देश की आजादी और राष्ट्र के नव निर्माण में अंबेडकर की महती भूमिका थी

(6 दिसंबर,महान समाज सुधारक डॉ.भीमराव अंबेडकर की 69 वीं पुण्यतिथि पर विशेष)

देश की आजादी और राष्ट्र के नव निर्माण में अंबेडकर की महती भूमिका थी

देश की आजादी और राष्ट्र के नव निर्माण में डा.भीमराव अंबेडकर की महती भूमिका थी। लेकिन आज अंबेडकर के नाम पर जो कुछ भी राजनीति हो रही  किसी ने इसकी कल्पना तक नहीं की थी। उन्होंने और संविधान सभा के सदस्यों ने मिलकर जो भारत का संविधान रचा, यह अमूल्य निधि संपूर्ण राष्ट्र के लिए बन गई है। भारत का संविधान देश की संप्रभुता को दर्शाता है। जिन्होंने संविधान को न ठीक से से पढ़ा है। और न ही जाना है। किन्तु संविधान की राजनीति करने में कोई कसर छोड़ नहीं रहे हैं। यह देश की एकता और अखंडता के लिए बेहद खतरनाक कदम है। भारत का संविधान भारत के प्रत्येक नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है। भारत का संविधान कदापि देश को जातिवाद के बंधन में बांधने की सीख नहीं देता है।  इसके बावजूद संविधान के नाम पर जातिवाद का जहर बोया जा रहा है। देश को इससे निकलना होगा। वहीं दूसरी ओर अंबेडकर जी को एक जाति विशेष के नेता के रूप में प्रोजेक्ट किया जाता है । अन्य दल भी इसी परिपाटी की राजनीति चला रहे हैं, जो कदापि देश हित में नहीं है। अंबेडकर जी जात पात से ऊपर उठकर समाज के हर एक व्यक्ति के स्वास्थ्य, शिक्षा, मौलिक अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी, स्वतंत्र रूप से जीवन बसर करना आदि के लिए संघर्ष करते रहे थे। सच्चे अर्थों में अंबेडकर दलितों, अभिवंचित, असहाय  और गरीबों के हक के लिए आजीवन लड़ते रहे थे ।
   डॉ० भीमराव अंबेडकर का   प्रादुर्भाव जिस काल खंड में हुआ था, भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था। स्वाधीनता आंदोलन अपने प्रारंभिक दौर में  था । डॉ० अंबेडकर इस धरा पर मात्र 65 वर्षों तक  रहे थे । पैंसठ वर्ष की उम्र में उन्होंने जो कर दिखाया, ऐसा बहुत कम लोग कर पाते हैं। उनका संपूर्ण जीवन त्याग और बलिदान से ओतप्रोत है । 
बचपन से ही उन्हें नीच जाति का समझ कर अपने सहपाठियों से उपेक्षा झेलनी पड़ी थी ।  यह सिलसिला यहीं रुका नहीं बल्कि उच्च विद्यालय और महाविद्यालय तक यही स्थिति बनी रही  थी । डॉ० भीमराव अंबेडकर समाज में दलितों, अभिवंचित,असहाय और गरीबों की उपेक्षा से बिल्कुल नाराज रहा करते थे । बाल काल से ही उनके मन में यह विचार पनपने लगा था कि दलितों, अभिवंचित , असहाय और गरीबों के उद्धार और हक के लिए वे जरूर लड़ाई लड़ेंगे । वे एक महान समाज सुधारक के साथ विधिवेता , कुशल राजनीतिज्ञ, कुशाग्र अर्थशास्त्री, दर्शन शास्त्री, शिक्षाविद और एक सफल पत्रकार व लेखक थे। बाल काल से ही उनमें पढ़ने, कुछ सीखने व बनने की ललक थी । आर्थिक रूप से कमजोर रहने के बावजूद वे अपनी विलक्षण प्रतिभा के कारण पढ़ाई में निरंतर आगे बढ़ते रहें थे । उन्होंने अर्थशास्त्र की पढ़ाई विदेश में पूरी की थी ।उनके जीवन से हम सबों को यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि विपरीत परिस्थितियों को भी व्यक्ति अपने दृढ़ इच्छाशक्ति से अनुकूल बना सकता है । जैसा कि भीमराव अंबेडकर ने बनाया था।
   भारत के संविधान निर्माण के मुख्य कर्ता-धर्ता होने के कारण संविधान निर्माण में उनकी महती भूमिका रही थी।  भारत का संविधान निर्माण कोई मामूली कार्यनहीं था । संविधान सभा के सभी सदस्यों ने डॉ०भीमराव अंबेडकर को स सम्मान भारत के संविधान निर्माण की जवाबदेही उनके कंधों पर सौंपी थी ।  उन्होंने इस जवाबदेही को  पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ निभाया था। उन्होंने भारतीय संसद में समय पर भारत का संविधान पूरा कर रखा था ।
