पुत्र अथवा पुत्री रत्न के जन्म होने पर  पूरे परिवार के लोग छठ पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ करते है।  यह त्यौहार पूरे परिवार को एक  बंधन में बांधता है।‌ कई लोग  रोजी रोजगार के सिलसिले घर से बाहर रहते हैं । अगर उनके यहां छठ पर्व के अनुष्ठान होता है, तब वे अपने -अपने घर जरूर आते हैं। वे सभी मिलजुल कर छठ पर्व के अनुष्ठान में भाग लेते हैं । 
  यह पर्व बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल, उड़ीसा, झारखंड सहित देश के लगभग सभी प्रांतों में बड़े ही श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। भारत में छठ पर्व की शुरुआत पर शोधार्थियों का निष्कर्ष है कि छठ पर्व का प्रारंभ उत्तर प्रदेश और बिहार से हुआ था। चूंकि यह दोनों प्रदेश गंगा के तट पर स्थित है । पौराणिक कथाओं के आधार पर माता सीता ने सर्वप्रथम मुंगेर जिले में एक शिलाखंड पर भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित की थी ।यह पर्व उत्तर प्रदेश और बिहार से होते हुए देश के विभिन्न प्रांतों में फैला है। भारतीय मूल के लाखों लोग विश्व के कई देशों तक फैले हुए हैं।  ये भारतीय मूल के लोग अपने साथ यहां की रीति -रिवाज, संस्कृति, रहन-सहन, भाषा और पर्व मनाने की परंपरा को भी साथ ले गए थे । फलस्वरूप  विश्व के कई देशों में  छठ पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है । विदेशों में छठ पर्व को देखने के लिए वहां के निवासी बड़ी संख्या में जुटते हैं । वे बड़ी श्रद्धा के साथ शीश नवाते हैं । वे सब भी मिलजुलकर  भगवान सूर्य की आराधना करते हैं ।
   छठ पर्व की महता व  लोकप्रियता का आलम यह है कि छठ पर्व की पृष्ठभूमि पर  कई फिल्मों का भी निर्माण हो चुका है। देश के कई जाने-माने गीतकार ने   छठ पर्व की महिमा पर आधारित  कई लोकप्रिय  गीतों  की रचना की  है। इन रचनाओं को कई प्रसिद्ध पाश्र्व गायकों ने अपनी आवाज प्रदान किया है । छठ पर्व पर एक से एक कर्ण प्रिय गीत सुनने को मिलते हैं।  यह सारे गीत छठ पूजा की तैयारी पर आधारित होते हैं।  छठ पर्व पर घर के लोग एक दूसरे को कैसे सहयोग करते हैं। वे घर से निकलकर कैसे सूर्य को पहला अर्ध्य अर्पित करते हैं । क्या-क्या सामग्रियां छठ पूजा में लगती है। कौन-कौन से ऋतु फल छठ पूजा में भगवान सूर्य को अर्पित किए जाते हैं।  छठ व्रत धारी किस तरह  से छठ पूजा में अपने आप को समर्पित करते हैं, आदि विभिन्न पक्षों को इन गीतों में समाहित होता है ।‌कार्तिक मास के आगमन के साथ ही बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड आदि प्रदेशों में इन गीतों का  सार्वजनिक बजना प्रारंभ हो जाता है। लोग इस मास में बड़े ही चाव के साथ इन गीतों को सुना करते हैं।
   सूर्य को जल अर्पित करने से शरीर में कई तरह के चर्म एवं आंतरिक रोगों से बचाव होता है।  सूर्य से निकलने वाली किरणें कई तरह के रोगों से हम सबों को बचाता है । सूर्य की किरणों में विटामिन डी की प्रचुरता होती हैं।  इस  कारण लोगों को आंतरिक ऊर्जा भी प्राप्त होती है । सूर्य की किरणों में कुछ ऐसी विशेष ऊर्जा भी विद्यमान रहती है, जो हमारे पाचन तंत्र, लीवर, किडनी आदि को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। सूर्य की किरणें औषधि के रूप में हमारे सामने उपस्थित  होती हैं।  पहला अर्ध्य अस्ताचल गामी  सूर्य को अर्पित किया जाता है।  जब सूर्य डूब रहा होता है, तब व्रत धारी के सूर्य को पहला अर्ध्य अर्पित करते हैं।  इस समय सूर्य की किरणें लालिमा लिए होती हैं।  इन किरणों का प्रभाव हमारे शरीर पर बहुत ही अनुकूल पड़ता है । खासकर कुष्ठ रोगियों के लिए यह एक अक्षय वरदान साबित होता है।  क्षय रोग से पीड़ित मरीजों को ये किरणें बहुत ही लाभकारी होती हैं।  छठ व्रत के दूसरे दिन उदयीमान सूर्य को हम सब अर्ध्य अर्पित करते हैं।  उगते सूर्य का स्वरूप लालिमा लिए होता है । यह लालिमा उर्जा से भरपूर होती है।  इस समय व्रत धारी के पूजा सूप पर अर्ध्य देने से एक विशेष प्रकार ऊर्जा प्राप्त होती है, जो व्यक्ति को उर्जावान बनाए रखता है।  सूर्य की किरणों पर शोधार्थियों का मत है कि नियमित सूर्य को अर्ध्य देने वाले जातकों कभी चर्म रोग होता है।  अगर उन्हें चर्म रोग हो भी जाता है, तो अल्प अवधि में ही थोड़े से उपचार से ठीक हो जाता है।  वह व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की तुलना में ज्यादा गतिशील होता है।  सूर्य को अर्घ्य देने वाले व्यक्तियों को नकारात्मकता नहीं होती है।  वे हमेशा सकारात्मक होंगे। अन्य व्यक्तियों की तुलना में  वे ज्यादा मजबूत भी होते हैं। सूर्य को अर्घ्य देने वाले व्यक्तियों को रात्रि में नींद भी गहरी आती है । सूर्य को अर्घ्य देने वाले व्यक्ति जहां भी जाएंगे, उन्हें सम्मान मिलेगा।  सूरज को अर्घ्य देने वाले व्यक्ति सहज, सरल होते हैं । इनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनी रहती है । 
 हिंदू धर्म ग्रंथो के अनुसार सूर्य की आराधना करने वाले भक्त अकाल मृत्यु से सदैव बच्चे रहते हैं ।  सूर्य संपूर्ण ब्रह्मांड के संचालक है । सूर्य के केंद्र में माता कुष्मांडा निवास करती हैं।  अर्थात सूर्य की आराधना करने वाले भक्तों को  आदि शक्ति स्वरूपा की भी कृपा प्राप्त होती है । सूर्य की आराधना करने वाली कुंवारी कन्याओं को शीघ्र योग वर से शादी हो जाती है। इस तरह की कई मान्यताएं सूर्य की आराधना से जुड़ी हुई है । हम सब पवित्र मन से इस पर्व से खुद को जोड़ें।  मनसा, कर्मणा, वाचा तीनों से पवित्र होकर सूर्य की आराधना करें।  स्वयं में विद्यमान पंच विकार काम, क्रोध, मद, लोभ मोह से मुक्ति का संकल्प के साथ भगवान सूर्य को अर्ध्य अर्पित करें ।   देखिए जीवन की दिशा और दशा ही बदल जाएगी । सूर्य साक्षात देव है । उनसे अपनी मन की बात कहें। वे सुनेंगे। सूर्य आपकी हर समस्याओं में एक सहयोगी के रुप में आपके साथ होंगे।