'ब्रेकिंग न्यूज़' पत्रकारिता की विश्वसनीयता को रौंदता चला जा रहा है 

सोशल मीडिया पर प्रसारित होने वाले ब्रेकिंग न्यूज़ से न सिर्फ भारत परेशान है बल्कि वैश्विक स्तर पर परेशानी उत्पन्न हो रही है।

'ब्रेकिंग न्यूज़' पत्रकारिता की विश्वसनीयता को रौंदता चला जा रहा है 

देश भर में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रचलन से ख़बरें  पलक झपकते ही लोगों तक पहुंच जाती हैं । दूसरी ओर दूरियां कम हुई हैं । दुनिया मुट्ठी में कर ली गई हैं । पूरी दुनिया की खबरें एक छोटे से मोबाइल में समां गई हैं। सोशल मीडिया के बढ़ते इस दौर में ब्रेकिंग न्यूज़ के नाम इस प्लेटफाॉर्म  पर जो कुछ परोसे जा रहे हैं,फलस्वरुप  वैमनस्यता, दंगे - प्फसाद अराजकता की भी उत्पन्न हो जा रही है। ब्रेकिंग न्यूज़ की बढ़ती गति के साथ पत्रकारिता की विश्वसनीयता भी  टूटती चली  जा रही है। ब्रेकिंग न्यूज़ पत्रकारिता की साख को रौंदता चला जा रहा है। सोशल मीडिया पर प्रसारित होने वाले ब्रेकिंग न्यूज़ से न सिर्फ भारत परेशान है बल्कि वैश्विक स्तर पर परेशानी उत्पन्न हो रही है। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। सोशल मीडिया पर प्रसारित होने वाले ब्रेकिंग न्यूज़ भी इसी स्तंभ का एक हिस्सा है। सोशल मीडिया पर प्रसारित होने वाले ब्रेकिंग न्यूज़ पर न ही केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकारों का नियंत्रण है । ब्रेकिंग एक मतवाले हाथी की तरह लोकतंत्र को लहू लुहान करता चला जा रहा है। ब्रेकिंग न्यूज़ के इस मतवाले पन पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी हो गया है।

सोशल मीडिया पर चलने वाले अधिकांश ब्रेकिंग न्यूज़ पक्षधरता के शिकार

  सर्वविदित है कि टेलीविजन और सोशल मीडिया पर ब्रेकिंग न्यूज़ की परंपरा की शुरुआत टीआरपी  बढ़ाने, पैसे लेकर एक तरफा स्टोरी गढ़ने और पक्षधरता  के उद्देश्य से हुई। मैं यह नहीं कहता हूं कि टेलीविजन और सोशल मीडिया पर आने वाले सभी ब्रेकिंग न्यूज़ इसके गिरफ्त में हैं। प्रतिष्ठित पत्रकारों, लेखकों, राजनेताओं, शिक्षाविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, विशेषज्ञयों और बुद्धिजीवियों द्वारा सोशल मीडिया पर दी जाने वाली जानकारियां बहुत ही शोध परख, गुढ़ और सारगर्भित भी होते हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर चलने वाले अधिकांश ब्रेकिंग न्यूज़ पक्षधरता के शिकार होते हैं। इसके साथ ही ब्रेकिंग न्यूज़ लोगों को भरम की स्थिति में लाकर खड़ा कर देता है।  ऐसा कर ब्रेकिंग न्यूज़ से पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़े कर  दे रहा हैं। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के प्रसंग में कई तरह की मनगढ़ंत और झूठी खबरें सोशल मीडिया पर पोस्ट की जा रही हैं । देश के प्रधानमंत्री, गृह मंत्री से जुड़ी कई झूठी खबरें ब्रेकिंग न्यूज़ में लगातार प्रसारित की जा रही हैं। विपक्ष के नेताओं की भी झूठी और मन गढ़ंत खबरें सोशल मीडिया पर ब्रेकिंग न्यूज़ के माध्यम से दी जा रही है। हिंदी सिनेमा जगत के नायिका और नायकों के संबंध में भी झूठी झूठी खबरें प्रसारित होती रहती है। 

