त्रिदेव के  आह्वान पर भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि की रचना की 

( भगवान विश्वकर्मा पूजा  सह जयंती पर विशेष)

त्रिदेव के  आह्वान पर भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि की रचना की 

समस्त सांसारिक वस्तुओं के अधिष्ठाता व निर्माता भगवान विश्वकर्मा की पूजा से समस्त सांसारिक वस्तुओं के भोग करने का सुख प्राप्त होता है। उनकी आराधना से समस्त देवताओं की भी कृपा प्राप्त होती है। ब्रह्मांड की जन्मदात्री आदि देवी शक्ति स्वरूपा ने सृष्टि के संचालन हेतु अपने तेज से  ब्रह्मा, विष्णु और महेश को उत्पन्न किया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अवतरण के बाद त्रिदेव ने संयुक्त रूप से भगवान विश्वकर्मा का आह्वान किया था। त्रिदेव के आदेशानुसार ही भगवान विश्वकर्मा ने इस सृष्टि की रचना की थी।  संसार में उपभोग होने वाली सारी समग्रियां भगवान विश्वकर्मा के हाथों ही निर्मित हुआ  था।  इसलिए हिन्दू धर्म ग्रंथो ने  भगवान  विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना  है। हमारे हिंदू धर्म ग्रंथो में यह भी कथन है कि सोने की लंका महल  का निर्माण भगवान विश्वकर्मा के ही कर कमरों से संपन्न हुआ था ।
  हिंदू धर्म ग्रंथो के अनुसार भगवान विश्वकर्मा की ऋद्धि, सिद्धि और संज्ञा नाम की तीन पुत्रियाँ थीं। जिनमें से ऋद्धि सिद्धि का विवाह भगवान चंद्रशेखर और माता पार्वती के सबसे छोटे पुत्र भगवान गणेश से हुआ था।  भगवान विश्वकर्मा की सबसे छोटी पुत्री संज्ञा का विवाह महर्षि कश्यप और देवी अदिति के पुत्र भगवान सूर्यनारायण से हुआ था । यमराज , यमुना , कालिंदी और अश्वनीकुमार इनकी ही संताने हैं। भगवान विश्वकर्मा, ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अंश से उत्पन्न हुए थे। इसलिए भगवान विश्वकर्मा को त्रिदेव की शक्तियों का एक पूंज भी कहा जा सकता है। भगवान विश्वकर्मा पलक झपकते ही एक नूतन सृष्टि की भी रचना कर सकते हैं। इसलिए हर वर्ष 18 सितंबर को संपूर्ण देश में बड़े ही धूमधाम के साथ विश्वकर्मा पूजा मनाई जाती है । इस दिन छोटे-बड़े तमाम वाहनों की पूजा की जाती है। इसके साथ ही छोटे-बड़े  उद्योगों में बड़े ही श्रद्धा भाव से भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। कई प्रतिष्ठानों में भगवान विश्वकर्मा मूर्ति स्थापित कर पूजा की जाती है। इस दिन कई उद्यम स्थलों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है। भगवान विश्वकर्मा की पूजा में सम्मिलित सभी भक्त गण कामना करते हैं  कि उनके घर में सदा सुख, समृद्धि और शांति बनी रहे। भगवान विश्वकर्मा की पूजा में सभी जाति, धर्म संप्रदाय और विचार के लोग सम्मिलित होते हैं। भगवान विश्वकर्मा की पूजा समस्त देशवासियों को एक सूत्र में बंधे रहने का भी संदेश देती है।
  सर्वविदित है कि भगवान विश्वकर्मा सृजन, निर्माण, वास्तुकला, औजार, शिल्पकला, मूर्तिकला एवं वाहनों समेत समस्त संसारिक वस्तुओं के अधिष्ठात्र देवता के रूप में आदिकाल से पूजित हैंऔर अनंत काल तक पूजित रहेंगे।  भगवान विश्वकर्मा अपने सिंहासन पर विराजमान और अपने भक्तों से घिरे हुएअन्य नामविश्वकर्मा, देव शिल्पी, जगतकर्ता और शिल्पेश्वरनिवासस्थानविश्वकर्मा लोकअस्त्रकमंडल,पाश,प्रतीकऔजारमाता-पितावास्तुदेव, अंगिरसी संतानबृहस्मति, नल-निल,संध्या, रिद्धि, सिद्धि और चित्रांगदात्यौहा विराजमान हैं।  बीच में गरुड़ पर विराजमान विष्णु हैं, बाएँ ब्रह्मा हैं, तथा दायें तरफ भगवान विश्वकर्मा हैं। वेद को हिंदू धर्म का आदि ग्रंथ कहा जाता है।  वेदों में भी भगवान विश्वकर्मा की चर्चा बहुत ही विस्तार से की गई है। 
    भगवान विश्वकर्मा के भक्तों को यह जानना चाहिए कि  ऋग्वेद मे विश्वकर्मा सुक्त के नाम से ग्यारह ऋचाऐ लिखी हुई है। जिनके प्रत्येक मन्त्र पर लिखा है, ऋषि विश्वकर्मा ,भौवन देवता आदि। यही सुक्त यजुर्वेद अध्याय सत्रह, सुक्त मन्त्र सोलहा से इकतीस तक सोलहा मन्त्रो मे आया है । ऋग्वेद मे विश्वकर्मा शब्द का एक बार इन्द्र व सुर्य का विशेषण बनकर भी प्रयुक्त हुआ है। परवर्ती वेदों मे भी विशेषण रूप मे इसके प्रयोग अज्ञत नही है। यह प्रजापति का भी विशेषण बन कर आया है। पूर्ण परमात्मा ने इस संसार को बनाया  है। उन्होंने माँ के गर्भ में भी हमारा पालन-पोषण किया। क्या उस परमात्मा की जगह हम अन्य देवी – देवताओं को विश्व रचयिता कह सकते है, बिल्कुल नहींं।