   देश की आजादी के बाद वे केंद्र में विधि और न्याय मंत्री बने थे । इस पद पर रहकर उन्होंने अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ किया था। समय-समय पर वे देश के प्रधानमंत्री को अपने विधि व न्याय संबंधी बातों से अवगत कराते रहते थे । आज उनकी संचिकाएं के अध्ययन से प्रतीत होता है ।  उनकी लिखी बातों में कितनी स्पष्टता होती थी । आज के विधिवेताओं और न्यायविदों को भीमराव अंबेडकर की स्पष्ट लेखन से बहुत कुछ सीखने और जीवन में उतारने की जरूरत है । 
   डॉ० भीमराव अंबेडकर एक महान समाज सुधारक थे। समाज में व्याप्त छुआछूत को जड़ से मिटा देना चाहते थे। समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता और अंधविश्वास को हमेशा के लिए खत्म कर देना चाहते थे । वे हमेशा दलितों के हक के लिए लड़ते रहे थे । वे दलितों के उद्धार के लिए भी लड़ते रहे थे । इस निमित्त उन्होंने संपूर्ण देश का भ्रमण किया था । हजारों सभाएं की  थी ।भारत के संविधान में दलितों के उद्धार से संबंधित जितनी भी बातें दर्ज हैं, उसके निर्माण में उनकी अहम भूमिका रही थी । वे चाहते थे कि दलित भी देश के अन्य जातियों की तरह समान रूप से पुष्पित और पल्लवित हों । दलितों समाज में दूसरी निगाहों से देखे जाते हैं । वे इसका कड़ा विरोध करते थे । संभवत इन्हीं सब कारणों के चलते उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार किया था । वे जीवन के अंतिम क्षणों तक बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार में जुटे रहे थे । आज भी डॉ० भीमराव अंबेडकर के विचार दलितों के हक के लिए लड़ते नजर आते हैं। देश की आजादी के 78 वर्ष बीत जाने के बाद भी छुआछूत की स्थिति बनी हुई है । यह बेहद चिंता की बात है । 
  आज अंबेडकर के नाम पर सत्ता  तक हासिल की जा रही है।  अंबेडकर समाज के दलित और अभीवंचित वर्ग के लिए आजीवन लड़ते रहे थे।  वे चाहते थे कि समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचे ।  समाज में अस्पृश्यता का कोई अणु शेष नहीं रहे । इस निमित्त उन्होंने समाज के दबे कुचले वर्ग को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए अपने ही जीवन काल में शुरुआत की थी , जिसका स्वाधीनता संग्राम में सम्मिलित सभी बड़े नेताओं ने प्रशंसा की थी ।
   डॉ०भीमराव अंबेडकर यह जानते थे कि एक निम्न जाति के घर जन्म लेने वाले भारतवासी को किन-किन परिस्थितियों से मुकाबला करना पड़ता है । वे इसकी पीड़ा को समझते थे । वे एक दूरदर्शी की भांति जानते थे कि जब तक समाज के ये निम्न और अभिवंचित वर्ग के लोगों को मुख्यधारा में नहीं जाएगा, तब तक भारत, भारत नहीं बन पाएगा । देश की आजादी के बाद देश को ब्रिटिश हुकूमत से मुक्ति जरूर मिल गई थी । लेकिन देश को जाती पाती, छुआछूत और अंधविश्वास से मुक्ति नहीं मिल पाई थी । वे छुआछूत को जड़ से मिटाने के लिए लगातार सभाएं आयोजित करते रहते थे । फलस्वरूप उनके ही जीवन काल में बहुत कुछ तस्वीरें साफ हो गई थीं। समाज के अभिवंचित वर्ग के लोग समाज की मुख्यधारा से जुड़ने लगे थे । उनके बाद यह सिलसिला रुका नहीं बल्कि बढ़ता ही चला जा रहा है।  दलित और अभिवंचित वर्ग देश की आजादी के बाद से अब तक काफी संख्या में मुख्यधारा में जुड़े हैं।  लेकिन जितनी संख्या में  जुड़ने चाहिए, अभी तक जुड़ नहीं पाए हैं । इस विषय पर समाज के सभी वर्ग के लोगों को विचार करने की जरूरत है । आज हर एक भारतवासी को यह विचार करने की जरूरत है कि समाज के अभिवंचित,दलित, असहाय और गरीब वर्ग के लोग कहीं पीछे तो नहीं रह गए, जिनके पास जिस तरह के भी साधन हो, समाज के दबे कुचले वर्ग के लोगों को उठाने की कोशिश में जुड़ जाना चाहिए।  ये वर्ग भारत की ताकत है।  इन्हें उपेक्षित कर हम सब विकसित भारत का सपना नहीं देख सकते हैं।  इसलिए समाज के चौमुखी विकास के लिए दलित,अभिवंचित, असहाय और गरीब वर्गों के लोगों को मुख्यधारा में लाने की जरूरत है।