ब्रेकिंग न्यूज़ की परंपरा बंद होनी चाहिए 

  मीडिया का धर्म है कि सही खबरें, शोध परख के बाद ही  पाठकों व दर्शकों तक पहुंचनी चाहिए । लेकिन इसका यह कतई अर्थ नहीं होना चाहिए कि हड़बड़ी व तत्परता में खबरें ही गलत साबित हो जाएं। सोशल मीडिया पर चलने वाले ज्यादातर ब्रेकिंग न्यूज़ इसी गलती का शिकार हैं।  अब इसे पाठक भी समझने लगें हैं। इससे सोशल मीडिया पर चलने वाले ब्रेकिंग न्यूज़ अपनी विश्वसनीयता भी खोते चले जा रहे हैं। मेरे विचार से यह परंपरा बंद होनी चाहिए।

ब्रेकिंग न्यूज़ की प्रस्तुति अविश्वसनीय 

   प्रारंभिक दिनों में दर्शकों को ब्रेकिंग न्यूज़ लोगों को काफी आकर्षित भी किया था। इससे टीवी चैनलों  और सोशल मीडिया की टीआरपी भी बढ़ी । ब्रेकिंग न्यूज़ देखने वालों की  संख्या भी बढ़ी । लेकिन बाद के कालखंड में छोटी-छोटी खबरों को भी इस तरह ब्रेकिंग न्यूज़ बनाकर  प्रस्तुत किया जाने लगा कि ब्रेकिंग न्यूज़ की महत्ता  और विश्वसनीयता दोनों धीरे-धीरे कम होती चली जा रही है। टेलीविजन पर तो ब्रेकिंग न्यूज़ कुछ इस तरह प्रस्तुत किए जाते हैं, जैसे कि कोई बड़ा तूफान आने वाला हो। वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर प्रसारित होने वाले ब्रेकिंग न्यूज़ टेलीविजन के तूफान से भी बड़ा तूफान लाने को आमादा रहते हैं।  मैं ब्रेकिंग न्यूज़ के निर्माता व नीति निर्धारकों से पूछना चाहता हूं कि ब्रेकिंग न्यूज़  की प्रस्तुति इस स्टाइल में क्यों ?  क्या ऐसी खबरों को शांति, स्थिरता, सहजता और मधुरता के साथ नहीं प्रस्तुत किया जा सकता है ? जैसे कि अन्य खबरें प्रस्तुत की जाती हैं।

ब्रेकिंग न्यूज़ से दर्शकों में भ्रम की स्थिति 

सोशल मीडिया पर चलने वाले ब्रेकिंग न्यूज़ तो खबरों की विश्वसनीयता पर ही ग्रहण लगाकर रख दिया है।  कभी-कभी ऐसी भी खबरें देखने को मिल जाती हैं,  जिसमें ब्रेकिंग न्यूज़ तहत यह बताया जाता है कि भारत में सोने की कीमतों में भारी गिरावट आ गई है। सोने के भाव प्रति 10 ग्राम पर  बीस हजार रूपए कम हो गए हैं ।भारत में सोने का बेमिसाल भंडार मिला है। अब भारत की गरीबी दूर हो जाएगी। इसके साथ ही कुछ ऐसे पोस्ट भी सोशल मीडिया पर लगातार आ रहे हैं, जिसमें लाइक और फॉलो करने पर घर की आमदनी बढ़ जाएगी जैसी बातें बताई जा रही हैं । ऐसे पोस्ट के अंतर्गत देवी देवताओं की तस्वीरें भी जा रही हैं। इसे सोशल मीडिया के उपभोक्ताओं में एक भ्रम की स्थिति पैदा हो जा रही है।

