लिट्रेसी इंडिया और सरस्वती शिशु विद्या मंदिर मिलकर जनजातीय समुदायों के जीवन में कर रहा बदलाव

लिट्रेसी इंडिया ने नवोन्मेषी ज्ञानतंत्र कार्यक्रम की शुरुआत की, जिससे उस क्षेत्र में डिजिटल शिक्षा लाई गई जहां कंप्यूटर दुर्लभ थे।

लिट्रेसी इंडिया और सरस्वती शिशु विद्या मंदिर मिलकर जनजातीय समुदायों के जीवन में कर रहा बदलाव

बोकारो:  जिले के झरना गांव में स्थित सरस्वती शिशु विद्या मंदिर की शुरुआत भ्रष्टाचार, हिंसा और बड़े पैमाने पर तस्करी की पृष्ठभूमि के बीच सिर्फ 15 छात्रों एवं दो शिक्षकों के साथ हुई। 1985 में एक आम के पेड़ के नीचे पूज्य बाबा रामदास द्वारा स्थापित, आज का यह स्कूल नामांकित 600 से अधिक बच्चों के लिए आशा की किरण बन गया है।

आम के पेड़ के नीचे स्कूल की साधारण शुरुआत, क्षेत्र की विकट परिस्थितियों को दर्शाता था, फिर भी बाबा रामदास मन और आत्मा के उत्थान के लिए शिक्षा की परिवर्तनकारी शक्ति में विश्वास करते थे। 2007 तक, स्कूल ने झारखंड शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त कर ली थी, जो आदिवासी और दलित समुदायों को सशक्त बनाने के अपने मिशन में पहला मील का पत्थर साबित हुआ।

2011 में, कैप्टन इन्द्राणी सिंह के नेतृत्व में लिट्रेसी इंडिया ने नवोन्मेषी ज्ञानतंत्र कार्यक्रम की शुरुआत की, जिससे उस क्षेत्र में डिजिटल शिक्षा लाई गई जहां कंप्यूटर दुर्लभ थे। सरस्वती शिशु विद्या मंदिर की इस पहल ने छात्रों के सीखने के तरीके में क्रांति ला दी, जिससे गणित और भाषाओं जैसे जटिल विषयों को सुलभ और आकर्षक बना दिया ।

ज्ञान की अविरल यात्रा पर विचार करते हुए कैप्टन इंद्राणी सिंह ने कहा कि बाबा रामदास की शिक्षा के प्रति अटूट प्रतिबद्धता प्रेरणा दायक थी। उनका दृष्टिकोण इस समुदाय के बच्चों को सीखने और शिक्षा के माध्यम से सशक्त बनाना था और उनकी विरासत को आगे बढ़ाना लिट्रेसी इंडिया के लिए सम्मान की बात है। आज सरस्वती शिशु विद्या मंदिर सिर्फ एक स्कूल नहीं अपितु यह आशा और परिवर्तन का प्रतीक है।

इस साझेदारी का प्रभाव कक्षा से कहीं आगे तक फैला हुआ है। 2014 से, सरस्वती शिशु विद्या मंदिर इस क्षेत्र में तकनीक-आधारित शिक्षा में अग्रणी रहा है, जो छात्रों को महत्वपूर्ण आईटी कौशल से लैस करता है जिसने रोजगार के अवसरों के द्वार खोले हैं। रक्षा सेवाओं में नामांकन से लेकर बैंकिंग क्षेत्र और उससे आगे के क्षेत्रों में स्थान हासिल करने तक, सरस्वती शिशु विद्या मंदिर के छात्र बाधाओं को तोड़ रहे हैं और अपनी किस्मत फिर से लिख रहे हैं।
जैसे-जैसे छात्रों की संख्या बढ़ती जा रही है, पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी बोर्ड परीक्षाओं में शामिल हो रहे हैं और रांची, बोकारो एवं जमशेदपुर जैसे शहरों में नौकरियां हासिल कर रहे हैं, बाबा रामदास की विरासत जीवित है। गरीबी और अशिक्षा की जंजीरों से मुक्त एक सशक्त समुदाय का उनका सपना एक समय में एक छात्र द्वारा साकार किया जा रहा है।