'तीज व्रत' पति की दीर्घायु की कामना के साथ हमारी संस्कृति को भी विस्तार देता है
(6 सितंबर, भाद्रपद, शुक्ल पक्ष तृतीया 'हरतालिका तीज व्रत' पर विशेष)
भारत वर्ष में मनाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के पर्व और त्योहार हमारी संस्कृति के अभिन्न अंग हैं । इन पर्व त्योहारों ने हमारे पूरे समाज को एक मजबूत सूत्र में बांध रखा है। भारतीय पर्व त्योहारों का ताना-बाना कुछ इस तरह बना हुआ है कि परिवार के एक-एक सदस्य एक दूसरे से जुड़े रहते हैं । इसके साथ ही समाज के हर परिवार एक दूसरे से जुड़ जाते हैं । भारत की अर्थव्यवस्था को गति देने में इन पर्व त्योहारों का बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान है। इन पर्व त्योहारों के लिए बनाए गए रीति रिवाज कुछ इस तरह होते हैं, जो लोगों को आध्यात्मिकता और नैतिकता की ओर सीख प्रदान करते हैं। ये हमारी संस्कृति की रक्षा की सीख देते हैं। यही कारण है कि हजारों वर्षों तक भारत गुलाम रहने के बावजूद लोगों को एक दूसरे से अलग कर नहीं पाया। आज भी हमारी पुरातन संस्कृति उसी रूप में भारतीय समाज में दिखाई पड़ती है। आज भारतीय बाजार में जो रौनक और चहल-पहल दिखाई पड़ती है। उसमें सबसे बड़ा योगदान इन पर्व त्योहारों का होता है । कई लोग इन पर्व त्योहारों को समाज के लिए बोझ और फिजूल खर्ची मानते हैं। लेकिन उन्हें यह पता होना चाहिए कि इन्हीं पर्व त्योहारों की परंपरागत संस्कृति के कारण ही भारत गुलाम रहने के बावजूद हम सबों को एक दूसरे से अलग कर नहीं पाई।
तीज व्रत' पति की दीर्घायु की कामना के साथ हमारी संस्कृति को भी विस्तार देता है। इस बात को थोड़ी गहराई के साथ समझने की जरूरत है। हर एक परिवार में पति-पत्नी, बच्चें, दादी - दादी, भैया - भाभी, दीदी आदि सब रिश्ते होते हैं। सब एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। सब लोगों की एक दूसरे पर निर्भरता भी होती है। सभी एक दूसरे के सुख-दुख में जुड़े भी रहते हैं। हमारे परंपरागत भारतीय संस्कृति परिवार के सभी सदस्यों के लिए जवाबदेही भी तय कर रखी है। एक पति जिसका कार्य होता है, अपनी अर्धांगिनी, बच्चों और अपने माता-पिता साथ परिवार के अलग सदस्यों के लिए खाना-पीना के साथ हर आवश्यक सामग्री का इंतजाम करें। अर्थात पति को इन सारे इंतजाम करने के लिए कमाना पड़ता है। पति के माथे घर की एक बड़ी जवाब दे ही होती है। इसलिए पति का स्वस्थ होना और दीर्घायु होना बहुत ही जरूरी है । हमारी संस्कृति ने तीज व्रत को अर्धांगिनी के निर्जला उपवास से जोड़कर यह संदेश दिया है कि हर एक पत्नी को अपने पति की दीर्घायु व लंबी उम्र की कामना के लिए निर्जला उपवास करना है। यहां निर्जला उपवास एक संकेत है ।उसके अंदर छुपा तथ्य यह है कि परिवार के हर एक सदस्य को घर के मुखिया 'पति' के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने की जरूरत है। परिवार के सभी सदस्य अपने-अपने घर के मुखिया की देखभाल ठीक से करें। ताकि वह मुखिया पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ अपने परिवार के लिए धनोपाजर्न कर सके। अगर परिवार खुशहाल होगा, तभी समाज खुश रह सकेगा। समाज की खुशहाली से समाज सुसंगठित होगा। तभी राज्य और देश विकसित हो पाएगा।
भारत में मनाए जाने वाले विभिन्न पर्व त्योहारों के ऐसे- ऐसे नियम बने हुए हैं, जिन्हें जानकर देशवासियों को अपनी संस्कृति पर गौरव होगा। हमारे पूर्वजों ने भारतीय समाज को खुशहाल रखने और सुसंगठित बनाए रखने के लिए ही ऐसे ऐसे पर्व त्योहार का शुभारंभ किया था। हर पर्व के लिए ज्योतिषीय आधार पर माह, पक्ष और तिथियां तय है। जिस माह में जो भी पर्व मनाए जाते हैं, उस माह में कौन से ऋतु फल और अनाजों का उपयोग इन पर्वों और त्योहारों में होगा ? इसका विशेष ख्याल रखा गया है। चूंकि भारत वर्ष एक कृषि प्रधान देश है। आज भी भारत की अर्थव्यवस्था 70 से 80 प्रतिशत कृषि पर ही निर्भर है। हमारे पूर्वजों ने इन पर त्योहारों को कृषि उपज से जोड़कर भारतीय किसानों को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक सार्थक पहल कहा जा सकता है। हमारे हिंदू धार्मिक ग्रंथो का कथन है कि भारतीय संस्कृति के निर्माता हमारे देवऋषि, ऋषि-मुनी आदि रहें। उन सबों ने ज्योतिषीया और वैज्ञानिक आधार पर भारतीय भारत के हर एक परिवार की खुशी और देश की अर्थव्यवस्था को सर्वोत्तम बनाने के लिए इन त्योहारों की रचना की थी।