केंद्र सरकार इस विषय पर गंभीर 

ऐसी प्रस्तुति पर शीघ्र अति शीघ्र रोक लगनी चाहिए। सुनील बादल जी ने उत्तर प्रदेश सरकार का हवाला देते हुए जानकारी दी है कि सोशल मीडिया पर एक गाइडलाइन तैयार किया गया है। केंद्र सरकार भी इस विषय पर गंभीरता से विचार कर रही है।  एक कड़े कानून की मांग उठ हो रही है। आगे बादल जी ने यह भी जानकारी दी कि सोशल मीडिया में प्रस्तुत होने वाले कार्यक्रमों से इससे लोगों की आमदनी भी हो। इस निमित्त भी सरकारी स्तर पर विचार मंथन चल रहा है। यह सोशल मीडिया से जुड़े लोगों के लिए एक अच्छी खबर है। 

इन खबरों का अनुकूल और प्रतिकूल प्रभाव 

रही बात खबरों की प्रस्तुति की तो  खबरों की प्रस्तुति शांति, सहजता, स्थिरता और मधुरता के साथ होनी चाहिए। ज्यादातर लोग समाचार फुर्सत की क्षणों में देखते हैं। कई लोग मनोरंजन के तौर पर देखते हैं। कई लोग जानकारी प्राप्त करने के लिए देखते हैं। कई लोग देश और राज्यों की राजनीति में क्या कुछ चल रही है ? इसे जानने के लिए देखते हैं। कई लोग देश-विदेश सहित खेल आदि की खबरों को देखते हैं। इन खबरों से मनुष्य के मन, दिल और दिमाग का गहरा जुड़ाव हो जाता है। लंबे अंतराल के बाद ऐसी खबरें  मनुष्य के मन, दिल और दिमाग पर अनुकूल और प्रतिकूल दोनों तरह का प्रभाव डाल जाती है।

ब्रेकिंग न्यूज़ दिल की धड़कनों को बढ़ा देती है 

सोशल मीडिया और टेलीविजन पर प्रस्तुत होने वाले ब्रेकिंग न्यूज़ अथवा अन्य ख़बरों पर मनोवैज्ञानिक शोध बताते हैं कि ब्रेकिंग न्यूज़ श्रोताओं के दिल की धड़कनों को बढ़ा देता है। ऐसी खबरें दिल के मरीज और उच्च रक्तचाप के मरीजों पर  प्रतिकूल प्रभाव छोड़ जाती हैं। आगे मनोचिकित्सक  सलाह देते हैं कि दिल के  और उक्त रक्तचाप के मरीजों को ऐसी खबरों को देखने से बचना चाहिए। ऐसी खबरों को देखने से चिड़चिड़ापन,  हिंसा और गुस्सा के प्रवृति बढ़ जाती है।
उपरोक्त मनोवैज्ञानिक शोध से यह बात खुलकर सामने आ गई है कि ब्रेकिंग न्यूज़ के दर्शकों  के मन,  दिल और दिमागपर प्रतिकूल  प्रभाव  डालता है। उठते उपरोक्त सवालो  पर  लोग खुद के शरीर का किसी मनोचिकित्सक से जांच कराएं तो सभी बातें आईने की तरह साफ हो जाएगी। किस दिल के डॉक्टर से भी इस बाबत जानकारी ली जा सकती है। इसलिए केंद्र सरकार सहित देश के सभी राज्यों की सरकारों को इस विषय पर गंभीरता पूर्वक विचार कर कोई बेहतर गाइडलाइन व कानून बनाए। ताकि लोग ब्रेकिंग न्यूज़ से होने वाले मानसिक आघात से बच सकें। आज विश्व भर के उपभोक्ताओं द्वारा  ब्रेकिंग न्यूज़ पर सवाल उठाया जा रहा है कि खबरों को पंहुचाने में इतनी हड़बड़ी व तत्परता क्यों  ? इस हड़बड़ी और  तत्परता के चलते गलतियां होने की  संभावना काफी बढ़ जाती ती है ।मेरे विचार से ब्रेकिंग न्यूज पर सरकारी तौर पर अंकुश लगाया जाना चाहिए।