   भगवान विश्वकर्मा के गुणों की चर्चा करते हुए यह जानना जरूरी हो जाता है कि महाभारत के खिल भाग सहित सभी पुराणकार प्रभात पुत्र विश्वकर्मा को आदि विश्वकर्मा मानतें हैं। स्कंद पुराण प्रभात खण्ड के निम्न श्लोक की भांति किंचित पाठ भेद से सभी पुराणों में यह श्लोक मिलता है। यह श्लोक है,'बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी।प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च।विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापतिः।'
  एक कथा के अनुसार महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना जो ब्रह्मविद्या जानने वाली थी । वह अष्टम् वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उससे सम्पुर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ। पुराणों में कहीं योगसिद्धा, वरस्त्री नाम भी बृहस्पति की बहन का लिखा है। शिल्प शास्त्र का कर्ता वह ईश विश्वकर्मा देवताओं का आचार्य है, सम्पूर्ण सिद्धियों का जनक है, वह प्रभास ऋषि का पुत्र है और महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र का भानजा है। अर्थात अंगिरा का दोहिता है। अंगिरा कुल से विश्वकर्मा का सम्बन्ध तो सभी विद्वान स्वीकार करते हैं। जिस तरह भारत मे विश्वकर्मा को शिल्पशस्त्र का अविष्कार करने वाला देवता माना जाता हे और सभी कारीगर उनकी पुजा करते हे। उसी तरह चीन मे लु पान को बदइयों का देवता माना जाता है। प्राचीन ग्रन्थों के मनन-अनुशीलन से यह विदित होता है कि जहाँ ब्रहा, विष्णु ओर महेश की वन्दना-अर्चना हुई है, वही भनवान विश्वकर्मा को भी स्मरण-परिष्टवन किया गया है। 'विश्वकर्मा'  शब्द से ही यह अर्थ-व्यंजित होता है। हमारे हिंदू धर्म ग्रंथो में एक बहुत ही लोकप्रिय श्लोक भगवान विश्वकर्मा के संबंध में दर्ज है,  'विशवं कृत्स्नं कर्म व्यापारो वा यस्य सः'। अर्थातः जिसकी सम्यक् सृष्टि और कर्म व्यपार है, वह विशवकर्मा है। यही विश्वकर्मा प्रभु है। प्रभूत पराक्रम-प्रतिपत्र, विशवरुप विशवात्मा है।
    हमारे वेदों में  'विशवतः चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वस्पात।' कहकर इनकी सर्वव्यापकता, सर्वज्ञता, शक्ति-सम्पन्ता और अनन्तता दर्शायी गयी है। हमारा उद्देश्य तो यहाँ विश्वकर्मा जी का परिचय कराना है। माना कई विश्वकर्मा हुए हैं और आगे चलकर विश्वकर्मा के गुणों को धारण करने वाले श्रेष्ठ पुरुष को विश्वकर्मा की उपाधि से अलंकृत किया जाने लगा हो तो यह बात भी मानी जानी चाहिए। भारतीय संस्कृति के अंतर्गत भी शिल्प संकायो, कारखानो, उद्योगों में भगवान विशवकर्मा की महता को प्रगत करते हुए प्रत्येक वर्ष १७ सितम्बर को श्वम दिवस के रूप मे मनाता हे। यह उत्पादन-वृदि ओर राष्टीय समृद्धि के लिए एक संकलप दिवस है। यह जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान नारे को भी श्वम दिवस का संकल्प समाहित किये हुऐ हैं।
  भगवान विशवकर्मा जी की वर्ष मे कई बार पुजा व महोत्सव मनाया जाता है। जैसे भाद्रपद शुक्ला प्रतिपदा इस तिंथि की महिमा का पुर्व विवरण महाभारत मे विशेष रूप से मिलता है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा अर्चना की जाती है। यह शिलांग और पूर्वी बंगला मे मुख्य तौर पर मनाया जाता है। अन्नकुट (गोवर्धन पूजा) दिपावली से अगले दिन भगवान विश्वकर्मा जी की पुजा अर्चना (औजार पूजा) की जाती है। मई दिवस, विदेशी त्योहार का प्रतीक है। रुसी क्रांति श्रमिक वर्ग कि जीत का नाम ही मई मास के रुसी श्रम दिवस के रूप मे मनाया जाता है। 5 मई को ऋषि अंगिरा जयन्ति होने से विश्वकर्मा-पुजा महोत्सव मनाया जाता है भगवान विश्वकर्मा जी की जन्म तिथि माघ मास त्रयोदशी शुक्ल पक्ष दिन रविवार का ही साक्षत रूप से सुर्य की ज्योति है। ब्राहाण हेली को यजो से प्रसन हो कर माघ मास मे साक्षात रूप मे भगवान विश्वकर्मा ने दर्शन दिये। श्री विश्वकर्मा जी का वर्णन मदरहने वृध्द वशीष्ट पुराण मे भी है।
  हिंदू धर्म के मान्यता अनुसार चार युगों में विश्वकर्मा ने कई नगर और भवनों का निर्माण किया। कालक्रम में देखें तो सबसे पहले सत्ययुग में उन्होंने स्वर्गलोक का निर्माण किया, त्रेता युग में लंका का, द्वापर में द्वारका का और कलियुग के आरम्भ के  पच्चास वर्ष पूर्व हस्तिनापुर और इन्द्रप्रस्थ का निर्माण किया। आगे एक ऐसी ही मान्यता प्रचलित है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ मन्दिर में स्थित विशाल मूर्तियों क्रमश: कृष्ण, सुभद्रा और बलराम का निर्माण किया था।