“चरित्र चंदन सा होता है” :-अनंत धीश अमन
गया । इज्ज़त ना किसी के देने से बढती है और ना किसी के उतारने से उतरती है। इज्ज़त स्वंय के चरित्र निर्माण से निरंतर उत्कृष्ट होती रहती है। किंतु इंसान निरंतर अपने अहं से स्वंय का निर्माण करने में लग जाता है वो भूल जाता है “अहं” से स्वंय का निर्माण हो हीं नही सकता। वो इस भ्रम के जाल में स्वंय का निर्माण कर लेता है जहाँ इज्जत कोरा कागज मात्र रह जाता है। जहाँ दूसरे लोग जिस रुप रंग रास में भरना चाहते है वो भरने लगते है और दूसरो के भरे वो रुप को वो स्वंय का चरित्र समझने लगते है। इस भ्रम के जाल टूटते हीं वो स्वंय में भी टूट जाते है और झूठे इज्जत का सत्य जान वह एक वक्त निष्ठुर से हो जाते है। स्वंय का निर्माण न ‘अहं से और न भ्रम से’ इसका निर्माण विचार और विचार को जीवन में अपनाने के कर्म से होता है। वही आपके चरित्र को सचित्र करता है उसे आप किस ओर ढालते है यह आपके विचार पर निर्भर करता है।आपके चरित्र को न कोई दूसरा बना सकता है और न हीं कोई उसे बिगड़ सकता है। क्योंकि चरित्र चंदन सा होता है नागों के फन भी उसके सामने खड़े नही होते है बल्कि उसके सुगंध से वो भी मंत्रमुग्ध होते है।