हरितालिका तीज व्रत भादो मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय को हस्त नक्षत्र के दिन मनाया ता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियाँ निर्जला उपवास रहकर गौरी-शङ्कर की विशेष रूप से पूजा करती हैं। देश में प्रचलित करवा चौथ व्रत भी पति की मंगल कामना के लिए मनाया जाता है।विशेषकर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला यह करवा चौथ से भी हरतालिका तीज व्रत कठिन माना जाता है। चूंकि करवाचौथ में चंद्रमा देखने के उपरांत व्रत सम्पन्न कर दिया जाता है। वहीं हरतालिका तीज व्रत में पूरे दिन निर्जल व्रत किया जाता है । अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत सम्पन्न जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती जी के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं। यहां विचारणीय यह है कि एक पत्नी अपने पति की लंबी उम्र की कामना के साथ निर्जला उपवास करती है । इस व्रत में उसके पति की मां, पिता एवं परिवार के सभी सदस्य उसी भाव से जुड़ जाते हैं। वहीं दूसरी ओर वह पत्नी, माता पार्वती और भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा करती हैं। अर्थात पति की मंगल कामना के साथ भगवान शंकर और पार्वती की भी कृपा प्राप्त कर लेती हैं ,जो मृत्यु पश्चात उसकी आत्मा को सद्गति की ओर ले जाती है।
हरितालिका तीज व्रत से संबंधित ऐसी मान्यताएं हैं कि सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन अनुसार वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं। सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शंकर के लिए रखा था। शिव पुराण में ऐसा वर्णन है कि माता पार्वती हर जन्म में शिव को पति के रूप प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी। कुमारी कन्याएं अगर हरतालिका तीज व्रत पर उपवास रखती हैं तो उन्हें भी अपने जन्म जन्म के साथी से ही विवाह संपन्न होगा।
हरतालिका तीज व्रत के दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर का ही पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं। पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शङ्कर की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके साथ पार्वती जी को सुहमें भजन , कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और शिव पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है।
हरितालिका व्रत की पात्र कुमारी कन्याएँ व सुहागिन महिलाएँ दोनों ही होती हैं । इस व्रत के संबंध में ऐसी मान्यता है कि एक बार व्रत रखने उपरांत जीवन पर्यन्त इस व्रत को रखना पड़ता है। यदि व्रती महिला गंभीर रोगी स्थिति में हो तो उसके स्थान पर दूसरी महिला व उसका पति भी इस व्रत को रख सकने का विधान है। ये सारे नियमों को हमारे ऋषि मुनियों ने बहुत ही सोच कर समझ बनाया। इन नियमों पर सवाल खड़े करने से बेहतर है कि इन नियमों की गहराई को जाने।
हरतालिका तीज व्रत के नियम अन्य व्रतों की अपेक्षा ज्यादा कठिन हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने इस व्रत को बहुत ही सूझबूझ के साथ कठिन बनाया । हरतालिका तीज व्रत के व्रती को शयन का निषेध है। इसके लिए उसे रात्रि में भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करना पड़ता है। प्रातः काल स्नान करने के पश्चात् श्रद्धा एवम भक्ति पूर्वक किसी सुपात्र सुहागिन महिला को श्रृंगार सामग्री ,वस्त्र ,खाद्य सामग्री ,फल ,मिष्ठान्न एवम यथा शक्ति आभूषण का दान करना चाहिए। आज की बदली परिस्थिति,आधुनिक व पश्चात जीवन शैली ने हमारी सोच को ही बदल कर रख दिया है। इसलिए हमारे ऋषि मुनियों ने भारतीय संस्कृति और परंपरा को जीवित रखने के लिए पर्वों और त्योहारों की परंपरा की शुरुआत की थी, उसे आत्मसात करने की जरूरत है।